स्कूल की घंटी बजते ही अंशु अपने क्लासरूम से बाहर निकला। उसके चेहरे पर थकान थी, पर आँखों में वह चमक थी जो बच्चों को कॉग्निटिव डेवलपमेंट पर पियाजे के सिद्धांत समझाते समय आती थी। बैग में किताबों का बोझ था – वाइगोत्स्की, ब्रूनर, और उसका पसंदीदा पियाजे का संग्रह। वह सीधे घर पहुँचा और सोफे पर धंस गया, जैसे उसका आलसी अवतार सक्रिय हो गया हो।
“अरे ज्ञान के सागर!” मनु चमकीले नीले सलवार-कुर्ती में कमरे में दाखिल हुई, हाथ में एक कटोरी भुजिया लिए। “कैसा रहा आज का ‘चाइल्ड साइकोलॉजी’ का महायुद्ध? क्या बच्चों को समझ आया कि उनका दिमाग कैसे बढ़ता है?” उसकी आवाज़ में चिरपरिचित चुलबुलापन था।
अंशु ने चश्मा उतारते हुए गहरी साँस ली। “कॉन्क्रीट ऑपरेशनल स्टेज में बच्चे लॉजिकल थिंकिंग शुरू करते हैं… पर आज कुछ बच्चे अभी प्री-ऑपरेशनल स्टेज में फंसे लगे…” उसने थकान से आँखें मलीं।
“अच्छा, तो तुम्हारे ‘ऑपरेशनल स्टेज’ के बच्चे तुम्हारे इस ‘ऑपरेशनल थकान’ को ठीक कर सकते हैं?” मनु ने भुजिया की कटोरी उसकी नाक के पास हिलाई। चटपटी महक ने हवा में तीखापन घोल दिया। “देखो! ताज़ी बनी, मिर्च-मसाले वाली भुजिया! तुम्हारा हेल्दी ओट्स खाने का मन नहीं करेगा अब!”
अंशु की नाक सिकुड़ी। “मनु, तेल-मसाला! डॉक्टर ने कहा था…”
“डॉक्टर नहीं जानते जिंदगी का स्वाद!” मनु ने एक चुटकी भुजिया उठाकर नाटकीय ढंग से हवा में घुमाई। “पियाजे साहब भी कहते होंगे – संज्ञानात्मक विकास के लिए संवेदी अनुभव ज़रूरी है! ये मिर्च का तड़का तुम्हारी सुस्त इंद्रियों को जगा देगा! चखो तो सही!”
अंशु ने मना करने के लिए हाथ उठाया, पर मनु ने फुर्ती से एक चुटकी भुजिया उसके मुंह में डाल दी। अंशु का चेहरा तुरंत लाल हो गया। “अरे! मनु! ये क्या…” वह खांसते हुए बोला।
मनु खिलखिला कर हँसी। “हाहा! देखो! तुम्हारी ‘कॉन्क्रीट ऑपरेशनल स्टेज’ अचानक ‘फायर ऑपरेशनल स्टेज’ में बदल गई! चलो पानी पियो!” उसने पानी का गिलास बढ़ाया, आँखों में शरारत।
अगले दिन शनिवार था। अंशु बालकनी में आरामकुर्सी पर विस्तार से पियाजे के नोट्स पढ़ रहा था। तभी मनु हवाई जहाज़ जैसी आवाज़ करती हुई आई, हाथ में पिकनिक बास्केट। “अटेंशन प्रोफेसर साहब! आपकी ‘पर्सनल मूड मैनेजर’ ने निर्णय लिया है – आज का लक्ष्य: नई बोटैनिकल गार्डन! टाइम: अभी! कॉग्निटिव रिचार्ज के लिए नेचुरल स्टिमुलेशन ज़रूरी है!”
अंशु ने नज़र भी न उठाई। “मनु, मैं इस चैप्टर को खत्म करना चाहता हूँ। सेंसरिमोटर स्टेज पर कुछ नए रिसर्च पेपर्स मिले हैं…”
“ओह हो! तुम्हारे ‘सेंसरिमोटर स्टेज’ वाले बच्चे तो खेलकर सीखते हैं!” मनु ने उसकी किताब बंद कर दी। “तुम भी ‘सेंसरिमोटर एक्सपीरियंस’ लो! फूल देखो, पक्षियों की आवाज़ सुनो! चलो ना, बस एक घंटा! वादा करती हूँ, वहाँ तुम्हें पियाजे की याद नहीं आएगी!”
अंशु का आलस विद्रोह कर रहा था, पर मनु की उमंग भरी आँखों ने उसे हरा दिया। “ठीक है… पर डील ये है – मैं अपना स्प्राउट्स सलाद लेकर चलूँगा। तुम वहाँ की चाट खाना, मैं ये खाऊँगा।”
गार्डन में मनु उत्साह से फूलों के नाम पढ़ रही थी। अंशु शुरू में ढीला-ढाला चला, फिर एक पौधे के सामने रुक गया। “वाह, ये *Mimosa pudica*! छुईमुई!” उसकी आँखें चमक उठीं। “पियाजे के स्कीमा थ्योरी का जीता-जागता उदाहरण! छूने पर सिमट जाना एक एडाप्टिव स्कीमा है!”
मनु मुस्कुराई। उसका इंटेलिजेंट पति अब उसकी दुनिया में आ गया था। “बिल्कुल! पर इसका संज्ञानात्मक विकास तभी होगा जब तुम इसे छुओगे! चलो, एक्सपेरिमेंट करो!” उसने उसका हाथ पकड़कर पौधे की पत्ती छुआई। पत्तियाँ सिमट गईं। अंशु हँस पड़ा। मनु की जीत थी।
एक सर्द शाम, अंशु को भयंकर खांसी हुई। वह बिस्तर पर कराह रहा था। मनु तुरंत उसके पास आई, हाथ में भाप उड़ता सूप। “लो जी, तुम्हारा ‘हार्ट स्पेशलिस्ट’ आया है!” उसकी आवाज़ में मिठास थी। “ये सूप तुम्हारे हिसाब का है – अदरक, तुलसी, हल्दी। कोई ‘मिर्ची का स्टिमुलेशन’ नहीं!”
अंशु ने कमजोर सी मुस्कान दी। उसकी संवेदनशील पत्नी बीमारी में उसकी ज़रूरतें पूरी तरह समझती थी। सूप ने शरीर में गर्माहट भर दी। “धन्यवाद, मनु। तुम बिना कहे सब जान जाती हो।”
“अरे यार! इतने सालों का ‘तंग करने का तोसे नाता है’ ना?” मनु ने प्यार से उसके माथे पर पट्टी सहलाई। “तुम्हारी हर आदत, हर पसंद मेरी उँगलियों पर है। अब आराम करो, कल तुम्हारे लिए हेल्दी खिचड़ी बनाऊँगी… बिल्कुल बिना मिर्च!”
कुछ दिन बाद, मनु ने अंशु को सोफे पर गहरी नींद में सोया देखा। पियाजे की किताब छाती पर खुली पड़ी थी। उसके चेहरे पर थकान की रेखाएँ थीं। मनु का दिल भर आया। उसने चुपचाप एक कार्ड बनाया:
> “कॉग्निटिव रिचार्ज एडवाइजरी”
> ग्राहक: प्रो. अंशु (ओवरथिंकिंग मोड में)
> समस्या: स्कीमा ओवरलोड, फिजिकल एक्टिविटी डेफिसिट
> प्रिस्क्रिप्शन: 1 घंटा पार्क वॉक + 1 कप मनु की चाय (आइसक्रीम नहीं!)
> थेरेपिस्ट:डॉ. मनु (तुम्हारी पर्सनल इमोशनल रेगुलेटर)
जब अंशु की नींद खुली, उसने कार्ड पढ़ा। फिर उसने मनु की ओर देखा, जो दरवाज़े पर खड़ी शरारत से मुस्कुरा रही थी। उसके चेहरे पर एक कोमल भाव उभरा। उसने उसे पास बुलाया।
“तुम सचमुच मेरी जीवन की सबसे बड़ी थेरेपिस्ट हो, मनु ,” उसने उसका हाथ थामते हुए कहा। “तुम्हारी ये चुहल, ये तंग करना… यही तो मेरा संतुलन है। तुम्हारा चटपटापन और मेरी सादगी… तुम्हारी गतिशीलता और मेरा आलस… पियाजे कहते हैं संतुलन (इक्विलिब्रेशन) विकास के लिए ज़रूरी है। तुम ही मेरे जीवन का वो संतुलन हो।”
मनु ने सिर उसके कंधे पर टिका दिया। “हाँ, अंशु। और ये ‘तंग करने का नाता’… हमारा एक्विलिब्रियम है। तुम्हारी संवेदनशीलता मेरे उत्साह को सहारा देती है, मेरी चुलबुलाहट तुम्हारी गंभीरता में रंग भरती है। हर बीमारी में तुम दवा बन जाते हो, हर मुश्किल में तुम्हारा साथ मेरा सहारा होता है।”
घर में शाम की शांति छा गई थी। सोफे पर बैठे दो विपरीत स्वभाव – एक चंचल और उत्साही, दूसरा विचारशील और संवेदनशील – अपनी भिन्नताओं में ही एक सामंजस्य पा चुके थे। नोक-झोंक उनकी भाषा थी, तंग करना उनका प्यार,
हर विपरीत पल में साथ खड़े होना उनकी नियति। अंशु की किताबें और मनु के सपने, अंशु के स्प्राउट्स और मनु की चटनी – सब मिलकर बुनते थे उनका साफ़-सुथरा, यथार्थ से भरा, साहित्य में बिखरने लायक प्रेम-कथा का ताना-बाना। यही था उनका अनूठा बंधन – **तंग करने का तोसे नाता।**
डॉ० मनीषा भारद्वाज
व्याड़ा (पालमपुर)
हिमाचल प्रदेश
Dr. Manisha Bhardwaj