तेरा सच =मेरा सच – देवेंद्र कुमार : Moral Stories in Hindi

समुद्र के किनारे मछुआरों का एक गाँव था- टाना। टूटी-फूटी झोंपड़ियाँ समुद्र से थोड़ी दूर नारियल के झुण्ड में बनी थीं। वहीं रहते थे भोले-भाले परिश्रमी मछुआरे। वे हर सुबह अपनी नौकाएँ लेकर समुद्र में निकल जाते, मछलियाँ पकड़ते

और जब शाम को सूरज समुद्र के पानी को रंगीन बनाता हुआ डूबने की तैयारी में होता तो वे दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद, तट की ओर लौटते।

टाना का मुखिया था दीना। हट्टा-कट्टा। सब उसका सम्मन करते। वह पूरे गाँव को अपना परिवार समझता। उनके सुख-दुख में बराबर की हिस्सेदारी बँटाता। सबके लिए वह गाँव का नहीं, सब परिवारों का मुखिया था। लेकिन दीना के सब सुख घर से बाहर थे,

घर में था उसका सबसे बड़ा दुख, उसका इकलौता बेटा राजा।

राजा स्वभाव में अपने पिता से एकदम उल्टा था। बात-बात पर गाँववालों से लड़ता, शराब पीकर गालियाँ बकता। वह मछलियाँ पकड़ने भी नहीं जाता था। उसके धंधे थे ठगी और चोरी। अक्सर ही लोग दीना के पास राजा की शिकायतें लेकर आते तो वह दुखी हो जाता।

दीना राजा को समझा-समझाकर हार गया था पर उसने अपनी आदतें नहीं बदलीं।

दूसरी ओर गोपुरा था। गोपुरा एक अनाथ था। वह बहुत वर्ष पहले की बात है, समुद्र में भयंकर तूफान आया था एक रात। उसमें गाँव के कई लोग मर गए, गोपुरा के माता-पिता भी तूफान की भेंट चढ़ गए थे। बचा था केवल अबोध गोपुरा!

गोपुरा को दीना ने शरण दी थी। उसे राजा की तरह प्यार और संरक्षण दिया था। उसे यह बात कभी अनुभव नहीं होने दी कि उसका घर गोपुरा का घर नहीं है। लेकिन एक छत के नीचे एक-सा प्यार और स्नेह पाते हुए गोपुरा और राजा कितने अलग थे एक-दूसरे से।

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गोपुरा दीना का बहुत ध्यान रखता था। उसे पता था कि दीना क्यों उदास रहता है। उसने राजा को बहुत समझाने का प्रयत्न किया, कहा कि वह दीना का ध्यान रखे, उसे दुख न दे। वह राजा को समझाता तो राजा उसे ही डाँट देता।

वास्तव में वह गोपुरा से मन-ही-मन चिढ़ता था। उसे लगता था कि गोपुरा उसके अधिकार में हिस्सा बँटाने न जाने कहाँ से चला आया है। वह गोपुरा का अपमान करने का कोई मौका हाथ से न जाने देता। गोपुरा को दुख देकर उसे खुशी मिलती थी। वह चाहता था कि जैसे हो गोपुरा वहाँ से चला जाए।

उन्हीं दिनों की बात है। वह तूफानी रात थी। सब आराम की नींद ले रहे थे, पर गोपुरा अभी नहीं सोया था, क्योंकि राजा नहीं लौटा था। गोपुरा सोच रहा था, “इतने खराब मौसम में भी राजा बाहर क्यों घूम रहा है?”

राजा शराब के नशे में झूमता-झामता चला आ रहा था। एकाएक उसने तट से थोड़ी दूर एक नाव देखी तो चौंक पड़ा। “यह किसकी नाव है? गाँव की तो हो नहीं सकती।” इस तरह सोचता हुआ राजा नाव के निकट जा पहुँचा। उथले पानी में रुकी नाव लहरों के थपेड़ों से हिल रही थी।

राजा ने आगे बढ़कर झाँका तो चौंक पड़ा। नाव की तली में दो आदमी पड़े थे। एक छोटी लालटेन जल रही थी। दोनों आदमी शायद बेहोश थे। राजा नाव में कूद पड़ा। उसने नाव की तलाशी ली तो एक पोटली में बँधे रुपए नजर आ गए।

राजा का मन खिल उठा। वह रुपए लेकर घर की ओर चल दिया। उसने नाव में बेहोश पड़े व्यक्तियों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। वह घर में घुसा तो गोपुरा जाग रहा था। उसने पूछा, “अब तक कहाँ थे, माँ बहुत चिंता कर रही थीं।”

“तट पर एक नाव…” राजा बुदबुदाया और बिस्तर में घुस गया। उसने आँखें बंद कर लीं। “तट पर नाव…लेकिन किसकी?” गोपुरा ने आश्चर्य से पूछा। आधी रात के समय कौन-सी नाव आ गई थी। लेकिन उसे अपनी बात का उत्तर नहीं मिला।

राजा सो गया था। गोपुरा लेटा न रहा सका। वह दबे पाँव बाहर निकल आया। जल्दी-जल्दी चलता हुआ वह नाव के निकट पहुँचा। उसने एक ही दृष्टि से सारी बात भाँप ली। तुरंत उल्टे पैरों गाँव की ओर दौड़ा। उसने पुकारा तो कई लोग बाहर निकल आए।

गोपुरा उन्हें लेकर दुबारा तट पर पहुँचा।नाव में पड़े बेहोश आदमियों को गाँव ले आया गया।

गाँव में वैद्य ने दोनों को दवाई दी। कुछ देर में उन्हें होश आ गया। उन्होंने बताया, वे दोनों पास के द्वीप पर जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने कोई चीज खाई थी, उसके बाद वे बेहोश हो गए थे। पता नहीं नाव कब बहकर किनारे आ लगी। गाँव वालों ने उन्हें बताया कि वे सुरक्षित हैं। लेकिन तभी उन दोनों को पता चला कि उनके रुपए गायब हो गए हैं। वे घबरा उठे और पूछने लगे।

सबको गोपुरा पर संदेह हुए क्योंकि सबसे पहले उसी ने गाँव वालों को बेहोश आदमियों के बारे में बताया था। पूछने पर गोपुरा ने कहा, “मैं सच कहता हूँ, मैंने कुछ भी नहीं चुराया।” लेकिन यदि उसकी बात सही थी तो फिर रुपए कहाँ गए?

पूरे गाँव में इस बात की चर्चा फैल गई, जितने मुँह उतनी बातें। लोग कहने लगे, “तो गोपुरा भी राजा जैसा ही निकला।” कुछ लोगों ने कहा, “हमें तो लगता है कि अब तक हम जिन अपराधों का आरोप राजा पर लगाते रहे वे सब गोपुरा की ही कारस्तानी थीं।”

स्थिति बदल गई। अब राजा के सारे अपराध गोपुरा के सिर मढ़ दिए गए थे।

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गोपुरा ने सब कुछ सुन लिया। उसका मन परेशान हो उठा। वह जानता था कि नाव को सबसे पहले उसने नहीं, राजा ने देखा था। हो सकता है, रुपए राजा ने लिए हों। लेकिन वह चुप ही रहा।यदि वह सच कहता तो राजा ही चोर सिद्ध होता। गोपुरा यह जानता था

कि इससे दीना को कितना दुख होगा। वह सच बोलकर उन्हें और चोट नहीं पहुँचाना चाहता था।

वह चुप रहा और पूरा गाँव उस पर थू-थू करता रहा।गोपुरा और नहीं सह सका। चुपचाप घर से निकल आया और समुद्र के किनारे जाकर खड़ा हो गया। सूरज का लाल गोला पश्चिम में डूब रहा था। पक्षी अपने घोंसलों की ओर लौट रहे थे।

सब ओर सन्नाटा था। एकाएक गोपुरा ने अपने आपको बहुत अकेला महसूस किया। उसे लगा दुनिया में उसका कोई नहीं है। उसकी आँखें डबडबा आईं।एकाएक उसे राजा नजर आया। वह एक तरफ खड़ा हँस रहा था। गोपुरा ने कहा,

“राजा, पिताजी का ध्यान रखना, मैं जा रहा हूँ।”

“लेकिन कहाँ?”

“गाँव को छोड़कर कहीं भी…मेरी इतनी बदनामी हो गई है कि अब एक पल भी रहना मुश्किल है। तुम चाहो तो एकदम नए सिरे से जीवन आरंभ कर सकते हो। तुम्हारे सब अपराधों का दोषी मुझे बना दिया गया है। इस मौके को हाथ से मत जाने दो।

अगर तुम सुधर सके तो पिताजी को बहुत सुख मिलेगा।”

“लेकिन तुमने चोरी नहीं की, फिर सच क्यों नहीं कह देते।” राजा ने कहा।

“अगर मैं सच बोलूँगा तो मुझे दूसरा सच भी बताना होगा कि चोरी किसने की। और मैं वह नहीं कर सकूँगा। देख रहे हो, पिताजी कितने बीमार हैं। अब उन्हें और चोट मत पहुँचाओ।” कहकर गोपुरा जाने को हुआ, पर जा न सका। राजा ने उसे रोक लिया और बोला,

“तुम मेरे सारे अपराध अपने सिर पर लेकर मुझे निर्दोष दिखाना चाहते हो और यह भी चाहते हो कि मैं चुप रहूँ। मैं तो पिताजी की दृष्टि में पहले से ही गिरा हुआ हूँ, लेकिन तुम भी ऐसे हो सकते हो, इसका झटका वह कभी नहीं सह पाएँगे।”

“मुझे जाने दो।” गोपुरा ने कहा।

लेकिन राजा ने उसे कसकर पकड़ लिया। उसके होंठ फड़क रहे थे। “नहीं जाने दूँगा। तुम्हें सच कहना होगा। एक सच तुम बोलोगे कि तुमने रुपए नहीं चुराए और दूसरा सच मैं बोलूँगा। यह सच बोलने का अवसर मुझसे मत छीनो।

विश्वास करो, मैं सच बोलना चाहता हूँ। यदि तुम चले गए तो…।” राजा का गला रुँध गया था।

दोनों के आँसू रेत पर गिर रहे थे। राजा ने निर्णय कर लिया था, वह गोपुरा को नहीं जाने देगा। “मैं सच बोलूँगा!” यह कहता हुआ वह गोपुरा का हाथ थामे गाँव की ओर बढ़ा जा रहा था।(समाप्त )

तेरा सच =मेरा सच =देवेंद्र कुमार

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