रिया मां बाप की इकलौती बेटी थी, बहुत लाड प्यार से पली , पढ़ाई में खूब होशियार। सब गुण थे उसमें लेकिन उसे घर में लोगों की भीड़ बिल्कुल पंसद नहीं थी। दरअसल जब से उसने होश संभाला घर में उससे चार साल बड़ा उसका भाई अमन और उसकी माँ सुनयना ही थे। उसके पिताजी फौज में शहीद हो गए थे।
समय के साथ दोनों बड़े हुए और अमन विदेश चला गया और वही सैटल हो गया। शादी की उम्र अब रिया की थी। बचपन में भी उसकी अमन के साथ अक्सर लड़ाई ही रहती। कभी कभार छुट्टियों में उसकी मासी या बुआ और उनके बच्चे या कोई और रिशतेदार आ जाता तो उसे एक आंख ना भाते।
कोई भी बच्चा उसकी कोई चीज उठा लेता तो वो चिल्ला पड़ती। किसी को अपने कमरे में नहीं आने देती थी। सबकी दोस्ती अमन से ही रहती। बचपना समझ कर कोई बुरा भी नहीं मानता था। रिया के पिता के जाने के बाद सब रिशतेदार उनसे मेल जोल रखते, और सरकार की और से भी सब सहूलतें मिली हुई थी। बड़ी होने पर समझदार तो हो गई लेकिन मन ही मन उसे घर में शांति ही चाहिए थी, और अब तो अमन भी जा चुका था।
शादी उसने वहीं पर कर ली थी, बस एक बार ही आया और होटल में पार्टी हुई। वो तो मां को साथ ले जाना चाहता था पर वो रिया को अकेला कैसे छोड़े। नौकरी में वो सबसे हंस कर मिलती , खूब खुश रहती, लेकिन घर में वो किसी को न लाती और न किसी के घर जाती।
हर मां की तरह सुनयना को उसकी शादी की चितां थी।रिया भी शादी तो करना चाहती थी लेकिन उसकी पहली शर्त थी कि परिवार में नहीं रहेगी। वो अपने पति के साथ अलग ही रहना पंसद करेगी। अब ये बात शादी से पहले कैसे बताई जा सकती है। छोटे परिवार की तलाश ही जारी थी। आजकल मैच मैकिंग कंपनिया हर तरह के रिश्ते करवाने में माहिर होती है।
सर्वप्रिय और उसकी मां ही थे परिवार में। जब यहां रिशते की बात चली तो सब मनचाहा हो गया । कहीं कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी। सर्वप्रिय इकलौता बेटा था और उसके पिता का देंहात हो चुका था।रिया को सब सही लगा। होने वाली सास भी उसे ठीक लगी, उसने सोचा चलो यहां गुजारा हो जाएगा।
जल्द ही शादी हो गई। रिया के भाई, भाभी भी आए हुए थे। शादी के बाद सुनयना उनके साथ ही चली गई, वो काफी समय से कह रहे थे। इधर रिया भी सर्वप्रिय के साथ खुश थी। उसकी सास अनुपमा काफी सुलझी हुई औरत थी, जमाने की हवा को वो भी समझती थी, वैसे भी वो पढ़ी लिखी थी, समाज सेवा से जुड़ी हुई थी तो वो अपने में ही बिजी रहती। वो बेटे बहू में कोई दखलअंदाजी नहीं करती थी।
अगर आजकल की कुछ बहुएं अपने आप को ज्यादा समझती हैं तो सासे भी जमाने के हिसाब से बदल गई है। छः महीने बीत गए। सर्वप्रिय की इकलौती बुआ के पति यानि कि उसके फूफा जी का देहांत हो गया। बुआ का बेटा बेटी विदेश में थे।
एक महीना सब रहे, लेकिन आखिर तो वापिस जाना था। बुआ वैसे तो सेहत के हिसाब से ठीक थी परतुं सत्तर साल की बुजुर्ग का अकेले रहना मुशकिल था। पति के बाद एकदम से अकेला रहना आसान नहीं होता। दो बार वो बच्चों के पास जा चुके थे, लेकिन वहां उनका दिल नहीं लगता था। अब तो वो अकेली थी, उसने जाने से मना कर दिया और कहा कि किसी अच्छे वृद्धआश्रम में उसके रहने का इंतजाम करवा दो। सर्वप्रिय का बुआ से बहुत प्यार था और अनुपमा की भी शुरू से उससे बहुत बनती थी।
दोनों ने फैसला किया कि अभी के लिए बुआ को अपने साथ ले चलते हैं, फिर देखेगें , क्या करना है।बुआ का आना रिया को बिल्कुल पंसद नहीं था।उसकी अपनी ही दिनचर्या थी। सुबह जल्दी उठ कर भजन लगा देना, रसोई में खटपट या कामवाली के काम में दखल देना। अब हर एक का अपना अपना स्वभाव होता है। रिया को वो एक आंख न भाती, उसे डर तो सास का भी था लेकिन अनुपमा ने जिस तरह से एडजस्टमैंट कर रखी थी तो सब ठीक चल रहा था। अब जानकी बुआ को क्या कहा जाए। वो भी दिल की बहुत अच्छी थी लेकिन रूटीन अपना अपना।
रिया का मूड अक्सर आफ ही रहता। अगले महीने ही वो प्रैगनैंट हो गई और उसकी तबियत बहुत खराब रहने लगी। डा़ ने बैड रैस्ट का बोला।आफिस से छुट्टी लेनी पड़ी। दो चार दिन तो सर्वप्रिय घर पर रहा लेकिन कब तक।वैसे तो अनुपमा मना करती लेकिन समाज सेवा में जुड़ने के कारण कई जगह उसे जाना पड़ता। बुआ तो दिन रात रिया के आगे पीछे रहती। समय आने पर प्यारी बिटिया परी का जन्म हुआ , वो भी सिजेरियन।
डेढ़ साल बीत गया। बुआ के बच्चों के फोन आते लेकिन वो अपने देश में ही रहना चाहती थी।एक दिन उसने कहा कि उसे उसके घर छोड़ आओ लेकिन सर्वप्रिय नहीं चाहता था। बुआ के घुटनों का आप्रेशन पहले ही हो चुका था, ज्यादा चल फिर नहीं पाती थी और उम्र के हिसाब से कुछ बीमारियां तो वैसे भी लग जाती हैं। बुआ अब इस घर पर ज्यादा बोझ नहीं बनना चाहती थी। वैसे उसका बेटा आर्थिक स्पोर्ट भी कर रहा था।
उसने वृद्ध आश्रम जाने की इच्छा प्रगट की। सर्वप्रिय और अनुपमा चाहते तो नहीं थे लेकिन उन्हें रिया के स्वभाव का पता था, हालांकि पहले पहल तो रिया का बिहेव कुछ ठीक नहीं था, लेकिन बाद में उसने कभी कुछ कहा नहीं।
वृद्धआश्रम की बात चली तो किसी के कुछ कहने से पहले रिया बोल पड़ी, बुआ जी कहीं नहीं जाएगी, ये उनका अपना घर है, अपना मायका है, एक आंख न भाने वाली बुआ अब उसी की आँख का तारा बन चुकी थी।बुआ अब उसी घर का हिस्सा बन चुकी थी।
प्रिय पाठकों, जिंदगी में अगर हम सब एक दूसरे को समझ जाएं, जरूरत के हिसाब से मदद करें और जहां तक हो सके अपना बोझ स्वंय उठाएं तो सोच बदल भी सकती है।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़।
मुहावरा- एक आंख ना भाना