“ माँ देखो… ताई जी और हर्ष आए हैं।” कविशा ने अपनी माँ जया से दरवाज़ा खोलते ही ज़ोर से बोली
ये सुनते ही अपने कमरे में पति नवल के साथ बातचीत में व्यस्त जया की भौहें तन गई… ये दीदी आज अचानक हमारे घर क्यों आए हैं… ,”कहीं तुमने तो उन्हें नहीं बुलाया है?” पति पर आक्रोशित जया ने पूछा
“ नहीं नहीं मैं अब इन लोगों से दूर ही रहना पसंद करता हूँ … अब आए हैं तो जाकर देखो तो सही ये लोग क्यों आए हैं?” नवल ने कहा और बिस्तर पर आराम फ़रमाने लगा
“ प्रणाम दीदी।” कहते हुए जया करुणा जी से बैठने का इशारा की
हर्ष ने भी अपनी चाची का अभिवादन किया और सोफे पर बैठ गया
दो चार मिनट के मौन के बाद जया ने बेटी से चाय पानी का कहकर करुणा जी की ओर मुख़ातिब होते हुए बोली,” आज अचानक आप लोग यहाँ आए है… सब ठीक तो है ना?”
“ “ जया नवल घर पर नहीं है क्या…. उससे ही कुछ काम था।” करुणा जी ने कहा
कुछ देर सोचते हुए जया ने कहा,” है तो घर पर ही पर तबियत ठीक नहीं है तो आराम कर रहे हैं ।”
“ ओहहह ।” एक निःश्वास छोड़ती करुणा जी उदास हो गई
हर्ष अपनी माँ को देख कर समझ गया अब माँ जिस काम के लिए आई है वो चाची से कहने से रही अब उसे ही कुछ करना होगा…
“ चाची एक बार चाचा से मिल लेते फिर चले जाएँगे ।” हर्ष ने प्यार से कहा जिसे चाय लेकर आती कविशा ने सुनते ही कहा,” हाँ भैया मैं पापा को बुला कर लाती हूँ ।”
नवल को मन मार कर बाहर आना पड़ा क्योंकि कविशा के आगे वो अपने आप को अच्छा साबित करता रहा था तो आज कैसे मना करता
“ नमस्ते भाभी ।” कहकर नवल भी उधर सोफे पर बैठ गया
“ कहिए भाभी सब ठीक है?” नवल ने पूछा
“ नवल तुमसे ही काम था …. तुम्हें याद होगा जब तुम्हारे भैया का देहांत हुआ था तो उनके सारे काग़ज़ात तुम्हारे पास ही रखे हुए थे…. और वो गाँव घर के ज़मीन के काग़ज़ात भी उसमें ही थे….मुझे वो सब काग़ज़ात चाहिए।”करुणा जी ने विनम्रतापूर्वक कहा
“ कौन से काग़ज़ात भाभी…. जब आप लोग ये घर छोड़कर गए थे तभी आप अपने सब सामान के साथ वो अटैची भी लेकर चली गई थी जिसमें सारे काग़ज़ात रखे हुए थे।” नवल ने कहा
“पर नवल हमारे पास तो कोई भी काग़ज़ात नहीं है…एक बार जाकर उस कमरे में देख लो ना जहाँ हम रहते थे ।” करुणा जी ने कहा
“देखिए दीदी जब नवल बोल रहे हैं आप लोग लेकर चले गए हैं तो फिर इधर वो काग़ज़ात वाली अटैची कहाँ से होगी…आप हमें चोर समझ रही हैं क्या?” जया तेवर दिखाते हुए बोली
“ अरे नहीं जया … विषम परिस्थितियों में जब हमें आसरे की जरूरत पड़ी तुम लोगों ने ही तो सहारा दिया था उन दस सालों में तुम लोगों ने हम दोनों के लिए बहुत कुछ किया… कहाँ आजकल लोग दो दिन रखना नहीं चाहते तुम लोगों ने दस साल हमें अपने साथ रखा वो तो जब से हर्ष की नौकरी लगी और रहने को घर मिला तब हम यहाँ से गए ….अच्छा एक बार हम फिर जाकर अपने सामान में वो काग़ज़ात देखते हैं अटैची में तो नहीं है शायद काग़ज़ात कहीं और रखे हो ।” कहकर करुणा जी बेटे के साथ वहाँ से चली गईं
उनके जाते ही जया नवल के साथ कमरे में गई और दरवाज़ा बंद करके बोली,” अब क्या होगा… हमने तो कब के उनके खाते से पैसे निकाल लिए हैं… और वो जमीन…उसे तो हमने कब का …।”
“ तुम तो अपना मुँह बंद ही रखना… अरे ये दोनों कमज़ोर लोग कुछ नहीं कर पाएँगे…और ज्यादा से ज़्यादा बोलने लगे तो हमारे पास भी है ना कहने को।” नवल जया को डपटते हुए बोला
करुणा जी हर्ष के साथ मिलकर खोजबीन कर रही थी तो उन्हें एक पासबुक मिली उसे देखकर उन्हें लगा इसमें कुछ तो पैसे होंगे वो निकाल लाते हैं ।
जब वो बैंक गई तो पता चला खाते में बस दो हजार रुपए ही है बहुत पहले ही उन्होंने पैसे निकाल लिए थे जो उन्हें याद नहीं होगा कह कर बैंक वालो ने उन्हें वापस भेज दिया।
“ हर्ष हमने तो कभी पैसे निकाले ही नहीं हाँ कभी-कभी तेरे चाचा ज़रूर पैसे निकाल कर मुझे दिया करते थे ऐसा कैसे हो सकता है ?” करुणा जी हताश होकर बोली
“ माँ कहीं चाचा चाची ने हमारे साथ विश्वासघात तो नहीं किया है ना……तुम बताती तो हो चाचा बहुत बार तुमसे सादे
कागज पर हस्ताक्षर ले लिया करते थे… ये कह कर कि कुछ काम है…और तुम कभी सवाल ही नहीं करती थी और कहीं इसका फ़ायदा चाचा चाची ने ना उठाया हो ।” हर्ष ने कहा
“ अरे नहीं बेटा जिन्होंने हमें तेरे पापा के गुजर जाने के बाद आसरा दिया हो वही ऐसा विश्वासपात्र हमारे साथ नहीं करेंगे ।” करुणा जी को अपने देवर देवरानी पर तनिक भी शंका नहीं हुआ
“ ऐसा करते है कल जाकर चाचा से पूछ लेते है ।” हर्ष ने कहा तो करुणा जी एक बार तो मना कर दी पर फिर राजी हो गई
दूसरे दिन उन्हें फिर आया देख…. जया अंदर से ग़ुस्से में लाल हो गई थी पर सामने सामान्य व्यवहार कर रही थी
“ आज फिर आप लोग आ गए… हमारे उपर भरोसा नहीं है क्या?” जया ने तंज कसते हुए कहा
“ भरोसा तो है पर एक बात नवल से पूछना चाहती हूँ उसको बुलाओ ।” करुणा जी की आवाज आज सख़्त थी
नवल जब आया उसके हावभाव बता रहे थे कि आज बहुत कुछ पुराने राज निकलने वाले हैं जिसे उसने अब तक दबा कर रखा था
“चाचा कल हम बैंक गए थे खाते में पैसे तो बहुत थे पर अब दो हजार रुपये ही है क्या आपने सब पैसे निकाल लिए?” करुणा जी कुछ कहती उसके पहले ही हर्ष ने पूछ लिया
“ तुम हम पर शक कर रहे हो… हम लोग ऐसा क्यों करेंगे..भाभी समझाइए अपने सुपुत्र को बड़ों से बात करने की तमीज़ भूल गया है ।” तमतमाते हुए नवल ने कहा
“ हर्ष मैं बात करती हूँ बेटा…नवल तुम मुझसे हमेशा कुछ ना कुछ कह कर कागज़ों पर हस्ताक्षर लिया करते थे कभी भैया के इंश्योरेंस के पैसे को लेकर तो कभी पेंशन…और एक बार मैं एक जमीन भी बेची थी उसके पैसे भी खाते में रखे थे सब कहाँ गए…
तुम ही तो सब देखते थे… ना मैं कभी बैंक गई ना पैसे निकाले हाँ जब भी जरूरत होती तुमसे निकालने को ज़रूर कहती थी पर यहाँ तो सारा पैसा ही निकल गया अब आप ही बताइए किसने किया होगा?”करुणा जी पहली बार नवल से सख़्ती से बात कर रही थी
“ अरे आपके यहाँ रखा हर्ष की पढ़ाई सब फ्री में हो रही थी क्या….. मैं कोई धर्मशाला खोल कर तो नहीं बैठा था….और आपसे क्या कहकर पैसे माँगता…बस मुझे जब जरूरत पड़ी आपसे हस्ताक्षर लेकर मैं पैसे निकाल लिया करता था
और जब आप लोग जाने की बात कर रहे थे उसके पहले ही सब पैसे निकाल लिए….अब इतने दिन रखा आपको उसके बदले में पैसे ले लिए तो क्या गलती किया?” नवल को अपने किए पर जरा भी शर्म नहीं आ रही थी
“ नवल मैं पैसे देती थी ना फिर भी आपने हमारे साथ विश्वासघात किया… आपको जितने पैसे चाहिए एक बार मुझसे बोलते तो सही …आज मुझे अपने लिए एक घर खरीदने के लिए पैसे चाहिए पर मेरे पास पैसे होते हुए भी पैसे नहीं है….
आप पर विश्वास करके मैं सब कागजात सँभाल कर रखवा दी थी पर पता ही नहीं था यहाँ साथ रखने के नाम पर पीठ पर खंजर चलाया जा रहा था…अच्छा होता हम कैसे भी अकेले रह लेते पर अपनों का सहारा लेकर विश्वास करके विश्वासघात का भाजन तो नहीं बनते।” करुणा जी को अब गुस्सा आ रहा था
“ वाह क्या जमाना आ गया है…अरे एक तो हमने आपकी मुसीबत के वक्त मदद की और आप खुद से रहने का पैसा देती नहीं तो हमें आपका खर्चा चलाने के लिए जो समझ आया वो कर रहे थे….अब आप लोग यहाँ से जाइए…आप तो ऐसे बोल रही हैं जैसे मुफ्त में हम आप लोगों की सेवा करते…
हाँ आपके सारे कागजात मेरे पास ही थे पर अब कुछ भी नहीं है… एक जमीन थी वो भी आपने हमारे नाम कर दिया था….।” नवल कुटिल मुस्कान छोड़ते हुए कहा
“ कब?” करुणा जी आश्चर्य से बोली
“ उस वक्त ही जब हर्ष की पढ़ाई के लिए जमीन बेचने की बात चल रही थी और आपने कुछ कागजात पर हस्ताक्षर किए थे ।” जया पीछे से बोली
“ वाह मेरे अपने … क्या कमाल का काम किए आप लोग….हमने सोचा हम दोनों को सहारा दे रहे कितने महान लोग है पर तुम दोनों तो…।” करुणा जी गुस्सा करते हुए वहाँ से उठी
“ चलो माँ यहाँ से अब हमें समझ आ रहा… ये हमारी मदद नहीं कर रहे थे बल्कि हमारी सम्पत्ति को कैसे हासिल करे उसकी पूरी योजना बनाकर ये हमें अपने साथ रखे हुए थे …
अच्छा होता हम परिवार का सहारा कभी न लेते … तब हम किसी विश्वासघात के शिकार ना हुए होते ।” हर्ष के चेहरे पर क्रोध साफ दिख रहा था पर अब वो लोग कुछ कर नहीं सकते थे… जो भी था वो सब नवल पर भरोसा कर करुणा जी के हस्ताक्षर से ही उनके हाथ से जा चुका था
करुणा जी घर आकर बहुत रोई…
हर्ष उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था पर वो खुद को कोस रही थी…. ,” मुझे लगा पति नहीं है मेरे बच्चे को लेकर अकेले कहाँ भटकूँगी…. देवर देवरानी उस वक्त भगवान बन कर आए थे मेरे लिए…. हमें साथ रखने का प्रस्ताव रखा सबने यही कहा ….
अच्छा है परिवार के साथ रहना ….अकेले कहाँ रह पाओगी…और मैं भी बुद्धू… विश्वास कर सारे कागजात उनके पास सुरक्षित रख दी और उन लोगों ने हमारी ही चीजों को बेच कर अब ये जता रहे कि हम पर एहसान किया…बेटा इससे अच्छा तो हम दोनों कैसे भी रह लेते पर ऐसे परिवार वालो के साथ रह कर क्या पाया।”
अब कोई भी कुछ नहीं कर सकता था सिवाय पछतावा के…परिवार में हर तरह के लोग हते हैं…समय के साथ उनका असली रंग रूप समझ आता है ।
मेरी रचना कैसी लगी ज़रूर बताएँ…. त्रुटियों को नज़रअंदाज़ करें ।
रचना पढ़ने के लिए धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# विश्वासघात