विश्वास खोते देर नहीं लगती – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

मां अब चलो हमारे साथ पापा नहीं रहे तो तुम कैसे अकेले रहोगी यहां श्यामली जी का बेटा मयंक बोला ।अकेले इतने सालों से अकेले ही तो रह रही थी ।हां यह जरूर था कि पापा थे अभी तक साथ। लेकिन हम दो लोगों के साथ रहते हुए भी एक अकेलापन था इस घर के अंदर। क्योंकि तुमने और तुम्हारी बीवी ने बहुत अकेला कर दिया था हम दोनों को। लोगों की शादी होती है फिर धीरे-धीरे

परिवार बढ़ता है। नन्हे-नन्हे फूल खिलते हैं घर आंगन में ।हम अपना सारा प्यार निछावर कर पर पांल पोस कर  उनको बड़ा करते हैं। छोटी-छोटी खुशियां  बच्चों की पूरी करते हैं ।कोई तकलीफ नहीं होने देते बच्चों को कोई परेशानी नहीं होने देते। और वही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तब मां-बाप से दूर होने लगते हैं ।और शादी हो जाने पर तो  आप से पूरी तरह दूर हो जाते  है।

                कितना विश्वास रहता है एक मां बाप को खासतौर से एक मां को ,की मेरा विश्वास है अपने बेटे पर वह नहीं बदलेगा। वह मेरा विश्वास नहीं तोड़ेगा ।लेकिन नहीं एक मां का सारा विश्वास धीरे-धीरे टूट जाता है ।एक मां-बाप का बेटा सिर्फ अपनी बीवी और बच्चों का होकर रह जाता है ।तेरे पापा तो

हमेशा कहते थे इतना विश्वास ना करो बेटों पर आज का समय बड़ा खराब है ।कब वह बदल जाएंगे  कहां नहीं जा सकता। विश्वास टूटते देर नहीं लगती। श्यामली अकेले रहने की आदत डाल लो।इस संसार से तो सभी को जाना है एक दिन। किसी को आज तो किसी को कल ।एक को तो अकेला रहना ही है ।इसलिए अकेले रहने की आदत जितनी जल्दी डालोगी उतना अच्छा है अब देखो ना बेटे बहु नाती पोते सब है लेकिन हम दोनों तो अकेले ही है ना।

             बहू हम लोगों के पास रहना नहीं चाहती और हम लोगों को अपने पास रखना नहीं चाहती। सोचा था  कि बच्चे हो गए तो अकेलेपन दूर होगा ।छोटे-छोटे बच्चों के साथ खेलूंगी।नाती पोतों में   मैं अपने बच्चों का बचपन जी  लूंगी । बच्चों की तोतली बोली सुनकर निहाल हो जाऊंगी। लेकिन नहीं बहू अपने बच्चों को हां यह उसके ही बच्चे हैं ना, मेरे तो बस नाम के हैं इसलिए कि तू मेरा बेटा है और वह तेरे बच्चे हैं तो दादी दादी दादी का रिश्ता है। इसलिए नहीं तो क्या रिश्ता है हमसे। ना हमारे पास आते हैं ना हमारे पास रहते हैं बस इतनी तसल्ली है कि बच्चे हैं। बस तुम लोगों ने तो मेरा विश्वास खो दिया है जो अब कभी नहीं फिर से मिलेगा मैंने तो अकेले रहने की आदत डाल ली  है तुम लोग जाओ और अपनी दुनिया में मस्त रहो।

                  श्यामली जी  पति के जाने से बहुत दुखी थी। उनकी एक बेटा और एक बेटी थी। बच्चे पढ़ लिखकर बाहर नौकरी कर रहे थे ।एक खुशहाल परिवार का सपना देखा था लेकिन सपना कहां पूरा होता है ।बेटे की शादी की तो  बहू को श्यामली जी से जाने क्या परेशानी थी, वह उनके साथ रहना ही नहीं चाहती थी। जबकि नौकरी बेटा बाहर करता था तो बहू बाहर ही रहती थी। कभी कभार

आना जाना होता था घर में आती थी मेहमानों की तरह रहती थी। खाना नाश्ता सब श्यामली  जी  करती ,किसी की कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती ।और ना ही वह बहू से कुछ कहती है तुम कुछ करो। श्यामली जी काफी मधुर और  मिलनसार स्वभाव की थी । सोचती थी सभी प्यार से रहे घर में ।बहू से कुछ कहते सुनती भी न थी ।जैसे चाहो वैसे रहो लेकिन बहू को ससुराल में अच्छा ही नहीं लगता।

             श्यामली जी के पति को कुछ हृदय संबंधी परेशानी थी डॉक्टरों ने वहां दिल्ली ले जाने की सलाह दी। बहू बेटा तो दिल्ली में ही थे तो दोनों पति-पत्नी चले गए। मेदांता में इलाज चला पेसमेकर लगना था ।एक हफ्ता रुकना पड़ा पहले ।फिर अस्पताल से छुट्टी होने पर एक हफ्ते के बाद दिखाने को कहा तो वहीं रुक गए बेटे के घर। की अभी घर जाओ अपने फिर चार दिन बाद आओ। तो बहू बेटे को भी मूड खराब हो गया था कि अभी एक हफ्ता और झेलना पड़ेगा। ऐसी बातें बहू से बेटा कर

रहा था तो श्यामली  जी ने सुन लिया था । वहां बहू बेटा का रवैया अच्छा नहीं था। किसी काम को हाथ नहीं लगती थी  बहू। खाना नाश्ता सब श्यामली जी बनाती थी ।दिन में कमरे में घुसी रहती थी बहू बाहरी ना निकलती थी ।अब घर का माहौल खराब हो ना हो इसलिए सब चुपचाप करती रही श्यामली जी । एक बार किसी बात के लिए टोक दिया था बहू को कहने लगी कि क्या हो गया काम कर लिया

तो वहां भी तो करती है ना। और अपने बहू बेटे के लिए ही तो किया है किसी और के लिए नहीं किया है ना ।दोबारा पति को अस्पताल में दिखाकर श्यामली जी वापस चली आई। वहां से आने के बाद कभी फोन करके पूछा ही नहीं बहू ने की क्या हाल-चाल है ।बेटे का ही कभी कभार फोन आ जाता था।

                 बेटे के साथ रहना तो नामुमकिन सा लग रहा था ।आखिर इंसान की जीवन में एक समय ऐसा आता है जब उसको सहारे की जरूरत पड़ती है। लेकिन यहां बहू बेटों से तो कोई सहारा मिलता नजर आ नहीं रहा था ।एक बेटी थी अब श्यामली जी ने और संजय ने  तय किया की बेटी जहां नौकरी करती है वहीं फ्लैट लेकर रहेंगे। लेकिन ऊपर वालों को कुछ और ही मंजूर था ।करोना  काल में बेटी करोना संक्रमित हो गई और उसकी मौत हो गई ।अब तो दोनों को पति-पत्नी बिल्कुल ही टूट गए । आखिरी सहारा भी जाता रहा ।इस मुश्किल समय में  भी बहू बेटे ने साथ नहीं किया ।मम्मी पापा इतनी दुखी है तो उनको कुछ दिन अपने पास लाकर रखें ।वह घर में दोनों अकेले बेटी को याद कर करके रोते रहते थे।

           फिर धीरे-धीरे गम सहने की आदत हो गई। देखते देखते 4 साल बीत गए बेटी को गए हुए ।अब थोड़ा-थोड़ा दोनों पति-पत्नी जीना सीख लिया था ।अब उन्होंने तय कर लिया अब अपने घर में ही रहेंगे कहीं नहीं जाएंगे। पति-पत्नी दोनों  जीने भी लगे थे बेटी के गम को सीने में छुपा कर ।लेकिन फिर अचानक श्यामली जी को पूरी तरह से अकेले करके संजय इस दुनिया से चले गए। परिस्थितियों

ने शायद श्यामली जी को बहुत मजबूत बना दिया था। अब आखरी सहारा बेटा था उससे भी अब विश्वास टूट गया था। और श्यामली जी ने अब अकेले रहने का निर्णय ले लिया था। और वह आज बेटे को वापस भेज दी जब मैं कहीं नहीं जाऊंगी ।सब कुछ खोने के बाद इसी घर में रहूंगी ।क्योंकि उस घर में मेरी बहुत सी यादें जुड़ी है ,और अब यहीं रहकर मैं अब अंतिम सांसें लूंगी ।सब लोगों ने मेरा विश्वास तोड़ दिया है अब की विश्वास फिर से नहीं जुड़ सकता है।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

30 जुलाई 

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