वो काला दिन – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

उस दिन मौसम बहुत सुहावना था । दोनो भाई अमित, अनंत घूमने निकले । मुश्किल से दो घण्टे की दूरी पर वो रहते थे । आपस में अच्छी बनती थी उनकी , जब ज़िन्दगी के लुत्फ उठाना हो सैर- सपाटे के लिए निकल पड़ते । ये विभिन्न डे मनाने का प्रचलन विदेशों की ही तो देन है । मदर्स डे था, बाजारों की रौनक तो देखते बन रही थी ।

यूँ तो विदेश आ जाने के बाद उन्हें मां के प्यार और माँ नाम के एहसास की उन्हें बिल्कुल फिक्र नहीं थी पर अपने बच्चों की ज़िद की खातिर  वो चले आए । लगभग छः महीने हो गए थे माँ की खबर लिए, लेकिन अपनी दुनिया में वो व्यस्त थे ।

एक दिन अनन्त के ससुराल से फोन आया…”दामाद बाबू ! छुटियाँ पड़ रही हैं, मेरी बेटी प्रिया और नाती नातिन चीकू और रिद्धि को देखे बड़े दिन हो गए, एक बार भेंट करवा दीजिए ।

“जी मम्मी जी ”  टिकट देखता हूँ कहकर अनन्त ने फोन रख दिया

 । इसके बाद अनन्त का अपने भाई अमित के घर जाना हुआ तो उसने बताया अब कि जो छुट्टियाँ पड़ेंगी प्रिया और बच्चों के साथ मैं अपने ससुराल जा रहा हूँ । बच्चों के नाना नानी तरस गए हैं मिलने को, बहुत खुश होते हैं वो इन बच्चों के साथ । अमित ने खुशी जताते हुए कहा..”हमारा उधर तो जाने का कोई कार्यक्रम नहीं है लेकिन रूबी (पत्नी) की भाभी भैया और बच्चे , उसके मम्मी पापा सब दिल्ली स्टेशन पहुँच कर वहाँ से नैनीताल घूमने जाएँगे । वाह !..बहुत अच्छा है , सबके साथ खूब मजा आएगा । बड़ी सी मुस्कान बिखेरते हुए अनन्त ने कहा ।

एक सप्ताह बाद अमित और अनन्त दोनो बेटों के पास उनके पिता सुधीर जी का फोन आया । उन्होंने कहा..”माँ बहुत बीमार है बेटा ! तुमलोग को देखने की इच्छा जता रही है । अमित ने पूछा..”वायरल ही है न, एक सप्ताह से ज्यादा नहीं लगेंगे ठीक होने में । मैं वीडियो कॉल करूँगा आज शाम । अनन्त को फोन मिलाया तो उसने कहा..”अभी छुट्टी नहीं ले पाउँगा, अगले महीने का छुट्टी लिया हुआ है । सुधीर जी को लगा जैसे आँसू सूख गए अंदर ही अंदर दिल रो रहा था  ।

मन गवाही नहीं दे रहा था दुबारा फोन करूँ पर पत्नी प्रतिमा जी के कहने पर उन्होंने फिर से फोन लगाने की हिम्मत जुटाई । इधर माँ की खराब तबियत सुनकर बेटी चित्रा दिल्ली से इलाहाबाद माँ को देखने चली आयी ।

सुधीर जी का कलेजा बेटी को देखकर खुशी से दोगुना हो गया लेकिन प्रतिमा जी के अंदर बेटे को देखने की चाह अभी भी प्रबल थी । सुधीर जी ने चित्रा से कहा…”भैया को फोन लगाओ बेटा ! माँ की स्थिति खराब हो रही है । चित्रा ने मायूसी जताते हुए कहा…”मुझे तो जब पता चला था तभी भैया भाभी को फोन किया था पापा, पर उनलोगों ने छुट्टी का वास्ता देकर मेरा मुँह बंद करा दिया । 

प्रतिमा जी को तड़पता देख सुधीर जी ने फिर से फोन मिलाया । अमित का फोन उसकी ग्यारह वर्षीय बेटी रिया ने उठाकर बोला कि मम्मी – पापा पार्टी में गए हैं, आकर आपको कॉल करेंगे । अनन्त के यहाँ  कॉल किया तो उसने बोलने से पहले ही बोल दिया…ऑफिस का काम चल रहा है पापा एक घण्टे बाद कॉल करूँगा । सुधीर जी ने फोन रख दिया । फिर इंतज़ार करते करते न अमित पार्टी से आकर कॉल किया न अनन्त का एक घण्टा आया ।

बिस्तर पर लेटे – लेटे प्रतिमा जी की आँखों से निरंतर नीर बहते जा रहे थे ।  दिमाग मे बस यही चल रहा था..”जिनके लिए मन्नत माँगी थी तो भगवान एक नहीं दो बेटे दिए, क्या ये वही हैं ? सुधीर जी के लिए ये बहुत तकलीफ देह था लेकिन कर भी क्या सकते थे । बेटे – बहु सुनते ही नहीं विदेश जाकर बस विदेशी ही हो गए थे ।

एक दिन जाँच कराने गए तो डॉक्टर ने जवाब दे दिया । बुखार शरीर के अंदर बुरी तरह फैल गया है और टायफाइड जकड़ लिया है । घर आने पर सुधीर जी के भाई विक्रम जी ने अपने पत्नी, बहन और बच्चों को फोन किया । प्रतिमा जी के भाई- भाभी और दीदी सबको फोन किया गया । सुधीर जी की दोनो दीदी रूपा, रेणु टिकट लेकर अगले ही दिन आ गयी थीं । 

धीरे – धीरे सभी रिश्तेदार परिवार एकत्रित हो गए । विक्रम जी ने सुधीर जी को समझाते हुए कहा…”भैया ! भाभी की न जाने कब आखिरी साँस हो , अमित अनन्त को भी आखिरी बार फोन कर दीजिए । 

सुधीर जी ने हाथों से इशारा करते हुए कहा…बस विक्रम ! अभी दो दिन पहले तो फोन किया था । माँ को देखने आने के लिए क्या पैर पकड़ूँ ..?विक्रम जी सुधीर की बातें सुनकर स्तब्ध रह गए । सभी परिवार जन और रिश्तेदार अब तक यही समझ रहे थे कि दोनों बेटे विदेश में बसे हुए हैं अथाह पैसे हैं तो सुधीर जी जैसा खुशनसीब कौन होगा ।

स्थिति भांपने में लगे थे सब कि बाहर की दिखावटी दुनिया और सुधीर व प्रतिमा जी की मुस्कुराहट के पीछे इतना गहरा और काला राज छिपा था किसी ने नहीं सोचा था । सुधीर जी भीतर ही भीतर बुदबुदा रहे थे…”जब गृहलक्ष्मी रूठ कर जाती है तो घर की इज्जत खत्म हो जाती है ।

इधर तीनों बेटियाँ चित्रा ,रूपा, रेणु अपनी माँ, भाभी के चले जाने के दुख में , मायके छूट जाने के गम में उदास हो रही थीं ।

अब प्रतिमा जी की साँसें थम रही थीं । तुलसी और गंगाजल डालते ही प्रतिमा जी ने प्राण त्याग दिए । रूपा, रेणु ,चित्रा सबने ज़ोर – ज़ोर से रोना शुरू कर दिया । कुछ ही देर में देखते – देखते घर से असहाय स्थिति में भाव – विह्वल होकर रुदन – क्रंदन की आवाज़ वातावरण में घुल गयी । पड़ोसी भी सुनकर एकत्रित होने लगे ।

अब विक्रम जी की पत्नी सुनयना जी सुधीर जी के पैर पकड़ कर बोलने लगीं..”भैया ! अब तो बच्चों को बुला लीजिए । अंतिम दर्शन तो करने दीजिए, मत इतने कठोर बनिये । मैं फोन लगाती हूँ अमित को । “नहीं ! सुधीर जी की चीखती हुई आवाज़ से सब सत्र रह गए । विक्रम जी ने सुधीर जी के कंधे पर हाथ रख के धीरे से उन्हें समझाना चाहा पर इस बार बिल्कुल अटल थे सुधीर जी ।

वह बोलने लगे…”जब बेटे जीते जी नहीं देखने आए तो अंतिम दर्शन का क्या मोल है ? हर रिश्ते ने अपना फर्ज निभाया सिर्फ बेटों के सिवा । भैया ..आप ये भी तो सोचिए क्रिया – कर्म कौन करेगा ? क्यों..? कहाँ लिखा है कि औलाद नकारा हो तो भी उसी के हाथों से होगा क्रिया कर्म ।मैं जीवित हूँ अभी । कोई फोन नहीं करेगा अमित और अनन्त को । 

आँखें बिल्कुल लाल, बातों में गुस्सा और दर्द लिए कितनी मजबूती से उनका निर्णय दिख रहा था । फिर किसी की हिम्मत नहीं हुई उनदोनो को फोन करने की । 

अच्छे से सजा धजकर प्रतिमा जी की विदाई हुई । क्रिया कर्म सब सुधीर जी ने स्वयं किया । ऐसे ही नौ दिन निकल गए । दसवें दिन जब बाल उतरवाकर किसी काम से विक्रम जी, अमित के फूफा जी और मामा जी बाजार निकले तो वहाँ अचानक एक दुकान पर अनंत दिख गया ।

किसी को ध्यान ही नहीं आया कि  अनंत भी हो सकता है , क्योंकि उसके आने की कोई खबर नहीं थी ।अनंत अपने परिवार जनों को देखते ही नज़दीक जाकर मुस्कुराते हुए पूछा…”अरे ! चाचाजी , मामा, फूफा आप सबलोग एक साथ कैसे ? सबको गले से लगाते हुए अनन्त ने कहा..

“कितनी मुश्किल से मिलना हो पाया आपलोगों से । और ये..गर्मी का बुरा हाल हो रखा है, आप सबने मिलकर अपने बाल उतरवा लिए ।

तभी अनंत के मामा जी ने कहा..”कब आए हो ससुराल ? “जी अभी दस- ,बारह दिन हुए हैं। 1 महीने की छुट्टी पर आया हूँ । घर की खबर है तुम्हें , बाल सबने यूँ ही नहीं उतरवाए । “दीदी नहीं रहीं ” । 

द…द..दी…दीदी …? मेरी मम्मी ? ये कब हुआ पता ही नहीं चला ।वह जोर जोर से दुकान की चौखट पर ही बैठकर दहाड़ मारकर रोने लगा । तभी चाचा ने कहा..”आज भाभी को गए दस दिन हो गए । उसका चेहरा गम में पीला पड़ने लगा

और उनलोगों से बात किये बगैर वो अपने ससुराल वाले घर जाकर अमित को फोन कर बताया…”माँ नहीं रही भैया ! अब वो कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं था | अजीब सी उलझन और ऊहापोह दोनो तरफ चल रही थी ।कुछ देर के लिए दोनो भाइयों के बीच सन्नाटा पसरा रहा फिर अमित ने पूछा…

तुझे कैसे पता चला? चल अपने घर मे जल्दी निकलने की तैयारी करते हैं, अंतिम दर्शन तो कर लें । अनन्त ने बोला…”हमने अंतिम दर्शन का मौका गंवा दिया । आज माँ को गए दस दिन हो गए । मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा  तुम निकलो मैं टिकट कराता हूँ अपने लिए । 

घर पहुँचा अनन्त मामा जी, फूफा और चाचा के साथ तो सामने सुधीर जी ज़मीन पर निढाल से बैठे हुए दिखे । सुधीर जी ने सबके आगे हाथ जोड़कर कहा…”क्यों आपलोग मेरी बची – ,खुची आयु घटा रहे हैं ?  इसे यहाँ क्यों ले आए ? ये मेरा बेटा नहीं है, जो मरी इसकी माँ नहीं थी और अब ये इसका घर नहीं है । अमित के फूफा जी ने प्यार से समझाते हुए कहा..”सम्भालिए खुद को भैया ! आप होश में नहीं हैं । 

हृदय विदारक आवाज़ में सुधीर जी अपनी रेणु दीदी का हाथ पकड़ कर बोले…”आज ही होश में आया हूँ दीदी ! प्रतिमा ने जीते जी मेरी आँखों पर अपने बच्चों के नाम की पट्टी लगा रखी थी, आज अपने चश्मे से दुनिया देख रहा हूँ ।

रात होने से पहले अमित अपने परिवार व सास – ससुर के साथ मे अनन्त के सास – ससुर भी आए । दोनो के सास – ससुर सुधीर जी के चरणों मे गिर कर बोले…”ऐसी क्या गलती हो गयी सुधीर बाबू ? इतना बड़ा राज छिपाया आपने ।

अपनी बहुओं को तो कम से कम खबर किया होता । पहले तो सारी बातें शांति से सुन लिया सुधीर जी ने। फिर बहुओं के माँ ,- बाप के सामने तंज कसते हुए बोले…”बहुएँ..और मेरी अपनी ? ये क्या बात कर रहे हैं आप ?

बेटियाँ जब बसती हैं ससुराल में तब वो बहुएँ बनती हैं, खुद से पूछिए आप ? क्या आपने अपनी बेटियों को बसने दिया ? मेरे बेटे बहु अगर नासमझ थे तो आपने कभी समझाया कि बेटी ! यहीं नजदीक में ससुराल है मिल आओ ।

आपको नाती – नातिन प्यारे थे क्या मुझे पोते – पोतियों से कोई लगाव नहीं था ? कभी प्यार मनुहार से आपने उन्हें भेजने की कोशिश नहीं किया । यहाँ तक जब बुलाया बस यही बहाना छुट्टी नहीं है , बहुत काम है आदि ।

इतने दिनों से ससुराल में था, बीच बीच मे आता था पर घर आने के लिए मुहूर्त निकालना पड़ता ? आज मरने पर जल्दी से फुर्सत मिल गयी ।

कहाँ गए सारे बहाने ? तुमलोगों को इतने ओहदे पर मुझसे ज़िद करके माँ ने पहुंचा दिया कि हमारा #अस्तित्व तुमने दाव पर लगा दिया ।अब लगता है तुम्हें इतने ऊँचे पर बिठाना मेरे जीवन की बड़ी भूल थी ।

सब बिल्कुल मौन खड़े थे । शायद अब गलती का पछतावा हो रहा था पर कुछ नहीं था अब पछताने के सिवा । अमित अनन्त बुआ, बहनों और चाची के बीच मे खड़े थे पर सबके मन मे उन दोनों के लिये सिर्फ नफरत दिख रही थी । सबने उन्हें देख मुँह फेर लिया ।कभी सोचा भी नहीं था अनन्त और अमित ने कि जीवन मे ऐसा काला दिन भी आएगा ।

रोते- रोते माँ की यादों में रात बीत गयी । दो दिन किसी तरह इतने तकलीफ भरे रहे कि वर्णन करना मुश्किल ।अपनो ने ही मुंह मोड़ लिया । ग्लानि बहुत हो रही थी बस किसी को हृदय के भीतर नहीं दिखा सकते थे ।

अगले दिन पगड़ी की रस्म थी । सब चर्चाएँ सुधीर जी के साथ कर रहे थे । प्रिया ने सुधीर जी से कहा..”जो बीत गया उसके लिए हम दोषी हैं पर पगड़ी की रस्म के लिए अमित और अनन्त जी तैयार हैं पापा !

सुधीर जी ने कठोर होते हुए कहा..”माँ जैसी कीमती धन चली गयी लेकिन लोभ नहीं गया तुम्हारे अंदर से । मेरा तुमलोगो से कोई वास्ता नहीं । अपना ध्यान खुद रखूँगा और खुद ये जिम्मेदारी उठाऊंगा, किसी की जरूरत नहीं मुझे ।

इसके बाद भी तुम्हारे मन में ये चल रहा है कि इतना बड़ा घर किसके नाम करूँगा तो सुन लो..”ये घर मैंने संस्था को दान कर दिया, वो लोग वृद्धाश्रम बनवाएंगे ताकि मेरे जैसे अभागे माता – पिता के बच्चे जब उन्हें फेंक दें तो उनलोगों को एक सुरक्षित पनाह मिले और फुलवारी के पास जो जमीन है उस ज़मीन पर मंदिर बनेगा जहाँ सब पूजा कर सकेंगे ।  

अब से तुम्हारा मेरा रिश्ता तुम्हारी माँ के साथ खत्म हुआ । पूरा परिवार मूक – बघिरों की तरह चुपचाप  था और पंडित जी के मंत्रोच्चारण की गूँज चारों दिशाओं में फैली हुई थी ।

#अस्तित्व

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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