“क्यों रूठी हो गुडिया?”
“अभी तक बचपना गया नहीं तुम्हारा?”
” कह दिया, बहुत याद आ रही है आपकी। मिलने चले आओ।”
” नेहा, हमें भी तो तुम्हारी याद आती रहती है। तुम्हारी नई-नई शादी हुई है, ससुराल में मन रमाओ अब।”
“जंवाई राजा समझदार है। सास ससुर चाहते हैं, तुम घर संभालो।”
नेहा शादी के बाद बार-बार पीहर मिलने आ जाती। माना, पीहर से सबका स्नेह का बंधन होता हैं। जो कोमल, निश्चल होता हैं। लेकिन ससुराल में मन लगाना जरूरी है। प्रेमविवाह किया है नेहा ने। आलोक उच्चपदस्थ, रूबाबदार जवान है। आकर्षक व्यक्तित्व है उसका। नेहा और आलोक किसी मित्र के घर मिले थे। देखते ही एक दूजे को दिल दे बैठे। आंखों ही आंखों में इशारे हुए, प्रेम रस धार झरती रही, थोडे ही दिनों मेें दोनोंं प्रणय बंधन में बंध गये।
रोहिणी जी ने अपनी बेटी को समझाना चाहा,
आओ भैया ! कुछ तुम कहो, कुछ मैं कहूँ – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi
“अपनी मर्जी से किया है आलोक से विवाह तुमने।”
” जीवन साथी आलोक के साथ ससुराल में सबसे स्नेह के पावन बंधन में बंधे रहना है तुम्हें।”
” ससुराल में प्रेम, सेवा, संयम, समर्पण से सबके साथ जुडी रहो। विवाह दो परिवार का संबंध होता हैं। पिया के साथ ही उसके घरवाले तुम्हारे अपने हो गये। खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए आत्मीयता भाव पौधा कभी सुखने न देना बेटा।”
“खूब खुश रहो। मुस्कुराती, महकती रहो।”
नेहा को लगता, मैं ने अपनी मर्जी से शादी की है, इसलिए जानबूझकर मम्मी पापा मुझसे कन्नी काट रहे हैं।
मेरे प्रति उनका रवैया बदल गया है।
वे नहीं चाहते, मैं उनसे मिलने आऊं।
“मेरी गुडिया, मेरी गुडीया” लाड करते थे भैया, अब देखकर व्यस्त रहने का नाटक करते है।
अपनी सखी रिया से बतियाते वह रो पडी।
” नेहा, ऐसे कैसे सोच लिया तुमने?”
” ये उटपटांग ख्याल दिमाग से निकाल दो।”
” आज भी सब इतना ही प्यार करते है तुम्हें।”
” नहीं, मुझे पता है, वे नाराज है मुझसे।”
” तुम भी तो आलोक के प्यार में डुबी हो। अपनी सखी सहेलियों को भूल गयी हो।”
” नये रिश्ते, नया माहौल। अपने आपको नये रंग में ढाल दो।”
“आलोक सा दिवाना प्रेमी मिला है तुम्हें। ऐसे जीवन साथी को पाकर अपनी किस्मत पर नाज करो। ससुराल और पीहर में फर्क तो होगा ही। अपने आप को संयत रखो।”
” अब बचपना छोड दो। केवल प्रिया नही, अर्धांगिनी हो तुम। उस घर की लाडली बहू बनो।”
नेहा ने आलोक से शिकायत करनी चाही, मुस्कुराते हुए आलोक ने कहा,
“रोना-धोना? चलो अब बस भी करो।”
“आज छुट्टी है। चलो घुमने चलते है। मूवी देखेंगे, घुमेंगे, फिरेंगे। ए, क्या बोलती तू?”
उसके रोमांटिक अंदाज से खिलखिलाकर हंस पडी वह। आलिंगन में भरते हुए आलोक ने उसे प्यार से देखा। शरमाकर तैयार होने चली गयी वह।
बहुत ही सुंदर लग रही थी गुलाबी सारी में। दोनों को सारी परिधान विशेष पसंद था।
” मेरी गुलाबो…”
उसने उसे बाहों में भींच लिया।
” अरे.. अरे, क्या कर रहे हो। मेरा सारा मेकअप खराब कर दोगे।”
” लाडो, हम तो तेरे आशिक है…”
” चलो, चलो। आधी मूवी यहीं हो जायेगी।”
” चलो मेरी प्रिया।”
बातों-बातों में कब वे दोनों थिएटर पहुंचे पता ही न चला।
टिकट बुक कर आलोक आया जब तक दोनों के भैया भाभी, नेहा की छोटी बहन लाजो भी वहां आ चुकी थी। आश्चर्यचकित हो वह उनके गले मिलने दौड पडी। दूसरी तरफ से खास सहेलियां रिया, मीनू, सौम्या, शीना भी आ गयी थी।सब उसे प्यार से मिल रही थी।
” जनाब, हम भी है यहां।”
आलोक ने कहा तो सब हंस पडे।
” नेहा सबको बहुत याद कर रही थी। इसलिए यह सरप्राइज प्लान सबने मिलकर बनाया था। नेहा सुखद आश्चर्य से सबको मिलकर खुश हो रही थी।
” स्नेह के बंधन में हम हमेशा बंधे रहेंगे पगली।”
भैया भाभी ने थपथपाते हुए कहा। आंखें भर आयी उसकी।
स्वरचित मौलिक रचना
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र