सोने की कानबाली – संजीव कुमार : Moral Stories in Hindi

    बिहार के नालंदा के कचहरी में मुंशी राम अवतार जी आज भी बरसों पुरानी साइकिल  से ही काम पर जाते हैं। पिछले कई सालों से यह उनका रोज का नियम था, वो बड़े ही ईमानदार आदर्शवादी और सिद्धांतवादी व्यक्ति थे। जो तनख्वाह मिलती उसी में गुजर बसर करते ऊपरी आमदनी के नाम पर एक पैसा भी लेना उनके जमीर को गंवारा न था।कहते भी हैं एक ईमानदार व्यक्ति के सामने लाखों बेईमान लोग सर ऊंचा नहीं उठा सकते ।

         कोर्ट कचहरी ऐसी जगह है जहां न्याय व्यवस्था के नीचे भ्रष्टाचार की बीज अंकुरित होते है और विशालकाय पेड़ बनते हैं । वैसे तो उनकी तनख्वाह महीना खत्म होने से पहले ऐसे उड़ जाती थी जैसे गरम तवे पर कुछ पानी की बूंदें डालने पर उड़ जाती है। राम अवतार जी को रूपए पैसे की तंगी मंजूर था लेकिन किसी की क्या मजाल जो उनके जमीर को रूपयों से खरीद सके। अपने उसूलों पर जीवन जीने वालों का एक अलग ही नशा होता है।

      उनका परिवार तीन लोगों का है पत्नी फूलमती और बेटी नयना। आज राम अवतार जी की शादी की 25वीं सालगिरह है।

          कचहरी का काम समाप्त करने के बाद राम अवतार जी अपनी पुरानी साइकिल से घर की ओर चले। रास्ते में सूरजमल ज्वेलरी के दुकान पर जाकर उन्होंने सोने की एक जोड़ी कानबाली खरीदी।कानबाली खरीदने के लिए उन्होंने बरसों थोड़े-थोड़े पैसे जोड़े थे। विवाह के अपने 25 में वर्षगांठ पर वह अपनी पत्नी के लिए उपहार में कानबाली देने को काफी उत्साहित थे।

       जैसे ही उन्होंने खुशी-खुशी घर में कदम रखा तो फूलमती और उनकी बेटी नयना हर दिन की तरह उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। नयना अपने आदर्शवादी पिता आदर्शों के साए में पलने वाली बड़ी संस्कारी लड़की थी । उसने अभी ग्रेजुएशन में दाखिला लिया था । कॉलेज के दिनों में और उस उम्र में जहां लड़कियां फैशन की दीवानी होती है वही सादगी पसंद नयना का फैशन से दूर तक कोई नाता नहीं था।

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कविता कहानी लिखने में उसे बेहद रूचि थी। अनुशासन के साथ रहना, घर साफ सुथरा रखना ,हर काम सलीके से करना और माता-पिता की हर बात मानना उसने अपने जीवन का आधार मान लिया था। नयना ने अपने स्कूल  कॉलेज के जीवन में कई अवार्ड और मेडल जीते थे। नयना को अपनी गरीबी का जरा भी अफसोस नहीं था बल्कि वह स्वाभिमानी और ईमानदार पिता के कारण हमेशा गर्व से अपना सर उठा कर चलती।

           पिछले कई सालों से राम अवतार जी ने दो कमरों का किराए पर मकान ले रखा था। घर में बस जरूरत का ही समान था। दो चारपाई एक पढ़ने की मेज कई किताबें और कुछ  रोजाना जरूरत में काम आने वाली वस्तुएं।

        राम अवतार जी जब काम से लौटते तो तीनों मिलकर बातें करतें किताबें पढ़ते और एक साथ गरमा गरम खाना खाते।

फूलमती भी सादा जीवन उच्च विचार को मानने वाली वाली महिला हैं । शादी के 25 सालों में उन्होंने आज तक अपने पति से कोई फरमाइश नहीं की। जो मिला वह पहनती जो घर में आता वो खाती और हमेशा खुश रहती, खूब मन लगाकर अपनी गृहस्थी को चलाती। पति काम पर जाते और बेटी कॉलेज जाती तो बचे समय में भजन कीर्तन करतीं।

आज जैसे ही राम अवतार जी घर में घुसे उनकी बेटी नयना ने माता पिता को खड़ा कर माला पहनाई ,आरती उतारी ,तिलक लगाई। इसके बाद विवाह के 25वीं सालगिरह की बधाइयां दी। फूलवती जी शरमा रही थी और उन्होंने आज बेटी के साथ मिलकर राम अवतार जी के पसंद का खाना बनाया था।

          रामावतार जी ने खुशी-खुशी सोने की कानबाली  अपने पत्नी के हाथों में रख दी। उन्होंने कहा कुछ साल पहले जब पड़ोस की कोई महिला आकर अपनी कानबाली दिखाई थी तो तुमने कहा था कितनी सुंदर कानबाली है। उसी दिन मैंने सोचा कि शादी की 25 सालगिरह पर मैं तुम्हें सोने की कानबाली ही उपहार में दूंगा तुम तो जानती ही हो इससे ज्यादा देने की मेरी हैसियत नहीं।

          सोने की कानबाली सामने देखकर फूलमती का हंसता मुस्कुराता चेहरा एका एक गंभीर हो गया। वह सिसक सिसक कर कर रोने लगी। आभूषण दुनिया भर की औरतों की सबसे बड़ी कमजोरी होती है और खासकर सोने के आभूषण पाकर खुश हो जाती है। भारतीय सोने के आभूषण की चाहत में रोती हैं यह कैसी औरत है जो सोने की आभूषण पाकर रो रही है।राम अवतार जी और नयना को माजरा समझ में नहीं आ रहा था।

     नयना ने तुरंत एक गिलास पानी लाकर मां को दिया ।  मां का रोना बढता ही जा रहा था और आंखों से निकलते हुए गरम लोर गालों से बहते हुए टप टप गिर रहे थे। शादी के 25 सालों बाद रामअवतार जी ने कभी भी फूलमती को ऐसे रोते हुए नहीं देखा था और सभी फूलमती को चुप करने की कोशिश में लगे थे।

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         फूलमती ने रोते-रोते हिचकियां लेते हुए कहा” सोने की कानबाली को तो मैंने उनका दिल रखने के लिए अच्छा कहा था। मेरे इस कानबाली से ज्यादा जरूरत तो आपको एक नई साइकिल की थी। पुरानी साइकिल तो हमेशा ही खराब होती रहती है।मुझे इससे ज्यादा खुशी तब होती जब मेरी कानबाली की जगह अपनी नई साइकिल खरीद लेते। बाइस चौबीस साल तक कोई भला पुरानी साइकिल को ठीक कराकर चलाता है क्या?  जब मैं बाजार सब्जी खरीदने या सामान लाने जाती हूं तो लोग आपकी ईमानदारी के कारण जो सम्मान देते है जीवन में उससे बड़ा उपहार मेरे लिए और क्या होगा। आपकी ईमानदार छवि ही मेरे लिए सबसे बड़ा आभूषण है।

           पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों का बड़ा ही विचित्र संयोग हो रहा था,।कोई महिला पति के जरूरत का ध्यान रखकर सोने के आभूषण ठुकरा रही थी।

     फूलमती ने जब तक यह वादा नहीं लिया कि  सोने की कानबाली लौटा कर नई साइकिल खरीदेंगे तब तक वह अपनी जिद पर अड़ी रही।

इसके बाद तीनों एक दूसरे से गले मिलकर रोने लगे

लेखक : संजीव कुमार

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