काश कोई बड़ा भाई या बहन होती जो संभाल लेती मेरी लाडो को हम बुड्ढा बुढ़िया के बाद | जाने किस उधेड़ बुन मे फंसी थी चेतना जब डॉ. ने कहा माँ जी आपको अपने लिए नहीं अपनी इकलोती बेटी के लिए जीना है |
” कितनी खुश थी न चेतना उन 2 लकीरों को देख कर जो + प्रेगनेंसी को दर्शा रही रहीं थीं |माँ जी मैं प्रेग्नेंट हूँ !!!! हाँ तो इसमें इतना चहकने की क्या जरूरत है ?? शादी के बाद तो सब प्रेग्नेंट होते हैं |माँ जी के ये शब्द कानों मे ऐसे लगे जैसे किसी ने जलता हुआ कोयला दाल दिया हो |
जैसे तैसे खुद को संभाला और सोचा शायद पहली बार दादी बन ने की खुशी माँ जी को थोड़ा बदल दे |पर वो कैसे भूल गयी की घर बहु का कैसे हो सकता है ? ना बहु अपनी ना बहु की खुशी अपनी |घर तो उनकी प्यारी बेटी बेबी का है , जो अगर जरा सा सर दर्द भी हो तो हॉस्पिटल मे एडमिट करवा दी
जाती है |अगले दिन जब चेतना कमर दर्द की वजह से थोड़ा देर से उठी तब तो माँ जी के तानों की झड़ी सी लग गई | सुनो बहु तुम कुछ अलग नहीं करने वाली हमने भी बच्चे पैदा किये हैं ,ये सब काम ना करने के बहाने अपनी माँ को दिखाना |
चलो अब जल्दी से उठो और इतने सारे कपडे पड़े है मशीन लगाओ और धो दो सारे | पर माँ जी …अरे माँ जी माँ जी का क्या राग लगा रखा है | जल्दी से उठो ये कपडे धो |
माँ जी की बात ना मान ना मतलब पूरे दो दिन तक भूखा रहना |खुद तो ना जानें कितनी रातें भूखे पेट सोइ थी चेतना ,पर उस नन्ही सी जान को कैसे भूखे रख सकती थी |
बड़ी मुश्किल से कमर पर कपडा लपेट कर कपड़े धोए |दर्द जब बर्दार्श्त से बहार हो गया फिर से माँ जी से बोली ,माँ जी कमर मे बहुत दर्द हो रहा है डॉ. को दिखा लेते हैं | पर भगवान शायद माँ जी को दिल देना ही भूल गया था |
” पैसे पेड़ पर नहीं लगते |काम करती रहोगी तो बच्चा आसानी से होगा नहीं तो हमारी ही जेब कटवाओगी |टिंग टोंग ..देखो बहु दरवाज़े पर कौन
अरे बुआ जी ..कैसे हो ? बस बस बिटिया ऐसी हालत मे ज्यादा नहीं झुकते |तबियत कैसी है तुम्हारी ? बुआ जी अच्छी हूँ बस थोड़ा कमर मे दर्द है |
हाँ वही तो कह रहीं हूँ की आराम कर ले थोड़ा | माँ जी दूर से ही बड़बड़ाई ..अरे छोटो कुछ नहीं हैं बस महारानी को आराम करने के बहाने चाइए |ऐसे ही करती है ये रोज़ |
आह्ह्ह …फिर ना जानें कब चेतना बेहोश हुई ना जानें कब हॉस्पिटल पहुंची |बस जब आँख खुली तो हॉस्पिटल के बेड पर |मेरा अंश मुझ से जुदा हो चूका था |
आज 22 साल के बाद एक छोटी सी बीमारी फिर से उस पहले अजन्मे बच्चे की यादें ताजा कर गई चेतना के दिल मे |
– चंचल नरूला