स्नेह का बंधन – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

   कल राखी है। समझ नहीं आ रहा है कि माधुरी के लिए उपहार कहाँ से लाऊंगा? बिजनेस पूरा ठप पड़ा है। अब तो घर खर्च के लिए भी सोचना पड़ रहा है। समय अनुकूल हो तो सभी मित्र होते है लेकिन जैसे ही परिस्थिति विपरीत होती है सगे संबंधी भी पराये हो जाते है। जाने इसीतरह की कितनी ही बाते शैलेश अपने आप मे ही बोले जा रहा था। तभी उसकी पत्नी कमरा मे आई और शैलेश से पूछा – ” कुछ सोचा है कल माधुरी के लिए क्या उपहार लेकर जाना है। यदि सोचा है तो चलो बाजार जाकर ले आते है।

कल सुबह ही निकलना होगा नहीं तो जब तक नहीं पहुँचोगे तब तक माधुरी फोन करके परेशान होती रहेगी कि भैया अभी तक पहुंचे क्यों नही। अपनी पत्नी की बात सुनकर शैलेश ने कहा – ” मै भी यही सोच रहा हूँ कि क्या ले जाऊ? पैसे तो हाथ मे है ही नहीं। कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करू। जब मेरा बिजनेस सही चल रहा था तो हर एक रिश्तेदार की विपत्ति मे मैंने सहायता किया है, परन्तु आज जब मुझे जरूरत है तो कोई भी मेरे साथ खड़ा नहीं है। आज मुझे अपनी बहन को उपहार देने मे भी सोचना पड़ रहा है।

तभी बेटा ने आकर कहा बुआ का फोन आया है। आपका मोबाईल ड्राइंगरूम मे था लीजिए मै ले आया। बुआ अब आप पापा से बात कीजिये। यह कहकर उसने मोबाईल अपने पापा को पकड़ा दिया और फिर बाहर चला गया। शैलेश ने मोबाईल लेकर कहा हैलो माधुरी कैसी हो? उधर से आवाज आई अच्छी हूँ भैया, प्रणाम। शैलेश ने कहा ख़ुश रहो। कैसे फोन किया ? अभी मै और तुम्हारी भाभी यही बात कर रहे थे कि कल कब निकलेंगे माधुरी के घर के लिए। उधर से माधुरी की आवाज आई

भैया मै इस बार राखी मे अपने ननद के घर जा रही हूँ। यही बताने केलिए फोन की थी। मैंने आपकी राखी कुरियर कर दी है इसलिए आप इसबार घर मत आइएगा।यह भी पूछना था कि राखी आपको मिल गई। क्या हुआ भैया आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे राखी मिली या नहीं? शैलेश ने कहा भेजी हो तो मिल ही जाएगी।

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अच्छा किया तुमने समय पर फोन कर दिया हम बाजार ही जा रहे थे तुम्हारे लिए उपहार और मिठाईया लेने के लिए। अब जब तुम ननद के घर से लौट कर आना तो खबर करना फिर हम तम्हारे लिए मिठाई और उपहार लेकर तुम्हारे घर आ जाएंगे।

ठीक है भैया, भाभी और बच्चो को मेरा प्यार बोलना। फ़ोन रखती हूँ। अभी मुझे ननद के लिए उपहार और मिठाईया लेने बाजार भी जाना है। प्रणाम भैया कहकर कहकर माधुरी ने फोन रख दिया। फ़ोन रखते ही शैलेश कि पत्नी ने उससे कहा -” लो अब तुम्हारी बहन ने भी विपत्ति मे तुम्हारा साथ छोड़ दिया। लग रहा है कि उसने सोचा होगा कि भैया का बिजनेस तो अच्छा चल नहीं रहा है तो उपहार भी अच्छा नहीं ला सकेंगे। अच्छा है कि आने से ही मना कर दूँ।”

अबतक तो दो दिन पहले से ही शुरू हो जाता था भैया राखी मे समय से आ जाना तुम्हारा इंतजार रहेगा। मुझसे बोलेगी भाभी आपको अपने भाई को राखी बांधना है तो उसे अपने यहाँ बुला लेना। भाई को मायके ले जाने को मत कहना। प्लीज भाभी मेरे भाई को मेरे यहाँ भेज देना। शैलेश ने गुस्से मे डांटते हुए बोला -“चुप करो हम भाई – बहन के बीच मे एक शब्द भी मत बोलो। उसका ननद के घर जाना जरूरी होगा तभी वह मुझे आने से मना की होंगी, वरना आज तक ऐसा कभी भी नहीं हुआ है

जब उसने मुझे अपने हाथो से राखी नहीं बाँधी हो। दूसरे दिन शैलेश उदास बैठा सोच रहा था। माधुरी की भेजी राखी अभी तक क्यों नहीं आई। क्या इसवर्ष मेरे हाथो मे राखी नहीं बंधेगी? तभी दरवाज़े की घंटी बजी। उसने अपने बेटे से कहा देखो तो कौन आया है? बच्चे ने दरवाजा खोला और सामने बुआ को देखकर ख़ुशी से चिल्लाया पापा बुआ आई है। शैलेश भी दौड़ता हुआ आया। अरे! माधुरी तुम, तुम तो बोली कि ननद के घर जाना है यहाँ कैसे? कुछ मत पूछो भैया मैंने तो बस इनसे कह दिया,

आप अपनी बहन के घर जाओ मै तो भई  अपने भाई के घर ही जाउंगी राखी बाँधने, और चली आई। भाभी आप कहा हो यह कहते हुए वह रसोईघर मे चली गई। उसने सोचा भाभी तो वही होंगी। वहाँ जाकर उसने कहा भाभी आपको तो पता था नहीं कि मै आ रही हूँ इसलिए आपने मेरे लिए कुछ बनाया नहीं होगा तो चलो हम दोनों ननद भाभी मिलकर मेरे और भैया के पसंद का कुछ बनाते है।उसे देखकर उसकी भाभी ने कहा आप अचानक कैसे आ गईं?

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कुछ नहीं भाभी मैंने बस अपनी सास को बोला कि  भैया की तबियत ठीक नहीं है इसलिए वे इसबार राखी मे नहीं आ  सकते है। यदि आपकी आज्ञा हो तो मै ही वहाँ चली जाऊ। यह बात मैंने भैया से भी नहीं कही है और आप भी मत कहना।फिर धीरे से उसने कहा भाभी यह लो पचीस हजार रूपये मेरे लिए बाजार से जाकर उपहार और मिठाईया ले आओ। हाँ, और भैया से यह कहना कि यह पैसा आपने घऱखर्च से बचाकर रखा है।पर क्यों,आप ऐसा क्यों कह और कर रही हो भाभी ने कहा। भाभी आप नहीं समझेंगी।

आप ही नहीं कोई भी हम भाई – बहन के इस” स्नेह के बंधन “को  नहीं समझ पाएगा। आपको शायद पता नहीं होगा कि मै इनकी सगी बहन तो क्या रिश्ते की बहन भी नहीं हूँ। मै इनके घर मे काम करने वाली नौकरानी की बेटी हूँ जिसे भैया ने अपनी बहन से भी ज्यादा प्यार और सम्मान दिया। बचपन से ही हम अपने इस स्नेह के बंधन को लोगो समझा नहीं पाए है। भैया के माँ – पापा, सभी रिस्तेदार, जानकारी वाले सभी भैया पर गुस्सा करते थे और बोलते थे कि भला नौकरानी की बेटी को भी कोई अपनी बहन बनाता है,

परन्तु हम भाई – बहन के इस प्यार पर किसी बात का कोई असर नहीं हुआ। भाई ने मेरे लिए क्या क्या नहीं किया, अब मेरी बारी है। आज जब भैया का बिजनेस खराब चल रहा है तो मै अपने भाई को अपने ससुराल मे शर्मिंदा होते हुए  या उपहार के लिए कर्ज लेते हुए नहीं देख सकती।

मेरे ससुराल वाले हो या समाज का हर एक व्यक्ति, वे सभी भौतिक समान से ही प्यार का आंकलन करते है इसलिए यह भी जरूरी है। मै जानती हूँ कि मेरे लिए मेरा भाई क्या है और भाई के लिए मै क्या हूँ, लेकिन हमारे इस स्नेह के बंधन को कोई और समझ ही नहीं पाएगा। इसलिय भाभी आप मेरा यह काम कर दीजिए। कर दीजिएगा न? भाभी प्लीज। भाभी मन ही मन सोच रही थी सही ही तो कह रही है माधुरी। कल मै भी तो इनके लिए ऐसा ही सोच रही थी तो उसके ससुराल वाले शैलेश के लिए गलत क्यों नहीं सोंचेगे? सच मे यही है सच्चा ‘स्नेह का बंधन।’

लेखिका : लतिका पल्लवी

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