उजाला – संध्या त्रिपाठी

 माँ – माँ उठ ना , देख  तो उजाला हो गया …..

मैं जाऊं पटाखा बिनने ?

कहां जाएगी बिटिया पटाखा बिनने …..?

जहां तू काम करती है ना माँ ….वहीं …

 कल देखी थी मेम साहब का बेटा (भैया) खूब पटाखा फोड़े थे….. जरूर दो- चार इधर-उधर बिना फूटे रह गया होगा …!

   अरे कजरी इतनी सुबह तू  ….?

 वो… वो ….मेम साहब….  हड़बड़ाते और झिझकते हुए कजरी ने कुछ कहना चाहा….

पर मेम साहब  को समझते देर ना लगी….

    इधर आ …. इन पटाखों के साथ ये किताब भी रख…… खूब पढ़ना …

फिर रात के अंधेरा बीतने और भोर के उजाले का इंतजार नहीं करना पड़ेगा तुझे…… तू भी रात में ही पटाखा फोड़ सकेगी ।

( स्वरचित)✍️ संध्या त्रिपाठी

Leave a Comment

error: Content is protected !!