तिरस्कार कब तक – निमीषा गोस्वामी : Moral Stories in Hindi

अरे ओ बाबू कहां है रे तूं अरे तुझे मालिक ने बुलाया है। मालिक के घर मेहमान आ रहे हैं। हरीराम साफी को हिलाते हुए घर के अन्दर आते हैं । बापू को देखते ही।”नहीं मै नहीं जाऊंगा मुझे मालिक के घर काम करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता मां”तूं बोल न बापू से मुझे वहां ना भेजे बाबू अपनी मां के पल्लू को खींच कर उसके पीछे खड़े होकर कहता है ।

हरीराम बाबू का हाथ पकड़कर खींचता है। तभी उसकी मां उसे पकड़ लेती है। क्यों जबरदस्ती करते हो बेटे से आज तुम जाओ कल से बाबू जाएगा। जाएगा ना बाबू मां उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उसे प्यार से दुलारती हुई बोली।अब तो तूं जवान हो गया है अपने बापू के काम में हाथ तो बटाना ही पड़ेगा। तिरस्कार कब तक मां बाबू पैर पटकता हुआ मां के सामने खड़ा होकर बोला। बहुत हुआ अब मैं नहीं कर पाऊंगा। मालिक तो छोड़ उसके छोटे-छोटे बच्चे भी तिरस्कृत करते हैं।जो मन में आता वह बोलते हैं।

और मालकिन तो बात ही न पूछो ज़रा सी गलती हुई नहीं की चप्पल लेकर मारने को दौड़ती है।हम गरीब है तो क्या हुआ मेहनत करते हैं तब जाकर कुछ देते हैं वो ऐसे तो नहीं दे देते।बापू को जाना है तो जाएं मैं नहीं जाऊंगा।बस कह दिया सो कह दिया।देख कितना बड़ा हो गया तुम्हारा बेटा अब बाप के सामने सीना तानकर खड़ा हैं। हरीराम ने अपनी पत्नी पर तंज कसते हुए कहा।

हरीराम अरे ओ हरीराम मालिक कबसे तेरी राह देख रहे हैं जल्दी चलो मालकिन गुस्सा रही है। मालिक के आदमी की आवाज सुन हरीराम ने बेटे का हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा चल बाबू जल्दी चल मालिक बुला रहे हैं चल रे ना चाहते हुए भी बाबू अपने पिता के पीछे पीछे चला गया। हरीराम उसे तेजी से घसीटते हुए मालिक के घर पहुंचा तब जाके उसने गहरी सांस ली

और बाबू का हाथ छोड़ा हुजूर की जय आ गए मालिक तनिक देर हो गई माफ करना। उसने हाथ जोड़कर कहां हां-हां ठीक है।आज हमारे घर मेहमान आ रहे हैं तुम्हें अभी यहीं रहना है। ठीक है बेटे को अंदर भेजो मालकिन के काम में हाथ बंटाएगा और तुम बाहर का काम देखो जो हुकुम मालिक कहकर हरीराम ने बाबू को अंदर जाने के लिए इशारा किया।

बाबू ना चाहते हुए भी अंदर चला गया। साहूकार की लड़की को देखने वाले उसके मेहमान आ गए। बाबू चल जा पानी लेकर जा सबको पानी पिला फिर नाश्ता लेकर जा।जी मालकिन कहकर बाबू ने पानी के गिलास वाली ट्रे उठाई व हाल की तरफ़ चल दिया अचानक से उसे चक्कर आ गया जिसके कारण पानी मेहमान के ऊपर गिर गया।

जैसे ही मालिक ने देखा बाबू को एक लात मारी वह जाकर मेहमानों के पैरों में जाकर गिरा वहां बैठे सभी व्यक्ति हंस पड़े। बाबू तो पहले से ही दुखी था इस व्यवहार से वह और भी हताहत हुआ। उससे अब रहा न गया और वहां से चला गया। बाबू ओ बाबू सुन तो मालिक है ऐसे नाराज़ नहीं होते अरे सुन तो हरीराम बाबू को बुलाता रहा पर वह नहीं आया।

हरीराम मालिक के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए बोला माफ़ कर दो मालिक नादान है मै समझा दूंगा। बहुत सिर पर चढ़ा रखा है बेटे को समझा लो वरना फिर हमें तो समझाना आता है। नहीं नहीं मालिक मै समझा दूंगा। बाबू तेज कदमों से घर की तरफ़ जा रहा था।उसका मन निराशा से भर गया था। रास्ते में  चौपाल पर उसके दोनों ने मजाकिया अंदाज में उससे पूछा अरे बाबू बू बू बू बू…. क्या हुआ इतनी तेजी से व गुस्से में कहा जा रहा है।

फिर एक दूसरे को देखकर ठहाका लगाते हुए कहने लगे अरे भाई आज भी मालकिन के हाथों पिट कर आया है। हंसों हंसों और जोर से हंसों एक दिन तुम्हारी भी यही दशा होने वाली है अगर उनके ज़ुल्म को सहते रहोगे तो। और वह भी चौपाल पर बैठ गया। फिर वह दोस्तों से बोला देखो भाइयों अगर साहूकार को अपने कदमों में झुकाना है।और उसके अत्याचार से मुक्त होना है तो हमें कुछ तो करना होगा सबने उसकी तरफ़ विस्मय होकर देखा और पूछने लगे कैसे भइया कैसे?

बाबू बोला देखो दो महीने बाद प्रधानी का चुनाव है।कहो हां सबने एक साथ कहा हां तो अगर हममें से कोई एक चुनाव में खड़ा हो जाए और जीत जाए तो बहुत अच्छा होगा। सभी कहने लगे बाबू तूं हम सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा है क्यों न तुम ही चुनाव लड़ लो। हां-हां यह ठीक है सबने एक साथ सहमति में सिर हिलाया।

दो महीने बाद चुनाव आया और सबने बाबू को खड़ा कर दिया सबने मिलकर निश्चय किया कि इस बार बाबू को ही जिताना है और सबकी मेहनत रंग लाई आज शाम को जैसे ही बाबू के जीत की घोषणा हुई पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई बाबू बचपन से लेकर आज तक ऐसा खुश कभी न था। उसने खुद को ही नहीं अपितु हर उस गरीब को तिरस्कार से मुक्त कर देना था जो साहूकार के ज़ुल्म का शिकार थे।इतनी

खुशी के माहौल में मालिक के आदमी की आवाज सुनाई दी अरे ओ हरीराम कहां मर गया रे मालिक बुलाते हैं चल जल्दी से हरीराम पहले की तरह ही आया आया करके खड़ा हुआ और जैसे ही बाहर आया उसके बेटे ने उसका हाथ पकड़कर कहा नहीं बापू अब नहीं बहुत हुआ अब साहूकार को हमारे घर आना पड़ेगा।अब और तिरस्कार नहीं यह सुनकर हरीराम की आंखों में आंसू आ गए और उसने अपने बेटे को गले से लगा लिया आज पहली बार उसने बाबू को इतने प्यार से गले लगाया। आस-पास के लोग बाबू की जय जयकार करने लगे। साहूकार का आदमी अपना सा मुंह लेकर चला गया।

निमीषा गोस्वामी

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