दोपहर के एक बजे। सुमित अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था जब किसी ने दरवाजा खटखटाया। यह शौमित था, जो अभी-अभी सोनाझुरी पहुंचा था। अपने पापा से मिलकर उसके चेहरे पर मुस्कान बिखर आयी। तभी नमिता कमरे में दाखिल हुई।
“बेटा, ये नमिता आंटी है। इन्ही की ज़िद्द के कारण तुम यहाँ आ सके!”- नमिता की तरफ इशारा कर सुमित ने शौमित से कहा।
“जानता हूँ पापा। आंटी ने मुझे सारी बातें बतायी। कोलकाता से यहाँ तक विडियो कॉल पर हमने ढेर सारी बातें की।”- शौमित ने मुस्कुराते हुए कहा।
“बेटा शौमित, लंबी सफर से आए हो। थक गए होगे। थोड़ी देर आराम कर लो। मैने रेस्टुरेंट वाले को बोल दिया है, वो तुम्हारा खाना यहीं कमरे में ले आएगा। फिर हमलोग सोनाझुरी हाट घूमने चलेंगे।”- नमिता ने शौमित से मुस्कुराते हुए कहा। फिर सुमित पर नज़रें टिकाकर बोली- सुमित जी, मैं थोड़ी देर में तैयार होकर आती हूँ।” यह कहकर वह अपने कमरे की तरफ लौट गई।
“बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले!”- नमिता के कदमो की आहट सुन बिस्तर पर लेटी आशा उंचे सुर में गाने लगी। कमरे में प्रवेश कर नमिता ने सोफे पर पड़ा कुशन उठाया और उसकी तरफ दे मारा।
“अरे..मैंने क्या किया! देख रही हूँ…तू बडी खुंखार होती जा रही है! या फिर ये किसी और का असर है! आं आं बोल! चुप क्यूं हो गई!! अरे लडकी तो शर्मा गई…!!”- आशा बिस्तर पर फैलते हुए बोली। उसकी बातों पर नमिता अपनी बगले झांकने लगी।
“यारो से होने लगे बेअदब ज़नाब चुपके-चुपके, चढ़ा हीर पे रांझा का बुखार जनाब चुपके-चुपके!”- कमरे में मौजुद नबनिता ने मैगजीन को चेहरे के आगे फैलाकर ऐसे कहा, जैसे उसके भीतर से देखकर पढ़ रही हो।
आगे बढ़कर नमिता ने मैगजीन उसके हाथों से छीन लिया। फिर मुंह बनाकर उनदोनों की तरफ देख अपना पैर पटकती हुई बोली- “हूँ..हूँ…मुझे ऐसे मत छेडो न! मैं तो बस वही कर रही हूँ जो मुझे सही लग रहा है!”
बिस्तर पर लेटी आशा उठकर उसके पास आयी और कंधे पर हाथ रखती हुई बोली- “अरे, चिढती क्यूं है! अच्छा..चल ठीक है, हम नहीं छेडते तुझे! पर सुमित जी की तरफ तेरा खींचाव देखकर हमसब बहुत खुश हूँ और सच मान तो सुमित जी भी तुझे पसंद करते हैं। मैने देखा है उनकी आंखों में! तू जब भी उनके सामने जाती है, उनकी आंखे खुशी से चमक उठती हैं।”
नमिता के पास आकर नबनिता ने धीरे से उसके कानों में कहा- “बोल तो सुमित दादा से तेरी शादी की बात चलाऊं!”
नमिता ने उसकी तरफ घूरकर देखा और चिढ़ती हुई बोली- “तुमदोनों बकबक ही करती रहोगी या हाट में जाने के लिए तैयार भी होना है! चलो जाओ यहाँ से और जल्दी से तैयार होकर आओ। उधर सुमित और शौमित भी मेरी राह देखते होंगे!”
“देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान!”- गुनगुनाते हुए आशा और नबनिता कमरे से बाहर चली गयी और नमिता ने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया।
थोड़ी देर बाद नमिता तैयार होकर बाहर निकली। उसने हरे रंग की कॉटन और खादी मिक्स साड़ी को बड़े ही परंपरागत बंगाली तरीके से पहन रखा था, जिसपर गले में लटकते बड़े आकार के ऑक्सीडाइज्ड लॉकेट और कानों में सजे रंगबिरंगे मोती जड़ित ईअर-रिंग उसकी खुबसुरती में चार-चांद लगा रहे थे। बाकी सहेलियाँ अभी भी बंद दरवाजे के पीछे तैयार हो रही थी।
“कितना टाइम लगाती है! जल्दी तैयार होकर बाहर आ। मैं रिसोर्ट के बाहर इंतज़ार कर रही हूँ।”- नमिता ने सहेलियों के बंद दरवाजों को खटखटाते हुए कहा और आगे बढ़ गई।
दूर से ही उसे सुमित और शौमित रिसोर्ट के बाहर खड़े दिख गए, जिनकी कौतुक निगाहें वहाँ सजे हाट और आते-जाते पर्यटकों को निहार रही थी। नीला पंजाबी कुर्ता और सफ़ेद पायजामा सुमित पर बहुत फब रहा था, जिसपर पैरों में पड़े कोल्हापुरी चप्पल उसे क्लासिकल लूक दे रहे थे। जबकि शौमित ब्रांडेड चेक टी-शर्ट, ब्लैक जींस और ब्लैक-ऑरेंज के कोंबिनेशन वाले स्पोर्ट्स शू में किसी हीरो से कम न लग रहा था।
बाप-बेटे के पास आकर नमिता उनसे बात करने में व्यस्त हो गई, जबतक कि उसकी सहेलियाँ वहाँ नहीं पहुंची।
पास-पास खड़े नमिता और सुमित को देखकर आशा ने ज़ोर से खरासते हुए अपना गला साफ किया और इधर-उधर देखती हुई बोली- “कितनी सुंदर जोड़ी है!” नमिता ने आँखें दिखायी तो आशा ने हकलाते हुए कहा –“म म मैं तो सुमित जी के सैंडल की बात कर रही थी! तू क्या समझी!” फिर सभी हाट की तरफ बढ़ने लगे।
काफी भीड़ होने के कारण सुमित ने बेटे का हाथ थाम रखा था। अपनी सहेलियों के साथ हंसी-ठिठोली करती नमिता भी हर तरफ सजे दुकानों को निहारते हुए आगे बढ़ी जा रही थी।
नमिता की निगाह जब शौमित का हाथ थामकर आगे बढ रहे सुमित पर पडी तो लपककर उसने शौमित का हाथ थाम लिया और शिकायत भरे अंदाज में सुमित की तरफ देखकर बोली- “आज शौमित आपका नहीं, मेरा हाथ थामकर घूमेगा! आप घुमिए अकेले-अकेले!”
“अकेले क्यूँ! हमसब के रहते सुमित जी अकेले क्यूँ घूमेंगे! चलिए सुमित जी, आप मेरे साथ घूमिए।”- आशा ने सुमित से कहा और नमिता को कनखी मारी।
“हमसब साथ ही तो हैं! मेरा ध्यान तो चारो तरफ फैले चहल-पहल पर है। कल तक जहां प्रकृति की हरियाली थी, आज वहीं संस्कृति ने अपना रंग बिखेर रखा है। ऐसा लग रहा है, जैसे समूचे सोनाझुरी को किसी ने संस्कृति का चोला पहना दिया है और उसकी खूबसूरती में और निखार आ गया है।” – सुमित ने अपने आसपास नज़र फेरकर कहा।
“हाँ! वैसे निखार तो किसी और के खूबसूरती में भी आया है!”- नमिता पर नज़रें टिकाकर आशा बोली, जिसपर नमिता ने उसे आँखें दिखायी।
तभी एक स्टॉल के सामने खड़ी सहेलियों ने आवाज लगाया और आशा उस तरफ बढ़ गई। नमिता भी सुमित और शौमित के साथ एक स्टॉल से दूसरे स्टॉल पर टहलते रहे।
काफी देर तक घूमने-ठहलने के बाद सुमित और शौमित एक पेड़ के चारो तरफ बने बेंत के शेड के नीचे आकर बैठे। तभी हाथो में बर्फ के तीन गोले लिए नमिता वहाँ पहुंची और उनकी तरफ बढ़ाते हुए कहा- “ये रहा कोला का गोला! चलिए जल्दी-जल्दी खतम करिए नहीं तो पिघल जाएगा!”
सुमित ने आजतक कभी हाथों से घीसकर बनाया हुआ बर्फ का गोला नहीं खाया था और नौकरी में आने के बाद तो वह इसे भूल ही चुका था। अचानक से नमिता के हाथो में बर्फ का गोला देख उसे खुशी भी हुई और हैरानी भी।
शौमित बड़े चाव से गोले का आनंद ले रहा और उसकी निगाहें नमिता पर टिकी थी, जो आँखों ही आँखों में उससे कुछ बातें कर रही थी। आँखों से सुमित की तरफ इशारा कर शौमित ने नमिता से कुछ कहा।
“हद है आप तो! ये बार-बार कौन सी दुनिया में खो जाते हैं! यहाँ गोला पिघल रहा है और आपको खबर भी नहीं! चोलो, ताड़ाताड़ी शेष कोरो!”- नमिता ने सुमित की तरफ देखकर कहा, जो फिर से किसी शून्य में खोने लगा था। बेटे के चेहरे पर दबी हंसी देख उसे यह समझते देर न लगी कि उसने ही नमिता को बर्फ के गोले वाली बात बतायी है। सोनाझुरी की रंगीन छटा निहारते तीनों बर्फ से अपना गला तर करने लगें।
तभी शौमित को अपने साथ लेकर नमिता पास के स्टॉल की तरफ बढ़ गयी। थोड़े ही समय में शौमित और नमिता एक-दूसरे के साथ काफी घुलमिल गए थे। नमिता से शौमित को मिला ये अपनापन और उसका इतना ख्याल रखते देख सुमित की आँखें कृतज्ञ हो रही थी नहीं तो आजतक शौमित ने अपनी माँ से डांट-फटकार के अलावा कुछ भी न पाया था, जिसके वजह से सुमित को उसे हॉस्टल में डालना पड़ा। शौमित के चेहरे की चमक और खुशी देख सुमित का मन भारी हो चुका था।
स्टॉल पर ख़रीदारी करती नमिता की आँखें सुमित पर टिक गई, जब उसने सुमित के गंभीर चेहरे को एकबार फिर शून्य में खोया पाया। सुमित के पास आकर शिकायत लगाती हुई उससे बोली– “ये क्या आप बार-बार गंभीर होकर अपनी ही दुनिया में खो जाते हैं! कहीं मैंने आपसे थोड़ी देर शौमित को अपने साथ ले जाने की इजाजत मांगी, इसलिए तो नहीं…??”…
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सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 6) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi
Written by Shwet Kumar Sinha
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