वह काली रात – कमलेश राणा  :  Moral Stories in Hindi

अगस्त का महीना था वो..बरसात अपने पूरे यौवन पर थी। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब कभी रिमझिम तो कभी मूसलाधार बारिश न होती हो।

उन दिनों 15 अगस्त शुक्रवार को, जन्माष्टमी 16 अगस्त शनिवार को और अगला दिन रविवार.. इस तरह कुल मिलाकर तीन छुट्टियां इकठ्ठी पड़ रही थीं जो नौकरी पेशा लोगों के लिए बड़ा सुअवसर था कि वे कहीं घूमने का प्रोग्राम बना लें।

पराग ने नीलू से जब अपने मन की बात कही तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। ऐसी बरसात में जब चारों तरफ हरियाली हो तो जंगल में खिले फूल ऐसे लगते हैं जैसे धरती की हरी चुनरी में रंग भर दिए हों। कलकल बहती हुई नदियों का इठलाता हुआ यौवन मन को बांध लेता है और जगह – जगह अपने आप पहाड़ों पर से गिरते हुए झरने देखने का अपना ही सुख है लेकिन ऐसे मौके बहुत ही कम मिलते हैं जब इस मौसम में कहीं जाने का मौका मिले।

मेरा मन तो मनाली जाने का है.. सुना है बहुत खूबसूरत जगह है वह मानो धरती पर जन्नत हो। इस समय पहाड़ हरे – भरे होंगे सच में मेरे तो मन की हो जाएगी। जाने कब से वहां जाने का ख्वाब पाल रखा है मन में।

तो चलो फिर तुम्हारे इस ख्वाब को हकीकत में बदल ही देते हैं फिर कल सुबह हम मनाली के लिए निकल रहे हैं। कार से ही चलेंगे ताकि जहां मन करे कार रोककर प्रकृति के नज़ारों का भरपूर आनंद ले सकें और फिर तुम्हें फोटो और रील बनाकर सबको दिखाना भी तो होगा न कि हम घूमने गये हैं।

कितनी अच्छी तरह से समझते हो न तुम मुझे पर मजाक बनाने का भी कोई मौका नहीं छोड़ते।

अच्छा अब पैकिंग शुरू कर दो और बच्चों को जल्दी सुला दो ताकि सुबह पांच बजे ही निकल लेंगे।

रास्ते में ठंडी हवा के झोंके तन और मन को तरोताजा कर रहे थे।आसमान में उड़ते बादलों की बनती बिगड़ती आकृतियां बच्चों में कौतूहल जगा रही थीं। कार में FM पर मस्त गाने बज रहे थे। शाम हो चली थी अब मनाली थोड़ी दूर ही रह गया था तभी सामने चलती गाड़ियां रुकने लगीं। हमारी कार के सामने ट्रक अचानक रुक गया तो देखा सामने नदी में अचानक बाढ़ आ गई थी।

पहाड़ी इलाकों में ऊपर बारिश होने पर छोटी – छोटी नदियां भी विकराल रूप धारण कर लेती हैं। यहां भी ऐसा ही था पानी का बहाव बहुत तेज था और पानी के साथ पेड़ और लकड़ियां भी बह कर आ रहे थे। रात होने लगी थी वह कृष्णपक्ष की #काली रात थी वह सुंदर जंगल अब भाएं – भाएं कर रहा था। कभी उल्लू के बोलने की आवाज सुनाई देती तो कभी मेंढकों की टर्र – टर्र और झींगुरो की आवाज भय पैदा कर रही थीं।

मंजीरों की छम – छम करती आवाज तो ऐसी लग रही थी जैसे कोई स्त्री पैरों में पायल पहनकर चल रही हो। इसके साथ ही हॉरर मूवीज़ में देखे बहुत सारे सीन याद आने लगे थे जब ऐसे जंगल में अंधेरी रात में चुड़ैल पांव में पायल छनकाती आती। सभी डर के मारे सिकुड़े बैठे थे.. रही – सही कमी गीदड़ की आवाज ने पूरी कर दी। सुना था कि इस जंगल में हाथी भी बहुत हैं उनका डर अलग सता रहा था। 

पीछे भी नहीं लौट सकते थे क्योंकि पीछे बहुत सारी गाड़ियां आ कर रुक गईं थीं। आगे अगर पानी और अधिक बढ़ने का खतरा भी था। डर के मारे हालत खराब हो रही थी बच्चे बार- बार पूछ रहे थे कि हम आगे कब चलेंगे। उनके सवाल इस समय झुंझलाहट को और अधिक बढ़ा रहे थे। भय से बचने का बस एक ही उपाय नज़र आ रहा था और वह था कि किसी तरह बारिश रुक जाए और पानी का वेग कम हो तो आगे बढ़ सकें। 

नीलू मन ही मन भगवान से इस मुसीबत से छुटकारा दिलाने की विनती कर रही थी। वह शिवजी का नाम जप रही थी क्योंकि जब कोई रास्ता नज़र नहीं आता तो उनके दरबार में अपनी विनती ही एकमात्र उपाय दिखाई देती है।

रात के दो बज चुके थे। बच्चे भूख से कुलबुला रहे थे।

मम्मा बहुत भूख लगी है अभी हम कभी तक यूं ही यहां खड़े रहेंगे।

बस थोड़ी देर और बेटा.. रास्ता खुलते ही सबसे पहले तुम्हें खाना ही खिलाएंगे। प्रोग्राम ही इतने अचानक से बना कि कुछ बना कर लाने का समय ही नहीं मिला और फिर यह भी सोचा कि रास्ते में जगह – जगह रेस्टोरेंट तो होते ही हैं वहीं खा लेंगे। ऐसे संकट का तो दूर – दूर तक मन में ख्याल ही नहीं आया था।

समय काटने के लिए पराग ने मोबाइल ऑन किया तो उसमें पहाड़ टूट कर गिरने की न्यूज़ आ रही थी अब तो पहाड़ों की तरफ देखते ही लगता कि बस अब यह हमारे ऊपर ही गिरने वाला है।

हे महाकाल! आप सबके रक्षक हो आज बचा लो आगे से कभी भी ऐसे मौसम में पहाड़ी इलाकों में जाने के बारे में सोचेंगे भी नहीं।

सुबह चार बजे के करीब पानी कम हुआ तो रास्ता खुला और हम अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गए। दिन के उजाले में वही जंगल और नदियां जो भयभीत कर रही थीं वह फिर से बड़े खूबसूरत दिखने लगे थे।

लेकिन वह #काली रात और बरसात जीवन में कभी नहीं भूल पाएंगे।

#काली रात

कमलेश राणा 

ग्वालियर

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