जानकी.. आजकल मन बहुत व्यथित हो रहा है एक डर है जोमुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है समझ नहीं आ रहा तुमसे कैसे कहूं.? कहूंगा तो तुम हंसोगी, 70 वर्षीय रामनारायण जी ने अपनी पत्नी जानकी से कहा! तब जानकी बोली… नहीं जी बिल्कुल नहीं हंसूंगी आप बताइए तो सही आपको ऐसा कौन सा डर है
जिससे आप परेशान रहते हैं मैं भी कई दिनों से देख रही हूं, क्या मेरी बीमारियों से आप घबरा गए हैं..? देखो यह तो शरीर है कब धोखा दे जाए किसी को नहीं पता! माना की दिल के दौरे के बाद मैं मुश्किलों से बची थी किंतु अब तो डॉक्टर ने कह दिया है कि मैं बिल्कुल सही हूं अब तो उन बातों को भी 2 साल हो गए, फिर आप क्यों चिंता करते हैं?
यही चिंता तो मुझे खाए जा रही है जानकी, मैं चाहता हूं मैं तुमसे पहले इस दुनिया से चला जाऊं क्योंकि तुमने मेरी आदतें इतनी खराब करदी है कि मुझे समझ ही नहीं आता कि तुम्हारे बाद मेरा क्या होगा, 45 साल पहले मैं तुम्हें इस घर में दुल्हन बनाकर लाया था और तुम भी एक अजनबी के साथ एक विश्वास की डोर से बंधी चली आई थी वह विश्वास की डोर आज तक कायम है,
इस विश्वास के सहारे हम दोनों ने इतने साल हंसी खुशी गुजार दिए किंतु अब तुम्हारे दिल के दौरे के बाद से मुझे बहुत डर लगने लगा है हालांकि अब तुम ठीक हो किंतु मैं अपने मन को कैसे समझाऊं मैं तो तुम्हारे बिना बिल्कुल असहाय हो जाऊंगा शादी के बाद से तुमने मेरी सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली मुझे तो कोई काम तुमने करने ही नहीं दिया
मेरे कपड़ों से लेकर मेरी सारी दैनिक जरूरत को तुम पूरा करती आई हो यहां तक कि तुमने बाहर की जिम्मेदारियां भी बखूबी संभाली है मैं भी धीरे-धीरे तुम्हारे ऊपर आश्रित होता चला गया तुम्हारे बिना एक दिन भी मेरा गुजारा असंभव है काश.. तुमने मुझे भी अपने जैसा बनाया होता मैं भगवान से बस यही चाहता हूं
कि मुझे तुमसे पहले अपने पास बुला ले ! छि: छि: आप कैसी बातें कर रहे हैं हर औरत का सपना होता है कि वह सुहागन के रूप में दुनिया से जाए और आप चिंता क्यों करते हैं मैं अभी नहीं मरने वाली और वैसे भी दो-दो जवान कमाउ बेटे हैं माना दोनों बाहर रहते हैं पर हमारे बेटे इतने अच्छे हैं कि तुम्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं महसूस होने देंगे,
अगर मैं चली भी गई तो तुम अपनी जिंदगी उनके साथ अपने पोते पोतियो के साथ हंसी-खुशी गुजरना! दोनों बहुएं भी इतनी अच्छी हैं हमारा इतना आदर सम्मान करती हैं फिर किस बात की चिंता करते हो! किंतु अब रामनारायण जी पता नहीं क्यों लेकिन जानकी जी के सभी कामों में हाथ बटाने लगे और जानकी से कहते जानकी तुम जो भी काम करो उसमें मुझे भी शामिल किया करो,
छत से कपड़े लाकर रखते, बाजार से सब्जियां ले आते, घर पर भी छोटे-मोटे काम करने लगे, उन्हें बस यही डर लगा रहता की जानकी के बाद उनका क्या होगा, कभी-कभी सोचते ..अगर जानकी से पहले मैं चला गया तो जानकी का क्या होगा, ऐसे तो मेरी पेंशन आती है घर में काम वाली लगी हुई है किंतु अगर किसी दिन जानकी की तबीयत खराब हो गई तो कौन दिखाने जाएगा,
कैसे सारे काम करेगी और आजकल बेटे बहू को बूढ़े सास ससुर कहां सुहाते हैं क्या मेरी जानकी ऐसे ही तड़पती तरसती चली जाएगी? क्या मैं और जानकी अभी से ही वृद्ध आश्रम में चले जाएं ताकि वहां हमारे बराबर वाले बुजुर्गों के साथ हमारी जो भी जिंदगी बची है हंसी-खुशी निकल जाए? पता नहीं रामनारायण जी दिन भर क्या उल्टी सीधी बातें सोचते रहते जानकी समझा समझा कर थक गई
की जो होना होगा वह तो होकर ही रहेगा हमारे सोचने से क्या हो जाएगा किंतु उन्हें जानकी का डर अंदर ही अंदर खाया जा रहा था, ज्यादातर समय वे जानकी के साथ बिताते, पहले तो वह शाम होते ही अपने दोस्तों के साथ बगीचे में चले जाते और सुबह भी दो-तीन घटे में मंदिर से वापस आते किंतु अब उन्होंने सब चीज बहुत कम कर दी,
एक बार जब डर दिल दिमाग पर हावी हो जाता है तब वह किसी की नहीं सुनता और यही शायद रामनारायण जी के साथ हो रहा था, देखने में तो वह भले चंगे नजर आते किंतु अंदर ही अंदर खोखले होते जा रहे थे! कल जानकी का चेकअप करवाना था रामनारायण जी ने गाड़ी बुक करी और हॉस्पिटल चले गए जानकी की सारी रिपोर्ट आ गई थी
जिसमें पता चला की जानकी को कैंसर की बीमारी भी हो गई है किंतु रामनारायण जी ने जानकी को नहीं बताया, डॉक्टर ने उनसे कह दिया था कि इस उम्र में थेरेपी वगैरा करवाना या कोई भी सर्जरी करवाना अब जानकी का शरीर नहीं झेल पाएगा इसलिए जब तक हो सके जानकी को खुश रखा कीजिए और उनकी सारी इच्छाएं पूरी कीजिए!
अब रामनारायण जी ने कभी चार धाम जाने का विचार बनाया कभी इधर-उधर घूमने का जहां वह कभी जिम्मेदारी के चलते जानकी को लेकर नहीं गए थे अब वहां जाने लगे! एक दिन जानकी ने मजाक में पूछा ..क्या बात है जी आजकल तो आप मेरा बड़ा ध्यान रखते हैं डॉक्टर ने आपसे मेरे मरने की तारीख बता दि क्या? चुप रहो जानकी ..हर समय की मजाक मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है
मैं सोच रहा था की कितने सालों से हम कहीं नहीं गए अब हमारे पास कुछ काम भी नहीं है तो क्यों ना हम सैर सपाटे में मौज मस्ती में ही अपनी जिंदगी बताएं और 1 साल के अंदर-अंदर रामनारायण जी और जानकी ने लगभग आधा भारत दर्शन कर लिया! एक रात जानकी जो सोई सुबह उठी ही नहीं, रामनारायण जी चाय बनाकर लाए
और अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई किंतु पत्नी इस दुनिया में होती तो चाय पीने आती, रामनारायण जी समझ गए की जानकी उन्हें छोड़कर चली गई है तुरंत उन्होंने बेटों को फोन किया आस पड़ोस वाले, रिश्तेदार सभी इकट्ठा होने लगे! रामनारायण जी तो रोना भी भूल गए बस एक टक जानकी को देखें जा रहे थे, अभी तमिलनाडु से उसके लिए जो लाल रंग की साड़ी ली थी
वहीं उनकी पत्नी जानकी को पहनाई गई पूरे सोलह सिंगार में जानकी ऐसी लग रही थी जैसे शादी के समय दुल्हन बनकर आई थी और उन्हें देखते देखते अचानक जाने क्या हुआ रामनारायण जी वहीं गिर गए, तुरंत डॉक्टर को बुलाया गया डॉक्टर ने जांच करके कहा… रामनारायण जी को दिल का दौरा पड़ा हे और वह चले गए!
दोनों पति-पत्नी का ऐसा निश्छल प्रेम देखकर सभी की आंखें आंसुओं से नम हो गई! एक साथ दोनों की अर्थियां जब घर सेनिकली कठोर से कठोर दिलवाले भी आज रोने पर विवश हो गए! इस बुढ़ापे मैं भी दोनों ने दिखा दिया जिस विश्वास की डोर के साथ दोनों ने जिंदगी की शुरुआत की थी उसी विश्वास की डोर के साथ एक दूसरे के साथ हमेशा के लिए चले गए!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (विश्वास की डोर)
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