जज साहिबा अनुराधा ने कहा-आप दोनों के विवाह को अभी 7 वर्ष भी नहीं हुये हैं, इसलिए मैं समझती हूँ, कि आप लोगों को थोड़ा और समय दिया जाना चाहिये एक दूसरे को समझने के लिये, आप दोनों ने ही बहुत सी नादानियां की हैं। आप लोगों को अपने तलाक़ के फ़ैसले पर पुनर्विचार करने और हालातों को समझ कर “भूल-सुधार” करने के लिये मैं 6 माह का और वक़्त दे रही हूँ, आशा करती हूँ कि आप लोगों को दुबारा इस बाबत अदालत न आना पड़े।
अजय और आरती के विवाह को अभी साढ़े तीन वर्ष ही हुये थे, और उनकी 1 वर्ष की बेटी सुरभि थी, दोनों के परिवार सामान्य मध्यम वर्ग से थे, विवाह भी सजातीय ही था, अजय एक ऑटोमोबाइल कम्पनी में इंजीनियर था, आरती घर में ही नीचे के एक कमरे से अपना बुटीक चलाती थी। दोनों ही परिवार एक दूसरे का सम्मान करते थे, अजय की माँ और पिता तो आरती को बेटी समान समझते थे, अजय इकलौता ही था इसलिए परिवार में किसी अन्य से विवाद होने का सवाल ही नहीं था। सुरभि के जन्म के बाद तो घर में खुशियों की बयारें आ गई थी.. सब कुछ एक खुशहाल परिवार की तरह ही चल रहा था..
दशहरे के त्यौहारी सीज़न के कारण आरती “बुटीक” के काम में बहुत ही व्यस्त थी, आमतौर पर 5 बजे तक खत्म होने वाला उसका काम उस दिन रात 9 बजे तक भी पूरा न हुआ..
अजय भी ऑफिस से करीब 7 बजे आ गया था, ऑफिस से आते ही उसे चाय आरती के ही हाथों की बनी चाय पसन्द होती थी, वह माँ को भी मना कर देता की चाय तो मैं आरती के हाथ की बनी ही पियूँगा, उस दिन जब आधा घण्टा इंतज़ार के बाद भी आरती न आ पायी तो अजय ने ख़ुद अपने हाथों से बनी चाय पी, जो कि उसे बिल्कुल भी पसन्द नहीं आई।
आरती को व्यस्त देखकर अजय की माँ खुद किचन में जाकर खाना बनाने की तैयारी करने लगी, माँ ने अजय से सामान्य रूप से कहा कि आजकल बहू को “बुटीक” के काम में बहुत वक़्त लग रहा है, पर यह बात अजय को चुभ गई, रात 8-30 बजे तक तो अजय नीचे, बुटीक में जाकर ग्राहकों के सामने ही आरती पर गुस्सा दिखाते हुये पहुँच गया। अजय का यह उग्र बर्ताव आरती को भी पसन्द नहीं आया..
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आरती किसी तरह सारे ग्राहकों को निपटाते हुये लगभग 9 बजे जब रसोईघर पहुँची तो देखा कि अजय की मॉं खाना बना चुकी थी, आरती खाना परोसने को आगे बढ़ी तो अजय गुस्से से उसे बोल पड़ा कि जाओ अभी बुटीक चलाओ अभी टाइम ही क्या हुआ.. आरती ने भी भड़ककर अजय को जवाब दे दिया कि तुम्हें भी ग्राहकों के सामने अपनी “बुद्धिमानी” का प्रदर्शन करना जरूरी था क्या?
बात इतनी बढ़ गई कि अजय ने उठकर आरती को “तमाचा” जड़ दिया..
जब तक अजय के माता-पिता अजय को उसकी इस कायराना हरक़त पर नाराजगी दिखा पाते, आरती ने भी अपने हाथ का स्टील का गिलास अजय की तऱफ फेंक मारा, हालांकि वह गिलास अजय को लगा नहीं पर आरती का यह “उग्र बर्ताव” अजय के साथ साथ उसके माता-पिता को भी अच्छा नहीं लगा.. अजय के पिता ने उन दोनों को डांटते हुये कहा कि “पति-पत्नी” का प्रेम और झगड़ा, उनके “शयनकक्ष” से बाहर नहीं जाना चाहिये.. तुम दोनों ही इस झगड़े को शांति पूर्वक निपटाओ..
उसके बाद सब लोग बिना खाना खाये ही अपने रूम में सोने चले गये..
★★
सुबह अजय के उठने से पहले ही आरती अपनी बेटी सुरभि के साथ बिना किसी को बताये अपने मायके निकल जाती है.. इधर अजय और उसके माता-पिता का परेशान होकर बुरा हाल था, उस दिन अजय ऑफिस नहीं गया,आरती का मोबाइल फोन बंद था,किसी अनिष्ट की आशंका से अजय और उसके माता-पिता सभी कुओं-तालाबो, ऊची इमारतों रेलवे पटरी अस्पताल के चक्कर लगा-लगा कर थक गये थे.. अजय को अपने व्यवहार पर पछतावा हो रहा था, अजय के माता-पिता भी अजय को उसके व्यवहार की माफ़ी मांगने को कह रहे थे.. अजय भी मन ही मन निश्चित कर चुका था कि वह आरती से माफ़ी माँगकर किसी तरह उसे मना लेगा, बस वह सकुशल हो..
जब रात 8 बजे तक भी आरती और सुरभि का कोई पता न चला तो थक हारकर अजय ने पुलिस की मदद लेने की सोची.. अजय के माता-पिता ने अजय को पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से पहले आरती के माता-पिता को सूचना देने की सलाह दी..
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जब अजय ने आरती के पिता को फ़ोन लगाकर आरती के गुम होने की सूचना दी, तो उन्होंने अजय को फटकार लगाते हुए कहा, कि उन्होंने अपनी फूल सी बेटी अजय को इसलिए नहीं सौपी थी कि अजय उस पर हाथ उठाये.. वह अपनी पत्नी आरती के सम्मान की रक्षा नही कर सकता तो उससे विवाह ही क्यों किया?
अजय समझ गया कि आरती अपने माता पिता के यहाँ है, इसलिए उसने राहत की सांस ली, पर आरती के पिता की फटकार लगने से वह थोड़ा दुखी भी था।
★★★
दूसरे दिन सुबह अजय अपने माता-पिता को लेकर अपनी कार से आरती के घर उसे समझाकर वापस लाने आरती के घर जा रहा था…
वह निश्चित कर चुका था कि चाहे जो भी हो, जैसे भी हो वह आरती के माता-पिता के पैर पड़कर, और आरती से माफ़ी माँगकर उन्हें घर वापस ले ही आयेगा…
शाम को जैसे ही वह आरती के घर पहुंचा, दरवाजे पर आरती का बड़ा भाई अनुज़ मिल गया, अजय आरती के दादा अनुज को साला होने का मज़ाक वाला रिश्ता होते हुए भी, अपने बड़े भाई जैसा ही मानता था, ख़ुद अजय के माता-पिता ने अनुज अजय जैसा ही मानते थे, उन सबको बहुत उम्मीद दी कि अजय का लगभग हरउम्र अनुज, इस मामले को तूल न देकर, समझदारी का परिचय देकर आरती को उसकी ससुराल जाने में उसकी मदद करेगा मग़र इस सबके उलट अनुज ने बहुत बदतमीजी से बात करते हुए अजय के माता-पिता को अपमानित करते हुये, अजय को दरवाजे से ही वापस लौट जाने को कहा, अनुज़ बोला वह ऐसे “घटिया परिवार” के साथ अपनी बहन आरती को एक पल भी रहने नहीं देगा..
आरती की माँ सुनीता दरवाजे तक आकर अपनी समधन से मिलने पानी लेकर आई भी, पर अनुज़ ने उसे डांटते हुये घर के अंदर जाने को कहा और बोला, ” माँ अभी आरती का भाई सक्षम है, मेरे होते हुये आरती को झुकने की कोई जरूरत नहीं कहकर उसने दरवाजे बंद कर लिये”.
अजय खुद का अपमान सहन कर सकता था पर अपने माता-पिता का अपमान तो वह हरगिज़ भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था..
उसे अनुज़ से इतने घटिया बर्ताव की उम्मीद नहीं थी..
★★★★
मनमसोस कर अजय ने वापस अपनी कार घर की तरफ मोड़ ली..
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इतनी लंबी यात्रा के बाद भी अजय “यात्रा की वजह” से उतना नहीं थका था, जितना आरती के भाई अनुज़ की बातों से आहत होकर थकान महसूस कर रहा था..
रास्ते के किसी ढाबे में उसने खाना खाने के लिए कार रोकी लेकिन उसके माता-पिता ने कहा कि उनकी खाने की कोई इच्छा नहीं है.. अजय भी सिर्फ चाय पीकर थोड़ा आराम करके..वापस घर की तरफ़ जा रहा था.. कितनी उम्मीदें लेकर वह आरती को मनाने आया था, सोच रहा था कि काश!! आरती और बेटी सुरभि साथ में वापस आ रही होती तो यही माहौल आज कितना खुशनुमा हुआ होता..
अजय बहुत दुःखी होकर कार चला रहा था, वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था उसकी कार का एक्सीडेंट हो जाये… वह मर जाये.. आरती और सुरभि बिना उसका घर एक “भूत बंगला” ही लगेगा.. अगर उसके माता-पिता कार में साथ न बैठे होते तो अजय निश्चित ही कार का एक्सीडेंट कर देता…
अजय के पिता सोच रहे थे कि अभी क़रीब 3 महीने पहले ही जब वह अनुज़ की सगाई में आरती के घर आये थे, तो अनुज़ ने कितने सम्मान के साथ उन्हें अपने होने वाले सास ससुर से मिलवाया था, आरती की शादी के समय से ही वह अनुज़ के इसी “मृदुल व्यवहार” से इतना प्रभावित थे कि वह भी अनुज़ के लिए 3-4 रिश्ते सुझा चुके थे, रक्षाबंधन हो या भाई-दूज, अनुज़ क़भी भी बहन के लिये अपने कर्तव्य से पीछे नहीं रहता था। वह अपनी बहन आरती को बहुत प्रेम करता था..
और अब देखो इन बदली हुई परिस्थितियों में कितना निष्ठुर हो गया है अनुज़, उन्हें लग रहा था कि शायद अनुज़ समझदारी दिखाकर आरती को उनके साथ वापस घर जाने में सहायता करेगा..पर यह सब इसके उलट ही हुआ..
★★★★★
अजय का रूटीन बदल चुका था, ऑफिस जाते समय आरती का मोहक मुस्कान के साथ टिफ़िन देना, फिर घर से निकलते वक्त उसका और सुरभि का दरवाजे तक बाय करनें आना, शाम को घर आते ही मुस्कुराते हुए दरवाजा खोलकर अजय को चाय देना, सुरभि का नन्हें कदमों से चहलकदमी करते हुए पूरे घर में रौनक बनाएं रखना..सबकुछ कितना अच्छा लगता था उसे, अब देखो घर भूत बंगला ही लग रहा है। उसे अपने बेडरूम में आरती और सुरभि के कपड़ों को देख देखकर इतनी याद आती की वह मोबाइल पर उन दोनों की तस्वीरें देखते देखते रात गुज़ार देता। उसका इस अकेलेपन की वजह से अपने ही बेडरूम में सोने का मन नहीं करता था।
लगभग यही हाल तो आरती का भी था अपने मायके में, परंतु उसे अपने दादा अनुज पर भरोसा था कि वह “साम दाम दंड और भेद” लगाकर अजय को झुकाकर आरती को ससम्मान उसकी ससुराल ले जानें को मजबूर कर देंगें।
अजय ने दो तीन बार खुद से फ़ोन और मैसेज करके आरती से बात करनी चाही, मग़र अनुज के इशारों पर चल रही आरती ने अजय को कोई तवज्जो नहीं दी।
★★★★★★
अजय के माता पिता को उम्मीद थी कि शायद गुस्सा कम होने पर इस दीवाली में आरती जरूर आयेगी, आखिर आरती ही तो उनके परिवार की लक्ष्मी थी.. पर सब कुछ आशानुरूप हो जरूरी तो नहीं…
उलट दीवाली के दो दिन बाद किसी वकील दयाल शर्मा द्वारा आरती की तरफ़ से कानूनी नोटिस था “दहेज़ प्रताड़ना और तलाक़” लेने के लिये..
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सब कुछ किसी बुरे स्वप्न की तरह होने लगा..
अदालत से अजय के माता-पिता और अजय का गैर जमानती वारंट निकल आया, उनको गिरफ्तार करने आई पुलिस ने अजय के माता-पिता की अवस्था देखकर, खुद ही किसी वकील की मदद से उनकी एक दिन में ज़मानत करा दी..पर अजय को पूरे 4 दिन जेल में रहना पड़ा था..
अजय के वापस घर में आने तक घर में सबका रो रो कर बुरा हाल था..
हालात इतने बुरे हो गये थे कि लगा, शायद अब कभी आरती के साथ समझौता नहीं हो सकता था।
अजय ने वापस अपनी ड्यूटी जॉइन कर ली, वह अधिक से अधिक समय काम मे बिताकर अपना दुख भुलाना चाहता था..
★★★★★★★
इधर अनुज़ के विवाह में भी अजय और उसके परिवार को कोई निमंत्रण नहीं मिला था, अनुज़ की पत्नी तन्वी ने शुरू शुरू में तो आरती से बहुत प्रेम पूर्वक व्यवहार किया, पर 3-4 महीनों बाद धीरे-धीरे आरती पर दबाव बनाना शुरू कर दिया..
पहले कामवाली बाई न आने पर आरती स्वयं ही बर्तन धोया करती थी, पर अब तन्वी ने सभी बाइयों की छुट्टी कर दी और आरती से कहा कि यहाँ “मुफ्त की रोटी” तोड़ने से अच्छा है घर का ही काम करो, कुछ पैसे बचेंगे तो आगे चलकर सुरभि की पढ़ाई में काम आयेंगे.. आरती ने जब यह बात अनुज़ को कही भी, पर अनुज़ बोला मैं ऑफीस के काम से इतना परेशान होकर घर आता हूँ, प्लीज़ अब और परेशान मत करो मुझे, “थोड़ा बहुत तो एडजस्ट” कर लिया करो..
आरती पर दिन पर दिन अत्याचार बढ़ने लगे थे, आरती के माता-पिता यह सब देखकर भी अनुज़ के दवाब तले कुछ भी बोलने में असमर्थ थे.. आरती टूट चुकी थी वह अब घुटघुट कर जिये जा रही थी, और ऐसे में उसे अजय के सहारे की सख़्त ज़रूरत थी, पर वह कर भी क्या सकती थी.. बात इतनी आगे बढ़ गई थी कि कदम पीछे खींचना असम्भव था।
★★★★★★★★
करीब 8 महीनों तक वकीलों द्वारा पेशी पर पेशी की तारीख बढ़ाने के बाद आज पहली बार गवाही के लिये दोनों पक्षों के लोगों यानी आरती के माता-पिता भाई अनुज़ और अजय के माता पिता सभी अदालत हाज़िर थे..
आरती ने अदालत में अजय को देखा बेतरतीब बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी पैरो में चप्पल और ओपन शर्ट, “हमेशा ही टिपटॉप” रहने वाले उस अजय की असहाय परिस्थितियों को बयां कर रही थी।
कटघरे में खड़ा अजय एक के बाद एक आरती के वकील, आरती के माता-पिता और भाई के अनर्गल आरोपों को भी ख़ामोशी और डबडबाई आँखों से स्वीकार कर रहा था.. आरती का वकील दयाल शर्मा अपनी सम्भावित “जीत” से गदगद होकर मिथ्या आरोपों की झड़ी लगा चुका था।
भोजनावकाश के बाद अंतिम व सबसे महत्वपूर्ण गवाही आरती की ही होनी थी, उसकी स्वीकृति के बाद ही अजय को सजा सुनाई जानी थी..
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आरती का वकील और अनुज़ दोनों ही आरती को सीखा रहे थे कि तुम बोल देना की अजय रोज ही शराब पीकर उसके साथ झगड़ा, मारपीट करता था, उसके ऑफिस की कई महिलाओं के साथ सम्बंध हैं और बेटी सुरभि को भी नफ़रत की नज़र से देखता है.. दहेज़ में दिये गए सामानों की लंबी लिस्ट में कार और आरती के महंगे नेकलेस जैसी उन चीजों का भी ब्यौरा था जो अजय और उसके पिता ने अपने मेहनत की कमाई से ख़रीदी हुई थी..
आरती अपने भाई अनुज़ और वकील की मक्कारी देख कर बहुत दुःखी थी, वह वक़ील आरती से कह रहा था एक बार तलाक़ हो जाये तो उसकी आधी तनख्वाह तुम्हारी जेब में रहेगी.. पूरी जिंदगी ऐश से गुज़रेगी…पर क्या पैसा ही सबकुछ होता है.. पति के साथ कि कोई अहमियत नहीं होती।
★★★★★★★
भोजनावकाश के बाद वकील ने दुबारा ज़िरह शुरू की.. अब आरती और अजय एक दूसरे के सामने कटघरे में खड़े थे.. आरती के वकील ने आरती की स्वीकृति के लिए पुनः सवाल किया, क्या यह सच है आरती जी जी आपके पति..क्षमा करना “पूर्व- पति” का घर में व्यवहार बिल्कुल “पाशविक” था, वह आये दिन शराब पीकर आपसे मारपीट करतें थे.. उनके ऑफिस की अन्य महिलाओं के साथ सम्बंध थे..
अजय इन आरोपों से व्यथित होकर क्रोध से उबल रहा था, पर क्या कर सकता था, सारी परिस्थितियां उसके ख़िलाफ़ थी.. उसकी स्वीकृति या अस्वीकृति का यहाँ कोई महत्व नहीं था.. महिलाओं के अधिकारियों की सुरक्षा के लिये बने इस दहेज़ कानून में कई बातें ऐसी है जिनके दुरुपयोग की पूर्ण संभावना रहती है।
अजय ख़ामोशी से आरती की तरफ़ देख रहा था, शायद आरती इन आरोपों को अस्वीकार कर दे, हालांकि उसे इसकी अपेक्षा तो नहीं थी।
आरती ने सहमते हुये अपने वकील और भाई की तरफ़ देखते हुए कहा.. जी मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकती..मेरे साथ जो कुछ भी हो रहा है, शायद यहीं मेरी नियति थी.. अपने माता पिता और अनुज़ के दवाब के सामने आरती “सच न बोलने को विवश थी”..
अनुभवी जज साहिबा अनुराधा अब तक अजय और आरती की “भाव भंगिमा” समझ चुकी थी…
उन्होंने जो आरती और अजय को साथ में 6 महीने रहने का फ़ैसला सुनाया वह ख़ुद आरती और अजय की भी दिली इच्छा थी..
वहीं दूसरी तरफ़ आरती के वकील, माता पिता और अनुज़ ने इस फ़ैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय जाने का निश्चय किया था।
इन सबसे अलग आरती, भरी अदालत में ही अपने माता-पिता के पास से उठकर, अजय के माता पिता के पास बैठ गई, बिना कुछ कहे ही अजय के माता पिता और आरती एक दूसरे से चिपक गये उनकी आँखों से बहती “अश्रु की धार” वक़्त के जमा मैल को धोने का काम कर रही थी.. अजय के पापा नन्ही सुरभि को गोद में लेकर चूमते जा रहे थे।
अजय भी कठघरे से निकलकर अपने माता पिता से आशीर्वाद लेने पहुँचा, आरती को उनके पास अश्रुपूरित देखकर उसने आरती को माथे पर चूमते हुये कहा.. पगली जब इतना ही प्यार था तो मेरे पास आई क्यों नहीं..?
आरती ने कहा “तुम भी मुझे ख़ुद से मना नहीं सकतें थे क्या?”
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कुछ समय लग जरूर गया, पर वक़्त के थपेड़ों ने दोनों ही परिवारों को “सहनशीलता” सीखा ही दी थी।
कार से अजय आरती, सुरभि और आरती के माता पिता अपने घर को वापस जा रहें थे। आरती सुरभि को उसके दादा दादी को पिछली सीट में सौपकर फ्रंट सीट पर अजय के बगल में बैठ गई…रास्ते भर झमाझम बारिश हो रही थी, उससे भी ज्यादा बारिश अजय और आरती की आँखों से हो रही थी, अजय ने कार में अपना पसंदीदा गीत लगा दिया था।
तेरे जुल्मो सितम सर आँखों पर
मैंने बदले में प्यार के
प्यार दिया है प्यार दिया है
तेरी खुशियाँ और
गम सर आँखों पर
तुझे जीवन की डोर से बांध
लिया है बाढ़ लिया है
तेरे जुल्मो सितम सर आँखों पर
आरती ने प्यार से अपनी एक बाह अजय के हाथों में डाल दी थी।
पीछे सीट पर बैठे अजय के माता पिता भी बीती बातों को भुलाकर सुरभि के साथ खेलते हुये भावविभोर हो रहे थे, आखिर तलाक की दहलीज पर पहुंचकर भी उनके बेटे और बहू ने समझदारी दिखाकर अपने कदम वापस जो ले लिये थे।
नोट- इस कहानी के माध्यम से मैं यह संदेश देना चाहता हूँ कि पति पत्नी का रिश्ता बहुत ही नाज़ुक रिश्ता होता है, इसे कभी तलाक की दहलीज तक नहीं पहुँचने दें, और यदि दुर्योग से इस मोड़ तक पहुंच भी गया तो पति पत्नी दोनों के ही परिजनों को यथासंभव इसको सुलझाने के लिये पति पत्नी को ही आपस में बात करनें के लिये जवाबदेही दे देना चाहिए, दूसरों का बीच बचाव कई बार गलतफहमी पैदा कर सकता है।
धन्यवाद
स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित
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अविनाश स आठल्ये