ट्रैफिक जाम – एम. पी. सिंह

अरे, बाकी लोग कहाँ है, बॉस आते ही जोर से बोला, 8 बजे का टाइम दिया था, 9 बजे गए है, कब शुरू होंगी पार्टी? मानकी, रोहन,  सुमित और कोमल सब ट्रैफ़िक जाम मे फसे है, बस आते ही होंगे. सोनल की बात सुनकर सब ऑफिस वाले बैंगलोर के ट्रैफिक को कोसने लगे पर खुशी मुस्कराती रही. सब लोग हैरान थे जब खुशी बोली, “आई लव ट्रैफिक जाम “, और यादो मे खो गई….

जयपुर से पढ़ाई पूरी करते ही बैंगलोर मे नौकरी मिल गई. ऑफिस के पास ही किराये का फ्लेट ले लिया. रोज सुबह शाम वॉक करते हुए ऑफिस चलीं जाती. नौकरी करते साल भर ही हुआ होगा, की ग्रोथ के लिए दूसरी नौकरी ज्वाइन कर लीं. अब ऑफिस एम.जी. रोड के पास और घर वाइट फिल्ड. रोज सुबह भागम भाग, कभी कैब, कभी ऑटो कभी क्विक राइड. एक दिन कैब से जा रही थी

की ट्रैफिक जाम मे फ़स गई. कैब के साइड मे एक लाल रंग की स्पोर्ट्स बाइक रुकी. बाइक वाले ने हेलमेट लगा रखा था, उसने कैब का डोर नोक किया, खुशी ने ग्लास नीचे किया तो उसने इशारे से बताया कि दुपट्टा डोर से बाहर लटक रहा ही. खुशी ने डोर खोलकर दुपट्टा अंदर ले लिया. बाईक वाले का चेहरा तो हेलमेट से ढ़का था पर बाईक का रंग और उसका नंबर दिमाग़ मे नोट कर लिया. कुछ दिन बाद फिर ट्रैफिक जाम मे खुशी की कैब खड़ी थी

की वही लाल बाईक साइड मे आकर रुकी तो खुशी ने बाईक को नंबर से पहचान लिया. गर्मी और जाम दोनों ज्यादा थे, लड़के ने हेलमेट उतरा और रुमाल से मुँह पोछा तो खुशी ने उसका चेहरा देखा और दोनों की आंखे चार हुई. थोड़ी सी जगह मिलते ही बाईक वाला निकल गया.  फिर कुछ हफ्ते बाद एक दिन खुशी ऑफिस जाने के लिए क्विक राइड मैं बैठी तो देखा साथ वाली सीट पर लाल बाईक वाला लड़का पहले से बैठा था.

दोनों मे हाय हेलो हुई और खुशी ने पूछा, आज वो रेड बाईक? लड़का मुस्कुरा कर बोला, टायर पंचर हो गया. लगभग एक डेढ़ घंटे बाद दोनों एक ही स्पॉट पर उतर कर एक ही तरफ पैदल चलने लगे. खुशी समझ गई की इसका ऑफिस और घर मेरे ही रूट पर है. तब लड़का बोला, आई ऍम राहुल, ग्लोबल टावर मे मेरा ऑफिस है, मे अकॉउंट्स मैनेजर हूँ. तब खुशी बोली, आई ऍम खुशी, नेक्स्ट बिल्डिंग मे मेरा ऑफिस है, मै डाटा अनालिस्ट हूँ.

दोनों फॉर्मलीं बातें करते करते लगभग 10 मिनट मै ऑफिस पहुंच गए.  फिर एक दो बार लंच टाइम मैं ऑफिस के पास चाय की दुकान पर मुलाक़ात हो गई. कुछ दिन बाद एक शाम राहुल ऑफिस से निकला तो देखा खुशी ऑफिस के पास रोड साइड मे ख़डी थी, शायद कैब का इंतजार कर रही थी. राहुल ने पूछ किया, घर जा रहा हूँ, लिफ्ट चाहिए क्या? शायद खुशी भी यही चाहती थी, मुस्कुरा कर बाईक पर बैठ गई.

रास्ते मैं कोई खास बात नहीं हुई, पर घर पहुंच कर खुशी ने अपने फ्लैट की तरफ इशारा करके अपना घर दिखाया और कॉफ़ी के लिए इन्वाइट किया, पर राहुल ने “फिर कभी “ कहकर अपना कार्ड दिया और बोला, अगर जरूरत हो तो कॉल कर देना, और चला गया. कुछ दिन बाद खुशी ने राहुल को फोन किया की कोई कैब नहीं मिल रही है, क्या ऑफिस जाते हुए मुझे भी साथ ले जा सकते हो? राहुल को भी इसी समय का इंतजार था, वो बोला, मैं 8.30 पर पहुंच जाऊगा, रेडी रहना. राहुल गया तो खुशी रोड पर ही खड़ी इंतजार कर रही थी,

और जल्दी से बाईक पर बैठ गई. ऑफिस पहुंच कर राहुल बोला, शाम को भी साथ मैं चलना. खुशी ने हाँ मैं सिर हिला दिया और बोली, आपको राइड के पैसे लेने पडेगे. राहुल बोला, ऐसा करो, वीक एन्ड में ट्रीट दे देंना, हिसाब बराबर हो जायेगा. उसके बाद रोज़ साथ आना जाना, वीक एन्ड मे क्वालिटी टाइम स्पेंड करना. धीरे धीरे दोस्ती गहरी हो गई, फिर प्यार और फिर शादी और उसके बाद लाइफ सेट.

तभी मानकी और रोहन की आवाज ने खुशी को अतीत से वर्तमान में खींच लिया जो बोल रहा था, सॉरी, मेरी वजह से आप सब को इंतज़ार करना पढ़ा. लेकिन खुशी की मुस्कुराहट अभी भी जारी थी, वो बोली, सॉरी क्यों, तुम्हारी इसमें क्या गलती? 

पार्टी के बाद घर आकर खुशी ने राहुल को सारा किस्सा सुनाया तो राहुल बोला “आई लव ट्रैफिक जाम “ और दोनों जोर जोर से हॅसने लगे. 

साथिओं, कुछ चीजें हमारे नियंत्रण मे नहीं होती, उनके लिए ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं, और जो चीजें हमारे नियंत्रण मे हो, उन्हें नज़र अंदाज़ कभी मत करो, ये खुश रहने का मूल मन्त्र है.

लेखक 

एम. पी. सिंह

(Mohindra Singh )

स्वरचित, अप्रकाशित 

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