“…लेकिन रितेश… हम मां को ऐसे तो नहीं छोड़ सकते ना… उनके लिए कुछ व्यवस्था तो करनी पड़ेगी…!”
” व्यवस्था… मतलब… तुम कहना क्या चाहती हो…!”
” देखो… मां हमारे साथ नहीं रह सकती… तुम्हारी मां के साथ उनकी नहीं बनती… यह तो हम दोनों जानते हैं… लेकिन मैं उन्हें अकेले घर में बिना किसी सहारे के कैसे छोड़ दूं… हमारे सिवा उनका दुनिया में है ही कौन… कोई भरोसे का आदमी अगर मिल जाता तो…!“
“वही तो दिक्कत है… आजकल के समय में किस पर भरोसा करें…!”
आखिर बहुत सोच विचार करने के बाद… रितेश ने अपनी जान पहचान वालों की मदद से… एक महिला, जो अपनी बच्ची के साथ अकेली रहती थी… उसे अपनी सासू मां की देखरेख के लिए निश्चित कर दिया…
जहां तक भरोसे की बात थी… तो रितेश के मित्र ने महिला के परिवार और व्यवहार दोनों के विषय में उन्हें पूरी तरह आस्वस्त कर दिया था…
अंजना और रितेश खुद जाकर रजनी से मिले… बेचारी बहुत सीधी सरल लगी… अंजना ने दस दिन मां के साथ रहकर… रजनी के काम करने का ढंग… बातचीत का ढंग… रहन-सहन… रख रखाव… खाना बनाना.… करना… सब अच्छे से परख लिया…
बच्ची भी 5-6 साल की थी… उसका भी वहीं पास के स्कूल में दाखिला कर… निश्चिंत मन से वापस अपने घर गृहस्थी में आकर लग गई…
दो महीने तक तो सब ठीक चला… लेकिन तीसरे महीने से… आए दिन मां की शिकायतें आनी शुरू हो गई…
” अंजना… बेटा किसे रख दिया है… एक भी काम ढंग से नहीं करती…!”
” रहने दो ना मां… इतने दिन तो ढंग से ही कर रही थी… अचानक क्या हो गया…!”
” कुछ ढंग से नहीं था… बस मैंने तुझे बताया नहीं…!”
कभी खाना ढंग से ना बनाने की शिकायत… तो कभी सफाई ढंग से न करने की… तो कभी उसके बच्चे की नाक में दम कर देने की शिकायत…
अंजना परेशान हो गई थी… अब वह अपना घर संभाले… या पल-पल की मां की शिकायतों का निपटारा करे…
आखिर… उसने दूसरी फुल टाइम बाय की तलाश शुरू कर दी… ” ठीक है मां… कुछ दिन और रख लो… तब तक हम दूसरी बाई ही ढूंढते हैं…!”
लेकिन इतना सुनते ही मां चढ़ बैठी…”नहीं नहीं… किसी की जरूरत नहीं है… मैं अकेली सब संभाल लूंगी… तुम्हें मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है… बस इसे हटा दो…!”
” नहीं मां… रजनी बस काम वाली नहीं ना… उसे तो घर की रखवाली… तुम्हारी जवाबदेही के साथ वहां लगाया है… उसे ऐसे कैसे हटा दूं …जब तक दूसरा उतने भरोसे का आदमी ना मिले……!
मां झल्लाने लगी…
आखिर चार दिनों की छुट्टी लेकर… रितेश और अंजना बिना बताए ही अचानक अंजना के मायके पहुंच गए.…
बड़ा सा घर… सामने लंबा चौड़ा बैठक… उसके आगे बड़ा आंगन… कुआं… खेत… सबके बीच में अकेली मां को छोड़ना…
अंजना का मन मानने को बिल्कुल भी तैयार न था.… मगर इस बार… जब वह हजार शंकाएं लिए घर के दरवाजे पर गाड़ी से उतरी… तो उसकी सारी शंकाएं निर्मूल साबित हुई…
उसके उल्टे रजनी जी जान लगाकर अपने सारे कामों में लगी हुई थी… घर के बाहर के एक छोटे से कमरे में… अपनी बच्ची के साथ रह रही थी… उसकी बच्ची अपने छोटे से कमरे में ही बैठी… कंकड़ पत्थरों से खेलती रहती थी अक्सर…
अंजना और रितेश की समझ में बिल्कुल नहीं आ रहा था… आखिर मां को इस बेचारी औरत से दिक्कत क्या है… अंजना मां से बार-बार “असली दिक्कत बताओ…” बोल-बोलकर परेशान करने लगी…
“काम तो सब ठीक कर रही है… सब कुछ पता करने के बाद ही… पूरे विश्वास के साथ हम इसे यहां लाए हैं… अब असली बात बताओ…!”
मां उबल पड़ी… “अरे रजनी.… यहां रहेगी… यहां का खायेगी… बच्चा भी यही पढे़गा… लिखेगा… सब कुछ तो हम दे ही रहे हैं ना… फिर तुम लोग दस हजार हर महीने की पगार क्यों धराए हो… ? अब क्या करेगी पैसे का… सब तो मिल ही रहा है ना…!”
अंजना को अब जाकर एहसास हुआ… ” अच्छा तो यह बात है… इसलिए दो महीने बाद तुम्हें चिड़चिड़ मची है…!”
” हां तो और क्या…!”
” अरे मां दस हजार क्या… पचास हजार देकर भी इस तरह भरोसे का आदमी पाना बहुत मुश्किल है… पैसों की चिंता तुम मत करो… तुम बस आराम से रहो…!” मां को समझा बुझा कर… दोनों रजनी के काम से खुश होकर… चले गए… लेकिन मां अब भी अशांत थी…
आखिर एक दिन पूजा के लोटे में कुएं से जल भर कर जाते हुए… मां का पैर फिसला, सर कुएं के मुंडेर पर जा लगा…
मां को तो कोई होश ही ना रहा… पूरे हफ्ते भर बाद जब वापस घर आई… सब कुछ वैसे का वैसा था… रजनी उसकी सेवा में जी जान से लगी थी… उसकी छोटी बच्ची भी दादी दादी बोलकर, भाग कर उनके सारे काम निपटा रही थी……
अंजना ने धीरे से मां का हाथ दबाते हुए कहा…” अब क्या कहती हो मां… अपने भी जिस समय हाथ खींच लेते हैं… ऐसे में इसने… हमारी तरफ से मदद आने का… या किसी और से मदद लेने का इंतजार नहीं किया… अपने पास पड़े पैसे… और यहां तक की कान की बाली तक तेरी इलाज में लगा दिया…
अब भी तुम बोलोगी… तो मैंने तो सोच लिया है निकाल ही दूंगी….!”
मां ने अंजना का हाथ प्यार से सहलाते हुए कहा… “ना बेटा… अब तो ऐसे प्यार और विश्वास की डोर में इस मां बेटी ने मुझे बांध लिया है… कि जीते जी तो इन्हें कहीं ना जाने दूंगी… आज कोई और होता तो पहले मेरा बक्सा टटोलता… कि पैसे कहां है… पर यह तो सगी से भी सगी निकली…और पैसे क्यों चाहिए… यह भी मुझे समझ आ गया… रजनी अब कहीं नहीं जाएगी……!”
अंजना ने झुक कर मां का माथा चूम लिया… और निश्चिंत होकर अपने घर वापस चली गई……
रश्मि झा मिश्रा