यात्रा – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

आज तीसरा दिन था यहां आए हुए । ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं किसी स्वर्ग में आ गई हूं, हर तरफ प्राकृतिक नजारे,रंग बिरंगे मकान और होमस्टे,ऐसे लग रहा था जैसे पथरीले पहाड़ों पर ये बड़े बड़े फूल उग आए हों।

इन्हीं में से एक खूबसूरत होमस्टे में मैं ठहरी थी, यहां अक्सर आते रहने के कारण यहां की मालकिन मुझे बिल्कुल बेटी की तरह ही रखती हैं।

ये प्यार ही तो है जो मुझे बार बार यहां खींच लाता है।

इसलिए आते समय मैंने बिल्कुल किसी भी बात के लिए नहीं सोचा था।

मैं बस थक चुकी ‌थी वही रुटीन की नौकरी करते करते ऐसे लग रहा था कि या तो इसे छोड़ दूं नहीं तो मैं धीरे धीरे अवसाद ग्रस्त हो जाऊंगी।

नहीं नहीं काम की अधिकता या कोई प्रैशर नहीं था पर मैं इस रुटीन से थक गई थी इसलिए बॉस को सारी स्थिति बताकर पंद्रह दिन का वर्क फ्रॉम होम सॉरी वर्क फ्रॉम पहाड़ ले लिया था।

सर को पता था कि मैं काम वहां से भी परफेक्टली ही करूंगी ।

इसलिए उन्होंने तुरंत ही परमिशन दे दी थी।

रात के दो बजे तक काम खत्म कर मैं दो घंटे के लिए सो गई थी क्योंकि आज मुझे सूर्योदय देखना था और यहां सूर्योदय जल्दी होता है। इसलिए मैं चार बजे ही जग कर होमस्टे से बाहर आ गई थी।

यहां से पीक से सूर्योदय देखने के लिए मुझे सीधे ऊपर की तरफ लगभग एक घंटे तक चलना था ।

लेकिन जब आप किसी के प्रति जुनूनी हों तो ऐसी बातें मायने नहीं रखतीं और मैं धीरे-धीरे प्राकृतिक नजारों का आनंद लेते हुए खड़ी थी यहां इस पीक पर दोनों हाथ फैलाए जैसे प्रकृति को गले से लगने को बेताब कोई बच्चा।

एक तरफ गहरी खाई तो दूसरी तरफ ऊंची पर्वत चोटियां और सामने ही माता का मंदिर,और क्या चाहिए था मुझे?

यहां पहुंचते पहुंचते पूरब की तरफ का आसमान लालिमा लेने लगा था ये संकेत था कि अरुण देव बस दर्शन देने को ही हैं। उफ़ क्या ही अद्भुत दृश्य था।

 मुझे ध्यान नहीं मैं कितनी देर इस अद्भुत दृश्य को देखती रही, मैंने कुछ नहीं किया बस इतनी देर इसे अपलक निहारती रही। मुझे कुछ याद नहीं रहा मैं यहां क्यूं हूं कब से हूं?

जब सूर्य देव बिल्कुल ऊपर आ गए और कुछ लोगों की आहट भी आस-पास सुनाई दी तो मैं इस सम्मोहन से बाहर आई ।

प्रकृति कितनी अद्भुत है । मेरी बैचेनी को चैन यहीं आकर मिलता है।

 मैं अब बिल्कुल शांत थी जैसे कोई झील, जिसमें अब कोई भी लहर न रही हो, एक दो दिन पहले वाली बैचैनी न जाने कहां झूमंतर हो चुकी थी ।

मुझे कहीं जाने की कोई जल्दी नहीं थी और मैं यहां एक कोने मैं बैठकर सामने देवी मां के मंदिर को निहारने लगी।

हे मां आप इसलिए ही हमेशा ऊंचे पहाड़ों पर विराजती रहीं हैं ,और मन ही मन मां को प्रणाम किया।

यहां की सकारात्मक ऊर्जा को मैं दूर से भी महसूस कर रही थी।

मुझे न यहां से उठने की कोई जल्दी थी न कहीं पहुंचने की, मां से मैं यहां से भी साक्षात्कार कर पा रही थी।

लोग आ जा रहे थे और मैं प्रकृति का आनंद ले रही थी।

धीरे धीरे आसमान पर बादलों ने घेरा बनाना शुरू किया । 

मैं, मां और प्रकृति मां की आराधना में लीन इस परिवर्तन पर गौर न कर सकी ।

धीरे धीरे बादलों ने सूरज को ढक लिया और अब यह संकेत था कि बारिश किसी भी समय शुरू हो सकती है।

पहाड़ों पर यह कोई नई बात नहीं, यहां अक्सर दोपहर में मौसम बदल जाता है।

लेकिन यहां अब रुकना ठीक नहीं था, वातावरण में ठंडक बढ़ रही थी और मेरे पास पर्याप्त कपड़े नहीं थे न ही बारिश से बचने का कोई साधन इसलिए मैं उठी और नीचे की तरफ चलने लगी, अधिकांश आने वाले पहले ही नीचे जा चुके थे ।

मैं जितना तेजी से नीचे उतर रही थी उससे कई गुना तेजी से बादलों ने रुख बदला और वह बरसने लगे।

मुझे याद था कि आते समय एक जगह पत्थरों से बनी छानी है और अब बस मुझे जल्द से जल्द वहां पहुंचना होगा।

मैं छानी तक पहुंचते पहुंचते भीग कर सराबोर हो चुकी थी । बहुत ठंड लग रही थी लेकिन इससे बचने का कोई उपाय नहीं था ।

बारिश ने रौद्र रूप धारण कर लिया था । ऐसा लग रहा था प्रकृति आज अपने विकराल रूप को दिखाने को आतुर थी । 

मैं अपने को बेबस महसूस कर रही थी लेकिन सब-कुछ देवी मां पर छोड़ दिया कि मां आप जैसा बेहतर समझेंगी वह करेंगी ।अगर आज मुझे यहां ही प्रकृति से एकाकार होना है तो यह मेरा सौभाग्य होगा । कहां किसी को उसकी पसंदीदा जगह मिलती है अंतिम सांसें लेने के लिए ,और मैं पालती लगाकर इसी छानी मैं मां का ध्यान करने लगी ।

मन थोड़ा सा डरा रहा था । मैंने उसे समझाया, देखो तुम्हारी चिंता जायज है , पर मैं इसमें भी खुश हूं । इसलिए मुझे ध्यान केंद्रित करने में मदद करो।

धीरे धीरे इसी तरह लगभग दो घंटे गुजर गए ।

दो घंटे बाद मुझे कुछ हलचल महसूस हुई तो आंखें खोलकर देखा बाहर का मौसम साफ था, सूर्य फिर से चमकने लगा था और अब फिर से कुछ सैलानी ऊपर जा रहे थे।

मैंने मां को हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा और नीचे स्टे की तरफ चल दी ,इस विचार के साथ कि कल आकर फिर से मां के सानिध्य में बैठना है ।

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पूनम सारस्वत, अलीगढ़

#देखो तुम्हारी चिंता तो जायज है

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