विश्वास की डोर – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अनूज और काया की जोड़ी ऐसी थी जैसे ये एक दूसरे के लिए ही बने हों। बहुत प्यार,समझ और एक दूसरे के लिए सम्मान था।काया के नाक नक्श तीखे,कमर तक काले घने बाल और डील डौल भी बहुत अच्छा, ऐसा लगता था कि फुर्सत से बनाया है भगवान ने। अनूज साधारण सा दिखने वाला कद काठी अच्छी थी पर रंग सांवला लेकिन नैन नक्श बहुत प्यारे।

दोस्तों के साथ काॅलेज के एक प्रोजेक्ट में जाने का मौका मिला और वही से दोस्ती की शुरुआत हुई और ना जाने कब कैसे प्यार में बदलने लगा उन्हें भी एहसास नहीं हुआ था।एक दिन काया काॅलेज नहीं आई तो अनूज का पूरे दिन मन ही नहीं लगा।उसे बड़ी बेचैनी सी हो रही थी,समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है।  छुट्टी हुई तो घर ना जा कर काया के घर पहुंच गया।

काया भी अनूज को देखकर आश्चर्य में पड़ गई क्योंकि कोई लड़का उससे मिलने आया है ये बात घर वाले कैसे लेंगे कह नहीं सकती।

मम्मी ने अनूज को अंदर बुलाया और थोड़ी ही देर में वो ऐसे घुल-मिल गया जैसे वो ना जाने कबसे सबको जानता हो। सभी अनूज की तारीफ करते नहीं थक रहे थे।

अच्छा जी ” सब पर अपना जादू चला दिया।घर कैसे आना हुआ?”काया ने बाहर छोड़ते हुए अनूज से पूछा।

” पता नहीं काया…आज तुम नहीं आई तो अहसास हुआ कि जैसे मैं अधूरा सा हूं और चाह कर भी दिन भर किसी काम में मन ही नहीं लगा और बिना कुछ सोचे-समझे मैं तुमसे मिलने आ गया। मुझे माफ कर देना अगर तुम्हें अच्छा नहीं लगा तो” अनूज सिर झुकाकर बोले जा रहा था।

अरे नहीं…” कोई बात नहीं। मैं थोड़ा घबरा गई थी कि घर वालों से क्या कहूंगी। सभी तुमसे मिल कर बहुत खुश हैं।”

“अच्छा तो मैं अब कभी भी आ सकता हूं” अनूज ने शरारती अंदाज में कहा।

“तुम्हारी तबियत कैसी है?”

” मैं ठीक हूं…एक दो दिन बाद आऊंगी।बुखार पूरी तरह से उतर जाएगा तब।”

अब दोनों को अहसास होने लगा था कि वो एक दूसरे के बिना अधूरे हैं, लेकिन जीवन के और भी लक्ष्य थे। पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद नौकरी जरूरी थी क्योंकि प्यार से जिंदगी की गाड़ी नहीं चलती है।घर गृहस्थी चलाने के लिए अच्छी नौकरी करना भी जरूरी है। दोनों ने साथ-साथ फैसला लिया कि वो जब अच्छी नौकरी करने लगेंगे तभी घरवालों से बात करेंगे अपनी शादी की और पढ़ाई में रुचि लगा कर सफलता हासिल भी करना है।

बड़े धैर्य और समझदारी से दोनों ने अपने रिश्ते की मर्यादा बनाए रखी और सफलता की सीढ़ी पर पहला कदम भी रख दिया।

काया का चयन सरकारी नौकरी में उच्च पद पर हो गया था और अनूज का परीक्षा परिणाम आज ही आया था और उसको भी बहुत अच्छी नौकरी मिल गई थी। दोनों ने मंदिर जाकर भगवान को धन्यवाद दिया और अपनी- अपनी नौकरी में व्यस्त हो गए।

दोनों की नौकरी अलग-अलग राज्यों में लगी थी और दूरी होने की वजह से मिलना जुलना कम होने लगा था। काम की इतनी व्यस्तता थी कि कई बार बातें भी नहीं होती थीं।

एक दिन काया अचानक से अनूज से मिलने उसके शहर में आई। अनूज बेहद खुश हुआ और दो दिन की छुट्टी डाल कर दोनों ने साथ-साथ वक्त बिताया।

अब दोनों ने फैसला ले लिया था कि अब अपने – अपने घरों में शादी की बात करना है और जल्दी ही शादी भी करेंगे।

घर वालों को तो पहले से पसंद था तो चट मंगनी पट ब्याह हो गया।

अब दोनों ने फैसला लिया कि तबादला करा कर साथ ही रहेंगे, लेकिन ये सब इतना आसान नहीं होता है। कभी अनूज चला जाता तो कभी काया आ जाती मिलने।

काया अनूज से मिलने जिस गाड़ी से आ रही थी,उस गाड़ी का बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया और काया को बहुत गहरी चोट आई थी।उसको कुछ लोगों ने अस्पताल में भर्ती कराया और फोन से अनूज का नंबर निकाल कर सूचना दी।

अनूज भागा – भागा अस्पताल पहुंचा तो काया की हालत गंभीर देख कर टूट गया।शाम तक दोनों के घरवाले पहुंच गए थे। काया के सिर में गहरी चोट लगी थी और उसका तुरंत आपरेशन करना पड़ा था।

कई घंटों के आपरेशन के बाद डॉक्टर ने उस आई सी यू में रखा था।होश आने में वक्त लगेगा ऐसा कह कर डाक्टर ने अनूज को दिलासा दिया था।

दो दिन के बाद काया को होश आया था और सभी की आंखों में ख़ुशी के आंसू बह रहे थे।

काया की नजरें सभी को अजीब से लगी वो सभी को ऐसे देख रही थी कि समझने की कोशिश कर रही थी। ये बात सभी को थोड़ा परेशान कर रही थी। सभी को लग रहा था कि गहरी चोट है और दो दिन के बाद होश आया है तो शायद पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाई है।

“आप सब कौन हैं?” ये बात सुनकर सभी के पांव के नीचे से जमीन खिसकने लगी थी।अनूज भाग कर डाक्टर के पास गया। डॉक्टर को डर इसी बात का था कि इतनी गहरी चोट के बाद कही काया की याददाश्त ना चली जाए और वही हुआ। काया को मुश्किल हो रही थी सभी को पहचानने में।

घर वालों ने तो हिम्मत ही हार दी थी। सभी रो रहे थे कि काया की याददाश्त वापस आएगी की नहीं? क्या होगा आगे।

अनूज ने बड़े ही धैर्य से काम लिया और काया के दिमाग पर कोई जोर ना पड़े इसका पूरा – पूरा ध्यान रखना है, उसने सोच लिया था।

कुछ दिनों के बाद काया को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी और अनूज ने भी आफिस से छुट्टी ले ली थी।अब वो पूरे समय काया के साथ रहता। काया की तबीयत में सुधार आने लगी थी पर उसे अभी भी याद नहीं था की अनूज से उसका क्या रिश्ता है। मम्मी – पापा की धुंधली छवि थी उसके दिमाग के किसी कोने में।

काया अक्सर अनूज को पूछती कि ,”आप क्यों इतना मेरा ख्याल रखते हैं? कौन हैं आप?और मेरे घर में क्यों रहते हैं?”

अनूज ने सिर्फ इतना कहा कि ,”वो उसका कालेज का मित्र है।उन दोनों की दोस्ती बहुत गहरी थी इसलिए वो उसका ख्याल रखता है। अगर मेरे साथ ऐसा कुछ होता तो क्या तुम मेरा ख्याल नहीं रखती काया?”अनूज के प्रश्न के जबाब में वो मुस्कुरा देती क्योंकि कहीं ना कहीं उसे अनूज के साथ अच्छा लगने लगा था।

वो अनूज से प्यार करने लगी थी।अनूज के पास आते उसकी धड़कनें तेज हो जाती थी। याददाश्त भले ही चली गई थी पर दोनों के दिल एक दूसरे से जुड़े थे और एक दूसरे की धड़कनें महसूस भी करते थे। यही तो सच्चा प्यार था जो महसूस होता है,चाहे आप कितने भी दूर हो जाओ।

अनूज और काया के बीच अब विश्वास की डोर गहरी होने लगी थी। काया अनूज पर बहुत भरोसा करने लगी थी और अनूज तो सबकुछ जानता ही था।

समय-समय पर चेकअप और दवाइयां,खान पान और टहलना और व्यायाम सबकुछ कराता रहता था। शारीरिक रूप से अब काया पूरी तरह से स्वस्थ हो गई थी पर उसे अनूज के साथ बिताए लम्हें कहीं ना कहीं मिट गए थे। अनूज कई बार उदास हो जाता कि क्या काया कभी पूरी तरह से ठीक हो पाएगी? लेकिन उसे अच्छा लगता की काया उसके रिश्ते को भले ही भूल गई हो लेकिन उसकी नजदिकियां उसे आज भी अच्छी लगती हैं। उसके लिए इतना ही बहुत था।

वक्त किसके लिए रूका है। इसलिए कभी-कभी ठहर कर उस वक्त का आनंद उठाना जरूरी है वरना पलक झपकते ही आज कल में परिवर्तित हो जाता है।

आज दो साल पूरे हो गए थे और काया की याददाश्त पूरी तरह से वापस नहीं आई थी।एक दिन काया ने अनूज से कहा कि ,”वो उससे बहुत प्यार करती है क्या वो उसके साथ आगे का सारा जीवन बिताना चाहेगा?”

अनूज ने मुस्कुराते हुए हांमी भर दिया और साधारण तरीके से घर में ही विवाह कर दिया गया क्योंकि वो तो शादीशुदा थे ही।दूसरा विवाह कहां संभव था पर दोनों के घरवालों ने चुपचाप घर में ही फेरे डलवा दिए और कोई उपाय नहीं था उनके सामने क्यों कि सभी चाहते थे की अनूज और काया साथ – साथ रहें।

शादी के बाद अनूज काया को लेकर अपने घर आ गया जहां वो नौकरी करता था। काया को घर में प्रवेश करते ही कुछ एहसास हुआ कि वो पहले भी यहां आई है।

“अनूज मुझे ऐसा लगा कि मैं यहां पहले आईं हूं।”ये अच्छा लक्षण था कि काया को धुंधला ही सही कुछ ना कुछ याद आ रहा है।

“काया कई बार ऐसा लगता है हमें,तुम परेशान नहीं हो नहा-धोकर नाश्ता करो और अपनी दवाओं को समय पर लेते रहना। मैं थोड़ा आफिस जा कर आता हूं।”

काया की उलझनें सुलझने का नाम नहीं ले रही थी कि उसकी निगाह एक तस्वीर पर पड़ी जिसमें अनूज और काया की कई फोटो थी। काया समझ ही नहीं पा रही थी कि अनूज से उसका रिश्ता तो अभी जुड़ा है और अनूज के साथ इतनी सारी तस्वीरें उसने कब खिंचाई थी। उसके सिर में दर्द होने लगा था और उसने दवाइयां ली और कमरे में आराम करने चली गई।

अनूज को पूरा विश्वास था कि उसकी काया जरुर एक दिन उसको पहचान लेगी और उसका रिश्ता फिर से उतना गहरा हो जाएगा।

अनूज के घर आते ही काया ने फोटो को लेकर बहुत सारे प्रश्न कर डाले। पहले तो अनूज घबराया की उसे याद ही नहीं रहा की फोटो हटाकर जाए खैर उसने बड़ी समझदारी से बात को संभाला और कहा कि,” मैंने तुमसे कहा था ना कि हम अच्छे दोस्त थे।ये हमारी कालेज के दिनों की यादें हैं।”

काया दिमाग पर जोर डालने की कोशिश करती पर कुछ भी साफ-साफ नजर नहीं आता था।

धीरे-धीरे वक्त गुजर रहा था।अब काया ने वहीं एक नौकरी भी ज्वाइन कर ली थी।अनूज ने कह कर उसे काम दिला दिया था। जितनी व्यस्त रहेगी उतना अच्छा रहेगा काया के लिए।

एक दिन काया से उसका पुराना दोस्त टकरा गया और वो काया से हाल-चाल पूछ रहा था। काया को लग रहा था कि उसने कहीं देखा है पर नाम याद नहीं आ रहा था उसे। घर आकर उसने अनूज को उसके बारे में बताया।

अनूज को विश्वास होने लगा था कि काया धीरे धीरे ठीक हो रही है क्योंकि वो दोस्त यहीं का था।

अब अनूज कभी कभी उसको उसकी पुरानी स्मृतियां याद दिलाने के लिए कुछ – कुछ पुरानी बातें करता।उसको पुरानी जगह पर ले जाता।

काया की याददाश्त थोड़ी – थोड़ी ठीक हो रही थी।अब वो कभी – कभी पुरानी बातें अचानक ही करने लगती थी। अनूज को खुशी मिलने लगी थी कि काया के ठीक होने की उम्मीद अब बढ़ने लगी थी।

इसी तरह कुछ वक्त गुजर रहा था।काया को धीरे धीरे सब कुछ याद आने लगा था और वो अपने और अनूज के रिश्ते को पहचानने लगी थी।ये सबकुछ अनूज का धैर्य, प्यार और विश्वास ही तो था कि जिसने काया को अंजान होने के बावजूद एक डोर से बांधे रखा था।ये डोर दिल की धड़कनों से बंधीं थी जो दिमाग से ज्यादा मजबूत थी।

धीरे-धीरे सब कुछ पुराने जैसा हो गया था।अनूज की देखभाल काम आई थी,अब काया पूरी तरह से ठीक हो गई थी भले ही वक्त अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ गया था पर उनके प्यार की गहराई आज भी उतनी ही मजबूत थी।

कहते हैं ना कभी – कभी दिमाग की नहीं धड़कते दिल की धड़कनों की भी सुननी चाहिए क्योंकि वो महसूस करता है रिश्ते की सच्चाई को।

फिर से खुशियों ने दस्तक दी थी और वो अपनी जिंदगी आगे बढ़ चुके थे अपने प्यार और विश्वास की डोर के साथ।

                                प्रतिमा श्रीवास्तव                                 नोएडा यूपी

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