राखी ने जैसे ही डोर बेल बजने पर दरवाजा खोला तो सामने अपने जेठ जेठानी अनुराग और सुमेधा को देखकर चौंक गई अनुराग को देखकर लग रहा था जैसे कब से बीमार हो वह बिना कुछ कहे दरवाजे से हट गई तो वे दोनों अंदर आकर बैठ गए और बिना किसी भूमिका के उससे माफी मांगने
लगे सामने अपनी मां सुलोचना जी को देखकर अनुराग उनके पैरों में गिर पड़ा और कहने लगा आप सही ही कह रही थी मां वक्त से डरो वक्त का कोई भरोसा नहीं है कब क्या हो जाए मेरी ही आंखों पर लालच का पर्दा पड़ा हुआ था
मैं तुम सबको ढूंढ ढूंढ कर हार गया तब सुमित के दोस्त से तुम्हारा पता मिला और हम यहां चले आए जिन बच्चों के लिए मैंने अपने छोटे भाई के बच्चों से धोखा किया, उन्ही बच्चों ने हमारी सारी संपत्ति धोखे से अपने नाम करा ली, मैं चाहता तो अपने बच्चों के खिलाफ कोर्ट में केस कर सकता था लेकिन
यही मेरे कर्मों का फल था और अब ले देकर एक दुकान बची है जिसे मैंने राखी के नाम कर दिया है क्योंकि इस पर उसी का अधिकार है मुझे लीवर का कैंसर है न जाने कब मौत आ जाए
सुलोचना की से अपने बेटे की हालत देखी नहीं गई और उन्होंने उसे गले से लगा लिया आखिर मां थी इतनी निर्मोही कैसे हो सकती थी लेकिन रसोई में खड़े-खड़े राखी की आंखों में पिछली सारी बातें चलचित्र की तरह चल पड़ी
मैं कहां जाऊंगी भाई साहब, अपनी जवान होती लड़कियों के साथ अब तो मेरे मायके में मेरे मां-बाप भी नहीं है मुझे नहीं चाहिए पूरी जायदाद में से आधा हिस्सा मुझे तो ,एक कोने में थोड़ी सी जगह दे दो आप समझाइए ना भाभी भाई साहब को आखिर यह घर हमारा भी तो है राखी अपने जेठ और जेठानी सुमेधा से अपने ही घर में रहने के लिए जगह मांग रही थी, आज सासू मां सुलोचनाजी फिर लाचार
खड़ी थी और सुबक-सुबक कर रोए जा रही थी, वे भी अपने बड़े बेटे अनुराग को समझाते समझाते हार गई थी लेकिन अनुराग पर आज जाने क्या सवार था उसे छोटे बड़े किसी के कहने का कोई असर नहीं हो रहा था, अनुराग बो ला देखो मां मेरे दो बेटे हैं यह घर भी उन्हीं के हिसाब से बना हुआ है राखी के तो दो लड़कियां ही हैं दोनों को ससुराल में जाना है
मैं इसकी दोनों लड़कियों के नाम पांच लाख कर चुका हूं इसके अलावा इस घर में अब उसका कोई हिस्सा नहीं है आप चाहे तो ्इसके साथ जा सकती हैं आपकी पेंशन भी तो आती है हमें आपकी पेंशन में से भी कुछ नहीं चाहिए लेकिन यह घर तो अब मेरे नाम हो चुका है राखी को यहां से जाना ही पड़ेगा हां हर महीने थोड़ा बहुत राशन में अपनी दुकान से दे दिया करूंगा राखी तो रोए जा रही थी
लेकिन सुलोचनाजी बोली, अरे नालायक राखी हमारे घर की इज्जत है कहां जाएगी दोनों लड़कियों को लेकर तुम दोनों कुछ तो वक्त से डरो और किस दुकान की बात कर रहा है वह दुकान जो इसके पति के पैसों की थी और तूने अपने नाम करा ली, अरे उसने तो अपने बड़े भाई को अपने बापके समान माना कभी किसी बात पर सवाल जवाब ही नहीं किया मैंने उसे बहुत समझाया था कि दुकान में
अपना नाम भी डलवा ले लेकिन उसने यही बोल दिया कि क्या फर्क पड़ता है मां दुकान भैया के नाम हो या मेरे एक ही बात है मैंने कहा था उसे देख लेना तुझे एक दिन धोखा खाना पड़ेगा अपने परिवार के बारे में भी सोच लेकिन उसने तो तुझ पर अंधा विश्वास किया, उसे क्या कहूं मुझे भी नहीं पता चला
तूने कब इस मकान से मेरा नाम हटाकर अपना नाम डलवा दिया मुझे क्या पता था तू कैसे कागजों पर मुझे साइन करा रहा है, तुम दोनों के इस मासूम से चेहरे के पीछे कितना बड़ा शैतान था मैं नहीं समझ सकी, अच्छा हुआ सुमित तेरा ऐसा घिनौना रूप देखने से पहले ही दुनिया से चला गया
रमाशंकर जी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे और अपने दोनों बेटों की शादी से पहले ही रिटायर होने के बाद हृदय आघात से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे अनुराग का पढ़ाई में मन नहीं था इसीलिए उसके पापा ने उसे एक छोटी सी किराने की दुकान करा दी थी, सुमित भी इस शहर में एक प्राइवेट बैंक में नौकरी करता था दोनों भाइयों में बहुत प्यार था
इसीलिए जब उसके बड़े भाई ने एक बड़ी दुकान खरीदी तो उसमें सुमित ने भी काफी पैसों की मदद की थी, लेकिन कुछ ही समय बाद सुमित की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी
उस समय उसकीबड़ी बेटी 12वीं में पढ़ती थी और छोटी दसवीं में आई थी कुछ समय तक तो सब ठीक था लेकिन एक साल के बाद ही बड़े भाई ने और भाभी ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे तभी से रखी अपनी सास और अपनी दोनों बेटियों के साथ दूसरे शहर में आ गई थी और एक स्कूल में
पढ़कर अपने बच्चों को पाल रही थी सुलोचना जी की पेंशन भी आ रही थी आज उसकी दोनों बेटियां सरकारी नौकरी में है, भला किसी की किस्मत कौन छीन सकता है अपने-अपने कर्मों का फल सब को यही भोगना पड़ता है
राखी ने फिर भी मन ही मन निर्णय ले लिया, उसने अपने गालों तक लोधन आए आंसू पूछे और सोच लिया की मां अपने एक बेटे को खो चुकी है और दूसरे को खोने वाली है सबके अपने-अपने कर्म हैं लेकिन ऐसी हालत में मैं उन्हें उनके बेटे से कैसे दूर कर दू
अपनी दोनों बेटियों के मना करने के बाद भी इंसानियत के नाते उसने अपने जेठ जेठानी को अपने ही घर में रखा और किसी चीज की कमी भी नहीं होने दी मां ने अपनी पेंशन से अपने बेटे का इलाज भी करा ना शुरू कर दिया लेकिन 15 दिन बाद ही उसकी मौत हो गई।
जिस देवरानी को उसके बच्चों के साथ घर से निकाला था सुमेधा ने
आज उसके और उसी के बच्चों के साथ आखिरी जीवन की घड़ियां बिता रही है, लेकिन राखी पुराने सब बातों को भूल कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है, वक्त ने छोड़ा ही क्या है सुमेधा के पास। सिवाय आंसुओं के ।
सुलोचनाजी और राखी उसे माफ कर चुकी है लेकिन फिर भी वह अब भी पश्चाताप की आग में जल रही है
जाने क्यों अकड़ना है इंसान गुरुर किस बात का करता है
समय आने पर वक्त सबका हिसाब करता है
यही कल भी सच था यही आज भी है
समय कल भी बलवान था ताकतवर वक्त आज भी है
पूजा शर्मा स्व रचित
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