सुर – संगीत – रंजना आहूजा : Moral Stories in Hindi

कल लतिका के छोटे से संगीत केंद्र का शुभारंभ होने जा रहा है । सारी तैयारियां कर रात को बिस्तर पर लेटी तो पुराने घटनाक्रम चलचित्र की भांति मस्तिष्क में चलने लगे ।

       छोटी सी लतिका और उसके माता पिता का छोटा सा संसार । पिता की सीमित आय में भी तीनों सुखी थे । अपनी लाडली बिटिया के बचपन से ही संगीत से लगाव को देख उसके माता पिता कस्बे से लगे शहर के कला केंद्र में  भेजने लगे । 7 साल की लतिका को स्कूल के बाद मां छोड़ आती और पिता शाम को ले आते । उसकी आवाज सुन लोग कहते  इसके गले में तो साक्षात सरस्वती विराजमान है ।

तीन साल का प्रशिक्षण  पूरा होने पर संगीत केंद्र में एक प्रतिस्पर्धा रखी गई , जिसमें लतिका को प्रथम स्थान मिला । शाम के 7 बज चुके थे । सभी अपने घर जा चुके थे । लतिका कला केंद्र की सीढ़ियों के किनारे अपने माता पिता का इंतजार कर रही थी । स्कूटर पर अपने मातापिता को देख कर उसने खुशी से हाथ हिलाया , तभी एक तेज रफ्तार गाड़ी ने स्कूटर को जोरदार टक्कर मार दी ।

लतिका चीख कर वहीं बेहोश हो गई ।  पुलिस आई जांच कर दोनों शव उठा कर ले गई । शहर में लतिका और उसके माता पिता को कोई नहीं जानता था । अतः किसी को पता ही नहीं चला कि जिनका एक्सीडेंट हुआ लतिका उनकी बेटी है ।

होश में आने पर लतिका को टूटी हुई स्कूटर और कुछ खून के निशान के अलावा कुछ न दिखा । डरी सहमी लतिका रात भर सीढ़ियों पर बैठी रही । सुबह इधर उधर भटकते देख किसी ने अनाथ जानकर बाल आश्रम छोड़ दिया ।

    बाल आश्रम में आठ दस बच्चे थे। लतिका किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी, बस हां हुं में ही जवाब देती । जो रूखा सूखा मिलता चुपचाप खा लेती।  अकेले में माता पिता को याद कर रो लेती । गाना गाना तो भूल ही गई थी । वह बालआश्रम सहायिका की छोटे छोटे काम में मदद कर देती । सहायिका ने एक दो बार परिवार के बारे में पूछा तो बस रो देती थी , इसलिए उसने ने भी ज्यादा पूछना उचित नहीं समझा ।

चार पांच साल बीत गए । अब आश्रम सहायिका लतिका को बाज़ार से समान लाने भी भेज देती थी। एक दिन सब्जी लेने गई , तो कला केंद्र की प्राचार्या सुलोचना देवी  ने उसे देख लिया । सुलोचना देवी थोड़ी असमंजस में थी कि ये लतिका ही है या कोई और ।  फिर उसने आवाज दी ,   लतिका …।

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लतिका तो अपना नाम भी भूल गई थी ,क्योंकि आश्रम में सभी उसे गुड्डी कहते थे। लतिका नाम किसी को पता ही नही था । लतिका ने सुलोचना देवी की ओर देखा भी नहीं और आश्रम वापस जाने लगी । पर सुलोचना देवी उसे कैसे भूल सकती थी , उसकी मधुर आवाज , उसका मासूम चेहरा । सुलोचना देवी उसके पीछे पीछे आश्रम पहुंच गईं । फिर से आवाज दी,  लतिका ! रुको ।

लतिका को अहसास हुआ, कोई उसे ही पुकार रहा है । इतने में सहायिका बाहर आई , पूछा ,कौन हैं आप ?  ये लतिका नहीं गुड्डी है । सुलोचना देवी ने कहा , ये लतिका ही है । इधर आओ लतिका ,कह कर उसका हाथ पकड़ा । आश्रम सहायिका बोली, आपको कोई गलतफहमी हुई है ।

ये गुड्डी है । सुलोचना देवी ने लतिका के सर पर हाथ फेरते हुए पूछा , तुम यहां कैसे पहुंची लतिका ? प्रतिस्पर्धा वाले दिन के बाद से तुम आई ही नहीं ।  क्या हुआ ? सहायिका बोलने लगी , आप समझ क्यों नहीं रहीं ये लतिका नहीं है  ……

लतिका फुट फूट कर रोने लगी । सहायिका आश्चर्य से लतिका को देखने लगी । पूछा , तुम लतिका हो ? 

लतिका ने सिर हिला कर हां कहा ।

सुलोचना देवी ने पूछा, बेटा ,क्या हुआ मुझे बताओ ।

तब लतिका ने अपने मातापिता के एक्सीडेंट वाली घटना बताई ।

बेटा , अपने रिश्तेदारों के पास जाती या तुम कला केंद्र आ जाती,  मुझसे मिल लेती ।

लतिका रोते रोते बोली, मैडम मुझे तो होश ही नहीं था । कुछ समझ ही नहीं आ रहा था । बस इतना पता था , मेरे मां बाबा नहीं रहे । किसी रिश्तेदार को नहीं जानती थी । बाबा कस्बे के कारखाने में मैनेजर बन कर आए ,तब से हम वहीं रहते थे । बाबा ने छोटा सा घर ले लिया था ।

रात भर डरकर कला केंद्र की सीढ़ियों पर बैठी रही । सुबह इधर उधर भटक रही थी ,तो कोई इस आश्रम में छोड़ गया ।

सुलोचना देवी उसे अपने साथ कला केंद्र ले आईं । उन्होंने उसे फिर से संगीत की शिक्षा देनी आरंभ की  और कला केंद्र में ही उसके रहने का प्रबंध किया । जीवन संगीत फिर से लय पकड़ने लगा । कुछ समय बाद लतिका वहीं छोटे बच्चों को संगीत सिखाने लगी । सुलोचना देवी ने दसवीं, बारहवीं की प्राइवेट परीक्षा दिला कर संगीत में ही स्नातक स्नातकोत्तर करवाया ।  एक दिन लतिका सुलोचना देवी से अपने कस्बे जाने की इजाजत ले कर

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कस्बे पहुंची । इतने सालों में बहुत कुछ बदल गया था । अपने घर पहुंची । घर पर ताला लगा था ,जो सालों से नहीं खुला था । ताला खुलवाकर अंदर गई । जाले,धूल मिट्टी और खाली जर्जर मकान में बसीं यादें आंखे नम कर गईं । उसने घर की साफ सफाई और मरम्मत करवाई। इसी छोटे से घर में अपना संगीत केंद्र खोलने का निश्चय किया ।

      यही सब सोचते सोचते उसे नींद आ गई ।

       सुबह सुलोचना देवी के साथ पूजा की और उन्ही के हाथों संगीत केंद्र का शुभारंभ करवाया । भरी आंखों से सुलोचना देवी के चरणों में झुक गई लतिका । कहा , मैडम आपने मेरे जीवन में फिर से संगीत भर दिया । सुलोचना देवी ने उसे गले लगाकर कहा , बेटा प्रतिभा निखर कर ही आती है । और फिर ये जीवन भी तो संगीत की तरह ही है, कभी दुख भरे गीत ,तो कभी सुमधुर संगीत ।

लेखिका : रंजना आहूजा

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