कमरे से जोर जोर से हंसने की आवाज सुनकर सुनैना का अस्तित्व तार तार हुआ जा रहा था। कमरे के अंदर से आ रही प्रमोद और सपना के हंसी की आवाजें पिघलें हुए शीशे की तरह सुनैना के कानों में पड़ रही थी । आखिर कार सुनैना वहां से उठकर रसोई में चली गई और खाना बनाने में अपना मन लगाने लगी।
सुनैना के पिता मोहनदास और प्रमोद के पिता प्रकाश जी एक ही स्कूल में थे । सुनैना के पिता मोहनदास जी वहां पढ़ाते थे और प्रमोद के पिता प्रकाश जी वहां के प्रिंसिपल थे । दोनों की अच्छी दोस्ती थी ।
मोहन दास के दो बेटियां थीं जो देखने सुनने में काफी अच्छी थी और सरल व्यवहार और सुघड़ भी थीं।और प्रकाश जी के एक बेटा भी था पत्नी का देहांत हो चुका था। अभी प्रमोद पढ़ रहा था । ग्रेजुएशन के आखिरी साल में था ।और मोहन दास की बड़ी बेटी भी बी,काम कर रही थी।
कल मोहन जी के शादी की पच्चीस वीं सालगिरह थी जिसमें घर पर पूजा रखी थी और प्रकाश जी को भी बुलाया था। प्रकाश जी मोहन जी के घर गए तो दोनों बेटियों को देखकर जैसे निहाल हो गए । शांत,शालीन मधुर व्यवहार एक नज़र में ही भा गई थी बड़ी बेटी सुनैना।
उसे बहू बनाने के सपने देखने लगे थे प्रकाश जी। फिर एक दिन प्रकाश जी ने मोहन से पूछा बेटियां बड़ी हो गई है उनके लिए कहीं रिश्ता नहीं देखा। मोहन जी बोले अभी बेटी बी, काम कर रही है आगे और पढ़ाई करना चाहती है
और यदि इस बीच कोई अच्छा रिश्ता मिल जाता है तो शादी भी कर देंगे। बेटियों से पूछा है इस बारे में प्रकाश जी ने कहा तो मोहन जी बोले बेटियां बहुत संस्कारी है मेरी बात नहीं काटेंगी। अच्छा तो सुनैना का हाथ में अपने बेटे प्रमोद के लिए मांग रहा हूं । ये क्या कह रहे हो प्रकाश , हां सही कह रहा हूं तुम्हारी बेटी मुझे पसंद है । लेकिन प्रकाश पहले बेटे से पूछो हां पूछ लूंगा।
घर जाकर प्रकाश जी ने सुनैना के बारे में चर्चा की तो वो कुछ नहीं बोला, प्रकाश जी ने उसकी चुप्पी को हां समझ लिया। प्रकाश जी ने कहा देखो बेटा तुम्हारी मां तो है नहीं, मोहन जी की बेटियां बहुत सुघड़ और समझदार है ।घर को और हम दोनों को बहुत अच्छे से संभाल लेगी ।मैं एक बार तुम दोनों को मिलवा देता हूं और अभी तो समय
है पहले अपनी पढ़ाई पूरी करों और नौकरी करो फिर उसके बाद शादी होगी। तब-तक तुम दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझ बूझ लो ।
फिर दोनों के परिवार वालों ने दोनों बच्चों को आपस में मिलना दिया । सुनैना एक ही नज़र में प्रमोद को पसंद आ गई । प्रमोद ने धीरे से अपना फोन नंबर सुनैना को दे दिया और इंतजार करने लगा कि अब सुनैना फोन करेगी । फिर एक दिन सुनैना ने फोन किया फिर तो झिझक धीरे धीरे खत्म होने लगी और दोनों तरफ से बात होने लगी ।
और ये बातचीत फिर एक मुलाकात में बदल गई। मोहन और प्रकाश जी दोनों खुश थे कि बच्चे आपस में एक दूसरे को समझ बूझ रहे हैं । मोहन जी को ये भी सुकून था कि बेटी किसी जान पहचान वाले ही घर में जाएगी।
फिर दोनों परिवारों ने दोनों की रजामंदी जानकर दोनों की सगाई कर दी । प्रमोद का ग्रेजुएशन पूरा हो गया था और वो बैंक के प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था , नौकरी के बाद शादी होगी ये तय हुआ । सुनैना का भी इस साल ग्रेजुएशन पूरा होगा और वो एम, काम करना चाहती है ।
अब प्रमोद और सुनैना में नजदीकियां बढ़ने से लगी थी । अक्सर दोनों शाम को कहीं पार्क में या नदी के किनारे घंटों बैठे बातें करते रहते थे । ऐसे ही किसी दिन दोनों पार्क में बैठे थे कि एक पंद्रह,सोलह साल का पैरों से अपाहिज लड़का पास आकर कुछ मांगने लगा । प्रमोद तुरंत उठकर खड़ा हो गया और दूर हटो ,दूर हटो जोर जोर से कहने लगा ।
प्रमोद को इस तरह से जोर जोर से बोलता देखकर सुनैना घबरा गई क्या हो गया प्रमोद तुम इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो।चलों यहां से सुनैना, क्या हो गया प्रमोद। बार बार पूछने पर प्रमोद बोला ऐसे विकलांग लोगों को देखकर मुझे पता नहीं क्या हो जाता है ।
मुझे बहुत अजीब सा लगता है मैं किसी ऐसे लोग को देख नहीं पाता हूं ।इस तरह से नफ़रत नहीं करते प्रमोद सुनैना बोली आखिर इनको भी तो ईश्वर ने ही बनाया है इनसे नफ़रत नहीं प्यार करने की जरूरत है । अच्छा अच्छा घर चलो प्रमोद बोला ।
दो दिन बाद फिर वही घटना घट गई जब वो दोनों किसी जगह बैठे थे तो एक लड़का जिसके दोनों हाथ नहीं थे वो कुछ मांगने आ गया अब प्रमोद फिर अपना आपा खो दिया । सुनैना ने संभाला क्या हो जाता है तुम्हें प्रमोद।मैं ये विकलांगता नहीं देख पाता हूं मुझे बहुत परेशानी होने लगती है प्रमोद बोला ।
ये तो किसी के साथ भी हो सकता है प्रमोद कुछ केस तो कुदरती होते हैं तो कुछ किसी के साथ कोई एक्सीडेंट से हो जाते हैं ।मां लो हमारे तुम्हारे साथ कोई ऐसी घटना घट जाए तो क्या करोगे , पता नहीं क्या करूंगा मैं लेकिन मैं ऐसी स्थिति में किसी को देख नहीं सकता।नफ़रत होती है मुझे पता नहीं क्यों।मेरा मन ऐसा ही है सुनैना मैं क्या करूं। अच्छा अच्छा संभालो अपने आपको।
घर आकर सुनैना सोच में पड़ गई कि ये तो ठीक नहीं है। किसी ऐसे व्यक्ति को देखकर तो प्रमोद बिल्कुल परेशान हो जाता है खैर,,,,,,,। सुनैना का बी, काम का रिजल्ट आ गया था और वो पास हो गई थी और प्रमोद का भी बैंक का रिटर्न निकल गया था इंटरव्यू रह गया था।
प्रमोद की बैंक में ज्वाइनिंग हो गई और फिर प्रमोद और सुनैना की शादी हो गई। सुनैना आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन घर में प्रमोद की मां नहीं थी इस लिए घर को संभालने वाला भी कोई चाहिए था। प्रकाश जी ने कहा बेटा तुम आगे पढ़ना चाहती हो तो मैं मना नहीं करूंगा।एम,काम का फार्म तुम प्राइवेट भर दो और घर में तैयारी करती रहना जिससे घर भी संभल जाएगा
और तुम्हारी पढ़ाई भी चलती रहेगी। ऐसा ही हुआ शादी के बाद सुनैना बहुत खुश थी ।एक साल हुए थे शादी के कि सुनैना प्रेगनेंट हो गई ।एम, काम का पहले साल का एग्जाम तो दे दिया था और दूसरा साल का बाकी था प्रेग्नेंसी में भी वो समय निकाल कर पढाई कर लेती थी।
नौ महीने बाद सुनैना ने नन्हे से यश को जन्म दिया । तीन महीने बाद फाइनल का एग्जाम था तो यश की सुनैना की मम्मी संभाल लेती थी और सुनैना ने अपना फाइनल एग्जाम दे दिया।वो अपनी डिग्री अधूरी नहीं रखना चाहती थी ।
हंसी खुशी प्रमोद और सुनैना की जिंदगी बीत रही थी कि एक दिन हार्ट अटैक से प्रकाश जी इस दुनिया से चले गए।और इधर सुनैना की मां को गर्भाशय का कैंसर हो गया बहुत इलाज करवाया लेकिन वो नहीं बच पाई । सुनैना की छोटी बहन की भी शादी हो गई ।
अब सुनैना के पापा अकेले रह गए इस वजह से बीमार रहने लगे। सुनैना को अचानक मां के और पिता समान ससुर के जाने का बहुत दुख था लेकिन वो बच्चे के लालन पालन में लगी रही और यश धीरे धीरे बड़ा हो रहा था।
आज यश की पहली सालगिरह थी घर में एक छोटी सी पार्टी रखी गई थी चार पांच दोस्तों को बुला कर सुनैना उसी की तैयारी में लगी थी । कुछ सामान खरीदने को बाजार गई थी ।एक हाथ से यश को पकड़े और दूसरे हाथ में कुछ पैकट लेकर वो दुकान से बाहर एक आटो रिक्शा वाले को आवाज दी
रिक्शा आकर रूका और सुनैना सामान रखने लगीं तभी थोड़ी दूर पर एक गुब्बारे वाला खड़ा था और यश उसके पास चला गया । सामान रखने के बाद जब सुनैना ने देखा कि यश पास में नहीं है तो इधर उधर देखने लगी बस जरा सी दूर पर गुब्बारे वाले के पास खड़ा था। जल्दी जल्दी उसे पकड़ने जा रही थी कि एक तिपहिया वाहन में उसकी साड़ी फंस गई
और वो गिर पड़ी और तभी पीछे से आ रही एक कार का पहिया उसके पैरों पर चढ़ गया । सबकुछ इतना तेजी से हुआ कि कुछ समझ में ही न आया। अचानक सुनैना गिरी कार वाला भी आगे बढ़ चुका था जबतक वो ब्रेक लगाता
सुनैना का पैर कुचल गया था। सुनैना चीख पड़ी फिर सब लोगों ने मिलकर उसे अस्पताल पहुंचाया और सुनैना के फोन से प्रमोद को फोन किया। प्रमोद अस्पताल पहुंचा डाक्टरों ने बताया कि पैर में तीन से चार फैक्चर हो गए हैं आपरेशन करना पड़ेगा।
आपरेशन के एक हफ्ते के बाद सुनैना अस्पताल से घर तो आ गई लेकिन उसको ठीक होने में महीनों लग गए ।घर और बच्चे की देखरेख के लिए एक सहायिका रख ली थी। करीब तीन महीने लग गए लेकिन सुनैना पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई थी।
ठीक से चल नहीं पाती थी लंगड़ा कर चलने लगी थी।और छड़ी लेकर भी चलना पड़ता था डाक्टर ने कहा था कि पूरा जोर पैर पर न पड़े। सुनैना घबरा भी रही थी प्रमोद को विकलांगता से बहुत चिढ़ थी कहीं ऐसा न हो वो मुझसे मुंह फेर ले।
इसी बीच बैंक में काम करने वाली प्रमोद की कलिग कई बार सुनैना को देखने के बहाने घर आई। लेकिन प्रमोद और सपना की बेतकल्लुफी सुनैना को अच्छी नहीं लगती थी । थोड़ा हाल चाल लेकर दोनों कमरे में बैठकर खूब हंसते बोलते जो सुनैना को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।
जब सुनैना उनके बीच बैठने की कोशिश करती तो प्रमोद कह देता जाओ तुम यश को देखो यहां बैठकर क्या करोगी। सुनैना को आज प्रमोद की कहीं हुई बात याद आ रही थी कि मुझे विकलांगता बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती और अब मैं लंगड़ा कर चलती हूं
इस लिए प्रमोद मुझे नजरंदाज करते हैं। सुनैना को अपना अस्तित्व इस घर में समाप्त सा दीख रहा था ।सोच विचार में पड़ गई कि क्या क्या जाए इस तरह तो नजरंदाज होकर मैं नहीं रह सकती । सहारा कोई है नहीं पिताजी भी बीमारी की हालत में है उनके पास जाकर उनको परेशान कैसे करूं ।
फिर उसने हिम्मत की एम,काम तो किया ही था कालेज में पढ़ाने के लिए आवेदन दिया जिसमें जल्दी ही उसका चयन हो गया । सुनैना यश को लेकर और सोने की चार चूड़ियां लेकर घर से निकल गई और घर पर एक चिट्ठी लिखकर रख दी ।
सोने की चूड़ियां बेचकर कुछ पैसे लिए और एक कमरा किराए पर लिया ,यश को पास में ही जहां और भी बच्चे रहते थे वहां छोड़ा और अपने कालेज चली गई ।शाम को जब प्रमोद आया तो सुनैना घर पर नहीं थी उसको कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मन से प्रमोद सुनैना से दूर हो गया था।जब ये बात सपना को पता लगीं तो वो बहुत खुश हुई सोचने लग गई
चलो अपने आप ही रास्ता साफ हो गया। लेकिन चार दिन में ही प्रमोद को घर में खराब लगने लगा ।आज एक दोस्त प्रमोद का घर आया तो उसने पूछा यार घर में भाभी और यश नहीं दीख रहे हैं तो सारा किस्सा प्रमोद ने बताया वो घर छोड़कर चली गई है।
दोस्त ने समझाया ये क्या कर रहा है तू जाओ भाभी और बच्चे को ढूंढकर लाओ नहीं तो बहुत पछताओगे, हां यार तू सही कह रहा है ये मैं क्या कर रहा था । जरुर अपने पापा के पास गई होगी।
प्रमोद जब सुनैना के पापा के पास गया तो मोहन जी को सारा किस्सा पता लगा लेकिन सुनैना वहां नहीं गईं थीं । फिर पापा ने सुनैना को फ़ोन किया और पता किया कि कहा पर है। सुनैना को पता बताने पर प्रमोद और मोहन जी गए और मोहन जी ने सुनैना को ब बहुत डांटा ये क्या बचपना है तुम मेरे पास आती ऐसे ही अकेले सबकुछ कर लिया ।
मेरे अस्तित्व को चोट पहुंच रही थी पापा । इसलिए मैंने घर छोड़ देना ही उचित समझा।और मुझे पता है प्रमोद कि विकलांगता तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं है और मैं अब लंगड़ा कर चलती हूं । नहीं नहीं सुनैना बहुत शर्मिन्दा हूं मैं मुझे माफ़ कर दो और घर चलो ।अब मुझे समझ आया कि किसी अपने के साथ कोई दुर्घटना हो जाए तो उसको यूं नहीं छोड़ दिया जाता ये समझ आ गया मुझे।
प्रमोद सुनैना को लेकर घर आ गया और सुनैना को गले लगाकर बोला मुझे माफ़ कर दो सुनैना अब आगे से ऐसा कभी नहीं होगा।अब मैं और तुम और ये मेरा नन्हा सा शहजादा साथ साथ रहेंगे ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
21 जून