कहाँ खोई हो वसुधा…?कहता हुआ राज उसके पास पहुच गया,पर वसुधा तो अपनी ही धुन में खोई हुई थी , उसे राज के आने की भनक भी न हुई।तभी राज ने उसके कंधा पर हाथ रखा तो वसुधा की तंद्रा टूटी। क्या हुआ फिर वही सब सोच रही हो?क्यों तुम बार बार एक ही बात को सोचकर परेशान
होती हो?अब तो सब ठीक हो गया है ना!चलो खाना लगा दो बड़ी जोर की भूख लगी है। वह अनमने मन से उठ कर डाइनिंग टेबल पर खाना लगाती है और फिर दोनों खाना खाकर कमरे में आ गए। थोड़ी देर बातचीत करते करते राज को नींद आ गयी,
पर वसुधा की आंखों से नींद कोसों दूर थी।वह थोड़ी देर करवटें बदलती रही पर जब नीद नही आई तो उठकर खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी। वह बीते दिनों की यादों में खो गयी……
सावन का मनभावन महीना और बारिशों की रिमझिम में भीगना वसुधा को बहुत सुहाता था । वह बहुत ही खुले विचारों तथा उच्च संस्कारों वाली लड़की थी। उच्च शिक्षा प्राप्त कर वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगी थी। कुछ दिनों में ही उसका विवाह भी राज के साथ हो गया।राज बहुत
ही सुलझे विचारों का व्यक्ति था वह बैंक में मैनेजर के पद पर था।दोनों की नौकरी से घर मे किसी चीज़ की कमी नही थी।खुशहाल जिंदगी बीत रही थी। तीसरा महीना चल रहा था उसे किसी प्रकार की परेशानी न हो इसलिए राज ने घर मे काम काज और वसुधा का ख्याल रखने के लिए एक मेड रख लिया था । जिंदगी में खुशियां दस्तक दे रही थी दोनों बहुत खुश थे। एक दिन वसुधा आफिस से
निकली और घर आने के लिए राज का इंतज़ार करने लगी ।राज ही उसे आफिस छोड़ता व लाता था । तभी बारिश शुरू हो गयी और उसके कंपनी के सहकर्मी अशोक ने कहा आइए मैडम मैं आपको घर छोड़ देता हूँ वसुधा ने यह कहकर मना कर दिया कि राज मुझे लेने आते ही होंगे। अशोक ने कहा अरे
मैडम सावन की बारिश का क्या भरोसा कब रुके और हो सकता है बारिश की वजह से सर कही फस गए हो ज्यादा मत सोचिए चलिए। ऐसे में भीगने से आपकी तबियत खराब हो सकती है। वसुधा ने भी सोचा यह सही ही कह रहा है उसने चौकीदार को कहा साहब आये तो बता देना मैं अशोक जी के साथ घर चली गयी हूँ। वह गाड़ी में आकर बैठी अशोक जो ड्राईविंग सीट संभाल चुका था वह भीगी
हुई वसुधा को एकटक निहार रहा था।वसुधा झेंपते हुए बोली चलिए। थोड़ी दूर आने के बाद अचानक गाड़ी सुनसान रास्ते पर बंद हो गयी उसने चौककर कहा अशोक जी गाड़ी क्यों रोक दी?अशोक ने कहा रोकी नही बारिश की वजह से शायद इंजन में पानी चला गया है देखता हूं।वह उतर कर इंजन देखने लगा तभी वसुधा भी उतर आई और बोली अब क्या करे यहाँ तो कोई मिस्त्री भी नही मिलेगा
। अशोक ने कहा अब तो कुछ करना पड़ेगा उसने इधर उधर देखा और पास में एक घर मे रोशनी दिखते ही कहा चलो वहाँ चलते हैं शायद कुछ काम बन जाये। वसुधा सकपकाते हुए अशोक के पीछे चल दी ।घर की घण्टी बजी और एक युवक ने गेट खोलकर अशोक को नमस्कार किया फिर वसुधा को ।उसने दोनों को अंदर आने को कहा अंदर जाकर दोनों बैठ गए तो वसुधा ने कहा यह तुम्हे
जानता है क्या? अशोक ने धीरे से हा में सिर हिलाया ।आप अंदर जाकर कपड़े सूखा लो यह कहकर वह युवक वसुधा के हाथ मे एक तौलिया और गाउन दिया और कमरे की तरफ इशारा किया। उसने अशोक की ओर देखा तो उसने कहा की घबराइए नही मैडम यह अपना दोस्त है।वसुधा चली गयी पर उसके मन मे तरह तरह के विचार उठ रहे थे।राज के बारे में सोच रही थी।वह कपड़े बदल ही रही थी
कि उसे प्रतीत हुआ कि कोई उसे देख रहा है ।वह पर्दे की ओर देखी कोई नही था उसने कपड़े बदले और अपने बाल सुखाने लगी तभी उसे आवाज़ सुनाई दी तो वह दरवाजे पर कान लगाकर सुनने लगी -वह युवक कहने लगा ये लो तुम्हारे पैसे आखिर तुम चिड़िया फंसाकर ले ही आये। वसुधा के पैरों तले जमीन खिसक गई उसने भागकर अपने गीले कपड़े पहने और निकलने का रास्ता तलासने लगी पर
बाहर जाने का दरवाजा एक ही था जिसपर वो दोनों खड़े थे।वसुधा ने अपना पर्स उठाया और हिम्मत करके बाहर आई और बोली अशोक मुझे घर जाना है अभी।अशोक ने बारिश का हवाला दिया तो वसुधा ने कहा मैं तुम्हारी सच्चाई जान गई हूं। तुम इतने गिर जाओगे कभी सोचा भी नही था, कहकर वह जाने लगी तो युवक ने उसका हाथ पकड़कर खींचा और बोला पूरे 1 लाख में तुझे खरीदा है तू ऐसे
नही जा सकती।वसुधा रो पड़ी अपने होने वाले बच्चे की दुहाई दी पर वह नही माना अशोक बाहर निकला और गाड़ी स्टार्ट कर चला गया। वसुधा ने पूरी ताकत से उसे धक्का दिया वह गिर पड़ा और वह वहाँ से भाग निकली। लेकिन कितनी दूर भागती ऐसी हालत में पीछे वह युवक भी उसके पीछे
दौड़ रहा था उसने उसके खुले बालो को हाथ से खींचा वसुधा तेज़ी से दर्द से चिल्लाई और सड़क पर गिर पड़ी।वह हैवान उसके कपड़ो व बालों को खींच रहा था तभी एक गाड़ी की रोशनी दिखी वसुधा हेल्प हेल्प चिल्लाई और वह युवक वहाँ से भाग निकला ।वह युवक कोई और नही राज था जो आफिस
से घर जाने की सूचना पाकर जब घर गया तो वसुधा वहां भी नही थी तो उसे ढूढने निकला था। अपनी पत्नी की ऐसी हालत देखकर वह दंग रह गया। वसुधा उसकी बाहों में बेहोश हो गयी थी राज उसे हॉस्पिटल लाया जहाँ डॉ ने बताया कि गिरने की वजह से वसुधा का गर्भपात हो गया है और अब वह
कभी माँ नही बन सकती। राज और वसुधा की जिंदगी की सारी खुशियाँ समाप्त हो गयी।3..4दिनों बाद जब वह घर आई तो उसने अशोक के खिलाफ केस किया उसे और उस युवक को जेल जाना पड़ा।पर उनके जेल जाने से उसकी उदासी खत्म नही हुई ।फिर एक दिन राज उसे अनाथालय ले गया और एक प्यारी सी बेटी को गोद ले लिया । जिसका नाम रखा खुशी।
अब उनकी खुशियां तो लौट आयी थी लेकिन जब भी बारिश होती वसुधा के जख्म हरे हो जाते। इन्ही विचारों में खोई वसुधा कुर्सी पर ही सो गई थी।रात ढल रही थी और एक नई सुबह उसका इंतजार कर रही थी।
✍🏻प्रतिमा पाठक
दिल्ली