स्नेह का बंधन – निमिषा गोस्वामी  : Moral Stories in Hindi

आखिर वो दिन आ ही गया जिसका सभी को वर्षों से इंतजार था।हां आज सरिता और मधुर की बेटी की शादी है। सरिता ने मधुर की तरफ देखा मधुर की आंखें भरी हुई थी। सरिता ने अपने पति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा सुनो जी मधुर ने अपने हाथों से आंसुओं को पोंछते हुए व उससे नजरें चुराते हुए कहा हां बोलो क्या बात है।

सरिता गहरी सांस लेते हुए मधुर के पास बैठते हुए बोली जब बेटी रूची पैदा हुई थी तब भी आपकी आंखों में आंसू थे और आज भी आपकी आंखों में आंसू हैं। पगली ये जो आंसू हैं ये बेटी के स्नेह का बंधन है। फिर सरिता अपने पति को पुरानी बातें याद दिलाते हुए बोली आपको याद है जब रूची पैदा हुई थी तो मां जी कितना रोई थीं बोली थी

इतना पैसा खर्च हुआ और पैदा हुई तो वो भी बेटी।मां जी के ताने सुनकर हम दोनों की भी आंखें भर आईं थीं। फिर जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती गई सभी के दिलों पर राज करने लगी थी। ये उसका स्नेह का बंधन था।जिस बेटी के पैदा होने पर सबसे ज्यादा उसकी दादी को बुरा लगा था आज वही दादी की सबसे ज्यादा लाड़ली है।

और हो भी क्यों न दादी का इतना ख्याल जो रखती है।घर की बड़ी बेटी होने का पूरा दायित्व निभाती थी उसकी दोनों छोटी बहनों व छोटे भाई की हर एक बात का ख्याल रखती थी।भाई तो जैसे उसकी जान है। ये ऐसा स्नेह का बंधन जो कभी न टूटे।देखो आज वही बेटी लाल जोड़े में नज़र आ रही है।

बीती बातें याद करके सरिता मधुर के कांधे पर सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगी तभी बेटे मनु ने वहां आकर कहा मां-पापा विदाई का समय हो गया आप दोनों चलिए। हां-हां तुम चलो बेटा हम आते हैं मधुर ने कहा और वे दोनों भी उठकर चल दिए सामने रूची को खड़ी थी वह उन दोनों को देखकर उनके गले लगकर जोर-जोर से रोने लगी सबकी आंखें नम थी।

बेटी तो सदैव पराई होती है। स्नेह का बंधन उसे सबसे जोड़े रखता है।रुची विदा होकर ससुराल आ गई। नया माहौल नये लोग सबकुछ अजीब था। वह ख़ामोश मायके के ख्यालों में डूबीं उसकी आंखें डबडबा गई। तभी उसकी छोटी सी ननद रानी उसके पास आकर बोली भाभी-भाभी चलिए मां हाॅल में बुला रहीं हैं आपको देखने के लिए पड़ोस वाली आंटियां आईं हैं।

रुची छट खड़ी हो गई और अपनी साड़ी ठीक करके आइने के सामने खड़ी होकर खुद को संवारने लगी तभी पीछे से उसकी सास ने आकर कहा आ बेटा काला टीका लगा दूं।ना मालूम किसकी नज़र लग जाए मेरी बहु को यह कहते हुए उन्होंने उसके कान के पीछे काला टीका लगा दिया और बोली हां अब सब ठीक है।

आओ चलो एक मिनट रूको सास ने एकदम झटके से कहा रूची एक पल सदके में आ गई सोचने लगी पता नहीं कौन सी खता हो गई मुझसे। घबड़ाकर बोली क्या हुआ मां जी अरे घबराओ नहीं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तुमसे जो इतना घबरा रही हो मैं तो बस इतना कह रही हूं कि अपना चेहरा ढक लो नई बहु का मुंह देखने आई है पड़ोसिन।

अच्छा मां जी रूची ने गहरी सांस लेते हुए साड़ी से चेहरे को ढकते हुए कहा।पडोस की आंटियों के जाने के बाद रूची अपने कमरे में आई।आह बहुत थक गई हूं उसने बैड पर बैठते हुए कहा चलो कुछ देर आराम कर लेती हूं यह कहते हुए वह लेटने वाली थी कि उसकी ननद आकर कहने लगी भाभी भाभी मुझे अभी बाजार जाना है

आप मेरी चोटी बांध दीजिए मैंने मां से कहा था पर मां कहने लगी अपनी भाभी से जाकर बंधवा लो बांध दो न हां-हां आओ मै बांध देती हूं रूची ने कहा।चोटी बंधवाते हुए उसकी छोटी ननद कहने लगी आप कितनी अच्छी हो। चोटी बंधवाने के बाद वह बोली अब मैं जाती हूं। रूची आज बहुत थक गई थी लेकिन उसके दर्द को कोई नहीं समझ रहा था सबको बस अपनी परेशानी अपने काम ही दिखाई देते थे।

मायके में भी सबकी देखभाल करते करते जब थक जातीं थीं तो कम से कम अपने कमरे में जाकर आराम तो कर लेती थी अगर मन नहीं होता था तो काम करने के लिए मना कर देती थी कभी-कभी दादीजी उसके लिए उसके कमरे में खाना लेकर आ जाती और बड़े प्यार से खिलाती थी।

सब कुछ सोचते ही उसकी आंखें भर आईं और वह साड़ी के पल्लू को मुंह में दबाकर रोने लगी उसे मां-पापा, भाई-बहन तथा दादी की बहुत याद आ रही थी सोच रही थी यहां सब कोई है फिर भी अकेलापन सा क्यों लग रहा है काश मेरी दादी यहां आ जाती तो मैं उनसे अपनी उलझन बताती।

अभी रुची यही सोच कर रो रही थी कि उसके पति सौरभ ने आकर कहा रूची तुम्हारे लिए सरप्राइज है उठो और आंखें बंद करो अरे तुम रो क्यों रही हो उसने रुची का चेहरा देखकर कहा। आंसू पोंछों आंख बंद करो। अच्छा बाबा करती हूं रूची ने आंखें बंद करके कहा कहां है मेरा सरप्राइज।

सौरभ ने कहा हां अब आंखें खोलों जैसे ही रूची ने आंखें खोली उसके सामने उसकी दादी मां और उसके भाई-बहन खड़े थे उसकी तो खुशी का ठिकाना ही न रहा वह झट से दादी से लिपट गई और फफक-फफक कर रोने लगी दादी ने उसे प्यार से सहलाते हुए कहा आ बैठ और उसे बैड पर बैठाया फिर वह उसे समझाने लगी रूची अपने परिवार के सदस्यों को देखकर बहुत खुश हुई और दादी से कहने लगी दादी आप सब अचानक कैसे आ गए।

दादी ने उसे प्यार से गले लगाते हुए कहा पगली ये तो तेरे स्नेह का बंधन था जो मुझे यहां तक खींच लाया।बेटा ऐसा ही बंधन अब तुझे इस परिवार से बनाना है बिल्कुल इसी तरह फिर देखना तुझे हमारी याद भी नहीं आएगी।तब तक रूची की सास भी वहां आ गई थी। उसकी दादी बोली बेटा मुझे तो तेरी सास ने ही बुलाया है। क्यों है न दादी ने उसकी सास की तरफ देख कर कहा। हा क्यों न बुलाती मेरे बेटी जैसी बहु को मैं उदास कैसे देखतीं। सभी हंसने लगे अब रूची का भी मन हलका हो गया था उसकी सास ने उसे प्यार से गले लगा लिया।

निमिषा गोस्वामी 

जिला जालौन उत्तर प्रदेश 

मौलिक एवं स्वरचित

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