कहते हैं हद किसी भी चीज की अच्छी नही होती न धूप को न बारिश की न हवा की न अपमान तिरस्कार की। कभी कभी आदमी अपमान को अपनी किस्मत समझ लेता है और उसे बदलने की जगह उसी हालात में जीने की आदत डाल लेता है। मगर कभी कभी ये तिरस्कार आपके लिए नई मंजिलों की राहें खोल देता है ये कहानी भी एक ऐसे ही इंसान की है जो पढ़ा लिखा तो था
मगर गरीब था। न तो उसके पास पैसा था और न ही जमीन सिर्फ रहने के लिए अपना घर था। नाम था दौलत राम मगर दौलत नाम की कोई चीज उसके पास नही थी। पहले तो दौलत राम की शादी ही नही हो रही थी यहां भी बात चलती लड़का मजदूरी करता है सुनते ही लड़की वालों की तरफ से कोई न कोई बहाना बनाकर रिश्ते को मना कर दिया जाता।
दौलत राम ने इस सबसे तंग आकर शहर में नौकरी करने की सोची जैसे कैसे धक्के खाकर उसे एक कम्पनी के दफ्तर में चपरासी की नौकरी मिल गई। अब नौकरी मिली तो सच झूठ बताकर की शहर में नौकरी करता है उसका रिश्ता तय हो गया। कुछ ही महीनों में दौलत राम की शादी हो गई दौपत राम महीनेभर काम करके दस बारह हजार रुपये कमा लेता अपना खर्च निकालकर
पांच सात हजार बीबी को भेज देता। समय गुजरता गया दो बच्चे भी हो गए अब उसके लिए घर का खर्च कम पड़ने लगा तो वो रविवार की छुट्टी के दिन एक होटल में बर्तन साफ करके दो तीन हजार और कमाने लगा साथ मे उसे मुफ्त में खाना भी मिल जाता। थोड़ा और समय गुजरा बच्चे स्कूल जाने लगे अब उसकी हालत बाद से बदतर होने लगी क्योंकि बच्चों की कापी पेंसिल कपड़े जूते आदि के खर्च इतना मुहँ फैलाने लगे कि दौलत राम परेशान हो गया अब उसने दो घण्टे और होटल में काम के बढ़ा दिए।
ज्यादा देर तक काम कर्म की बजह से दौलत राम को काम करना मुश्किल हो गया यहां काम करता था बहां रोज आने जाने वाले उससे उलझने लगते कभी सम्मान न पाकर कभी उसे नींद में देखकर। उसकी मजबूरी समझने वाला कोई नही था कम्पनी में बार बार उसकी शिकायत जाने लगी तो उसे वार्निंग लेटर दे देकर प्रताड़ित किया जाता।
कुछ दिन बाद कम्पनी ने उसके साथ के लोगो को प्रमोशन दिया मगर दौलत राम की परफॉर्मेंस को देखकर उसकी सैलेरी से पांच सौ की कटौती कर दी। मालिक जब कभी स्टाफ को पार्टी देता तो दौलत राम अलग से कोने में बैठकर देखता रहता पार्टी खत्म होने के बाद उसे बचा हुआ खाना खाने और बर्तन इत्यादि उठाने के लिए कह दिया जाता।
मालिक जब कभी दफ्तर से घर किसी काम से जाता तो दौलत राम को घण्टो दफ्तर के बाहर बैठकर इंतज़ार करना पड़ता क्योंकि वो दौलत राम पे भरोसा नही करता था इसलिए दफ्तर को ताला लगाकर जाता। दफ्तर में आने वाले लोग भी उससे बात करना या उससे कोई हमदर्दी जताना नही चाहता था
अगर वो अभिवादन में नमस्ते भी करता तो लोग उसे जवाब तक नही देते थे। दीवाली हो या कोई त्यौहार दफ्तर में तरह तरह की मिठाईयां आती मालिक सारी मिठाइयां अपने वर्कर में बांट देता मगर दौलत राम के हिस्से वो मिठाई आती जो किसी को देने लायक न होती।
आज तो हद ही हो गई दौलत राम ने रात देर तक होटल में काम किया था दफ्तर में बैठे बैठे उसकी आंख लग गई मालिक ने उसे सोता देख उसका कान पकड़कर उठाया और लात मारकर उसे बशरूम में हाथ मुहँ धोकर आने को कहा। साथ मे ही मां बहन की गालियां
और जाने कितनी बातें सुन दी कि यहां पैसा हरा का आटा है जो तुम्हे सोने का देता हूँ कामचोर पूरा दिन सोया रहता है आज के बाद अगर सोते देखा तो लात मारकर दफ्तर से बाहर कर दूंगा। हर रोज उसका मजाक उड़ाता इस मजाक से तंग आकर दौलत राम ने नौकरी छोड़ने का इरादा कर लिया मगर उसे समझ नही आ रहा था
कि वो करे क्या। अब दौलत राम ने मोबाइल में घर पे काम करने के टिप्स वाली वीडियो देखनी शुरू की तो उसे पता चला कि सरकार ऐसी बहुत सी स्कीम चला रही है जिससे वो गांव में अच्छी कमाई कर सकता है।
वो नौकरी छोड़ देता है और घर मे आकर बीबी से बात करता है तो दोनों में सहमति बन जाती है दौलत राम की बीबी के पास मायके के दिए हुए दहेज में आए कुछ गहने थे जिनकी कीमत दो से तीन लाख थी। दौलत राम उन गहनों को बेचकर बैंक में पैसे जमा कर देता है
फिर योजनानुसार वो एक कागज पे सरकारी जमीन के पट्टे के लिए अर्जी लिखकर तहसीलदार के पास जाता है। तहसीलदार को वो अपनी हालात बताता है और कहता है कि वो गांव में रहकर बकरी पालन का काम शुरू करना चाहता है मगर उसके पास जमीन नही है।
तहसीलदार उसकी जांच पटवारी को सौंप देता है और कुछ ही दिनों में उसे पांच कनाल सरकारी भूमि पट्टे पर मिल जाती है। फिर दौलत राम दिनरात मेहनत करके उसकी बांस की लकड़ी और कांटेदार झाड़ियों की बाड़ लगाता है और उस जमीन में से चार कनाल जमीन को उपजाऊ बनाने में लग जाता है। जमीन की खुदाई करने के बाद वो उसमे एक लकड़ियों का शेड बनाकर उसपर घास की छत डाल देता है
इसमे उसके लगभग डेढ़ महीने लग जाता है घर की जरूरत वो गहनों से आए पैसे से थोड़े थोड़े निकालकर पूरा करता है। अब वो पास के ही पशु चिकित्सा अधिकारी से मिलता है और अपनी योजना के बारे में बताता है पशु चिकित्सा अधिकारी उसकी मेहनत को देखकर सरकारी योजना के तहत उसे दस बकरी और एक बकरा अनुदान पे दिलवा देता है। बकरी और जमीन आने के बाद वो सरकारी बैंक में जाता है और लोन के लिए आवेदन कर देता है।
बैंक से उसे पांच लाख का लोन पास हो जाता है अब दौलत राम के पास पहले के दो लाख मिलाकर सात लाख रुपये थे। उस पैसे में से दो लाख रुपये अपने अगले एक साल तक के घर खर्चे को रखता है और एक लाख की दस और छोटी बकरियां खरीद लेता है। अब दौलत राम के पास बीस बकरी और एक बकरा था। दौलत राम हर महीने पांच हजार रुपये थे से बकरियों के लिए सुखी घास बगैरह और खुराक के लिए गेहूं मक्की इत्यादि सस्ते दाम पर खरीद कर लाता है।
एक साल से पहले ही उसकी सरकार से आई पांच बकरियां दो दो बच्चे देती हैं जिनमे तीन बकरे और सात बकरियां थीं। दौलत राम ने पांच छः महीने उन बच्चों को भी पाला इसी बीच कुछ और बकरियों के प्रसूति का समय भी पास था जैसे ही तीनों बकरे बड़े हुए तो उन्हें पंद्रह पन्द्रह हजार में बेचकर पैंतालीस हजार कमाए उस मे से चालीस हजार का एक अच्छी ब्रीड का बकरा खरीदा जिससे कि उसके आने वाले बकरे अच्छी नस्ल और अच्छी कीमत वाले हों अब दौलत राम ने आठ महीने और इंतज़ार किया उसके बाद
उसके पास तीस के आसपास बकरियां बकरे हो गए दौलत राम के पास अच्छी नस्ल के ब्रीडर तो था ही इसलिए उसने अब तीस हजार के हिसाब से दस बकरे बेच दिए जिससे उसे तीन लाख रुपये मिल गए अब उसने बैंक के पैसे चुकाने शुरू कर दिए दो चार साल की मेहनत के बाद आज उसके पास सौ से ज्यादा बकरियां बैंक में अच्छी जमा पूंजी थी अब उसने अपना शेड पक्का करवा
लिया था शेड के अंदर ही बरसाती पानी के लिए एक छोटा तालाब बना लिया था। जिससे वो अपने खेतों में घास उगाने के लिए प्रयोग करता था। जैसे जैसे उसकी बकरियों की संख्या बढ़ने लगी तो दौलत राम ने अपने ही गांव के चार पांच लोगों को रोजगार भी दे दिया था। गांव से थोड़ी दूर हॉस्पिटल के पास वो सुबह सुबह बकरी का दूध बेचने के लिए बाइक पर निकल जाता क्योंकि बकरी का दूध शाररिक कमजोरी
और प्लेटलेट्स की कमी में बहुत उपयोगी होता है और हर जगह ये मिलता नही इसलिए दूर दूर से लोग उससे दूध खरीदने आते और अच्छी कीमत मिल जाती। अब घर का खर्च तो दूध घी से ही निकल जाता और घरवालो खुद भी दूध दही लस्सी घी खाकर आराम से जीने लगे।
दौलत राम आज एक समृद्ध किसान ही नही एक बड़ा ब्यापारी भी बन चुका है अब बकरियों के साथ साथ उसने जिस तालाब को पानी के लिए खुदवाया था उसको और बड़ा करके उसके पास ट्यूबवेल लगाकर उस तालाब में मछली पालन भी शुरू कर दिया है पानी का पानी और मछलियों का काम अलग से जिससे हर साल वो मोटी कमाई करता है अब उसके पास घर गाड़ी जमीन इज्जत
मान सम्मान हर चीज है जिसके बारे में वो कभी सपने में भी नही सोच सकता था मगर उसकी मेहनत और लगन ने उसका हर वो ख्वाव पूरा कर दिया था जिसका वो हकदार था।
आज दौलत राम कभी कभी ये सोचता है कि अगर उसका अपमान न होता तो शायद आज भी वो कहीं दस बारह हजार की नौकरी की गुलामी कर रहा होता मगर उसने अपने अपमान अपने तिरस्कार को अपनी ताकत बनांकर कई लोगो को एक राह दिखाई थी। अब वो लोगो को यही कहता है
कि घर से बाहर फैक्टरियों में दस पन्द्रह हजार की नौकरी करके जलील होने से अच्छा है अपने काम के मालिक बनो चाहे छोटे से शुरू करो उसे मेहनत लग्न से करके धीरे धीरे बढ़ाते जाओ। नौकरी कितनी भी बड़ी हो मगर रहोगे नौकर ही अपना काम कितना भी छोटा हो मगर होंगे तो उस काम के मालिक न। आज वो कई युवाओं को बकरी पलकन का प्रशिक्षण देकर उनके जीवन की नई बयार लिख रहा है उससे प्रशिक्षित बच्चे उसे अपने अध्यापक की तरह सम्मान देते हैं।
के आर अमित
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश