सिसकती हुई लड़की – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral Stories in Hindi

सुबह से लेकर रात तक घर और परिवार के लोगों के बीच चकरघिन्नी बन सारे काम करने के बाद अपराजिता अपने कमरे में आकर बैठ गई। कमरे में बहुत ही ज्यादा उमस थी।पंखा चला कर उसने अपने साड़ी का पल्लू खिसका कर थोड़ा लेट गई।

पसीना, थकान से कहीं ज्यादा वह हताश थी अपने ससुराल वालों के व्यवहार से। 

कितना करती है वह सबके लिए, एक पैर पर खड़ी रहती है मगर…! नतीजा शून्य। उसके इस समर्पण का कोई अहमियत नहीं। घर वालों की नजर में वह सिर्फ एक अपराधी है जिसने इस घर में एक बहू बनकर आने की हिम्मत की।

वही गलती आज एक अपराध बन गया है।न तो उसकी सास चंदा देवी, न दोनों ननदें आशा और तृषा और न ही उसका पति प्रकाश। किसी को भी वह खुश नहीं कर पाई थी।

कितना खुश हुए थे उसके पिता जब प्रकाश के घर से उसके लिए रिश्ता आया था।

वह खुशी से बावरी होकर उसकी मां से कह रहे थे “अजी सुनती हो आज के जमाने में ऐसा होना किसी चमत्कार से काम नहीं !

हमारे ऊपर तो भगवान की कितनी कृपा है यह सब तुम्हारी पूजा पाठ का ही नतीजा है प्रतिमा, जो घर चलकर इतने अच्छे परिवार से रिश्ता आ गया और ना दहेज की मांग, ना देन ना लेन।”

“हमारी बिटिया भी तो सैकड़ों में है। अपने स्कूल में सबसे ज्यादा नंबर लाकर हम सबका मान बढ़ाया है।”

“कैसी बावरी हो प्रतिमा!ये नंबर शंबर सब लाते हैं। इससे कहीं हम इतना बढ़िया दामाद ढूंढ पाते क्या?बस हमारी बिटिया राज करेगी अब।” उसके पिता मां की बात काटते हुए बोले।

एक दिन उसकी सास चंदा देवी आकर शगुन के कपड़े, मिठाई और अंगूठी देकर चली गई।

इस मामूली सौगात से अपराजिता के पिता उमाशंकर जी इतने गदगद हो गए कि उन्होंने दसियो नसीहत दे डाली ऐसे रहना, वैसे रहना।बस हमारा सिर कभी झुकने मत देना।

इतनी सारी नसीहतों के बीच अपराजिता के अंदर जागा हुआ कौतूहल  दब गया, आखिर इतने बड़े परिवार से उसके लिए रिश्ता क्यों आया है?

प्रकाश एक खाते पीते घराने से ताल्लुक रखते हैं।बैंक की अच्छी नौकरी में हैं ।खेत खलियान सब है। एक बेटी की शादी हो चुकी है और एक अभी पढ़ाई कर रही है। उस घर में उसका क्या काम!

 लेकिन अपने बाबा और मां की खुशियां देखकर उसने अपनी सारी कौतूहल दफन कर डाला और उनकी खुशी में अपनी खुशी जोड़ ली।

आखिर इतने बड़े से घर से रिश्ता जो आया था ।आईने में देख देख इतराया करती लेकिन जब वह ब्याह कर आई उसके बाद धीरे-धीरे उसे अपनी स्थिति का पता चलने लगा ।

उसके पिता एक साधारण से टीचर थे अपनी जितनी हैसियत थी उसे हिसाब से उन्होंने दहेज भी दिया था मगर वह अकेली लड़की नहीं थी, घर में दो बहने और थीं।

आखिर उसके पिता कितना दहेज देते और उसपर ससुराल वालों ने कोई डिमांड भी तो नहीं किया था लेकिन यहां आने के बाद धीरे-धीरे उसे दहेज नहीं लाने का ताना मिलने लगा। ऊंचे-नीचे तबके का फर्क बताया जाने लगा और धीरे-धीरे उसकी स्थिति एक नौकरानी से भी बदतर हो गई ।

अपनी किस्मत पर आंसू बहाती वह ऊपर से मुस्कुराने की कोशिश करती थी ।कभी वह अपने स्कूल की टॉपर थी। 12वीं में अपने जिले में टॉप करने के बाद कॉलेज में नाम ही लिखाया था कि उसकी शादी हो गई ।पढ़ाई लिखाई सब पानी में चले गए।

पुरानी यादों में विचरण करते हुए वह पंखे की उमस भरी हवा में सुकून पाने की कोशिश कर रही थी कि चंदा देवी अपने कमरे से आवाज देने लगी।

यादों के बवंडर में उसके कानों में उनकी आवाज नहीं आई। तभी तेज कदमों से चलकर उसकी छोटी नंद तृषा उसके कमरे में आई और चिल्ला कर बोलने लगी “भाभी सुनाई नहीं पड़ता आपको ,मां कब से आवाज दे रही है?”

अपराजिता हड़बड़ा कर उठकर बैठ गई “नहीं मुझे तो कोई आवाज  सुनाई नहीं पड़ी?”

“ मां आपके कमरे में बुला रही हैं ।”

“अभी आती हूं।”

यह कहकर अपराजिता अपनी साड़ी के आंचल समेटकर पीछे-पीछे अपनी सासू मां के कमरे में आ गई ।

उसकी सास चंदा देवी  मुंह फुलाकर बैठी हुई थी

“ कब से हम तुझे आवाज दे रहे थे तुझे सुनाई नहीं पड़ रहा था या जानबूझकर नहीं सुनने का बहाना कर रही थी?कामचोर कहीं की! मेरे सर में तेल लगा अभी!”

“ लगाती हूं।”

वह जल्दी से अलमारी से तेल निकाल कर अपनी सासू मां को लगाने  लगी ।

तृषा  चिल्ला कर बोली” मां ,आपकी बहू एक नंबर की हमारा आवारा है। अपने कमरे में कैसे सो रही थी, अपनी साड़ी के आंचल को खिसका कर !”

चंदा देवी आंखें तरेर पर बोली “यह हम क्या सुन रहे हैं?”

“नहीं मां वह गर्मी लग रही थी इसलिए थोड़ा आराम कर रही थी 

“अभी आने दे प्रकाश को, तेरी आवारा पंथी खत्म करते हैं।”

अपराजिता की आंखों में आंसू आ गए। दबे स्वर में उसने कहा “मां मैं अपने कमरे में आराम कर रही थी ना !अपने कमरे में मैं कैसे सोऊं किसी को क्या जा रहा हूं है?”

“दरवाजा खुला था, यह था प्रॉब्लम था।”तृषा मुंह चढ़ा कर बोली।

“पर मेरे कमरे में कौन आएगा? घर में आप दोनों के अलावा कौन है?”

“ देख बहू, मेरे साथ बदतमीजी मत किया कर। एक तो तू बदचलन है। तुझसे शादी कर तो मेरे बेटे कि किस्मत ही फूटी गई।

तेरे इन लक्षणों के कारण बेटा हम सबसे से दूर होता जा रहा है। देर रात घर आने लगा है।”

तब तक बाहर से प्रकाश के आने की आवाज आने लगी।

तृषा अपनी आदत के अनुसार जाकर प्रकाश के कान भर आईं और फिर रात को वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था। 

प्रकाश के हाथों की मार उसके जिस्म से ज्यादा उसके मनोमस्तिष्क को तोड़ कर रख दिया था।

जिस हाथ को थामकर वह इस घर में कदम रखी थी, आज उसी हाथ ने उसके मान सम्मान और इज्जत सभी की धज्जियां उड़ा दिया था।

आज तक सब कुछ वह सहती आ रही थी मगर आज बात उसके इज्जत पर आ गई थी ।

बगैर गलती उसका अपमान किया गया था जो वह बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।

दूसरे दिन सुबह-सुबह जब वह चाय लेकर  ड्राइंग रूम में पहुंची तो प्रकाश ने अपना फरमान सुनाते हुए कहा “मां मैं इस लड़की के साथ नहीं रह सकता। मैं दूसरी शादी कर रहा हूं।”

अपराजिता के हाथ कांप गए।

“यह क्या कह रहे हैं आप?”

मगर उसकी बात का जवाब देने की बजाय चंदा देवी ने  प्रकाश को शाबाशी देते हुए कहा “ बिल्कुल सही हम तो पछता रहे हैं इससे शादी करके माथा फूट गया था  हमारा। क्या सोचकर हम जाकर उसके घर रिश्ता लेने चले गए थे।अखबार में उसकी फोटो देख कर…! उफ्फ ।अच्छा है, तू शादी कर ले। इस बार हम अपनी बराबरी में शादी करेंगे।”

“ हां मां,घर में तो रहेगी ही ये 24 घंटे के लिए ।काम की चिंता भी नहीं।”अहंकार में भरकर तृषा ने कहा।

अपराजिता की आंखों में आसूं आ गए।

“अभी तक तो मैं  प्रकाश की पत्नी थी मगर अब अगर यह किसी और से शादी करना चाहते हैं तो मैं यहां क्यों रहूं?”

 वह अपने कमरे में आई। अलमारी खोलकर उसने जितने भी सामान अपने मायके से लाई थी, उसने अपने बैग में डाल लिया और समान समेटकर खड़ी हो गई।

“ यह क्या नाश्ता बनाने की जगह तुम अपने सामान समेटकर कहां जा रही हो?”चंदा देवी गरजकर बोलीं।

“अपने घर जा रही हूं। आज तक मैंने इस घर को अपना समझा था। प्रकाश को अपना पति और आप को अपनी मां और तृषा और आशा दोनों को अपनी बड़ी बहन। इसलिए आप सभी की ज्यादतियां भी बर्दाश्त किया और सबकुछ सहा भी।”

“तेरे बाप की औकात क्या है कि तुझे अपने पास रखेगा और ऊपर से तेरी तो मुंह चढ़ी बहनें !”

“नहीं मां, बाबा को मुझे स्वीकार करना ही होगा। मेरे बाबा ने जो विश्वास आप लोगों पर किया था उस विश्वास का दंड मिल गया। और जो मैंने आप सभी पर भरोसा किया था ना उसका भी दंड मुझे मिल गया। रिश्ता आज ही खत्म हो गया है ।मैं यहां से जा रही हूं।”

अपराजिता अपना सामान लेकर अपने घर के लिए निकल गई।

थोड़ी देर बाद जब वह घर पहुंची ,उसे देखकर उसकी मां घबरा गई “यह क्या अपरा तू किस हाल में वापस आई है? क्या हुआ?”

“ उन लोगों को बहू नहीं चाहिए  मां,24 घंटे की नौकरानी चाहिए था ।मगर अब सिर से पानी ऊपर जा रहा है। प्रकाश दूसरी शादी करने जा रहे हैं।”

“यह क्या कर रही हो?”

“ बाबा को बहुत उम्मीद थी उन लोगों पर उनकी उम्मीद टूट गई !बस मुझे कुछ साल दे दीजिए। जैसे आज तक आप लोगों ने मुझे आज तक पाला है । मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी और अपने पैरों पर खड़ा होंउंगी और अपनी दोनों बहनों को भी पढ़ाऊंगी। आखिर इस गरीबी का तिरस्कार कब तक झेलते रहें हम।

अब मैं अपनी जिंदगी को एक नए सिरे से शुरू करना चाहती हूं।”

“हां बिटिया, तुम सही कह रही हो। उन लोगों ने नहीं बल्कि हमने तुम्हारा तिरस्कार किया था। तुझे बोझ समझकर बगैर सोचे समझे हटा दिया था।

अब तू यहीं रहेगी बेटी, तू हमारा मान है।जो चाहे वह कर लेकिन उस नर्क में हम तुम्हें नहीं भेजेंगे।”पीछे से बाबा आकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले।

रोते हुए भी अपराजिता के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कराहट खिल गई।

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प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय 

# तिरस्कार आखिर कब तक 

पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय हेतु

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