जय सियाराम रामेश्वर!”
“जय सियाराम विशनू भाई!”
“और क्या हाल चाल हैं रामेश्वर?”
“सब बढ़िया तुम बताओ कैसे हो?”
“हम भी ठीक हैं…बिटिया देवकी के लिए कोई रिश्ता देखा कि नही?”
“अभी तो नही विशनू!”
“अब तो बिटिया सयानी हो गई है कब करोगे शादी!”
” अरे! विशनू अभी तो बिटिया छोटी है अभी क्या जल्दी है!”
” क्यों तेईस साल की तो हो गई है उसकी ग्रेजुएशन भी पूरी हो गई… लड़का- वड़का देखो तब तक दो तीन साल निकल जायेंगे पता भी नही चलेगा!”
“हां तुम कह तो सही रहे हो विशनू… तुम्हारी नजर मे कोई हो तो बताओ?”
“हां एक लड़का है पढ़ा लिखा अच्छी कंपनी में नौकरी करता है। अच्छी तनख्वाह है अपना खुद का घर है और जमीन भी है उस पर खेती होती है!”
” ठीक है तुम चलोगे मेरे साथ?”
अरे! रामेश्वर कैसी बात करते हो चलूंगा क्यो नही? जब तुम कहो चल दूँगा… देवकी मेरी भी बेटी समान है!”
रामेश्वर और विशनू लड़का देखने गये… रामेश्वर ने लड़के मे कई कमियां निकाली और विशनू से कहा कि, “मुझे तो अपनी बेटी के लिये सरकारी नौकरी वाला लड़का चाहिये!”
“ठीक है रामेश्वर जब कोई सरकारी नौकरी वाला लड़का नजर आयेगा तो जरूर बताऊँंगा!”
रामेश्वर के तीन बेटे और दो बेटियां थी। उसकी पत्नी को गुजरे हुए कई बरस हो गये थे… बड़ी बेटी और दोनो बेटो की शादी उनकी मां के सामने हो गई थी जब तक मां जीवित थीं तब तक सब बेटे बहू एक ही साथ रहते थे। पर मां की मृत्यु के बाद दोनो बेटे घर से दूर अलग रहने लगे थे। अब तीन चार साल से रामेश्वर और उसकी बेटी देवकी एक साथ रहते थे।
देवकी पढ़ाई के साथ घर का सारा काम करती और अपने पिता के लिये अच्छे-अच्छे पकवान बनाती … पिता भी रोज खाने की नई-नई फरमाईश करता देवकी को भी खाना बनाने में रूची थी इस लिये वो पिता की पसंद की चीजे बनाती रहती थी।
रामेश्वर थोड़ा लालची और कंजूस किस्म का आदमी था! वो सोचता देवकी की शादी में ज्यादा खर्च ना करना पड़े इसलिये वो जितना हो सकता था नये नये बहाने कर के टालता रहता था। साथ ही उसे लगता कि देवकी ससुराल चली गई तो मेरे लिये तरह-तरह के खाने कौन बनायेगा! सारे काम कौन करेगा! घर कौन संभालेगा!
इसी लिये जब भी कोई लड़का बताता रामेश्वर उसमे कोई न कोई कमी निकाल कर शादी के लिए मना कर देता…ऐसे करते-करते तीन बरस और गुजर गये देवकी अब छब्बीस की हो गई… उसकी लगभग सभी सहेलियों की शादी हो गई! उसकी सहेलियां पूछती, “देवकी तुम शादी कब कर रही हो?”
“जब पिता जी करेंगे तब कर लूंगी!” देवकी कह कर मुस्कुरा देती। दिन गुजरते गये, अब तो लोगों ने रामेश्वर को लड़के बताना भी बंद कर दिया था!
देवकी अब उन्तीस की हो रही थी पर उसके पिता रामेश्वर को उसकी शादी को लेकर कोई उत्सुकुता नही थी। वो अपने सिवा किसी के बारे में नही सोचता था। देवकी के चेहरे की रौनक खोने लगी थी! उसका रूप रंग ढलने लगा था। वो अब ज्यादा किसी से बातचीत भी नहीं करती थी! उसकी सभी सहेलियों की शादी हो चुकी थी! लगभग सभी एक-एक दो दो बच्चो की मां भी बन चुकी थीं!
अब तो रिश्तेदार पास-पड़ोसी मोहल्ले मे लोग-बाग रामेश्वर के बारे में तरह तरह की बातें भी करने लगे थे! कि “रामेश्वर अपनी बेटी की शादी करना ही नही चाहता!”
वो बहुत स्वार्थी हो गया है, वो जानता है कि, “बिटिया का घर बसा दिया” तो हमारी सेवा टहल कौन करेगा! मेरा खाना पीना कौन बनायेगा!” आदि ! आदि!
देवकी के अपना घर परिवार बसाने के सुनहरे सपने धीरे धीरे धूमिल होते गये! आज उसका पचासवां जन्म दिन है! और रामेश्वर नब्बे बरस के हो चुके देवकी आज भी अपने पिता की सेवा टहल मे लगी रहती है! अभी भी रामेश्वर के मन में कोई मलाल नहीं है कि उसने अपने स्वार्थ पूर्ति के लिये अपनी ‘बिटिया का घर नही बसने दिया’!
समाज में अब भी ऐसा माता पिता हैं जो अपने बच्चों के सपनो की उड़ान भरने की चाहत को अपने स्वार्थ की भेंट चढ़ा देते हैं!!!
(स्वरचित)
सुनीता मौर्या ” सुप्रिया”
#बिटिया का घर बसने दो… प्रतियोगिता पर आधारित