” बस..बहुत हो चुका तेरा गाना-बजाना..स्कूल से आकर चुपचाप रसोई में जाकर अपनी माँ से खाना पकाना सीख… रंग देखकर तो कोई भी लड़का तुझे पसंद नहीं करेगा,कम से कम घर का कामकाज सीख लेगी तो शायद कोई ढ़ंग का परिवार मिल जाए…।” निधि के घर में घुसते ही उसकी दादी उस पर फट पड़ी थी।उसने कातर नज़रों से अपनी माँ की तरफ़ देखा जो मौन रहकर शायद कह रही थी कि तेरी दादी ठीक कहती हैं।तभी उसके पिता महेश दफ़्तर से लौटे।उन्हें देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गये।वो कमरे में आकर तकिये में मुँह छिपाकर वो रोने लगी।
पीछे से महेश ने आकर बेटी के सिर पर प्यार-से अपना हाथ फेरा और उसे अपने कमरे में ले गए। अपनी अलमारी खोलकर उसमें रखे सुनहरे कप दिखाकर बोले,” ये देखो, तुम्हारी माँ ने ये कप जीते हैं।”
” क्या! माँ ने ये कप जीते।” रोती हुई निधि की आँखें अचानक आश्चर्य-से चौड़ी हो गई।फिर वो उन्हें छूते हुए बोले,” कब, कैसे और कहाँ पापा..?”
” आओ, यहाँ बैठो..,तुम्हें सब बताता हूँ।” कहते हुए महेश ने अपनी बिटिया को पलंग पर बिठाया और कहने लगे,” तुम्हारे नाना जी चार भाई थे और सब एक ही घर में रहते थे।तुम्हारे नाना सबसे छोटे थे।जब तुम्हारी माँ सुमित्रा का जन्म हुआ तब तुम्हारी नानी की सास यानि तुम्हारी परनानी अपने नाक-भौं सिकोड़ते हुए बोलीं,” इतने सालों बाद पैदा भी की तो बेटी..।” सुनकर तुम्हारी नानी की आँखों में आँसू आ गये थे।जैसे-जैसे सुमित्रा बड़ी होती गई, उसका रूप तो निखरता गया लेकिन उसकी लंबाई अन्य बहनों की तुलना में कम रही।परिवार वाले उसका मज़ाक बनाते तो उसे बहुत दुख होता।एक दिन उसने रोते-रोते अपने पिता से कहा,” पापा..मेरी वजह से आपको शर्म आती है ना..।”
” बिल्कुल नहीं..तुम जैसी भी हो..मेरी बेटी हो और बेमिसाल हो..।” कहकर उन्होंने अपनी बेटी को गले से लगाया और शाम को उसे एक मैदान में ले गये जहाँ लड़कों के साथ कुछ लड़कियाँ भी बैंडमिंटन खेल रहीं थीं।बस तुम्हारे नाना जी ने उसे भी एक रैकेट थमा दिया और खेलने को कहा।
शुरु-शुरु में तो सुमित्रा को थोड़ी हिचक हुई, फिर..।” कहकर महेश चुप हो गये।
” फिर पापा..।” निधि की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
” फिर क्या…सुमित्रा को खेलने में आनंद आने लगा।वो रोज शाम को अपने पिता के साथ बैंडमिंटन कोर्ट पर जाकर खेलने लगी।” महेश उत्साह-से बोले।
” और माँ के घरवाले कुछ नहीं बोलते थे?”
” खूब बोलते थे..तुम्हारे नाना और उसे ताने भी कसते थे लेकिन बाप-बेटी ने अपने कान बँद कर लिये थे।” कहते हुए महेश हँसने लगें और फिर बोले,” पहली बार जब सुमित्रा इंटर स्कूल का मैच जीती तब उसने हाथ में लिया हुआ विनर कप उठाकर अपने पिता से कहा था,” पापा..आपकी बेटी हूँ..# शर्म नहीं गर्व हूँ मैं।” सुनकर तुम्हारे नाना-नानी खुशी-से फूले नहीं समाए थे।
इंटर काॅलेज़ बैंडमिंटन का मैच खेलने सुमित्रा यहाँ के एक काॅलेज़ में आई थी।मैं अपने दोस्त के साथ मैच देखने गया था और सुमित्रा का खेल देखकर…।” उस पल को याद करते ही महेश के होंठों पर मुस्कान खेल गई।
” क्या माँ अच्छा नहीं खेली थी।” पिता को मुस्कुराते देख निधि ने चिंतित स्वर में पूछा।
” नहीं बेटी..वो बहुत अच्छा खेली थी..उसने मैच भी जीत लिया था और मुझे भी..।” महेश धीरे-से बोले।
” फिर पापा…।”
” फिर क्या…सुमित्रा का नेशनल टीम में सिलेक्शन होने वाला था, तभी मैं शादी का पैगाम लेकर पहुँच गया।मेरा रंग देखकर तुम्हारी नानी ने तो मना कर दिया लेकिन बाकी लोगों की सहमति थी।मैं तो चाहता था कि सुमित्रा आगे भी बैंडमिंटन खेलती रहे लेकिन तुम्हारी दादी पुराने विचारों की है ना..उनके विचार से लड़कियों को घर का ही काम करना चाहिए।खेलने अथवा गायन-वादन सीखने से समाज में बदनामी होती है,इसीलिए उन्होंने साफ़ मना कर दिया।मुझे उनकी बात माननी पड़ी और सुमित्रा को अपनी इच्छा दबानी पड़ी।तुम्हारे जन्म के बाद उसने मुझसे कहा था,” मुझे तो रोक दिया लेकिन मेरी बेटी को नहीं रोकना..उसे अपने मन की करने देना।”
” अच्छा! माँ ने ऐसा कहा था।तो फिर वो दादी की हाँ में हाँ क्यों मिलाती हैं।” निधि ने नाराज़गी जताई।तब महेश बोले,” ताकि दादी का अपमान न हो और गृह-क्लेश भी न हो..।इसीलिए आज जब अम्मा तुम पर बरस रहीं थीं तो वो चुप थी।”
” ओह..तब तो मुझे संगीत-क्लास जाना बंद करना होगा।” उसकी आँखें डबडबा गई।महेश ने हँसते हुए उसके आँसू पोंछे और बोले,” मेरी बहादुर बेटी..जब सुमित्रा अपने इतने बड़े परिवार से लड़कर बैंडमिंटन खेल सकती है तो तुम उसकी बेटी होकर…।तुम्हारी दादी को मैं संभाल लूँगा, बस तुम अपने लक्ष्य पर फ़ोकस करना।”
पिता का संबल पाकर निधि का आत्मविश्वास बढ़ गया और वो मन लगाकर अपने गायन का अभ्यास करने लगी।यद्यपि दादी का रोकना- टोकना चलता रहा..लेकिन अब उसने उनकी बातों को अनदेखा करना सीख लिया था।कभी -कभी तो दादी चिल्लाकर सुमित्रा से कहतीं,” तेरी गवैया बेटी के कारण मेरा मोहल्ले वालों से आँख मिलाना मुश्किल हो गया है।” सुनकर वह चुप रह जाती।
निधि ने विद्यालय स्तर की कई संगीत प्रतियोगिताओं में प्रथम-द्वितीय पुरस्कार जीते।राज्य स्तर की एक प्रतियोगिता में उसे तृतीय स्थान मिला तब वो उदास हो गई।उस समय महेश ने उसे ‘ तू बेमिसाल है’ कहकर उसका हौंसला बढ़ाया।
बस निधि ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने गायन के अभ्यास में भी जी-जान लगा दिया।दिल्ली के एक राष्ट्रीय गायन-प्रतियोगिता में उसने शास्त्रीय संगीत की शानदार प्रस्तुति देकर सभी जजों और श्रोताओं का मन मोह लिया था।उसे प्रथम पुरस्कार से नवाज़ा गया।चारों तरफ़ उसका नाम और उसकी गायिकी की प्रशंसा होने लगी।समाचार-पत्रों में उसकी तस्वीर और इंटरव्यू छपे।
पुरस्कार की ट्राॅफ़ी लेकर जब निधि घर पहुँची, तब उसकी दादी ने ही आरती की थाल लेकर उसका स्वागत किया।तब निधि बोली,” दादी..क्या अभी भी आप..।”
” नहीं रे..तू तो..वो क्या कहते हैं…।”
” # शर्म नहीं गर्व हूँ मैं..।” निधि ने अपनी दादी के वाक्य को पूरा किया तो वो बोली,” हाँ..वही तो मैं..।” दादी के इतना कहते ही सब ठहाका मारकर हँस पड़े।दादी-पोती के इस सुखद मिलन को देखकर महेश और सुमित्रा की आँखें खुशी-से छलछला उठी थी।तभी दादी सुमित्रा के पास आईं,” बहू..अब तू भी बैंडमिंटन खेल..।”
” वाह दादी..।” निधि खुशी-से चिल्ला उठी और एक बार फिर से सभी लोग हा-हा करके हँस पड़े।
विभा गुप्ता
# शर्म नहीं गर्व हूँ मैं स्वरचित, बैंगलुरु