उम्मीद पे दुनिया क़ायम – स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

सलीम को बचपन से ही अमीर बनने का शौक़ था । इसलिए अपने अरमा पूरे करने के लिए रोज लॉटरी टिकट ख़रीदता रहता था ।

पर क़िस्मत में कुछ सौ रूपयों के अलावा कभी कुछ नहीं निकला । घर का बड़ा बेटा होने के कारण हकीम साहब की सब उम्मीदें उसी से थी ।

लेकिन अपनी आदतों से मजबूर कभी भी एक जगह टिक कर काम नहीं करता । उसके अब्बा उसे हमेशा टौकते कि अगर मैं नहीं रहा तो तुम घर को कैसे सम्भालोगे । घर का सारा बोझ हकीम साहब और उनकी बेटी नफ़ीसा पे था ।

कुछ महीने बाद एक तरफ जहां सलीम पत्ते खेल रहा था । वहीं दूसरी तरफ हकीम साहब दिल का दौरा पड़ने के कारण बीच बाज़ार में गिरें हुए थे ।

यें बात जब नफ़ीसा को पता चली तो वो दौड़ती हुई गयी और अपने अब्बा को ऐसा देख टूट गयी । सब उन्हें उठा कर घर लें आयें । लेकिन सलीम का कहीं कोई अता पता नहीं था । कुछ घंटो बाद जब सब ने जनाज़े को लें जाने का कहा तो नफ़ीसा कुछ ना कह पायीं । सब हकीम साहब के जनाज़े के साथ क़ब्रिस्तान गए और उन्हें इज्जत के साथ दफ़न किया गया ।

तभी मखमूर सलीम अपने घर आया और बोला कौन टपक गया ! …. जो लोगों का मजमा लगा हुआ हैं ।तभी उसकी आपा बाहर आती है और उसे एक खींच के थप्पड़ रसीद करती हैं ।

आपा ! आराम से आप यें क्या कर रहीं हैं ??

यें जो सब जमा हैं हम्मरे अब्बा की वजह से !क्योंकि इस घर के बेटे को तो कुछ होश ही नहीं हैं ।

ये सब सुन उसे यक़ीन नहीं हुआ और अपनी अम्मी के पास गया । अपनी अम्मी की हालत देख उसे अपने अब्बा को आख़री वक्त में ना देख पाने का दर्द शायद सारी उम्र रहें ।

सब लोग ताजियत करने के लिए आ रहे थे । तो सलीम ये सोच रहा था कि अब घर कैसे चलेगा ?? अभी तो अब्बा का सोयम भी करना हैं । आज उसे अपने अब्बा की बात याद आ रहीं थी जब वो कहते थे “जिस दिन मैं ना रहा शायद तब तुम कुछ समझो “।

तभी उसका दोस्त उसके पास आता है और बोलता है । सलीम तुम्हारी लॉटरी निकली हैं !

क्या करूँ ! निकली होगी पाँचसो , हज़ार की …

नही यार….. पूरे पचास हज़ार की !

क्या ?? सच कह रहे हों ! ये सब सुन सलीम को तिनके का सहारा मिल गया ।

सलीम के चेहरे पर बहुत दिन के बाद मुस्कुराहट आयी । इसके बाद वो अपने आपा के पास गया और बोला आपा आप चिंता ना करे अब्बा का सोयम अच्छें से होगा ।

आज सलीम अपनी हक़ीक़त अच्छे से जान चुका था । अपने अब्बा का सपना उनकी दुकान पे बैठता । जो कुछ भी उसने हकीम साहब से सीखा

आज वो तजुर्बा काम आ गया और सलीम अपने घर का सरपरस्त बन गया । लेकिन उसकी लॉटरी लेने की आदत नही बदली वो आज भी सोचता था कि क्या पता एक दिन जैक्पॉट ही लग जाए ।

#तिनके का सहारा

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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