तालाब से सीख – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

चल यार मैं चलती हूं । सात बज गए , खाना बनाऊंगी, सोमेश के आने का टाइम हो गया। आज वो जल्दी आने वाले हैं और कई दिनो से आइसक्रीम खाने का मन हो रहा था तो अपनी वो हसरत भी आज पूरी कर लूंगी…. उनके साथ बाहर जाकर

 कई बार दिल चाहता है कि पति के साथ डेट पर जाएं और लॉन्ग ड्राइव का मजा ले आएं …रश्मि अपनी सहेली ज्योति को बोली जिसके घर से वो अभी जा रही है अपने घर वापस।

 हां हां, कर ले अपने मन की , जो दिल चाहता 

क्युकी अभी तू फ्री है , जब बच्चे हो जायेंगे तो बस इन्ही के इर्द गिर्द घूमती रहेगी जिंदगी। दिल चाहेगा भी तो बस इन्ही के लिए। हमारी अपनी कोई ख्वाहिश नही रह जाएंगी फिर, ज्योति बोली

 चल यार तब की तब देखने अभी तो दिल को चाहने दो और हसरते पूरी करने दो….

 रश्मि अपने घर आकर डिनर बनाकर तैयार करती है और एक अच्छा सा गुलाबी रंग का सूट और लाइट मेकअप में तैयार होकर बैठती है ताकि खाना खाते ही तुरंत आईसक्रीम खाने चले जाएं और फिर सोमेश को भी तो रश्मि का ऐसे तैयार होकर रहना बहुत भाता है।

 सोमेश आते ही रश्मि को देख , बस देखता ही रह जाता है।

 अरे मैडम आज कहां बिजली गिराने का इरादा है, बला की खूबसूरत लग रही हो और उसे चूम लेता है।

 रश्मि शरमा कर सोमेश के गले लग जाती है

 ( रश्मि और सोमेश की नई नई शादी हुई थी लगभग बारह महीने पहले ही इसलिए अभी उनकी रोमांटिक लाइफ अच्छी खासी चल रही थी।

 सोमेश के माता पिता एक रोड ऐक्सिडेंट में गुजर चुके थे जब वो कॉलेज में था…. बस एक बड़ी बहन थी जिसने सोमेश को तब से अब तक अपने बेटे की तरह पाला था। और अपने ही ससुराल की रिश्तेदारी में रश्मि को सोमेश के लिए पसंद कर उसकी शादी करवा दी।)

 अभी रश्मि और सोमेश जो उनका दिल चाहता वैसे ही रहते क्युकी कोई रोक टोक थी नही और अभी बच्चे भी नही थे। दोनो एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे । 

 कुछ दिनों बाद रश्मि भी गर्भवती हो गई और नौ महीने बाद उसने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। 

 बच्चों के पालन पोषण में कब दिन होता कब रात उसे पता ही नही चलता । साथ में कोई सहायता करने वाला भी नहीं था।कुछ दिनो के लिए उसकी मां आई थी पर उसके पापा की तबियत ठीक नहीं रहती थी तो वो भी बस दो महीने रहकर चली गई। ननद के बच्चों की पढ़ाई थी साथ में संयुक्त परिवार तो वो भी ज्यादा आ नही सकती थी।

 रश्मि और सोमेश जहां एक रोमांटिक कपल ( पति पत्नी) की तरह रहते वहीं अब दोनो जिम्मेदार माता पिता बन गए। 

 धीरे धीरे बच्चे बड़े हो गए और अपनी पढ़ाई लिखाई में व्यस्त हो गए तब रश्मि की जिम्मेदारी वाले काम कुछ कम हुए पर सोमेश की तरक्की हो गई और वो ऑफिसर बन गया इसलिए इसके पास जिम्मेदारी ज्यादा हो गई।

 अब कभी रश्मि का दिल चाहता कि थोड़ा वक्त साथ बताएं तो सोमेश के पास समय नहीं होता और यदि कभी सोमेश का दिल चाहता कि रश्मि की फेवरेट आइसक्रीम खिलाऊं या लॉन्ग ड्राइव पर ले जाऊं तो रश्मि बच्चों के साथ व्यस्त रहती थी। उनका होम वर्क, एग्जाम वगेरह

 सोमेश शुरू से ही कम बोलने वाला स्वभाव रखता था पर अब मोबाइल में व्यस्त होने के कारण और भी कम बोलने लगा। किसी भी बात का जवाब बस गर्दन हिलाकर या हुं हां में देता जो रश्मि को बिल्कुल पसंद नहीं था

 पर अपने मन की बात किसे बोलती बेचारी। उसका दिल क्या चाहता है ,कोई समझना ही नही चाहता था।

 सोमेश ने उसे सारी सुविधा उपलब्ध करवा दी थी बस उसके पास समय नहीं था कि पल दो पल रश्मि के साथ बैठकर प्यार भरी बातें करें, पहले की तरह उसको नोटिस करे …..जानने की कोशिश करे कि उसका दिल क्या चाहता है?

 जहां पहले सोमेश पर फिदा होने का रोज उसका दिल चाहता था वहां अब सोमेश का स्वभाव उसे अखरता था पर वो अपने दिल का हाल किसे सुनाती भला

उसने ये बात घर आई अपनी सहेली को बताई तो उसने तो रश्मि के कान में कुछ और ही बात डाल दी

“मुझे लगता है सोमेश का कहीं चक्कर बक्कर तो नहीं चल रहा, आज कल के मर्दों को हम जानते नहीं , दिखते कुछ और पर होते कुछ और ही हैं “रश्मि की सहेली मोना ने कुछ जोर देकर कहा

अरे नहीं यार कैसी बात करती है ,सोमेश और मेरा रिश्ता विश्वास की डोर पर टिका हुआ है और सोमेश ने मुझे वचन दिया है कि वो मुझे कभी झूठ नहीं बोलेगा न ही धोखा देगा रश्मि ने चिंतित होते हुए कहा

ये हम जैसी पतिव्रता पत्नियों की गलतफहमी है , तू एक बार मेरी बात मान तो सही और सोमेश पर नजर रख

शक का कीड़ा अब रश्मि के दिलो दिमाग पर हावी हो गया था जो न चाहते हुए भी उसको सोमेश से दूर कर रहा था।

सोमेश का स्वभाव तो वैसे भी कम बोलने का था पर अब रश्मि ने भी कम बोलना शुरू कर दिया जबसे शक ने उसके दिमाग में घर कर लिया था। सोमेश के हर काम, गतिविधि में उसे कुछ गलत ही नजर आता

सोमेश को कुछ ज्यादा फर्क पड़ता नहीं था रश्मि बोले या न बोले 

वो काम में इतना व्यस्त रहता कि उसे कुछ और सूझता नहीं था इसलिए उसने रश्मि में आए बदलाव पर खास ध्यान नहीं दिया पर घर का माहौल पहले से बदल गया ये उसने नोटिस जरूर किया था पर कुछ बोला नहीं 

अगले दिन उसकी बहन घर आने वाली थी तो बच्चे और सोमेश सभी बड़े खुश थे और रश्मि अपने ननद की तैयारियों में व्यस्त हो गई

सोमेश की बहन सुजाता ने आते ही रश्मि और सोमेश और घर के वातावरण को देखकर अनुभवी आंखों से भांप लिया था कि कुछ तो गलत चल रहा है दोनों के बीच

उसने सोमेश को बुलाकर अकेले में बात की और पूछा आज रश्मि बुझी बुझी सी क्यों लग रही है? तुम दोनों में कुछ अनबन हुई क्या?

नहीं दीदी ऐसा तो कुछ नहीं हुआ पर आजकल रात को लेट सोने लगी है और सुबह भी लेट उठती है। मैने एक दो बार पूछा भी कि क्या हुआ तो बोली तुम क्या समझोगे? बच्चे भी चुप और सहमे सहमे से है क्योंकि वो भी बात बेबात डांट खा रहे हैं। पर जब से एक सहेली घर आकर गई है तब से ऐसी ही है कहकर सोमेश चला गया 

सुजाता को समझते देर न लगी कि दोनों के बीच की विश्वास की डोर कहीं कमजोर पड़ गई है। वो टूटे उससे पहले सब कुछ सुधारना होगा नहीं तो घर बिखरते देर नहीं लगेगी।

ख़ुशदिल रश्मि में आए बदलाव से सुजाता व्यथित थी। कुछ तो हुआ है उसके शांत जीवन में….सोचते हुए 

उसने अगले दिन संडे को पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बनाया । बच्चे तो बहुत खुश हो रहे थे । 

पिकनिक स्थल पहुंचते ही उन्होंने सोमेश को खेल खेलने में व्यस्त कर लिया और रश्मि और सुजाता तालाब के किनारे बैठ कर बाते करने लगी

क्या बात है रश्मि तबियत तो ठीक है तुम्हारी? सुजाता ने पूछा

रश्मि ने एक गहरी सांस ली , कुछ ठिठकी फिर बोली

तबियत तो ठीक है पर मन खराब है

क्या बताऊं दीदी चार दिनों पहले मेरी एक सहेली मिलने आई थी। वैसे तो वह मेरी पुरानी सहेली है पर उसने कुछ ऐसी बात बोल दी कि मैं डिस्टर्ब हो गई हूं।

सुजाता जो कुछ पल उसे देखती रही फिर बोली

रश्मि एक पत्थर उठाकर तालाब में तो फेंकना ।

रश्मि ने भी ननद की बात का लिहाज़ करते हुए पास पड़ा हुआ एक ढेला अनमने ढंग से तालाब में उछाल दिया। छपाक की आवाज़ आई। ढेला तालाब में डूब गया। लहरों का वर्तुल बना, किनारों की तरफ बढ़ा फिर कुछ समय में तालाब फिर से सपाट जल सतह लिए शांत हो गया।

कुछ देखा रश्मि, सुजाता ने रश्मि को देखते हुए कहा।

तुमने तालाब में पत्थर डाला , लहरें उठी उससे क्या हुआ, तालाब का सारा संसार हिल गया

उधर लगे कमल दल डूबने लगे, उतराने लगे उसके पास लगी झाड़ी पर बैठी नन्ही चिड़िया घबराकर उड़ गई, चैन से किनारे बैठे धूप सेकते वो छोटे मेढक पानी में कूद पड़े। मगर तालाब ने क्या किया? धीरे धीरे से फिर से अपने को स्थिर कर लिया।

बस ऐसे ही तुम्हे स्थिर बनना है और सोचना है कि क्या तुम्हारे और सोमेश का रिश्ता विश्वास की कमजोर डोर पर टिका हुआ है कि कोई भी आकर उसे हिला दे, जो भी गलतफहमी है उसे बैठकर,बात करके दूर करो न कि इस तरह खुद को सजा देकर।

देखो सोमेश का चेहरा कितना उतरा हुआ लग रहा है,कितना मायूस है वो और बच्चे उदास ।

मुझे पूरा विश्वास है तुम दोनों आपस में बात करोगे तो समस्या का समाधान अवश्य ही मिलेगा। छोटी मोटी तकरार तो हर पति पत्नी के रिश्ते में होती है,थोड़ा सोचो फिर दिमाग से काम लो

रश्मि थोड़ी मुस्कुराई लगा जैसे उसे सुजाता की सलाह भा गई 

रात को ….

सोमेश रश्मि के पास आया और सॉरी बोलने लगा

क्या हुआ मेरी चुलबुली (सोमेश प्यार से उसे इसी नाम से पुकारता था) ऐसी चुप सी क्यों हो गई

आज दीदी के आने के बाद तुम्हे थोड़ा खुश देख रहा हूं, मुझसे कोई गलती हुई क्या?

रश्मि बोली एक बात पूछूं सच सच बताओगे मेरी कसम 

हां पूछो , तुम्हे झूठ कब बोलता हूं मै

सोमेश तुम्हे कोई और पसंद है मेरे अलावा?

मेरा मतलब तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड तो नहीं जिसके कारण आजकल तुम मुझ पर ध्यान नहीं दे रहे, न मुझसे बात करते हो,कटे कटे से रहते हो

गर्ल फ्रेंड… सोमेश आश्चर्य से बोला ये बात तुम्हारे मन में कैसे आ गई ? हमारे बीच विश्वास की डोर इतनी कमजोर है क्या जो तुम्हारे मन में आए और वो तुम सोच लो और सही भी समझ लो

तुम्हे तो पता है , मै हमेशा से ही कम बोलता हूं और आजकल काम का प्रेशर भी ज्यादा है तो बस थक जाता हूं इसलिए तुम्हे टाइम कम दे रहा हूं इन दिनों

नहीं तो मैने अगले महीने का गोवा का टिकट बुक भी करा लिया , तुम्हे आज बताने ही वाला था पर तुमने तो मुझे धोखेबाज की संज्ञा दे दी 

अब सोमेश कुछ उदास होते हुए बोला

रश्मि बोली अरे मोना ने मुझे क्या क्या बोल दिया और मैं पागल उसकी बातों में आ गई 

मुझे एक बार तुमसे बात करनी थी , हमारे रिश्ते को किसी की नजर तो नहीं लग गई कहते कहते सुबक पड़ी रश्मि

वो तो भला हो दीदी का जो उन्होंने मुझे समझा दिया वरना मैं तो क्या क्या सोचे जा रही थी

सोमेश ने उसे गले लगाकर सांत्वना दी और बोला

देखो रश्मि जो हो गया सो हो गया पर अब वादा करो ये फालतू बातें न सोचोगी न ही किसी के साथ करोगी। हमारा रिश्ता विश्वास की डोर पर टिका हुआ है इसमें किसी तीसरे की कोई गुंजाइश नहीं है न कभी होगी और कहकर रश्मि को गले से लगा लिया और दोनों इतने दिनों बाद एक दूसरे से मन की बात साझा कर बहुत सुकून का एहसास कर रहे थे

सुबह रश्मि अब पुरानी वाली चुलबुली रश्मि बन चुकी थी और उठते ही ननद को धन्यवाद दिया कि उसकी सलाह काम कर गई और सारी गलतफहमियां दूर हो गई।

आज रश्मि और सुजाता के रिश्ते को भी विश्वास की डोर  और नजदीक ले आई थी। 

दोस्तों कहानी को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया देना न भूले, और मेरा उत्साहवर्धन करते रहें

धन्यवाद

निशा जैन

# विश्वास की डोर

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