राधिका जी शाम की चाय पी रही थी कि तभी गेट की घंटी बजी, देखा तो श्यामा जी थी। राधिका जी ने श्यामा जी का बडे गर्मजोशी से स्वागत किया। करती भी क्यों नहीं, दोनों की दोस्ती पचास साल पुरानी थी। राधिका जी ने श्यामा जी से कहा, ‘तुम बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूँ।’ श्यामा जी बोली, ‘अरे नहीं यार, मैं अभी पी कर आयी हूँ।’ ‘कोई बात नहीं, दोनों साथ बैठकर चाय पीयेंगे और बहुत सी बातें करेंगे।’
राधिका जी का घर श्यामा के घर से थोड़ी ही दूरी में था। दोनों की शादी भी एक ही दिन हुई और दोनों ही हम उम्र थी। पर मिलना उनका दो तीन महीने में ही हो पाता था। पहले अपनी गृहस्थी और अब बच्चों की गृहस्थी में ही उलझे रहते।
श्यामा के दो बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी दोनों बच्चों की शादी हो गयी। पति रिटायर्ड हो गये। बेटा बहू दोनों ही नौकरी करते थे। एक पोता था। उसकी और घर की जिम्मेदारी श्यामा और उसके पति के ऊपर थी। दोनों बहुत खुश थे। राधिका जी की दो बेटियाँ थी। दोनों की शादी हो गयी ।
राधिका जी चाय बना कर ले आयी और दोनों चाय पीने लगे श्यामा बोली, ‘राधिका, सारा दिन घर में अकेली रहती हो, बोर नहीं हो जाती? घर क्यों नहीं आती हमारे? देख राधिका, मेरे पास तो समय नहीं रहता, पर तेरे पास तो समय ही समय है। आ जाया कर, वहीं साथ में बैठ बातें करेंगे और साथ ही खाना खा लिया करेंगे। तुम्हारा भी मन लग जाएगा। दोनों बेटियाँ ठीक तो है न, आती रहती है क्या ? राधिका, हमें तुम्हारी बहुत चिन्ता रहती है। ‘ ‘अरे श्यामा, तुम लोग बेकार ही चिंता करते हो। मैं बिल्कुल ठीक हूँ। अगर कोई परेशानी होगी तो तुम्हें ही बोलूंगी। मेरी हर मुश्किल में तुम लोगों ने ही तो साथ दिया। दोनों बेटियां की सारी जिम्मेदारी भी तुम लोगों ने ही तो निभायी। मेरे तो सारे रिश्तेदारों और यहाँ तक कि पति ने भी साथ छोड़ दिया था। पति तो अब इस दुनिया में ही नहीं है। बेटियाँ तो तुम्हें मालूम ही है, जब भी आती हैं, तो यहाँ अपना समान रखती है और सीधा तुम्हारे घर चाय पीने पहुँच जाती हैं। उनके एक नहीं, दो -दो मायके हैं। कल को अगर मैं नहीं रही तो दूसरा मायके तो है। और मैं तुम्हारे यहाँ इसलिए नहीं आती देख श्यामा बुरा मत मानना, बच्चों के साथ तो कितने काम होते है। मेरे आने से तुम बंध जाओगी और न तुम मेरे साथ बैठ पाओगी न बच्चे को संभाल पाओगी। और फिर आज छोटी बेटी आ रही है । कह रही थी शाम तक आ जाऊंगी।’
श्यामा बोली, ‘अच्छा मैं चलती हूँ और तुम जो इतना सोचती हो न, ऐसा कुछ नहीं है। जब भी मन करे घर आ जाया करो।
श्यामा जी के जाते ही राधिका पुरानी बातें याद करने लगी। पति अविनाश अच्छी सरकारी नौकरी में इंजीनियर थे। पहाड़ों में पोस्टिंग थी। शुरू में तो राधिका अपने पति के साथ ही रही, परन्तु अब बच्चे कॉलेज वाले हो गए, तब वह बच्चों के साथ अपने सास-ससुर के पास आ गयी। पति पन्द्रह पन्द्रह दिन में घर आने लगे। धीरे धीरे घर आना कम हो गया। अगर आता भी तो काम का बहाना बना कर कहीं चले जाते। ससुर भी बीमार रहने लगे और एक दिन वह गुजर गये। ससुर जी का सब काम गाँव में करना था तो सभी लोग गाँव चले गए। जब तेरहवीं हो गयी तो दो दिन बाद सब ने वापस घर आना था। सभी लोग बैठे थे। राधिका जी अपना काम निपटा रही थी कि तभी राधिका के पास चाचा ससुर की बड़ी बहू सुषमा आयी और बोली, ‘दीदी आप सब कुछ कैसे सह लेती हो? जेठ जी को समझती क्यों नहीं? आपको कुछ फर्क नहीं पड़ता क्या?’ ‘सुषमा, तुम क्या कह रही हो? इनको क्या समझना है? मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है।’ ‘अरे दीदी, ऐसे अनजान क्यों बन रही हो? यह बात पूरे गांव में सब को मालूम है। छुपाने से कुछ नहीं होगा।’ ‘देख सुषमा, कसम से मुझे कुछ नहीं पता। बता तो सही इन्होंने क्या
किया जो सब को पता है ओर मुझे नहीं।’ ‘सच दीदी आप को कुछ नहीं पता? हमें तो लगा आप को सब पता है। दीदी आप की जो सहेली है रीमा, जेठ जी का उस के घर आना जाना है। उसका एक बेटा है। पति तो चार साल पहले ही गुजर गया था। अब सुसराल छोड़ कर मायके आ गयी। गांव के बाजार में ही कमरा ले रखा था। अब उसका बेटा भी कॉलेज वाला हो गया है। हमने सुना है कि वे लोग भी वहीं आप लोगों के शहर में आ गए हैं। और जेठजी ने उन्हें किराए में कमरा ले दिया है। मेरी तो समझ में नहीं आता आप लोगों को कैसे नहीं पता था। अब तो हमने सुना है कि जेठजी और रीमा खुब घूमते-फिरते हैं और तो सुना है कि… राधिका आगे कुछ नहीं सुन पायी। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके साथ इतना बड़ा विश्वासघात हुआ है।
सब लोग शहर वापस आ गए। राधिका ने किसी को कुछ नहीं बोला। शाम को अविनाश ने पूछा, ‘कुछ सामान तो नहीं लाना? मैं जरा काम से जा रहा हूँ।’ राधिका बोली, ‘हाँ, लाना है, रुको मैं भी साथ चलती हूँ।’ अविनाश ने कर दिया, ‘नहीं मुझे देर हो जायेगी, मुझे बता दो मैं ले आऊंगा।’ राधिका बोली, ‘रहने दो, मैं ही ले आऊंगी।’ और यह कहकर वह भी तैयार होने लगी। घर से दोनों साथ निकले, रास्ते में अविनाश ने राधिका को ऑटो में बिठा दिया और अविनाश सीधे रीमा के घर पहुंचे गया। राधिका भी रीमा के घर पहुंच गयी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अंदर जाए या नहीं, तभी पीछे से रीमा का बेटा आ गया। वह बोला, ‘आंटी आपको किस से मिलना है?’ राधिका एक दम घबरा गई, बोली, ‘रीमा क्या यहीं रहती है?’ ‘हाँ, मैं उन्हीं का बेटा हूँ, आप अंदर आइए । ‘ ‘नहीं बेटा, फिर कभी आऊंगी। तुम से तो मैं पहली बार मिल रही हूँ। अभी मैं चलती हूँ।’ राधिका घर आ गयी। दो दिन बाद राधिका फिर रीमा के घर गयी। रीमा उसे देख कर सकपका गयी। फिर कुछ संभल कर बोली, ‘अरे राधिका तुम! आओ आओ तुम्हें घर ढूंढने में कोई परेशानी तो नहीं हुई।’
‘नहीं रीमा, मुझे तुम्हारे जीजाजी ने बता दिया था घर का पता । ‘
‘जीजा जी ? कौन से?’
‘अरे, अविनाश ने। तुम ही तो उन्हें जीजा जी कहती हो ।’
‘क्या? अविनाश ने?’
‘ये सब कब से चल रहा है?”
‘क्या कब से चल रहा है? मैं कुछ समझी नहीं राधिका तुम क्या कहना चाहती हो।’
‘रीमा तुम इतनी अंजान क्यों बन रही हों? मुझे सब पता चल गया है। तुम्हें मेरा ही घर मिला था बर्बाद करने के लिए। तुम्हारा इतना बड़ा बेटा है, कुछ तो सोचा होता । ‘
‘राधिका मुझे से बात करने से पहले अविनाश जी से तो बात करती।’
‘उनसे तो मैं बात कर लूंगी क्या ये सच है जो मैंने गांव में सुना ?”
‘अब तुम्हें जब पता चल ही गया है, हाँ ये सच है। अब हम इतना आगे बढ़ चुकें हैं कि अब पीछे नहीं जा सकते। जहाँ तक बेटे का सवाल है, उसे हमारे रिश्ते से कोई आपति नहीं है । ‘
यह सुनकर राधिका रीमा के घर से बाहर निकल गयी और अपने घर आ गयी। अब वह बिल्कुल टूट चुकी थी। कुछ दिनों बाद अविनाश घर आया, आते ही राधिका पर बरस पड़ा और बोला, ‘मैं रीमा को नहीं छोड़ सकता। तुम्हें जो करना है कर लो।’ राधिका ने अपनी सास से बोला तो वह बोली, ‘इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती, तुम जानों और अविनाश जाने।’ राधिका बोली, ‘ठीक है, मैं फोन कर के सभी रिश्तेदारों को बुलाती हूँ।’ राधिका ने सभी रिश्तेदारों को फोन कर के आने के लिए बोला तो सभी ने मना कर दिया। किसी ने काम का बहाना बना दिया, तो किसी ने बोला कि तुम लोगों का आपस का मामला है, हम कुछ नहीं कर सकते। राधिका बिल्कुल टूट गयी।
अब राधिका दिन प्रतिदिन बीमार रहने लगी। एक दिन श्यामा अपने पति के साथ आयी। आते ही बोली, ‘अरे राधिका, तुम्हें क्या हो गया है? तबियत तो ठीक है । क्या हाल बना रखा है तुमने अपना ?’ यह सुनते ही राधिका के आंसू निकल गए वह सिर्फ रोए जा रही थी, कुछ नहीं बोल रही थी। वे दोनों घबरा गये। बहुत पूछने पर राधिका जी ने सब बातें विस्तार से बतायी और बोली, ‘मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मेरा तो सब कुछ खत्म हो गया।’
‘राधिका, कुछ खत्म नहीं
हुआ
है। हम अविनाश जी से बात करते हैं। उन्हें समझाएंगे।’
‘नहीं अब कुछ नहीं हो सकता। अविनाश ने साफ बोल दिया है की मैं रीमा को नहीं छोड़ सकता। मैं दोनों बच्चों की जिम्मेदारी और घर खर्च देता रहूंगा। जैसे पहले चल रहा था वैसे ही चलता रहेगा ।’
‘राधिका, तुम्हारी सास, रिश्तेदारों ने अविनाश को नहीं समझया?”
‘नहीं, सास, रिश्तेदारों, किसी ने भी कुछ नहीं बोला। सब ने कहा ये तुम दोनों का आपस का मामला है और हम अविनाश से नहीं बिगाड़ सकते।’
‘पर क्यों राधिका ?”
‘क्योंकि श्यामा, अविनाश सब की जरूरतें पूरी करता है । ‘
‘ओह ।’
श्यामा के पति बोले, ‘अब क्या करना है?”
‘अब हम कुछ नहीं कर सकते। जैसे चल रहा है वैसे ही चलने दो।’
‘देखो राधिका, तुम अपने को कभी अकेला मत समझना । जब भी किसी चीज की जरूरत हो हमें बोलना । ‘ राधिका के दोनों बेटियों का कालेज हो गया। बड़ी बेटी की नौकरी लग गई। छोटी बेटी सरकारी नौकरी की तैयारी करने लगी। अब अविनाश बीमार रहने लगा। शराब भी बहुत पीने लगा था। जब डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने टेस्ट के लिए बोला। जब टेस्ट की रिपोर्ट आयी तो अविनाश को कैंसर निकला। अविनाश को बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ। वह राधिका से बोला, ‘भगवान ने मुझे सजा दे दी। मैंनें तुम्हें धोखा दिया, अब मैं नहीं बचूँगा। मुझे कर दो।’ राधिका बोली, ‘ऐसे मत बोलो। अब तो हर बीमारी का इलाज है । “
परन्तु अविनाश नहीं बच पाए। कुछ ही महीनों में अविनाश की मुत्यु हो गयी। श्यामा जी के परिवार ने हर कदम पर राधिका जी का साथ दिया। वो साथ आज तक बना हुआ है।
तभी छोटी बेटी राधिका जी को हिलाते हुए जोर से बोली, ‘मम्मी, मैं आपको कब से आवाज लगा रही हूँ, आप सुन क्यों नहीं रही हो? कहाँ खोई हुई हो? और गेट भी खुला छोड़ रखा है। मैं श्यामा आंटी जी के घर जा रही हूँ। जब मैं वहाँ से आऊँगी, तब दोनों मिलकर खाना बनाऐगें ।’
‘अरे बेटा तुम कब आयी? मुझे तो पता भी नहीं चला। रूक, मैं भी साथ चलती हूँ। आज रात का खाना वहीं साथ बैठकर खाऐंगे। मैं उन्हें फोन कर के बोलती हूँ। कुछ यहाँ से बना कर ले जाते हैं। काफी समय से हम सब साथ मिलकर नहीं बैठे।’
बिमला रावत जड़धारी