हरवंश चौधरी जी का फोन लगातार बजता ही जा रहा था। पर क्योंकि दो दिन पहले ही उन्होंने अपनी बेटी श्रेया की शादी की थी। तो उसकी थकान की वजह से वह नींद से जाग नहीं पा रहे थे। पर जब लगातार फोन की घंटी बजती रही तो मिसेज चौधरी उठी। उनकी आंखें भी नींद से बोझिल थी।
उन्होंने फोन उठाया। फोन उनकी बेटी के ससुराल से था कि उनके दामाद ने अपने सिर में गोली मार कर आत्महत्या कर ली है। चींख निकल गई मिसेज चौधरी की। चौधरी साहब भी हडबडा कर उठ बैठे। क्या हुआ? मिसेज चौधरी ने उन्हें सारी बात बताई और रोते-रोते बोली। क्या हो गया हमारी बच्ची के साथ। दो दिन पहले ही तो सुहागन के जोड़े में उसे इस घर से विदा किया था। हे भगवान! क्या कसूर था मेरी मासूम सी बच्ची का।
एकबारगी को तो चौधरी साहब को भी लगा,जैसे उनमें प्राण ही नहीं हैं। पर फिर उन्होंने अपने आप को संभाला और अपनी पत्नी और परिवार वालों के साथ बेटी की ससुराल पहुंँच गए।
वहाँअपनी बेटी की हालत देखकर उनका कलेजा फट गया। मिसेज चौधरी को तो होश ही नहीं था। चौधरी साहब श्रेया के पास गए और उसे अपनी छाती से लगा लिया। पापा…फफक फफककर रो उठी, श्रेया ।दो दिन की ब्याहता फेरों की गुनाहगार हो चुकी थी।
लेकिन चौधरी साहब ने खुसर-फुसर सी सुनी कि उनका दामाद किसी और लड़की से शादी करना चाहता था । लेकिन वह लड़की दूसरी बिरादरी की थी तो उसके मां-बाप ने जबरदस्ती यह शादी करवा दी थी।
जब उन्होंने अपने समधी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने नजरे झुका ली। चौधरी जी रोते-रोते बोले यह आपने क्या किया, अपना एकलौता बेटा खोया, मेरी बेटी पर शादी के दो दिन बाद ही विधवा का दाग लग गया। तेहरवीं की रस्म होते ही चौधरी जी श्रेया को अपने साथ ले आए।
इस बात को दो साल बीत चुके थे। श्रेया की मम्मी ने उससे दूसरी शादी के बारे में बात की लेकिन श्रेया शादी नहीं करना चाहती थी। बेटा हम आज है कल नहीं होंगे। हम भी चाहते हैं कि जब हम इस दुनिया से जाएं तब अपनी बेटी की तरफ से निश्चिंत हो कि हमारे बाद उसका ध्यान रखने वाला भी कोई है। मिसेज चौधरी ने श्रेया को समझा बुझाकर दूसरी शादी के लिए तैयार कर ही लिया।
चौधरी साहब ने एक लड़का देखा। काफी जमीन जायदाद और सुंदर था। एक सादे से समारोह में श्रेया के दोबारा फेरे पड़ गए। लेकिन शायद ईश्वर ने श्रेया के दामन में दुख ही दुख लिखे थे। उस लड़के की नजरों में अपनी पत्नी की कोई इज्जत नहीं थी, वह केवल अपने परिवार वालों पर न्योछावर था। कोई भी श्रेया को कुछ भी कहता उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। किसी भी स्त्री की ससुराल में इज्जत करवाना उसके पति के हाथ में ही होता है।
इस सबके बीच श्रेया एक बेटे की मां बन गई लेकिन उसके पति के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। उसकी दोनों देवरानी भी उसका मजाक बनाती क्योंकि उनके पति उनका पूरा ध्यान रखते थे। श्रेया की हालत देखकर चौधरी साहब बहुत दुखी थे और एक दिन इसी दुख को अपनी छाती पर लिए स्वर्ग सिधार गए।
श्रेया की मम्मी से जो बन पड़ता उसकी सहायता करती। श्रेया का बेटा अब थोड़ा बड़ा हो चुका था। उसको उसी में अपना भविष्य नजर आ रहा था। उसका बेटा उसकी बहुत परवाह करता था। वह अपनी मम्मी का तिरस्कार होते देखता तो अपने पापा से भी लड़ पडता।
एक दिन सभी घर वाले बैठे हुए बंटवारे की बात कर रहे थे। उसकी दोनों देवरानी भी पूरी सलाह दे रही थी। श्रेया वही खड़ी थी, उसने जैसे ही अपनी राय रखी उसके पति ने खड़े होकर एक चांटा लगा दिया। चुप रहो किसने दिया तुम्हें हमारे बीच में बोलने का अधिकार।
श्रेया पहले तो रोती रही फिर उसने सोचा मैं कब तक यह तिरस्कार सहती रहूंगी, आज श्रेया ने विद्रोह करने की ठान ली।
उसने अपने पति से बात करने की सोची तो उसके पति ने उस पर दोबारा हाथ उठा दिया। लेकिन आज श्रेया ने थप्पड़ का जवाब थप्पड़ से ही दिया और बोली अब मुझे जो सही लगेगा मैं वही करूंगी, वरना अपने बेटे को लेकर यह घर छोड़ दूंगी। उसका पति उसका मुंह देखता रह गया। अब उसे लग गया कि उसका जोर अब श्रेया पर नहीं चलेगा। अगर उसे अपना घर और इज्जत बचाने है तो व्यवहार में बदलाव लाना ही होगा।
नीलम शर्मा