तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -4)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा कि तृप्ति विदेश से आई अपनी दोस्त रिक्की की पार्टी में शेखर के साथ जाती है।रिक्की तृप्ति पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है अब पढ़ते हैं आगे।)

“चले तृप्ति!” उसकी कलाई पकड़कर रिक्की बोली।

“ओह हाँ यार।” कुछ हड़बड़ा कर वह बोली।दोनों पार्किंग एरिया में चले जाते हैं और कुछ देर बाद रिक्की की कार सड़क पर दौड़ने लगती है।

“एक बात पूछूं तृप्ति यदि तुम बुरा न मानो!” रिक्की भेदभरी नजरों से उसे देखकर बोली।

“हाँ पूछो न,मैं बुरा क्यों मानूंगी।”

“तुम खुश तो हो न!” रिक्की बोली।

“मैं समझी नहीं! ” तृप्ति सरप्राइज थी।

“मेरा मतलब, देखो मैं तुम्हारी दोस्त हूँ।तुम्हारी फिक्र मुझे नहीं होगी तो किसे होगी।पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे शेखर की इंकम…मेरी बात को अदरवाइज मत लेना प्लीज।तुम हमारे ग्रुप की सबसे खूबसूरत लड़की..तुम्हें तो राजकुमार मिल सकते थे।”

“शेखर किसी राजकुमार से कम है क्या?” तृप्ति ने हँसते हुए कहा।

“ईमानदारी से कहूं तो शेखर तो किलर है।जो लड़की उसे एक बार देख ले मर जाए।यार लड़कियाँ खुद उसके कदमों में दौलत बिखर देंगी।” इतना कहकर रिक्की ने गाड़ी का स्टेरिंग जोर से घुमाया।तृप्ति लड़खड़ाते हुए आगे की ओर झुक गई।

“अरे बाबा, संभाल कर।कहीं ऐसा तो नहीं तुम्हें भी शेखर पसंद आ गया।मरने का तो नहीं सोच रही हो न!” तृप्ति हँसते हुए बोली।

“हा..हा..हा..।” रिक्की ने गाड़ी तृप्ति की सोसायटी के बाहर रोक दी।ब्रेक के शोर की आवाज़ को सुनकर आस पास बैठे आवारा कुत्ते हड़बड़ा कर उठ गए और जोर जोर से भौंकने लगे।

“बच गई!” तृप्ति ने ठंडी साँस लेकर कहा और कार से बाहर आ गई।

“ओके डियर मैं चलती हूँ।” रिक्की बोली।

“अरे ऐसे कैसे!अंदर आओ प्लीज।” तृप्ति ने कहा।

“बहुत देर हो गई है।थक भी गई हूँ चलती हूँ।”इतना कह रिक्की आगे बढ़ गई।तृप्ति उसे जाते देखती रही।तृप्ति के चेहरे पर आए भाव उसके मन को दिखाने में असमर्थ थे।सीढियों को पार कर तृप्ति अपने फ्लैट के दरवाजे पर थी।एक नजर अपनी कलाई पर बंधे रिक्की के दिए महंगे उपहार पर डालती है और दूसरी फ्लैट की डोरबेल पर।

उंगलियों को डोरबेल पर रख वह दरवाजे से सिर अड़ाकर खड़ी हो जाती है।जैसे ही शेखर दरवाजा खोलता है तृप्ति उसकी बाँहों में गिर जाती है।शेखर उसे थाम अंदर ले आता है।

नींद भरी आँखों से शेखर को घूरती तृप्ति शेखर के गालों पर एक चुंबन जड़ देती है।

“ओह्…तो रोमांटिक हो रही हैं आप!” शेखर ने उसे अपने में समेटते हुए कहता है।

“जानेमन आप तो किलर हैं।लड़कियां आपके कदमों में बिछ जाएं।” हँसते हुए वह बोली।

“क्यों सीधे सादे आदमी को बहका रही हो।मैड़म यह किलर बंदा तो आपको देखकर ही मर चुका है।” तृप्ति को बेड पर लिटाकर शेखर उसके ब्लाउज के बटन को खोलने लगा।

“अदाएं…हा…हा…हा…,यह बताओ कि रिक्की पर कौन सा मंत्र फूंक दिया जो तुम्हारी तारीफें कर रही थीं।पहली बार मिले और ऐसे…अच्छा कहीं पहले से कोई चक्कर तो नहीं!!” तृप्ति ने शेखर के हाथों को रोककर कहा।

“शिट यार…किसका नाम ले लिया।मैं तो खुद हैरान हूँ तुम्हारी दोस्त मुझे बार बार छू रही थी।यार ऐसे नॉर्मली दोस्त टच कर लेते हैं लेकिन उसका छूना…मुझे ठीक नहीं लग रहा था।” शेखर तृप्ति से दूर बैठ गया।

“हो सकता है तुम पर पहली नजर में ही फिदा हो गई हो…।अच्छा यह देखो रिक्की ने मुझे क्या गिफ्ट दिया।” चहकते हुए तृप्ति ने अपना कलाई शेखर के सामने कर दी।

तृप्ति की कलाई पर मंहगी ब्रांडेड घड़ी देख शेखर चौंक जाता है।

“तुम्हें इतना महंगा गिफ्ट नहीं लेना चाहिए था।इस घड़ी की कीमत कम से कम एक लाख तो होगी।” शेखर ने कहा।

“यार मैंने नहीं ली,उसने खुद दी है और वैसे भी बेस्ट फ्रेंड है मेरी और बहुत अमीर है वो।” तृप्ति ने मुँह बनाकर कहा।

“देखो तृप्ति, हमें यह वापस कर देनी चाहिए क्योंकि हम उसे इतना मंहगा गिफ्ट नहीं रिटर्न कर सकते।तुम इसे कल ही वापस कर दो।”

“नहीं मैं वापस नहीं करूंगी।उसे बुरा लगेगा।” तृप्ति ने घड़ी को हसरत से देखकर कहा।

“तृप्ति! मैं वादा करता हूँ कि मैं खुद तुम्हें ऐसी घड़ी दिलाऊंगा लेकिन किसी का उपहार…यह मेरी इंसल्ट है यार।” इतना कह शेखर रूम से बाहर निकल गया।तृप्ति दुखी होकर घड़ी को देख.ठंडी आह भरती है।

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होटल के आलीशान कमरे के ड्रिंक लिए विंडो पर खामोश खड़ी रिक्की की आँखों में शेखर था।उसकी पर्सनैलिटी और उसके कट्स जैसे रिक्की को अपने आगोश में ले चुके थे।बार बार शेखर का स्पर्श उसे रोमांचित कर रहा था।गिलास को अपने गले में उतारकर वह बिस्तर पर पसर गई।अपना मुठ्ठियों में चादर को भींच कर वह अपनी उत्तेजना को कंट्रोल करती रिक्की के गले से सिसकियां निकल गई।आँखों से पानी की एक धार निकल उसके गालों पर फैला गई।शायद कुछ ऐसा था जिसे वह दबाकर दफन कर रही थी। कमरे में सन्नाटा पसरा था लेकिन शोर कर रहा था।हवा से हिलते पर्दे जाने क्यों जज्बाती थे।अपनी आँखों को बंदकर वह ऐसे ही पड़ी रही या फिर नींद की गहरी दुनिया में खो गई।

“ठक…ठक….ठक..।”

“ठक…ठक…ठक…।” तेज आवाज़ रिक्की के कानों से टकराने लगी।अपने दोनों कानों को तकीए में दबा लेती है।लेकिन आवाज और.तेज होने लगी।साथ ही कुछ स्वर भी सुनाई देने लगे।

“रिक्की…रिक्की….ओ कम..ऑन यार उठ जाओ अब कितना सोओगी!” स्वर को पहचान रिक्की तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ती है और झटके से खोल देती है।सामने तृप्ति खड़ी थी।

मुस्कुराती,खिली तृप्ति।उसे देख जाने क्यों रिक्की के मन में ईर्ष्या जली लेकिन उसे शांत कर वह तृप्ति के गले लग जाती है।

“इतनी सुबह! क्या बात है।” रिक्की ने सवाल किया।

“सुबह! ओ हैलो मैड़म।बारह बज रहे हैं।सुबह भी चली गयी अब तो।” तृप्ति बोली।

“ओह..इतना टाइम हो गया।एनीवेज…अच्छा हुआ जगा दिया।नहीं तो सोती रह जाती।वैसे जाने कबसे सो ही रही थी।” कुछ गहरी आवाज़ में रिक्की ने कहा।

“तो थैंक्स बोलो मुझे।” तृप्ति इतराते हुए.बोली।

“तुम बैठो मैं फ्रेश होकर आती हूँ।फिर चलते हैं कहीं तफरी के लिए।” तृप्ति का जवाब सुने बिना रिक्की बाथरूम में घुस गई।अपने बैग को काउच पर रखकर तृप्ति उस आलिशान कमरे को देखने लगी।फाइफ स्टार होटल के इस आलीशान कमरे में उसके घर से ज्यादा स्पेस था।महंगा फर्नीचर और मखमली सा कालीन।जिन्दगी में पहली बार उसने यह लग्जरी देखी थी।चहलकदमी करते हुए वह खिड़की के सामने खड़ी हो गई।आठवीं मंजिल पर खड़ी तृप्ति अपने शहर को भागते देख रही थी।यह सब उसे गुदगुदा रहा था।

उधर शॉवर के नीचे खड़ी रिक्की शेखर की खुमारी में डूब रही थी।अपने शरीर पर पड़ती पानी की बूंदों में जैसे आग महसूस कर रही थी।

तृप्ति की खूबसूरती और शेखर की पर्सनैलिटी जैसे उसके लिए जहर थी जिसके स्पर्श मात्र से उसकी उंगलियां जल गई हो।

बाथरूम में खड़ी रिक्की भूल गई कि बाहर तृप्ति उसका इंतजार कर रही है।लाइफ में सब कुछ पाने की जिद रखने वाली रिक्की शेखर की बेरूखी से तड़प रही थी।

“ओ हैलो…. आधा घंटा हो गया है रिक्की!कब तक बाथरूम में रहोगी?” तृप्ति ने दरवाजे पर हाथ मार कर कहा।

उसकी आवाज़ से हड़बड़ाई रिक्की जल्दी से अपने शरीर को टॉवल से साफ कर शीशे के सामने खड़ी हो गई।उसके चेहरे के भाव जैसे उसके दिल की चुगली कर रहे थे।

“अरे आओ यार…बोर हो गई मैं।फिर यार शेखर भी जल्दी आयेगा आज ।” तृप्ति फिर से चिल्लाकर बोली।

उसकी आवाज सुन रिक्की का चेहरा सख्त हो गया लेकिन अगले ही पल अपने चेहरे पर एक कृत्रिम मुस्कान लिए वह खुद को सजाने लगी।

“आती हूँ जानेमन।ऐसी भी क्या जल्दी है… कुछ देर अपने शेखर से दूर भी रह लो…आती हूँ बस दस मिनट…।” अपनी आँखों में भरी मादकता देख रिक्की ने तृप्ति को जवाब दिया।

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दिव्या शर्मा

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