एक बहुत बड़े होटल में शादी का फंक्शन चल रहा था। बारात दरवाजे पर आ चुकी थी। द्वार पर एक बहुत ही खूबसूरत लड़की सुर्ख लाल रंग के गाउन में बहुत ही अच्छा डांस कर रही थी। हर कोई उसे देखकर बस उसकी तारीफ़ कर रहा था।
तभी वह ठककर साइड हो गई। बारात ने अंदर प्रवेश किया। सब लोग रस्मों की तैयारी में बिज़ी हो गए। वह लड़की भी अपने मम्मी-पापा के साथ अंदर आ गई। बेहद खूबसूरत, भोली और चेहरे पर प्यारी-सी मुस्कान लिए, वह अपने मम्मी-पापा को खाने की सब चीजें लाकर दे रही थी। पूरे पंडाल में बस वही हर किसी की नज़रों का आकर्षण बनी हुई थी, पर वह इन सब बातों से दूर अपने मम्मी-पापा का ध्यान रख रही थी।
तभी पास खड़ी कुछ महिलाएँ उसे देखकर कानाफूसी करने लगीं—
“कौन है यह? ज़रा पता लगाओ तो, पहले कभी देखा नहीं। नए लगते हैं।”
एक महिला ने पूछा।
तभी दूसरी महिला बोली—“इससे पूछेंगे तो क्या सोचेगी।”
तभी दूल्हे के करीबी रिश्तेदार वहाँ आए और बोले—“आप लोग किसकी बात कर रही हैं?”
“अरे भाई साहब, वो सुंदर प्यारी-सी लड़की है न, जो द्वार पर डांस कर रही थी, उसी के बारे में बातें हो रही हैं। कौन है वो?”
“अरे, वो… वो लड़की शर्मा जी की बहू प्राची है।”
“बहू?!” उन औरतों के मुँह से अचानक निकला।
“हम तो बेटी सोच रहे थे! फिर इनका लड़का कहाँ है? वो तो नहीं दिख रहा। यह तीनों ही दिख रहे हैं।”
भाभी जी बोलीं—“इनका बेटा पिछले साल ही एक भयानक कार एक्सीडेंट में मारा गया। इकलौता बेटा था।”
“अच्छा, तो यह इनकी विधवा बहू है…”
उन सब औरतों का मुँह बन गया।
“शर्म नहीं आती इन लोगों को। बेटे को मरे एक साल भी नहीं हुआ और यह अपनी बहू को सजा-सँवारकर शादी में ले आए हैं। और तो और, कितनी बेशर्मी से नाच रही थी जैसे कुँवारी हो। शर्म नहीं आती! विधवा होकर यहाँ आई है। क्या ज़माना आ गया है। हमसे तो इन लोगों की बेशर्मी नहीं देखी जा रही।”
सभी औरतें अपनी-अपनी बकवास करने लगीं। कोई उसकी विधवा होने और उसके पहनावे को लेकर बातें बना रही थी, तो कोई उसके चरित्र का भी पोस्टमार्टम करने लगी।
तभी पास ही बैठे प्राची के ससुर से रहा न गया। उन्होंने प्राची की आँखों में आँसू देखे तो बहुत दुखी हो गए। वे अपनी बहू प्राची का हाथ पकड़कर उन औरतों के पास आए और बोले—
“अभी कुछ देर पहले तक तो आप लोग मेरी बहू की तारीफ़ों के पुल बाँध रही थीं। आपको इसका डांस करना भी बहुत अच्छा लग रहा था। पर जैसे ही आपको पता चला कि यह विधवा है, तो आपकी मानसिकता बदल गई।
क्या सिर्फ़ विधवा होने से एक लड़की के सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं? उसे सजने-सँवरने का हक़ नहीं रह जाता? वह खुलकर हँस नहीं सकती? अपनी मर्ज़ी से नाच नहीं सकती? उसे सिर्फ़ चार दीवारों में कैद कर देना चाहिए?
माफ़ कीजिएगा आप लोगों को, पर हम नहीं मानते कि विधवा होना कोई अभिशाप है। यह तो भगवान की मर्ज़ी है। और फिर, एक औरत को अपने पति के जाने का सबसे ज़्यादा दुख होता है। ऐसा नहीं है कि प्राची मेरे बेटे की यादों को भुला चुकी है।
उसने तो मेरे बेटे के जाने के बाद अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया था। एक ज़िंदा लाश बनकर रहती थी। जीवन के सारे रंगों से उसने नाता तोड़ लिया था, बेहद नीरस हो गई थी उसकी ज़िंदगी। बहुत मेहनत की है हमने उसको उसकी ज़िंदगी वापस दिलाने में। आज पहली बार वह खुलकर नाची है, उसने अपने आप को फिर से पाया है।
पर आप जैसे लोगों की घटिया सोच ने उसकी आँखों में फिर से आँसू ला दिए। शर्म आनी चाहिए आपको। एक औरत होकर भी ऐसी सोच रखती हैं!
सिर्फ़ विधवा होने से ही एक मासूम लड़की के सारे अधिकार छीने नहीं जा सकते। प्राची हमारी सिर्फ़ बहू नहीं, हमारी बेटी भी है। हमने कभी भी उसके नाम के साथ ‘विधवा’ नहीं जोड़ा। और आप लोगों से भी यही उम्मीद है कि किसी भी बहू जिसने अपने पति को खो दिया हो, उसके आगे ‘विधवा’ शब्द न जोड़ें। यह एक शब्द एक बहू के सपनों में जहर घोल देता है।
उसे हिसाब कराया जाता है कि वो अपनी सारी इच्छाएँ भुला दे। हमारी बहू प्राची सिर्फ़ हमारे बेटे की पत्नी नहीं, अब वह हमारी बेटी भी है। यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी बेटी को कितनी खुशियाँ दें, जिससे वह अपनी ज़िंदगी खुलकर जी सके।”
शर्मा जी की बातें सुनकर उन औरतों का मुँह बन गया।
लेखक : अज्ञात