स्नेह का बंधन – खुशी : Moral Stories in Hindi

हम दो बहने थी अदिति और स्वरा जो अपने माता पिता के साथ रहती थीं। मां स्कूल में टीचर और पिताजी प्राइवेट नौकरी करते थे।पिताजी जरा दिमाग के गरम थे इसलिए नौकरी छोड़ पकड़ रहती थीं पर मां इतनी मेहनती थी कि स्कूल , ट्यूशन से घर चलाती यूं अभावों में पलते बढ़ते हम जवानी की दहलीज तक पहुंच गए।

कॉलेज पूरा हुआ मां पिताजी को शादी की चिंता सताने लगीं।लड़के देखे जाने लगे पर अदिति की बात कही तय नहीं हो पा रही थी यू तो उसकी कोई खास उमर नहीं थी पर मा पिता जी को जल्दी थी।उसी बीच एक रिश्ता करवाने वाले के माध्यम से नोएडा में एक परिवार का पता चला फोटो कुंडली भेजा गया परंतु उनका लड़का बाहर था

तो उसे वापस आने में अभी समय था इसलिए बात ना बन सकी और मजे की बात अदिति की कुंडली के साथ स्वरा की कुंडली भी साथ चली गई पता चला स्वरा मांगलिक है तो सौभाग्य से उन्हीं के पड़ोसी का लड़का जिसका रिश्ता अदिति के लिए आया था उसका रिश्ता आंटी ने स्वरा के लिए सुझाया।

लड़के का नाम था नीरज जो एक कंपनी में डिजाइनर की नौकरी करता था।घर में मां पिता और एक बहन थी जिसका विवाह हो चुका था।फिर क्या लड़का पसंद आते ही चट मंगनी पट ब्याह और इस तरह स्वरा नोएडा आ गई घर पर तो सास और ननद की हुकूमत थी क्योंकि ननद रानी पूजा अपने घर सिर्फ रात को सोने जाती थी

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दिन भर वो मायके में आराम फरमाती थी और सास को घूमने और उसके चोचलों से फुर्सत नहीं थी।ससुर जी भी हर समय घर पर ही रहते थे।2 कमरों का घर जिसमें स्वरा का दम घुटता था। स्वरा को अपनी मां बहुत याद आती उनसे बात करती तो मन हल्का हो जाता।फिर एक वर्ष बाद अदिति की भी शादी हो गई

और स्वरा एक प्यारी सी बेटी की मां बन गई। इसी बीच स्वरा के ससुर भी चल बसे।स्वरा को सास का प्यार तो नहीं मिला पर उनके पड़ोस में जो आंटी रहतीं थीं निशा जी जिन्होंने उसका रिश्ता बताया था उनके साथ उसके सम्बन्ध बहुत अच्छे थे वो उसे बहुत प्यार करती थी।उनके घर जा कर ऐसा लगता जैसे मायके में आ गई हो।

कई बार वो अपनी मां को भी बताती पर ईश्वर की लीला देखिए स्वरा की मां का अकस्मात निधन हो गया उसे लगा मेरा साया मेरी छत ही खत्म हो गई बहुत दिन बहुत उदास परेशान थी चाहती थीं कि कोई आए उसे संभाले। सास ने एक शब्द भी सहानुभुति का नहीं बोला। इस समय उसे सहारा दिया निशा आंटी ने उन्होंने कहा बेटा मै तेरी मां  की जगह तो नहीं ले सकती।

पर मै  सदा तेरे साथ हूं मेरी  जब भी जरूरत मुझे आवाज लगाना सदा अपने  साथ खड़ा पाएंगी । दोनो के बीच एक अनजाना प्यार का बंधन बंध गया।निशा आंटी उनके पति रमेश जी बेटा राघव सब उसे बहुत प्यार करते।उनके घर के प्रत्येक कार्यक्रम में वो उपस्थित रहती और स्वरा के प्रत्येक कार्य में वे दोनों माता पिता की तरह उपस्तिथि रहते।

समय बीता स्वरा के पिताजी का भी देहांत हो गया अदिति दूसरे शहर में थी तो वो भी इतनी जल्दी नहीं आ पाती थी।स्वरा की सास निर्मला इस बात से बहुत चिढ़ती थी कि कुछ ही सालों में स्वरा ने अपने आस पास के लोगों के दिल में जगह बना ली थी।वो हमेशा कहती हमें ये दिखावा करना नहीं आता।

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निशा आंटी ने एक बार बोल भी दिया भाभी जी ये दिखावा नहीं होता ये तो प्यार का बंधन होता है जो किसी के भी साथ बंध जाता है।इसी बीच स्वरा दुबारा मां बनी वो परेशान थी सब कैसे होगा घर , अस्पताल  छोटी सी राशि कैसे संभालेगी। नीरज भी परेशान थे क्योंकि इतने सालों में अपनी मां के वाहवर से वे भी वाकिफ थे।

निशा आंटी बोली तुम चिंता मत करो सब हो जाएगा उन्होंने एक  मां की तरह स्वरा को संभला घर आने के बाद भी जब तक वो नहीं संभली तब तक वो उसकी देखभाल करती रही। नन्ही प्रीति के नाम करण संस्कार में नीरज के साथ आंटी और अंकल साथ खड़े थे।कही भी नीरज और स्वरा को ऐसा नहीं लगा की वो अकेले है।

समय बीत रहा था और स्वरा और निशा आंटी का प्यार भी गहराता जा रहा था।  उनकी दुआएं थी और नीरज स्वरा की मेहनत वो दोनों एक अच्छे और बड़े घर में शिफ्ट हों गए।निशा आंटी और रमेश अंकल सदा उन्हें आशीर्वाद देते क्योंकि वो दोनों अंकल आंटी का ध्यान रखते।कुछ समय बाद रमेश अंकल की तबियत बहुत खराब हो गई

उनका बेटा राघव ,बहु प्रिया और पोते जर्मनी से वापस आ गए।अंकल को कैंसर डिटेक्ट हुआ और अथक प्रयास के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। आंटी को परिवार के साथ साथ स्वरा ने भी संभाला अब उनका बेटा जर्मनी वापस नहीं गया वो यही इंडिया में पोस्टिंग मांग रहा था जो उसे पुणे में मिली वहां घर देखने शुरू हुए

बहुत भारी मन के साथ आंटी को भी जाना पड़ा परंतु यह आशा थी कि अपना घर है तो आते जाते रहेंगे।समय के साथ उनका आना कम हुआ और एक दिन वो घर भी बिक गया पर स्वरा और निशा आंटी का प्यार कम ना हुआ।वो आज भी दोनों एक दूसरे से जुड़ी है दूर है पर दिल के पास है क्योंकि उनका स्नेह का बंधन इतना मजबूत है जो कोई भी दूरी नहीं तोड़ सकती।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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