उल्टी पट्टी पढ़ाना – रंजना गुप्ता : Moral Stories in Hindi

गाँव रामपुर में एक बुज़ुर्ग अध्यापक रहते थे – नाम था हरिनारायण जी। पूरे गाँव में उनका बहुत मान-सम्मान था। वे न सिर्फ़ बच्चों को पढ़ाते थे, बल्कि जीवन की सीख भी दिया करते थे। उनका मानना था कि शिक्षा का अर्थ केवल किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि सही रास्ता दिखाना भी है।

गाँव में ही शंकरलाल नाम का एक आदमी था। वह चालाक, कपटी और स्वार्थी किस्म का इंसान था। उसे लोगों को भ्रमित करके अपना काम निकालने में बड़ा मज़ा आता था। उसके पास कोई स्थायी काम तो था नहीं, लेकिन दूसरों को उल्टी पट्टी पढ़ाने यानी गलत रास्ता दिखाने में वह माहिर था।

गाँव के छोटे-छोटे बच्चे जब स्कूल से लौटते तो शंकरलाल उनसे कहता –

अरे, पढ़ाई-लिखाई से क्या होगा? खेतों में काम करना सीखो, तभी पेट भरेगा। ये किताबें किसी काम की नहीं।

बच्चे भोले थे। बच्चों का मन कोरी स्लेट की तरह होता है जो लिख दिया जाए वह अंकित हो जाता है।कुछ बच्चे तो सचमुच सोचने लगते कि शायद मास्टर जी हमें बेकार का ज्ञान दे रहे हैं। धीरे-धीरे यह बात गाँव में फैलने लगी कि बच्चों का मन पढ़ाई में कम होने लगा है।

हरिनारायण जी को जब यह खबर मिली, तो वे समझ गए कि जरूर किसी ने बच्चों को उल्टी पट्टी पढ़ाई है। उन्होंने अगले दिन कक्षा में बच्चों से पूछा –

बच्चों, आप क्यों पढ़ना नहीं चाहते?

एक बच्चा बोला – मास्टर जी, शंकर चाचा कहते हैं कि खेती ही असली काम है, पढ़ाई से कुछ नहीं होता।

हरिनारायण जी मुस्कुराए। उन्होंने बच्चों को समझाया –

देखो, खेती करना बुरा नहीं है, बल्कि खेती ही हमारी रीढ़ की हड्डी है। परन्तु किसान को नई तकनीक, नए बीज, नई दवाइयों का ज्ञान न हो तो क्या वह अधिक अनाज उगा पाएगा? शिक्षा से ही खेती भी उन्नत होती है। शिक्षा रास्ता दिखाती है। बच्चों को गुरुजी की बात समझ आ गयी आगे बढ़ने के लिए पढ़ना जरूरी है।

हरिनारायण जी हमेशा  कहते थे – सही

शिक्षा वही है जो जीवन में सही रास्ता दिखाए , जो गलत  रास्ते की ओर ले जाए वह उल्टी पट्टी होती है ।

*उल्टी पट्टी पढ़ाना – एक कहानी

रंजना गुप्ता

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