ताली एक हाथ से नही बजती -लक्ष्मी  त्यागी :  Moral Stories in Hindi

शुभा ,आज सुबह -सुबह अपने घर आ गयी ,बिना कोई 

 दिए, लड़की इस तरह घर में आई है ,तो घरवालों के लिए चिंता का विषय बन जाता है ,जिसमें कि वो एकदम शांत थी ,उसके चेहरे पर कोई ख़ुशी नहीं थी। उसके उदास चेहरे को देख घरवाले अत्यंत परेशान हो गए। आखिर ऐसा क्या हुआ है ?जो इसे इस तरह बिना सूचना दिए ,मायके आना पड़ गया। 

शुभा !क्या हुआ ? इस तरह यहां कैसे ?उसकी माँ उसके करीब आकर पूछती हैं। 

क्यों ?क्या मैं अपने घर नहीं आ सकती , क्रोध से शुभा बोली। 

उसकी मम्मी जानती थी, कि शुभा थोड़ी गुस्से वाली है, इसलिए वो बोलीं – यह घर तुम्हारा ही है, तुम इस घर में नहीं आओगी तो और कहां जाओगी लेकिन इस तरह तुम्हारा सुबह-सुबह आ जाना, कुछ उचित नहीं लग रहा है , क्या दामाद जी साथ पर नहीं आए हैं ? 

नहीं ,

क्यों ?

मुझे उनसे कोई लेना- देना नहीं है , वो चाहे जो करें, मुझे क्या? वह लापरवाही से बोली और अपने कमरे में चली गई। 

शुभा की मां, तुम उससे पूछो !वह इस तरह घर छोड़कर यहां क्यों आई है? दामाद जी, उसके साथ  क्यों नहीं आए हैं ? मुझे लगता है, इन दोनों में झगड़ा हुआ है। 

यह क्या बचपना है? तुम समझदारी से काम क्यों नहीं हो लेती हो ? इस तरह क्या कोई अपने घर से लड़ कर आता है। 

क्या सारी समझदारी का ठेका मैंने हीं ले रखा है , मुझसे ही क्यों, सारी समझदारी की अपेक्षा रखी जाती है ? 

 अब तुम्हें यह बचपना छोड़कर, समझदार हो जाना चाहिए। 

आप ,यह क्या बेकार की बातें लेकर बैठ गयीं ? 

चलो! मैं बेकार की बात कर रही हूं, अब तुम मुझे बताओ ! तुम यहां क्यों आई हो ? क्या दामाद जी से झगड़ा हुआ है ? यदि झगड़ा हुआ भी है तो तुम दोनों को वहीं पर सुलझा लेना चाहिए था, इस तरह लड़कर यहां नहीं आना चाहिए था इससे तो बात और बिगड़ती है। 

आपको तो बस मुझमें ही कमियां नजर आती हैं , कभी आपने सोचा है, मैं वहां किस तरह से रह रही हूं, कैसे-कैसे समझौते कर रही हूं और अभी भी आप मुझे ही समझा रही हैं ,नाराज होते हुए शुभा बोली। 

अच्छा यह तो बताओ ! क्या बात हुई थी ? 

मैं कपिल से कई दिनों से कह रही थी -बहुत दिन हो गए हमें कहीं घूमने जाना चाहिए , उन्होंने भी ‘हां ‘कह दी , मैंने घूमने जाने के लिए सारी तैयारियाँ  कर ली थीं  किंतु एन मौके पर, कहने लगे -हमारा जाना नहीं हो पाएगा। जब उन्होंने मुझे यह कहा तो मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ और मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा -आप हमेशा इसी तरह से मुझे धोखा देते आ रहे हो, कब तक यह बातें बर्दाश्त करती रहूंगी ?

क्या उन्होंने यह जानबूझकर किया ? वह तुम्हें दुख देना चाहते थे, या परेशान करना चाहते थे। रत्ना जी ने पूछा। 

मुझे ऐसा लगता तो नहीं है, किंतु हर बार ऐसे ही हो जाता है , मुझे लगता है, वो मुझे मूर्ख बना रहे हैं।

 अब यह कार्यक्रम किस कारण रद्द हुआ ?

वही उनके ऑफिस का कोई कार्य था , छुट्टी के दिन भी कार्य आ गया। 

तब इसमें उनकी क्या गलती है ?उनकी मजबूरी है ,वो तो तुम्हारे साथ जाना चाहते थे ,उन्होंने इंकार थोड़े ही किया है ,आराम और शांति तो हर कोई चाहता है। चलो !माना कि तुम अपनी जगह सही हो। तुम इतने दिनों से उनके साथ रहकर समझौता कर रही हो। इस बात पर घर छोड़कर यहां आने की क्या आवश्यकता थी ? 

और क्या करती ?आपको मालूम नहीं है ,आज उन्होंने मुझ पर हाथ उठाने का प्रयास किया। 

क्या, कह रही है ? रत्ना जी आश्चर्य से बोलीं -ऐसा क्या हो गया था ,जो उन्होंने हाथ उठाने का प्रयास किया। 

बस मैंने तो इतना ही कहा था -आपका हर बार का यही होता है ,अब मुझे कहीं नहीं जाना। 

बस इतनी सी बात पर हाथ उठा दिया ,माँ ने पूछा। 

ये बातें शुभा के पिता ने भी सुनी और उन्हें भी क्रोध आया तब उन्होंने क्रोधावेश  में अपने दामाद जी को फोन लगा दिया और उन्होंने कपिल को ,शाम को दफ्तर से सीधे घर पर ही बुला लिया। दिनभर शुभा मुँह फुलाये बैठी रही किन्तु सहेलियों  से मिलना फोन करना ये नहीं छोड़ा, उसे पता नहीं था ,कि शाम को उसके पति कपिल आ रहे हैं।

रात्रि में अपने पति को सामने देख ,वह आश्चर्यचकित रह गयी और पूछा – तुम यहां कैसे ?

क्यों ? तुम यहाँ  शिकायत करने आ सकती हो और मैं अपना पक्ष रखने  भी नहीं आ सकता। 

कौन सा ? पक्ष ! अब मैं तुम्हारे संग घर वापस नहीं जाउंगी। 

मैंने कब कहा ?कि मैं तुम्हें लेने आया हूँ ,वो तो पापा जी ने बुलाया था इसीलिए यहाँ चला आया। 

कपिल की बात सुनकर शुभा ”आग बबूला हो उठी ”और बोली -देखा ,मम्मी ! इनकी  नजर में मेरा ये सम्मान है। 

वो तो बाद की बात है ,पहले दामाद जी !आप ये बताइये !आपने हमारी बेटी पर हाथ क्यों उठाया ?

नहीं, मैंने कोई हाथ नहीं उठाया,आप ही बताइये ! हम दोनों ने बाहर जाकर घूमने का कार्यक्रम बनाया था किन्तु अचानक मेरी छुट्टी रद्द हो गयी , मुझे बुला लिया गया क्योंकि ऊपर से काम दबाब ज्यादा आ गया था। मुझे मजबूरी में अपना वो कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। मुझे भी तो दुःख हुआ ,कार्यक्रम रद्द होने की सुनकर इसने सीधे मुझे धक्का दिया ,इसने ये भी नहीं देखा कि मुझे वहां रखी अलमारी से चोट लग गयी ,कहते हुए उसने अपनी कोहनी पर लगी चोट दिखलाई। अब आप ही बताइये ! क्या ये छुट्टी मैंने जानबूझकर रद्द की ,मेरी भी तो मजबूरी थी। वो कम्पनी मेरे बाप की तो नहीं है ,मैं उन लोगों से कह दूँ -हम नहीं आएंगे ,हम घूमने जा रहे हैं। नौकरी नहीं करूंगा तो आपकी बेटी के शौक कैसे पूर्ण होंगे ?

हाँ ,सारा खर्चा मेरा ही तो है ,तुम्हारी सारी कमाई मैं अपने ऐशो -आराम में ही तो उड़ा देती हूँ। 

सारा वेतन तो तुम ही ले लेती हो। 

अच्छा !झगड़ों मत !पहले ये बताओ !हमारी बेटी घूमने नहीं जा सकी इस बात का उसे दुःख हुआ उसने अनजाने ही आपको धक्का भी दे दिया। तब हाथ उठाने की नौबत कैसे आई ? शुभा के पिता ने गंभीरता से पूछा।

 अपनी बेटी से ही पूछ लीजिये ! 

इस बात पर शुभा शांत हो गयी ,तब कपिल बोला -इसने मुझे धक्का दिया मुझे अपनी कम्पनी में जाना था ,तब भी मैंने इसे समझाना चाहा ,तब इसने मुझे न जाने कितनी बातें कहीं ? मुझे भोजन भी नहीं दिया ,यहां तक कि ये मेरी बहन ,माँ तक को गाली देने लगी ,उन्होंने भला इसका क्या बिगाड़ा है ?बातों ही बातों में मुझे भी गुस्सा आ गया और क्रोध में मैंने अपना हाथ उठाया किन्तु रोक लिया। अब आप ही बताइये !मेरी गलती कहाँ है ?यदि आपको मेरी गलती लगे ,तो आपके घर आया हुआ हूँ ,मुझे दंड दे सकते हैं ,मैं तैयार हूँ। 

अपने दामाद की बात सुनकर दोनों पति -पत्नी अंदर गए और कुछ देर पश्चात बाहर आये और बोले -दामाद जी !पहले आप भोजन कीजिये !उनको गंभीर देखकर ‘कपिल’ समझ नहीं पा रहा था, ये क्या करना चाहते हैं ?किन्तु उसने चुपचाप भोजन किया ,कुछ देर पश्चात उनकी बेटी का बैग उसी कमरे में आ गया था। 

तब वो बोले -हमारी बेटी ने आपके साथ ऐसा अनुचित व्यवहार किया ,इसके लिए हम आपसे क्षमा चाहते हैं। अब ये यहां नहीं रहेगी ,आपके साथ अपने घर जाएगी ,तब रत्ना जी शुभा से बोलीं -झगड़े किस पति -पत्नी में नहीं होते, थोड़ी- बहुत अनबन तो होती ही रहती है किन्तु तुमने इन्हें धक्का दिया ,क्या ये तुम्हें शोभा देता है ,ये तुम्हारे पति हैं ,जिनके सुख -दुःख में साथ निभाने का तुमने वचन लिया हैं। उन्होंने जानबूझकर तो ऐसा नहीं किया था ,वे भी तो जाना चाहते थे ,उनकी मजबूरी हो गयी। यदि तुमने इनकी माँ को कुछ कहा है ,तो समझो !अपनी माँ को गाली दी है।

 हमने दोनों की बातें सुनी ,और इससे हमें लगा -”ताली दोनों हाथों से बजती है ,एक हाथ से नहीं ” तुमने इन्हें  इतना भला -बुरा कहा ,इन्होने हाथ उठाने पर मजबूर होकर भी अपने को रोक लिया। तुमने भी तो इन्हें धक्का दिया जिसके लिए तुम्हें इनसे माफी मांगनी चाहिए और अब दोनों अपने घर जाओ ! प्रेम से रहो !इस बात को अब और मत बढ़ाना !यहीं पर सारे गीले -शिकवे छोड़कर जाना,पिता ने आदेश दिया।  

अगली बार आओ !तो दोनों साथ में ,ख़ुशी -ख़ुशी आना ,कहते हुए ,उन्होंने कपिल से कहा -अभी इसका बचपना नहीं गया है ,आपका दिल बड़ा है ,इसे माफ कर देना ,कहते हुए दोनों को आशीर्वाद देकर विदा किया। इस प्रकार माता -पिता की समझदारी ने उनके मध्य आई, क्रोध की लहर को मिटा दिया।  

             ✍🏻लक्ष्मी  त्यागी

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