चलिये गोविन्द जी गाड़ी तैयार हैँ…. हां चल तो रहे हैँ संजय जी लड़के वालों के घर … पर मन बहुत दुविधा में हैँ कि लड़की कहीं गलत जगह ना फंस जायें … जैसा तुमने बताया कि लड़के वाले किराये के घर में रहते हैँ…. दो बेटी दो बेटे हैँ…. कोई बाप दादाओं की कमाई भी नहीं हैँ…. ऊपर से लड़का भी कुछ नहीं करता अभी … आईएएस की तैयारी कर रहा हैँ प्रयागराज से…. गोविन्द जी चिंता जताते हुए बोले….
तो रहने दो फिर गोविन्द जी… मन दुविधा में हैँ तो मत जाओ…. पर एक बात कहे दे रहा हूँ…. वो तो बहुत भले लोग हैँ जो आपकी स्नातक पास लड़की को देखने को राजी हो गए हैँ… लड़का मनोहर जी का दो साल से हर बार प्री का पेपर पास कर जाता हैँ…. बस मेंस में पिछली बार 4 नंबर से रहा… अबकि बार 1 नंबर से….
उसे अधिकारी बनने से कोई नहीं रोक सकता…बचपन से ही ज़िले में टॉप करता आया हैँ….वो तो बेटियां शादी करके ससुराल चली गयी हैँ… भाभी जी आयें दिन बिमार हो ज़ाती हैँ. …. बेड पकड़ लेती हैँ…. इसलिये घर संभालने के लिए एक संस्कारी सुलझी हुई बहू चाहिए उन्हे ….. कोई मांग भी नहीं हैँ उनकी… वो तो मेरे कहने पर आप लोगों से बात करने को राजी हो गए हैँ….
तो मांग होगी भी क्यूँ छोरा वालो की…… लड़का कुछ करें ना हैँ अभी …. ना ही खुद का घर वार हैँ……. तो हमारी मुस्कान तो लड़के से बीस ही बैठेगी … हां नहीं तो कह रहे… कोई मांग नहीं हैँ…
गोविन्द जी की पत्नी अनीता मुंह चिढ़ाते हुए बोली….
तो फिर रहने दीजिये … मेरा और अपना समय खराब मत कीजिये …. चलता हूँ… बिचौलिय़ा संजय बोला….
वैसे अनीता कह तो सही रही हैँ… पर एक बार जाने में कोई हर्ज नहीं….
इस कहानी को भी पढ़ें:
सुनिये जी… इनके यहां वो हजार रूपये किलो वाली पन्नी वाली मिठाई ले जाने की ज़रूरत नहीं… कभी देखी भी नहीं होगी इन्होने. …
वो सामने मंगल हलवाई की 300 रूपये किलो वाली ले जाना … अनीता जी पति गोविन्द जी के कान में बुदबुदायी ….
ठीक हैँ भाग्यवान … अब निकलने दो हमें….
संजय और गोविन्द जी मनोहर जी के घर आ गए…. मनोहर जी ने दोनों से राम राम कर उनका आदर सत्कार किया …. तरह तरह के नाश्ते रखे मेज पर …. बहुत ही सभ्य लग रहे थे सब…. लड़का संतोष भी आया… दोनों को नमस्ते कर उनके पैर छुये उसने….
हां तो बेटा…. अगर इस बार नहीं हो पाय़ा मेंस तो कोई और नौकरी की तैयारी कर लेना य़ा प्राईवेट कर लेना… कब तक इसके पीछे भागोगे …. गोविन्द जी अपने बेटी के भविष्य की चिंता करते हुए बोले… और वो बिना एक अठन्नी खर्च किये बेटी भी ब्याहने का सोचे बैठे थे….
नहीं अंकल… अभी मेरी एज ही क्या हैँ… ओनली ट्वेंन्टी फोर… इस बार तो क्वालिफाई होना ही हैँ… आई एम डेम श्योर …. संतोष पूरे आत्मविश्वास से बोला….
बहुर देखे हैँ तुम्हारे जैसे डेम श्योर वाले.. आईएएस बनना कोई हलवा हैँ….. लोगों की सात पुश्ते निकल ज़ाती हैँ पर अधिकारी एक भी ना बन पाता….. मन ही मन गोविन्द जी बुदबुदाये ….
मनोहर जी के घर के बहुत ही सामान्य हालात देख… कुछ भी हाई फाई नहीं था उनके यहां….. गोविन्द जी घर लौट आयें….
6 महीने बाद ही मनोहर जी का लड़का आईएएस बन गया…. छोटा सा किराये का घर महल में बदल गया…. गए थे गोविन्द जी सकुचाते हुए फिर से बिटिया का रिश्ता लेकर…. पर मनोहर जी उनके आने से दो महीने पहले ही एक बहुत ही सामान्य घर की बिन माँ की बेटी को अपनी बहू बनाने का वचन दे चुके थे…. जिस पर वो अडिग थे… साफ साफ कह दिया मनोहर जी ने तब आपने हमें गरीब समझ ना कह दी तो हम आगे बढ़ गए…. बाकी आपकी बेटी को और अच्छा रिश्ता मिलें यहीं कामना हैँ……
इस कहानी को भी पढ़ें:
कुछ तो लोग कहेंगे… – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi
बेचारे गोविन्द जी उल्टे पांव लौट आयें थे…. अब 30 लाख भी खर्च करने को तैयार हैँ गोविन्द जी बिटियां की शादी के लिए..
पर मनोहर जी जैसा घरवार और लड़का उन्हे नहीं मिल रहा हैँ… लड़की की भी ऊमर निकली जा रही….
अब पछताये होत क्या … काश समय रहते दूर की सोच लेते गोविन्द जी तो आज़ अधिकारी की पत्नी होती बिटिया उनकी….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा