मां मेरा चयन हो गया है शालिनी चहकती हुई आई और मां सुमित्रा से लिपट गई।अब अपने भी सुख चैन के दिन आ गए मां।बस ये प्रशिक्षण फिर जॉब …सुनते ही सुमित्रा को लगा मानो सारा आसमान आज धरती पर सिमट आया है।लेकिन मां प्रशिक्षण और आवास के लिए जो फीस भरनी है वो बहुत ज्यादा है मै कहां से करूंगी पिता जी से बोलना बेकार है अब तो कोई उधार भी नहीं देता हमारे परिवार को कहती शालिनी दुखी भी हो गई।
शालिनी बहुत मेधावी छात्रा थी ।जन्म से एक पैर का लंगड़ा पन उसे मिला था जिसके कारण घर में भी और बाहर भी अक्सर उसे मजाक या उपहास का सामना करना पड़ता था।कई बार वह बहुत दुखी होती थी ।ऐसे अवसरों पर सुमित्रा हमेशा उसका हौसला बढ़ाती थी। सब तरफ से ध्यान हटा कर पूरा ध्यान पढ़ाई में ही लगाने का उत्साह जगाती रहती थी।वह अपनी बेटी को अक्सर यही समझाती थी कि बेटा अपनी जिंदगी बदलने का और दुनिया का नजरिया बदलने का एक ही रास्ता है शिक्षा का।जितनी ज्यादा पढ़ाई करती जाओगी तुम्हारा भविष्य और जिंदगी दोनों संवर जाएगी ।
सुमित्रा अपनी जिंदगी के कटु अनुभव अपनी बेटी के साथ दोहराना नहीं चाहती थी।
सुमित्रा पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी।रंग सांवला भी नहीं काला था उसका ।आर्थिक विपन्न परिवार की लड़की तिस पर काली विवाह कैसे होता।पिता थक गए वर ढूंढते ढूंढते और मां थक गई बेटी की और अपनी तकदीर कोसते कोसते।
एक दिन सुमित्रा के पिता देर रात घर आए तो साथ खुशखबरी भी लाए।सुधीर का रिश्ता पता लगा कर आए थे।लड़का अच्छा था सिर्फ एक पैर पोलियो ग्रस्त था उसका।थोड़ा लंगड़ा कर चलता था।ये बात सुनकर भी सुमित्रा की मां बहुत खुश थी कहने लगी तो क्या हुआ हमारी बेटी भी तो काली है ।सुधीर के घर वालों ने शादी की शर्त में दोनों हाथों के चार चार सोने के भारी कंगन मांगे थे।जिसे सुमित्रा के पिता ने किसी तरह उधार लेकर पूरा कर दिया था। बेटी की खुशी से समझौता एक जिम्मेदार पिता नहीं कर सकता।कंगन की वजह से ससुराल में ताने उलाहने बेटी की जिंदगी कष्टकारी ना बना दें पिता की चिंता यही थी।
सुमित्रा अपने उन सोने के कंगनों को जान से भी ज्यादा हिफाजत से रखती थी।उसके दिल में ये बात गहरी बैठ गई थी कि इन्हीं कंगनों के कारण ही मेरी शादी हो पाई और ये ही यहां और पास पड़ोस में मेरे सम्मान के कवच हैं।उसके मायके की निशानी थे वे।पिता की मेहनत और मां का वात्सल्य उनमें लिपटा प्रतीत होता था उसे।
मायके की तो घास भी प्यारी लगती है फिर ये तो सोने के कंगना थे।
लेकिन उसकी सास मालती जी की नजर कंगनों पर थी उन्होंने सुमित्रा के आते ही उन कंगनों को हथियाने की कोशिश आरम्भ कर दीं थीं “अरे अरे सबके सामने इन्हें पहन कर जाएगी क्या।नजर लग जाएगी तुझे नहीं इन कंगनों को। ला मुझे दे मै सम्भाल के तिजोरी में रख देती हूं सुमित्रा की सास मालती नई बहू के आते ही लपक कर उसके कमरे में गई जहां वह मुंह दिखाई रस्म के लिए तैयार हो रही थी।
सुमित्रा जो सोने के कंगनों को बहुत प्रेम से कलाईयों में पहन रही थी अचानक रुक गई।
लेकिन मां ने कहा था मुंह दिखाई के समय दोनों हाथों में जरूर पहन लेना सुमित्रा ने मासूमियत से अपनी मां की सीख दोहरा दी।
मायके से क्या लेकर आई है कहती जुबानों और नई बहू को टटोलती निगाहों के जवाब दे देंगे ये कंगन।आखिर मायके की इज्जत का सवाल है।यही कहती सुमित्रा की मां ने एक जड़ाऊ डिब्बे में सोने के चारों भारी कंगन सम्भाल कर अपनी बेटी को सहज दिए थे।
बस इत्ता ही तो दिया है तेरे पिता ने मालती ने मुंह बनाते हुए कहा मुंहदिखाई के बाद मुझे दे देना समझी ।तेरे पास चोरी हो जाएंगे मैं तिजोरी में सुरक्षित रख दूंगी।
और सुमित्रा की अनिच्छा के बावजूद वह उसके दो कंगन तो ले ही गई यह कहते हुए कि अरे यहीं घर पर ही तो हैं। क्या मैं खा जाऊंगी तेरे कंगन ।जब जरूरत हो मांग लेना।
आतंकित सुमित्रा ने अपने शेष दोनों कंगनों को ऐसी जगह छुपा के रखा कि उसे भी याद ना रहे।
शादी के बाद सुमित्रा ने अपने सुघड़ कार्य और स्नेहिल व्यवहार से सबका मन जीतने की हर संभव कोशिश की थी लेकिन ईश्वरप्रदत्त काला रंग उसके हर प्रयत्न पर भारी ही पड़ता रहा।उसकी सास उसके साथ रिश्तेदारी या मोहल्ले पड़ोस में आना जाना पसंद नहीं करती थी।शादी समारोहों में वह कितनी भी अच्छी तरह तैयार हो जाए लेकिन सास जी के उपहास पूर्ण ताने “अईसा रंग है कि सजने की जरूरत का है या तुम बाद में आ जाना हम जा रहे हैं या ये क्या चटक रंग की साड़ी पहन ली अपना चटक रंग क्या कम पड़ गया था…..”.सुन सुन कर उसके कान पक जाते थे।लेकिन उसका पति सुधीर उसका ख्याल रखता था और ऐसे अवसरों पर अपनी मां के साथ ना जाकर सुमित्रा के साथ ही जाता था।यह बात मालती को नागवार गुजरती थी।
पति सुधीर ने नया बिजनेस करना शुरू किया था।बिजनेस की शुरुआत बहुत अच्छी थी।लेकिन संगत बुरी थी उसकी।
शायद यही वजह थी कि अचानक सुधीर के बिजनेस में घाटा होने लगा और होता चला गया।सुधीर की तो कमर ही टूट गई।कर्जे का भार बढ़ता गया और उसी समय सुमित्रा की डिलीवरी का समय आ गया।पति का घाटा आर्थिक मार से आहत सुमित्रा की तबियत बिगड़ने लगी ।ज्यादा तबियत तबियत बिगड़ने पर विवश सुधीर उसे प्राइवेट नर्सिंग होम में ले गया ।सही इलाज मिलते ही धीरे धीरे सुमित्रा की तबियत में सुधार होने लगा और उसने एक पुत्री को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य कहिए कि नवजात बच्ची का दाहिना पैर थोड़ा टेढ़ा ही था। डॉक्टर के अनुसार वह लंगड़ा कर चलेगी।
सास मालती ने सुनते ही कोहराम मचा दिया बहू का तो रंग ही काला नहीं है किस्मत भी काली है । मेरे बेटे का बिजनेस उजड़ गया और अब ये लंगड़ी लड़की इससे अच्छा तो निपूती ही रहती।
नर्सिंग होम की अथाह फीस भरने में असमर्थ सुधीर ने जब मां से रुपए की मदद मांगी तो वह उखड़ गईं “लुगाई तेरी है तुम जानो अपने दम पर रखो ख्याल ।”
“लेकिन मां अभी तो बहुत घाटा होने से मुश्किल है अभी तो मदद कर दो बिल्कुल पैसा नहीं है मेरे पास सुधीर के कहते ही गुर्रा कर कहने लगीं कैसे पैसा नहीं है तेरी मेहरिया के वो सोने के कंगन कहां गए।अपने मायके दे आई क्या।या तेरे को भी हाथ नहीं लगाने देती कब काम आएंगे जा मांग ले उससे और फीस भर दे ताने मारती वह चली गईं थीं।
लेकिन कंगन तो तुम्हारे पास हैं तुम्हीं दे दो सुधीर से चुप ना रहा गया। सुन कर मालती आगबबूला हो गई।
मेरे पास किसी के कंगन नहीं हैं वो तो मेरे लिए हैं तेरी ससुराल से मेरे लिए क्या आया??ये दोनों कंगन मेरे हैं मै नहीं दूंगी।बहू के पास हैं तो उसके जा मांग ले।
सुमित्रा अंदर से सास की बातें सुन स्तब्ध रह गई।मेरे सोने के कंगन को हड़प गईं इस आड़े वक्त में ऐसी बात कर रही हैं सोच कर वह अपनी किस्मत पर बिलख उठी।
सुधीर की हिम्मत नहीं हुई कि वह अपनी बीमार परेशान पत्नी से कंगन मांगे सो उसने मां के मना करने पर दोस्तों से उधार मांग के किसी तरह फीस आदि भर दिया और पत्नी को घर ले आया।
अपनी पैर से दिव्यांग बच्ची के कारण अब तो सुमित्रा अपने कंगनों की सुरक्षा को लेकर ज्यादा चिंतित हो उठी थी। उसे लगा अब ये कंगन मै अपनी बेटी को शादी में दूंगी मेरी बेटी की शादी भी कैसे होगी एक पैर अशक्त है उसका।
थोड़े दिनों बाद सुधीर ने मां से फिर रुपयों की मदद मांगी।
मां रुपयों की मदद कर दो हालात सुधरते ही वापिस कर दूंगा।
सुनते ही मां तनतनाती हुई सुमित्रा के कमरे में पहुंच गई थी।क्यों बहू तुम्हारे सोने के कंगन कहां हैं !!
मेरे पास रखे हैं क्यों क्या हो गया सुमित्रा ने अचरज से पूछा।
क्या वे रखने के लिए हैं अपने पति को दे क्यों नहीं देती ।उसे बेचकर वह अपने सभी कर्जे उतार देगा और बिजनेस फिर से शुरू कर लेगा इतनी सी बात तेरी समझ में नहीं आ रही।
सुमित्रा को चुप देख मालती खीझ गई।
ला मुझे दे कंगन मै सुधीर को दे आती हूं बिचारा परेशान हुआ जा रहा है जोर से बोल उठीं वह।
मेरे कंगन आप ले गईं थीं तिजोरी में रखने के नाम पर।उसे वापिस करने के बजाय बाकी के दो भी लेना चाहती हैं ।अब जो मेरे पास हैं किसी को नहीं दूंगी किसी को नहीं भले मेरी जान चली जाए चिल्ला उठी सुमित्रा।
चिल्लाहट सुन सुधीर आ गया ।उसने दोनों को शांत किया।
उसके बाद घर में किसी ने सुमित्रा से कंगनों की चर्चा नहीं की पर सुमित्रा अपने कंगनों की सुरक्षा और बेटी के भविष्य को लेकर और ज्यादा आशंकित हो गई।
सुधीर हालात से संघर्ष करता रहा लेकिन अवसाद और चिंता ने उसकी संगत बिगाड़ दी।जिन दोस्तो से कर्ज ले रहा था उन्हीं के साथ उठने बैठने लगा।अब वह नशे का आदी हो गया था। घर पर मार पीट करने लगा था बेटी शालिनी को हमेशा दुत्कार देता था।शालिनी सहमी सहमी रहती थी पिता से।दादी भी उलाहने देती थी घर के काम काज सीख ले किसी तरह शादी ब्याह हो जाए तेरा।कौन करेगा ब्याह तुझसे!!
लेकिन सुमित्रा अपनी बेटी का बहुत ध्यान रखती थी।सास और पति के लाख विरोध के बावजूद उसने शालिनी का स्कूल में एडमिशन करवा दिया।शालिनी भी मां की बात मान मन लगा कर पढ़ती गई।हर कक्षा में उसे स्कॉलरशिप मिलती गई और उसकी पढ़ाई निर्बाध चलती रही।
आज उसका प्रतियोगी परीक्षा में चयन होने से सुमित्रा बेहद खुश थी कि अब मेरी बेटी समर्थवान हो जाएगी नौकरी करेगी अपनी जिंदगी संवार लेगी मेरे समान किसी पर अवलंबित नहीं रहेगी मेरे समान ताने उलाहने वाली जिंदगी उसे नहीं जीनी पड़ेगी।
लेकिन अचानक आज शालिनी का रोना सुन वह दुखी हो गई।
कितनी फीस देनी होगी बेटी बता तो हमेशा की तरह फिर उसने बेटी को हिम्मत बंधाई।
बहुत ज्यादा है मां हम नहीं दे पाएंगे ।दादी ठीक कहती है ज्यादा पढ़ के क्या करना है लड़कियों को।शादी में भी दिक्कत आएगी।शादी में कोई डिमांड कर देंगे तब कैसे पूरी कर पाएंगे हम मां ।
सुनते ही सुमित्रा के दिमाग में बिजली सी कौंध गई उसे अपने सोने के कंगन याद आ गए जिन्हें वह लगभग भूल चुकी थी।क्योंकि उन्हें वह सास और पति के भय से बाहर निकालती ही नहीं थी।छुपा कर रखी हुई थी।वह भागती हुई अंदर कमरे में गई।बड़ा वाला बक्सा खींच कर निकाला और उसमें सबसे नीचे कई कपड़ों की तह के बीच रखे थे वे कंगन उन्हें देख वह देखती ही रह गई।उन्हें हाथ में उठाया तो अपनी मां का दुलार भरा स्पर्श महसूस हो गया पिता का स्नेह हाथों में धड़क उठा।आंखों से आंसू बह निकले।
मां क्या हो गया यहां क्यों आ गई तुम ये क्या रखी हो हाथ में ये तो सोने के कंगन हैं मां सच में सोने के हैं क्या किसके हैं शालिनी मां के पीछे पीछे आ गई थी।
ये तेरे हैं बेटा।इन्हें तू ले जा इससे तेरी पूरी फीस जमा हो जाएगी कहते हुए सुमित्रा ने अपनी जान से प्यारे दोनों कंगनों को बेटी के हाथों में सौंप दिया।
नहीं नहीं मां मुझे पता है आपकी जान बसती है इनमें नानी नाना की याद दिलाते हैं ये आपको मै नहीं लूंगी इन्हें शालिनी कह उठी।
पागल हो गई है क्या।ये कंगन शालिनी की फीस जमा करने के लिए नहीं हैं।शालिनी की शादी में देने के लिए हैं तब तक वृद्ध मालती शालिनी के हाथों पर रखे कंगनों पर झपट पड़ी ला मुझे दे मै सुरक्षित रख दूंगी …
नहीं आपको तो बिल्कुल नहीं दूंगी मां।आज ही तो सुरक्षित हो पाए हैं सुरक्षित हाथों में पहुंच कर।मेरी बेटी पढ़ेगी खूब पड़ेगी बड़ी अफसर बनेगी इसकी फीस भर जाएगी इनसे ।आज ही तो ये सही हाथों में गए हैं।मेरे हाथों में पहनकर इनकी चमक दब जाती थी।इनकी असली चमक आज ही दिख रही है।मां शालिनी को शादी में देने की बात आप कर रही थीं ना मैने आज ही दे दिए शालिनी को।जा बेटा फीस किराया सब इनसे कर ले।मै इन्हें रख कर क्या करूंगी।असली सोना तो तू है हमारे परिवार की नाना नानी का नाम भी रोशन करेगी सुमित्रा की आंखें छलक उठीं तो मालती का जी भी भर आया।
सही कहती है सुमित्रा ये तो सोने के जेवर तिजोरी की शोभा बढ़ा रहे थे।इनकी चमक सीमित ही थी ।लेकिन शालिनी के हाथों उपयोग होकर इनकी चमक बढ़ जाएगी।कंगन बेटी से बढ़ के नहीं है तू ठहर मै भी तुझे कंगन लाकर देती हूं आज ही तो असली हकदार मिला है कंगनों का कहती मालती तिजोरी से दोनों कंगन लेकर आ गई और सुमित्रा को सौंप कर बोली ले सुमित्रा तेरे कंगन हैं तेरे मायके की निशानी तू अपने हाथ से अपनी बेटी को सौंप दे।
सुमित्रा इतने बरस बाद चारों कंगनों को एक साथ देख रोमांचित हो गई।
नहीं मां आप ही अपने हाथों से दे दीजिए कहती सुमित्रा ने मालती के हाथों में वापिस रख दिया और मालती ने शालिनी के हाथों में सौंप दिया।
आज बरसों बाद चारों कंगन एक साथ पूरी आभा से चमक रहे थे और इस एकता और मधुरता की चमक से पूरा घर भी।शायद आज उन कंगनों ने अपना अस्तित्व ढूंढ लिया था।
लतिका श्रीवास्तव