सोच बदल गयी – डा० विजय लक्ष्मी : Moral Stories in Hindi

देवकी जी के सीने में उबलते ज्वालामुखी के लावा जैसे धधक रहा था जब उनके बेटे निखिल ने एक दिन घर आकर कहा , “मां, मैंने शादी कर ली है।”

“किससे?”

“उससे,… कोमल की ओर इशारा करते हुए माँ से कहा  वही ऑफिस वाली।”

देवकी जी ने माथा पीट लिया।

“हाय राम! पढ़ी-लिखी और ऊपर से लव मैरिज? मेरी तो तकदीर ही फूट गई!”

जब कोमल पहली बार घर आई, तो सबकी नजरें उस पर टिकी थीं। साड़ी तो पहनी थी, पर कानों में छोटे स्टड्स, माथे पर बिंदी बस नाम की। न सास के पैर छुए न कोई औपचारिकता— बस मुस्करा कर बोली, “नमस्ते।”

घर की बुज़ुर्ग महिलाओं में आपसी खुसुर-पुसुर शुरू हो गयी थी , और देवकी का मन भीतर ही भीतर खिन्न हो गया।

“अब घर में इसकी नहीं, उसकी चलेगी,” उन्होंने ताने कसने शुरू कर दिए।

कोमल समझदार थी, लेकिन उसने देखा कि उसका हर कदम जांचा-परखा जा रहा है। फिर भी उसने कभी उलट कर किसी को जवाब नहीं दिया, बस चुपचाप खुद को रोज़ थोड़ा-थोड़ा बदलती गई। शायद कहीं मन में संकल्प ले इस मिथक को तोड़ना चाहती थी

कि पढ़ी-लिखी लड़कियां घर के कामकाज में निल होती है साथ ही ये भी संदेश देना चाहती थी कि लव मैरिज वाली पति तक ही नहीं सीमित होती है बस मन में चाह हो आखिर हैं तो वे भी इंसान ,सभी को जोड़ने में सक्षम हैं।

सुबह उठकर चाय बनाना सीख ली, सास की दवाइयों की समय पर देने की जिम्मेदारी खुद से संभाल ली ।  जेठानी के बच्चों की पढ़ाई में मदद करने लगी और ससुर जी के मोबाइल में हिंदी न्यूज ऐप इंस्टॉल कर दिया ताकि वह हर दिन खुद से पढ़ सकें।

धीरे-धीरे, घर में सभी ने नोटिस किया कि कोमल केवल आधुनिक नहीं, बहुत भावुक और पारिवारिक भी है, बस वे तो उसके माता-पिता के बचपन में गुजर जाने के बाद से उसकी चाची ने उसका पालन-पोषण किया था बस यह कहिए कि उसकी जायदाद के लालच में पेट भर खाना खिला देती थीं पर कुछ संस्कार घर के व्यवहारिक ज्ञान से अनभिज्ञ थी ।

वह तो अच्छा हो वकील साहब ने साफ और स्पष्ट कह दिया था इस वसीयत के अनुसार इसको पहले  मैनेजमेंट का कोर्स करना होगा ,तभी 21 साल की होने पर जायदाद मिलेगी जिससे ये अपना बिजनेस अच्छे से चला सके । अब चाची की मजबूरी फिर उनको मैनेजमेंट का कोर्स कराना ही पड़ा।

कोमल पढ़ने में बहुत ही तेज थी उसने कॉलेज टॉप किया था ।  उसका प्लेसमेंट कॉलेज से ही अच्छी सैलरी पर हो गया था अब तो चाची के दिल पर सांप लोटने लगा। चाची की खुद की बेटी तो पढ़ने में जीरो ही थी।

कोमल की मुलाकात मैनेजमेंट क्लास में ही निखिल से हुई थी ।  सीधी शादी कोमल निखिल के साथ में रहकर बहुत ही तेज तर्रार हो गई थी क्योंकि निखिल उसे बात-बात में सपोर्ट करता था पुरुष का संबल ,नारी को अलग ही मजबूती दे जाता है।

एक दिन जब निखिल की नौकरी पर संकट आया, तो इसी कोमल ने अपने पुराने कॉर्पोरेट नेटवर्क से उसके लिए नई नौकरी खोजी थी ।

देवकी जी चौंक गयीं थीं।

“इतनी समझदारी… और एक शब्द भी कभी अपने लिए नहीं कहा न ही पलट कर जवाब दिया ?”

फिर एक शाम, जब कोमल मंदिर की आरती में शामिल होकर खुद भजन गा रही थी,  देवकी जी की आंखें नम हो गईं।

“मुझे लगा था मेरी तकदीर फूट गई… पर असल में भगवान ने ही इसे मेरी झोली में डाला था।”

अब देवकी जी सबको कहती हैं,

“लव मैरिज हो या अरेंज… बहू का दिल बड़ा हो, तो घर मंदिर बन ही जाता है।”

यह कहानी दिखाती है कि रिश्तों में केवल परंपरा या रीति-रिवाज नहीं, समझदारी, सहनशीलता और धैर्य ही सच्चे अपनेपन की नींव बनाते हैं। कोमल जैसी बहू अपने कर्म और व्यवहार से हर दिल को जीत लेती हैं – बस समय और दृष्टिकोण चाहिए उसे समझने के लिए। जरूरी नहीं है की माता-पिता द्वारा की हुई अरेंज मैरिज की लड़की अच्छे स्वभाव की ही हो।

                       स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी

                               ‘अनाम अपराजिता’

#हाय राम मेरी तो तकदीर ही फूट गयी, जो ऐसी बहू मिली।

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