“हेलो नेहा, कैसी है ?सुनीता ने अपनी कजिन नेहा से फोन पर पूछा।
“ठीक हूं , 15 दिन से ससुराल आई हुई हूँ।” नेहा ने जवाब दिया। “क्या ? 15 दिन से, वहां जीजाजी और बच्चे कैसे मैनेज कर रहे हैं।” सुनीता ने थोड़ा परेशानी वाले अंदाज में पूछा।
” कर रहै है । यहां मदर इन लॉ की तबीयत काफी खराब थी। अभी इतना सफर भी नहीं कर सकती थी।कि वहाँ ले जाती। इसलिए मैं आ गई और यही रहकर देखभाल कर रही हूँ।” नेहा ने आराम से बताया।
” यह तो बड़ा गलत है ।पति और बच्चों को इतना कष्ट दो। जीजा जी नौकरी करें या बच्चे और घर संभाले।” सुनीता ने कहा।”
“दोनों ही काम जरूरी है सुनीता। अगर मेरी मां बीमार हो तो मैं भाग कर जाऊं। सास बीमार है तो सोचू मेरा तो घर डिस्टर्ब होगा। आने में आनाकानी करु तो इधर पति परेशान होगा। उधर ननद सोचेगी की भाभी नहीं जा रही तो मैं जाती हूं।” नेहा ने आराम से कहा।
” तो फिर क्या है? अगर तेरी ननद आके अपनी मां को संभालती।” सुनीता ने पूछा।
” है तो कुछ नहीं पर अगर मेरी ननद आकर संभालती तो नरेन (नेहा का पति ) की परेशानी कम नहीं होती ।वो परेशान तो रहता ही साथ ही उसे अपने मां बाप और बहन के आगे एक अजीब सी शर्म भी आती की उसकी वाइफ तो माँ को सम्भालने गई नहीं।इसलिए बहन को जाना पड़ा।सुनीता, पति के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है। यह बिल्कुल गलत है। मम्मी कहती है पति के दिल का रास्ता उसकी मां के दिल से होकर आता है अगर उसकी मां को आप अच्छी तरह रखती है उसका दिल आपको दुआएं देता है तो समझो आपने पति के दिल में अपने लिए जगह बना ली। ” नेहा ने कहा।
” इसका मतलब यह इतनी पुरानी कहावत कि पति के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है। गलत है और जो तुम कह रही हो वह सही है” सुनीता ने एक प्रश्नवाचक सा वाक्य बोला।
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” प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? तुम अपने मायके जाओ ,भाभी तुम्हारी बहुत खातिर सेवा करें , तरह-तरह के व्यंजन खिलाए , होटल पिकनिक खूब हो पर तुम्हारी मां को ढंग से खाना न पूछे, दवाई न ला कर दे तो क्या भाभी को तुम दिल से प्यार करोगी? तुम ऊपर ऊपर से भाई भाभी से रिश्ता निभाने की खातिर हंस-हंसकर उनसे बात करोगी।
वह एक समझौता है रिश्तो का। जब मायके से वापस आओगी तो आंखों में आंसू और दिल भारी होगा। वह मां से बिछड़ने के कारण नहीं बल्कि मां दुखी है, भाभी उसको अच्छी तरह नही रखती, इस कारण । दूसरी तरफ भाभी , मां को बहुत अच्छी तरह रखती है समय पर खाना, दवाई देती है तो आप मायके से खुशी और विदाई के आंसुओं के साथ आयोगी।” नेहा ने विस्तार से समझाया।
” हां यह बात तो तुम ठीक कह रही हो नेहा। भाभी तभी अच्छी लगती है अगर वह हमारी मां की सेवा करती हो” सुनीता ने सहमति वाले अंदाज में कहा।
” तो यही तो मैं कह रही हूं। ऐसे ही पत्नी पति को तभी मन से अच्छी लगेगी अगर वह उसकी मां को अच्छी तरह रखती है। वह निश्चिंत होकर काम पर जाएगा, निश्चिंत होकर लौटेगा, वहां अपना काम भी पूरी तन्मयता से करेगा क्योंकि घर कि उसे कोई चिंता नहीं। शाम को मां का दुखी चेहरा या कोई शिकायत उसको नहीं सुनने और देखने को मिलनी।” नेहा ने फिर कहा।
” हां, यह तो है। पति काम भी अच्छे से करेगा और उसकी सेहत भी ठीक रहेगी पर यार यह सासे भी तो सब करवाने वाली नहीं होती। टोका टाकी करती रहती हैं।” सुनीता ने फिर एक प्रश्न सा उछाल दिया ।
“तुम ठीक कह रही हो सुनीता। बस वैसे ही सोचना है जैसे हम अपनी मां के लिए सोचते हैं कि मम्मी तो इस उम्र में नहीं बदलेगी। भाभी को ही समझना होगा।” नेहा ने आराम से कहा।”
“वह तो नेहा ठीक है, पर कई सासे तो सुबह से शाम तक बोलती ही रहती है यह क्या कर दिया, हमारे घर में ऐसे नहीं होता, हम ऐसे नहीं खाते। मेरी सास तो खुद ऐसे करती है। शुरू शुरू में तो मैं बहुत परेशान हुई ।अब तो मैं ढीठ हो गई, बोलते रहो कुछ फर्क ही नहीं पड़ता। पहले सहन नहीं होता था तभी जवाब देती थी। अब मैं परवाह नहीं करती। अपने कमरे में आकर टीवी चला कर बैठ जाती हूं।” सुनीता ने अपना दुख बयां किया।
” ठीक करती है पर थोड़ा गलत हो गया।”
” गलत क्या हो गया?” सुनीता ने नेहा को बीच में ही टोका।
” गलत यह हो गया कि जो तुम अब चुप रहती हो अगर यह पहले दिन से किया होता तो तेरे पति को इतना दुखी न होना पड़ता, तेरी ननदो से भी तेरे रिलेशन ज्यादा अच्छे होते, मायके में तेरी मदर दुखी न होती की मेरी बेटी परेशान है । उसे ससुराल अच्छा नहीं मिला। तेरे बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते की मां की सेवा करनी होती है उन्हें पलट कर जवाब नहीं देना होता।” नेहा बोल रही थी। सुनीता फिर बोली,” तो क्या चुपचाप सुनती रहती और घुट घुट कर मरती रहती?”
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” नहीं मैंने ऐसे नहीं कहा। बचपन में एक कहानी तूने जरूर सुनी होगी कि एक सास बहू में बहुत लड़ाई होती थी। सास एक दिन एक फकीर के पास जाती है और कहती है, बाबा घर में बहुत क्लेश रहता है, कोई उपाय बताओ। बाबा कहता है उपाय जरा मुश्किल है, कर पाओगी। सास कहती है, बाबा जी आप उपाय बताओ।
घर की शांति के लिए मैं सब कर लूंगी। फकीर उसे मंत्र फूंक कर दो आने देता है और कहता है सुबह उठते ही इन्हें दांतो के नीचे दबा लेना। रात को सोने के समय तकिए के नीचे रखकर सोना है। सुबह उठते ही फिर रख लेना है। पैसे गिरने नही चाहिए। खाना खाने के लिए निकालना है पर सिर्फ मुंह से खाना ही खाना है।
खाना खाने के बाद यह अभिमन्त्रित पैसे दाँतो के नीचे फिर रख लेना है ।एक महीना ऐसे ही करो, फिर महीने बाद आना। इससे घर में बिल्कुल शांति हो जाएगी। अब घर में बहू कुछ बोलती है तो सास पैसे गिर जाएंगे इसलिए मुंह नहीं खोलती ।बहू बोल बोल कर चुप हो जाती है ।दो-तीन दिन बीच-बीच में बहू को किसी बात पर गुस्सा आता है फिर बोलती है पर सास की तरफ से कोई जवाब नहीं आता तो वो फिर चुप हो जाती है। धीरे धीरे घर मे शांति हो जाती है।
महीने के बाद सास फकीर के पास जाती है, कहती है, बाबा जी बहुत-बहुत शुक्रिया, मेरा घर तो स्वर्ग बन गया। आप के अभिमंत्रित करके दिए पैसों ने बहुत काम किया। फकीर ने सास से कहा, मैंने कोई मंत्र नहीं फूंका ।बस तुम्हें चुप कराना था ।पहले बहू कुछ कहती थी तो तुम बराबर जवाब देती थी जिससे क्लेश बढ़ता था ।अब तुम चुप रहती थी कि कही पैसे न गिर जाए । तो वह भी एक-दो दिन के बाद चुप रहने लगी।
“ओहो, सुनीता मैं तो तुम्हें बच्चों की तरह कहानी सुनाने लग गई ।बोर ही कर दिया।” नेहा ने कहा ।
“नहीं यार तूने तो मेरी आंखें खोल दी। वास्तव में अगर मैं शुरू से ही चुप रह जाती तो क्या फर्क पड़ जाता। एक्चुअली हमारी ईगो इतनी बड़ी होती है कि हम सोचते हैं इसने ऐसे कह कैसे दिया, मैं अभी दूध का दूध और पानी का पानी करती हूँ। यह कहावत किसी ने बिल्कुल ठीक कही है कि लस्सी और लड़ाई को जितना मर्जी बढ़ा लो। हम कहां से शुरू हुए थे नेहा कि पति के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है और कहां पहुंच गए पर आज सच में मैंने बहुत सीखा।” सुनीता ने कहा।
” पर सुनीता तब सब ठीक होगा जब सारी दुनिया की बेटियां और बेटे अपनी मां की तरफ से बेफिक्र हो जायेंगे।” नेहा ने कहा।
” ऐसा क्या हो सकता है? कैसे होगा? मुझे तो यह असंभव लगता है।” सुनीता के मन में संशय था यह कहते हुए।
” यह बहुत आसान है ” नेहा ने कहा। “वह कैसे यार?” सुनीता बोली।
” बस सारी लड़कियां और लड़के अपनी अपनी सास की अपनी मां की तरह ही फिक्र करने लग जाए। उनके प्रति भी उतने ही संवेदनशील बन जाए। हर घर स्वर्ग बन जाएगा।” नेहा ने कहा।
” हूँ, कह तो तुम बिल्कुल ठीक रही हो। मैं तो आज से ही यह मंत्र अपनी बेटी और बेटे दोनों को ही देती हूं।”सुनीता ने पूर्ण आश्वस्त शब्दों में कहा।
डॉ अंजना गर्ग