जैसे ही कप उठाते हुए, छवि का पांव मयंक के पांव से टकराया कप छलक कर ट्रे में गिर गया तो मयंक दोस्तों के बीच(जिसमें दो महिला मित्र भी थी) लगभग चिल्लाते हुए बोला..दिखाई नहीं देता.. अंधी हो क्या…मूर्ख …कहां से पल्ले पड़ गई ??
सबके बीच मयंक को यूं चिल्लाते देख ..जी सॉरी, सॉरी गलती से लग गया…सकपकाते हुए छवि ने कहा।
उसके दोस्तों ने भी मयंक को शांत होने को कहा, मगर मयंक अपनी भड़ास निकाल कर ही चुप हुआ
बर्तन रसोई में रख छवि अपने कमरे में आ फूट फूट कर रो पड़ी। हालांकि अक्सर मयंक उस पर चिल्लाता रहता था किंतु आज अपने दोस्तों के बीच ये छवि को बहुत बुरा लगा।
रोते रोते कब वह अतीत में चली गई पता ही नही चला…
साधारण रंग रूप की पढ़ी लिखी बड़े घर की संस्कारी बेटी थी छवि। सांवली रंगत के कारण रिश्ते में दिक्कत हो रही थी छोटी बहन गौरवर्ण जो भी रिश्ता छवि के लिए आता वह छोटी बहन राशी को पसंद कर लेता।
माता पिता इससे परेशान भी थे और दुखी भी। मयंक साधारण घर का किंतु सुंदर और एक कंपनी में नौकरी करता था गुजारे लायक पगार थी। हालांकि वह छवि से कम पढ़ा लिखा था।
मयंक के माता पिता ने छवि को बड़े घर की लड़की देख रिश्ता ले लिया, मयंक भी छवि को लेकर खुश था, भले ही उसका रंग रूप साधारण था किंतु वह पढ़ी लिखी बड़े घर की संस्कारी बेटी थी।
शादी के कुछ समय तक सब ठीक रहा छवि ने मयंक को सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने को कहा और साथ ही उसकी कंपीटिशन की तैयारी करने में मदद की । मयंक और छवि की मेहनत से मयंक सरकारी नौकरी पा गया।ये मयंक की भाभी के लिए नागवार था क्योंकि छवि एक तो बड़े घर की बेटी, दूसरा पढ़ी लिखी ऊपर से अब मयंक भी सरकारी नौकरी पा गया। उसे अपना राज पाट हिलता लगा।
अब सिक्का जमाने को वह अक्सर मयंक के सामने मयंक की सुंदरता और सरकारी नौकरी की तारीफ कर छवि को नीचा दिखाती । अक्सर वह कहती अगर मां पिता जी जल्दी न करते तो मयंक को कोई गौरवर्ण नौकरीपेशा लड़की मिलती,,, छवि से वह अक्सर कहती तुमने तो मेरे देवर को ग्रहण लगा दिया कहां चांद सा मयंक और कहां ग्रहण लगी तुम । भाभी की बातों से मयंक फूला न समाता।
अब मयंक भी भाभी की बातों से सोचता ,,भाभी सही तो कहती हैं… कहां मैं हीरो जैसा और कहां छवि।
वह यह भूल गया कि छवि की बदौलत ही वह सरकारी उच्च पद पा सका।
अब रोज छवि की तौहीन करना मयंक की आदत हो गई।जब छवि खुद अपनी पढाई का हवाला दे नौकरी की इच्छा जताती तो भाभी घर में कोहराम मचा देती…ये मैडम ऑफिस जायेगी और मैं घर का चूल्हा चौका करूं। सास ससुर भी बड़ी बहू के तेज स्वभाव को जानते थे सो उसके आगे कुछ न कहते।
इसी बीच मयंक का तबादला दूसरे शहर हो गया,छवि ने सोचा.. चलो अब भाभी नहीं शायद मयंक को अपनी गलती का अहसास हो ।मगर भाभी फोन कर मयंक के कान रोज भरती बातों बातों में वह मयंक से कह देती ज्यादा आजादी मत देना देवर जी आपके सर पर नाचेगी ।नौकरी करेगी तो आप को दबा लेगी,, कमाई और बड़े घर का रौब देकर।
कहते है न सीख से तो पत्थर भी फट जाता है तो मयंक क्या चीज थी। उसने हर तरह से छवि को कंट्रोल में रखा।मयंक अपने पहनावे और रंग रूप में किसी हीरो से कम नही था तो अब उसे छवि बिल्कुल पसंद नही ।
छवि को बात बेबात डांटना उसकी आदत बन गई थी। छवि भी अपने मां पापा की इज्जत को चुप रह सब सहती रही। लेकिन आज तो हद हो गई अपने दोस्तों के बीच इतना चिल्लाना, बस अब और नहीं बहुत हो गया। तिरस्कार कब तक सहूंगी .. तभी मयंक की जोर की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई।
अब क्या महारानी यहां टसवे बहाती रहेगी चुपचाप रात का खाना बना लेना मेरे ये सभी दोस्त यहीं खाना खाएंगे।
तभी वह घायल शेरनी सी उठी , कुछ नही बनेगा घर पर। अगर इन्हें खिलाना है तो बाहर होटल पर खिलाओ। ज्यादा बोल रही हो, कह जैसे ही मयंक ने हाथ उठाना चाहा,,छवि ने हाथ रोकते हुए कहा, मयंक बहुत हुआ। ऐसा न हो ..कह वह चुप हो गई।
उसके चेहरे के भाव बता रहे थे यह चुप्पी तूफान से पहले की है।
छवि की आंखों में अब आंसू नहीं बल्कि एक अजीब दृढ़ता थी।
मयंक को अब झटका लगा उसकी आंखों में पहली बार डर दिखा..
क्या मतलब है तुम्हारा,वह गरज कर बोला किंतु अब उसकी आवाज में वो गर्जना नही थी।
छवि शांत स्वर में बोली,” मतलब साफ हैं । अब और नही सहूँगी ।तुमने जो कुछ भी पाया है वो हमारी मेहनत,मेरी सहनशीलता और मेरे साथ के बिना संभव नही था। लेकिन तुमने मुझे हमेशा बेइज्जत किया। कभी अपनी सुंदरता के गुरुर में और कभी अपनी भाभी की बातों में आकर।अब और नहीं।
तो तुम ये रिश्ता तोड़ दोगी, ये घर छोड़ दोगी ,,
मयंक ने व्यंग्य से कहा…
छवि ने पहली बार मयंक की आंखों में आंखें डाल कर कहा,
अब मैं खुद को जोड़ूंगी – फिर से, अपने लिए। अगर इस घर में मेरे लिए सम्मान नहीं, अगर तुम मुझे सिर्फ बोझ समझते हो, तो फिर मेरा यहां रहना सिर्फ मेरी आत्मा का अपमान होगा। और मैं अब खुद का अपमान नहीं करूंगी।”
वो तेज़ी से कमरे में गई, अपने कुछ ज़रूरी सामान एक बैग में डाले, और निकलने को हुई।
मयंक अवाक खड़ा था।
“छवि, पागल मत बनो, लोग क्या कहेंगे?”
छवि पलटी, उसके चेहरे पर अजीब सी शांति थी।
“लोग क्या कहेंगे, यही सोच सोच कर मैंने ज़िंदगी के कितने साल गंवा दिए। अब मुझे फर्क नहीं पड़ता लोग क्या कहेंगे, मुझे फर्क अब बस इस बात से पड़ता है कि मैं खुद से क्या कहूंगी।
और मैं खुद से कहूंगी — तुमने सही किया छवि। बहुत देर सही, लेकिन तुमने सही किया।”
दरवाज़ा खुला… और छवि चली गई। एक नई मंजिल की ओर। मयंक भौंचक खड़ा देखता रह गया।
पूनम भारद्वाज
तिरस्कार कब तक ( साप्ताहिक विषय)