Moral Stories in Hindi
खूबसूरत रंग बिरंगे असली फूलों से सजा हुआ घर और छत सुंदरता से अलग ही छटा बिखेर रहा था, दूर से देखने वाला ही समझ जाता कि वर्मा परिवार के इकलौते बेटे निकुंज की शादी है । दो बेटियों के बाद बड़े मन्नतों से ये बेटा हुआ था । रिश्तेदारों में शायद ही कोई इक्का दुक्का रिश्तेदार होगा जो उस खूबसूरत शादी का गवाह नहीं बना होगा ।
इधर मेघा भी मनसुख जी की इकलौती बेटी थी । सुंदरता ऐसी कि जो देखे एक नज़र में दीवाना हो जाए । हाइट भी अच्छी, रंग गोरा, आँखों मे अपनापन और चेहरे पर हरदम मुस्कुराहट । तभी तो निकुंज उसे देखकर दिल हार बैठा और मिलते छिपते हुए आखिर अपने मम्मी – पापा को मेघा के बारे में बता दिया । और फिर क्या…चट मंगनी , पट ब्याह ! आज ही दुल्हन का गृह प्रवेश था । हर कोई
दरवाजे पर आरती पानी उतारने से पहले एक बार जरूर कहता…”क्या कोहिनूर पाया है निकुंज ने ! और निकुंज भी इतराते हुए कहता…”पाया नहीं, बड़ी मुश्किल से ढूँढ़ कर लाया हूँ । अब दरवाजे से अंदर आ गयी मेघा और सारे परिवारजन निकुंज और मेघा के साथ रस्मो में ब्यस्त थे । चाची और
मामी ने हँसी ठिठोली करते हुए कहा…”मेघा की बहन हो तो अपने भाइयों के लिए भी देखना निकुंज । ओह ! बड़ी प्यारी है मेघा !
अचानक रस्मों के दौरान निकुंज उठ खड़ा होता है , उसे शरीर में बेचैनी और पेट मे चुभन सी महसूस होती है । सुलभा चाची और रीना बुआ दोनो दौड़ कर जाती हैं निकुंज के पीछे – पीछे और बोलती हैं …”निकुंज बाबू ! ये अपशगुन होता है, बिल्कुल अच्छा नहीं यूँ रस्मों के समय दुल्हन के गठबंधन
छोड़कर उठ जाना । निकुंज कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था, उसने सिर पकड़कर तेजी से दबाना शुरू किया । मेघा दौड़ी हुई उसे खोजते – खोजते उसके पास आकर पूछने लगी…”क्या हुआ निकु ? मेघा ने निकुंज का हाथ पकड़ते हुए ..निकुंज ने हांफते हुए कहा “सिर दर्द से फट रहा है मेघा ! और फिर वो करवटें बदल कर एक हाथ सीने पर रखे हुए दर्द से तड़पने लगा ।
निकुंज के पापा विकाश जी ने जल्दी से गाड़ी निकाली और अपने भाई विनय से बोले…जल्दी से निकुंज को लेकर आओ, अस्पताल चलते हैं । निकुंज की दीदी ने जल्दी से साधारण कपड़े निकालकर मेघा को पहनने दे दिया हिदायत देते हुए कि तुम्हें आने की जरूरत नहीं है तुम घर पर रहो, हम सब अस्पताल जा रहे हैं । निकुंज की स्थिति ठीक होते ही तुम्हें फोन करेंगे । हालांकि मेघा का दिल बिल्कुल गवाही नहीं दे रहा था कि वो अकेले में ऐसी स्थिति में नए घर में रहे ।
देखते – देखते अफरातफरी सा माहौल पूरे घर मे छा गया । मेघा को एक कमरे में अकेले छोड़कर परिवार वाले तो सब अस्पताल रवाना हो गए और रिश्तेदार कोई परेशान , कोई बातें बनाने में तो कोई कानाफूसी में लगा हुआ था । दुल्हन की तो किसी को फिक्र ही नहीं थी । ये कैसी मनहूस घड़ी थी जब शादी के घर में दुल्हन अकेली विवश पड़ी थी । किससे पूछें आगे क्या करें, कपड़े किधर बदलें,
किधर रखें आदि । सोच – सोचकर मेघा का सिर भी दर्द से फट रहा था । फोन लगाया ननद को तो उन्होंने फोन नहीं उठाया, सासू माँ को लगाया तो कवरेज क्षेत्र से बाहर । देखते – देखते दोपहर ढल गया, शाम होने को आई । बेचैनी और नींद नहीं पूरी होने की वजह से मेघा की आँखें सूज गयी थीं । तभी दूसरी ओर से हल्की आवाज़ आयी…”मेघा बहू ! कुछ खा लो, अस्पताल से आने में जाने कितना
समय लग जाए । मेघा ने सामने देखा तो निकुंज की मौसी भारती जी थीं । चेहरे पर खूब पानी के छींटे लेने के बाद मेघा ने अपना मेकप साफ किया, चेहरा थोड़ा हल्का लेकिन मन बहुत भारी लग रहा था । शीशे के पास वो बैठी ही थी आभूषण उतारने के लिए कि मेघा की मम्मी का फोन आया । वह ज़ोर
ज़ोर से निकुंज का नाम लेकर रोने लगी । बहुत ढाढस बंधाने की कोशिश किया मम्मी पापा ने पर मेघा चुप ही नहीं हो रही थी ।
दरवाजे पर घण्टी बजी । बाई मेहमान के साथ आई तो मेघा ने देखा उसके मम्मी पापा हैं और वो गले लगकर बेसुध हो रो पड़ी । अभी सोफे पर बैठे ही थे मम्मी – पापा कि मेघा के पापा के नम्बर पर कॉल आया । उनकी आवाज़ मानो अटक गयी और साँसें थम सी गईं । मेघा और उसकी मम्मी का चेहरा
अवाक रह गया उनके मुख का भाव देखकर । उन्हें बताया गया कि निकुंज को ब्रेन हैमरेज हुआ और बी. पी नियंत्रण से बाहर होने से जान चली गयी । मेघा कुछ बोलती उससे पहले अंदेशा हो गया था उसे । तभी अचानक घर में अस्पताल से भीड़ वापस आने लगी । कुछ समय पहले जो खुशियों का माहौल था अचानक से मातम में बदल गया । मेघा के आँखों में भरा हुआ शैलाब बिखरने ही वाला था
कि मेघा की सास ने मेघा पर नज़र पड़ते ही बोलना शुरू कर दिया…”करमजली, मनहूस , डायन ! मेरे लाल को आते ही खा गई, और दहाड़ें मार कर रोने लगी । रिश्तेदार , पड़ोसी सब रोना पीटना सुनकर इकट्ठे हो गए । अजीब सा दर्दनाक दृश्य था । चारों तरफ सिर्फ रोना, चीख ही सुनाई दे रहा था । जो गुजरता सामने से मेघा को तरेरते हुए जाता । मेघा को जल्दी से कपड़े बदलवाए गए । निकुंज के पापा ने बॉडी को घर लाने की बात कही । मेघा की सास ननद खूब गालियाँ दे रहे थे मेघा को ।
उसकी स्थिति काटो तो खून नहीं जैसी थी । रिश्तेदार भी उल्टी सीधी बातें बना रहे थे ।कोई चुप कराने और हमदर्दी दिखाने वाला उसे नहीं दिख रहा था । मेघा के मम्मी पापा मेघा के पास आकर सिर पर हाथ फेरने लगे । निकुंज की मौसी, चाची सब बोलने लगीं..अपनी डायन बेटी को आपने हमारे घर भेजा और हमारा घर बर्बाद कर दी ।”कैसी कुलक्षिणी ले आयी जिज्जी ! इसने घर मे कदम रखते ही हमारे निकुंज को छीन लिया । मेघा के मम्मी पापा कुछ बोलने के हालात में नहीं थे ।
मेघा समझ नहीं पा रही थी अचानक क्या हुआ और उसका दोष कहाँ है ? अभी तो ये साज – सजावट, घर की खुबसूरती अनमोल पल के गवाह ही बनने वाले थे कि न जाने कैसे ये #काली रात आ गई । बहुत भीड़ इकट्ठा हो गयी घर में । अवाक सी मुँह बनाए आँसुओं में डूबी हुई अबूझ पहेली सी मेघा कभी घर को, कभी खुद को तो कभी दीवार पर टँगे निकुंज की फोटो को देखती ।
जो आ रहा था वही देखकर बातें बनाने में लगा था ।
बॉडी घर आ चुकी थी । अब पूरे घर मे आँसू और चीखें सिर्फ सुनाई दे रही थीं । थोड़ी देर बाद निकुंज की दूसरी बुआ आईं और वो प्यार से अपने साथ मेघा को दूसरे कमरे में ले गईं । पीठ पर उनकी छुअन पाने से मेघा बेचैम होकर उनमें अपनापन ढूँढने लगी और उनके गले लगकर खूब ज़ोर ज़ोर से
बोलते हुए रोने लगी…मैं कितनी मनहूस हूँ बुआ, अभी निकुंज को जी भर देखी भी नहीं और वो मुझे छोड़ गए । निकुंज की बुआ ने देर तक उसे चिपकाए रखा और प्यार से बोला…”सब ईश्वर की मर्जी है, यही भाग्य है बेटी, अपने हाथ में कुछ नहीं , न इसमें तुम्हारा कोई दोष है । अब बुआ ने आगे की हर रस्म मेघा को सलाह और साथ देते हुए पूरी कराई ।
तेरहवीं के दिन जब पंडित जी आखिरी बार आए तो उन्होंने सलाह दिया…”अभी इस लड़की को विदा कर दीजिए, घरवाले शादी- ब्याह कर देंगे, उम्र ही क्या हुई है । “जी पंडित जी ! अब यहाँ हम रखेंगे भी नहीं । ये तो निकुंज की अभी दुल्हन ही बनी थी । पंडित जी ने निकुंज की चाची और मामी मौसी
की तरफ देखते हुए कहा…”लड़की का भला हो जाएगा, आपलोग को पसन्द ही थी, जो ईश्वर ने लिखा था वो हो ही गया । आप भी अपने बेटे के लिए लड़की ढूँढ रहे थे तो सहर्ष इसे स्वीकार करिए । घर की बात घर मे ही रह जाएगी । एक साल बीतने पर सोचिएगा जरूर ।
बिल्कुल खनकती रौद्र आवाज़ में सबने बोला…”नहीं ! नहीं हम तो नहीं करेंगे, अपने बच्चे की शादी । बहुत प्यार है हमे अपने बच्चे से । हालांकि पंडित जी समझाने में लगे थे ऐसा कुछ नहीं होगा, ये तो होनी थी तभी तबियत खराब कारण बना । हर वक़्त ऐसा नहीं हो सकता है , पर औरतें अपना ही राग अलापने में लगी थीं । मेघा के मम्मी पापा सामान उठाकर और गाड़ी में भरने जा रही थे तब तक मेघा सास – ससुर के पैर छूने लगी तो ससुर ने नज़रें फेर लिया और सास दूसरे कमरे में चली गईं ।
अब उसकी हिम्मत नहीं हुई वहाँ एक पल रुकने की । उसने पति की तस्वीर को देख कर प्रणाम किया और गाड़ी में बैठ गयी ।
पूरे रास्ते उसके दिमाग मे यही बात चल रही थी कि उसने क्या बिगाड़ा था किसी का जो एक खुबसूरत दिन #काली रात में बदल गया, वो काली रात जिसे वो जीवन में कभी नहीं याद करना चाहेगी । अंदर ही अंदर वो बुदबुदा रही थी ईश्वर ने क्यों उसपर मनहूस का धब्बा लगा दिया, जो आजीवन नहीं उतरेगा ।
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह
#काली रात