आदित्य अपने रुटीन से आफिस जाने के लिए तैयार होकर डाइनिंग टेबल पर बैठे। बैठते ही बोले ” अदिति क्या नाश्ता बनाया है।लाओ भाई, आफिस चलें” । अदिति ने नाश्ता और आफिस के लिए टिफिन बॉक्स लाकर टेबल पर रख दिया और बिना कुछ बोले किचन में चली गई। नाश्ता करते हुए आदित्य पुनः बोले ” क्या बात है, मुझसे कुछ नाराज़गी है?आज सुबह चाय पर भी अपने कोई बात नहीं की और इस समय भी साथ बैठीं नहीं। ” ज़रुरी तो नहीं कि हर समय मैं ही बात करूं”। अदिति ने ज़वाब दिया। आदित्य ने मुस्कुराते हुए पुनः कहा, ” अच्छा बाबा,मान लेता हूँ कि मैंने बात नहीं किया। अभी तो आफिस जाना है”। आदित्य को कार तक छोड़ने अदिति दरवाजे पर आई।” अरे! ज़रा मुस्कुरा कर तो सीआफ़ करो” मुस्करा कर कहते हुए कार में बैठ गए।
इसी तरह प्रेम भरी बातों से पति-पत्नी का रूठना मनाना अक्सर चलता रहता था। परन्तु आज कुछ अलग ही स्थिति थी। शाम के छः बज गए। प्रतिदिन की भांति आज भी अदिति बड़ी बेसब्री से बाहर बरामदे में बैठी आदित्य के आने का इंतजार कर रही थी कि कुछ ही समय बाद आदित्य आ गए।स्मित मुस्कान से अदिति को बांहों में भर कर बोले, ” मैं जानता हूँ कि मेरी पत्नी मुझे बहुत प्यार करती है। तभी तो रोज़ मेरी राह देखती रहती है”। स्वयं को अलग करती हुई अदिति ने कहा, ” अच्छा हटिए, इतनी उम्र हो गई,अभी भी ऐसी बातें करते हैं” ” अभी तो हम जवान हैं, हंसते हुए आदित्य ने कहा। कोई सुनेगा तो यही कहेगा कि बुढउ अभी जवान बने हैं”। कहते हुए अदिति भी थोड़ा मुस्कुरा दी।
रात्रि में जब पति पत्नी शयन हेतु लीविंग रुम में गए, तब आदित्य ने अदिति से पूछा, ” अदिति, क ई दिनों से देख रहा हूँ कि तुम उदास और चिंतामग्न हो। क्या सोचती हो?”
” कुछ नहीं, बस ऐसे ही, कभी कभी मन दुखी हो जाता है।”
” क्यों, क्या मैंने कुछ कमी रखा है।जो भी है, खुलकर बताओ “। ” आपने नहीं, ईश्वर ने कमी रखा है। मैं मां नहीं बन सकी।आपको संतान सुख नहीं दे पाई।पास पड़ोस के लोगों को जब देखती हूँ तो मन दुखी हो जाता है। आत्मग्लानि सी होती है।वह अपने आंखों में आए आंसू को पोछन लगती है।
आदित्य का हृदय भी संतान सुख न मिलने से आहत तो था ही, परन्तु कहते हैं न कि पुरुष अपने दुःख को व्यक्त नहीं करता। आदित्य इस दुःख को अपने हृदय में बंद कर लिए थे। अदिति के सामने ख़ुश रहने का बस दिखावा मात्र करते थे। पर वह स्थिति प्रकट ही हो गई। अदिति को समझाते हुए बोले, ” बहुत से लोग हैं जिन्हें ख़ुद की संतान नहीं है, लेकिन वे खुश रहते हैं दूसरों के बच्चों को प्यार करके। जिंदगी ऐसे ही चलती है। दूसरे बच्चों को खुशी दें, इससे बढ़कर और अच्छी बात क्या हो सकती है”। ” दूसरे बच्चों को प्यार तो कर सकते हैं और करते भी हैं,पर हक नहीं जता सकते “। अदिति ने जवाब दिया। ” नि:स्वार्थ बनों ” कहकर करवट लेकर थोड़ी ही देर में खर्राटे लेने लगे।
कुछ दिनों पश्चात् आफिस से आने पर चाय पीते समय आदित्य ने बताया कि उनके भाई अखिल का फोन आया था। उन्होंने बुलाया है। अदिति ने उत्सुकता से पूछा,” सब ठीक तो है न । “हां, सब ठीक है।कह रहे थे कि बहुत दिन हुए, तुम लोगों से मिले। छुट्टी मिले तो आ जाओ। बच्चे तुम लोगों को याद करते हैं”। ” आपने क्या सोचा ” “सोचता हूँ कि अगले महीने एक हफ्ते के लिए चला जाए “।” हां, ठीक है। मैं तैयारी कर लेती हूँ” ।
गांव में घर के सामने आदित्य की कार जैसे ही रुकती है, देखते ही बच्चे दौड़ पड़ते हैं। “चाचा आ गए, चाची आ गईं” चिल्लाते हुए पास आ जाते हैं। अदिति उन्हें बड़े प्यार से बाहों में भर लेती है और चूमती है। अखिल और उनकी पत्नी मयूरी उन दोनों का आवभगत करते हैं और रास्ते का हाल पूछते हैं। आदित्य ने बताया कि सड़क तो बहुत अच्छी बन गई है। फर्राटे से गाड़ी चली है। फिर आदित्य ने भाई अखिल से पूछा, ” आप बताएं कैसा चल रहा है”। ” हम ठीक हैं। खेती-बाड़ी के चक्कर में मैं तुम्हारे यहां आ नहीं पाता, इसलिए तुम्हें बुला लेता हूँ”। अखिल ने जवाब दिया।
एक शाम को सभी सदस्य आंगन में बैठे हुए थे। बच्चों की बात आने पर अखिल ने कुछ संकोच करते हुए आदित्य से कहा, “अगर तुम लोगों को कोई परेशानी न हो तो मैं चाहता हूँ कि अमित को अपने साथ ले जाओ, वहीं पढ़ाओ। शहर में पड़ेगा तो कुछ बन जाएगा।” “यह तो आपने बहुत अच्छा सोचा। हमें क्या आपत्ति होगी। बल्कि हमें तो एक ख़ुशी का आलंबन मिल जाएगा। अदिति का मन भी इसके साथ लगा रहेगा। “आदित्य ने खुशी जताते हुए जवाब दिया। अदिति ने अमित को अपने पास बुला कर पूछा, ” बेटा अमित चलोगे हमारे साथ?” अमित ने प्रसन्न होकर कहा, ” हां चलूंगा आपके साथ”।
दस साल का बच्चा अमित आदित्य अदिति के साथ लखनऊ आ गया।उसका नाम पांचवीं क्लास में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में करा दिया गया। आदित्य उसकी पढ़ाई पर ध्यान देते और अदिति उसके खान- पान खेलकूद पर ध्यान रखतीं । दोनों हमेशा इस बात का ध्यान रखते कि किसी बात से वह दुखी न हो जाए।
समय बीतता गया। एक सुखद समय आया जब अमित पढ़ाई समाप्त कर इंजिनियर बन गया और उसी वर्ष एक दुखद समय आया -उसके चाचा परलोक सिधार गए।सारे क्रियाकर्म समाप्त हो जाने पर अमित ने अदिति से कहा,” चाची आप हमारे साथ चलने की तैयारी कर लीजिए।कल शाम को हम निकलेंगे”। अदिति ने कहा,” बेटा, अभी तुम्हारी नई नई नौकरी है। मुझे ले जाकर बन्धन में मत फंसो। थोड़ी स्वतंत्रता से जी लो। मुझे यहां कोई परेशानी नहीं होगी”।
“कैसा बन्धन, आप ऐसे कैसे कह सकतीं हैं। आप और चाचा के # अपनत्व की छांव में ही तो मैं पला बढ़ा हूँ और इस योग्य हुआ हूँ । मानता हूँ कि आपने हमें जन्म नहीं दिया है, पर आप ही तो मेरी यशोदा मां हो। मैं कैसे आपको छोड़ सकता हूँ”। इस वार्तालाप से ऐसा करुण दृश्य उत्पन्न हो गया कि वहां उपस्थित लोगों की आंखों में आंसू आ गए। मां पुत्र नियत समय पर कार्यस्थल पर जाने के लिए प्रस्थान कर गए।
स्वलिखित मौलिक
गीता अस्थाना,
बंगलुरू, कर्नाटका।
# अपनत्व की छांव