सिर्फ सोच का फर्क – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

 सुबह -सुबह  कॉलबेल की आवाज सुनकर सरला जी भूनभूनाते हुए दरवाजा खोलने के लिए उठी। पता नहीं कौन सुबह – सुबह  आ धमका मेरी नींद खराब करने के लिए  दरवाज़े पर बहु के माता – पिता  को देख कर उनका दिमाग़ जो सुबह जगने के कारण पहले से ही खराब हो रहा था और ज्यादा खराब हो गया। उन्हें देखकर अंदर आने को कहने कि जगह वे बोल उठी

इतनी सुबह -सुबह  आए है भला इतनी सुबह कोई किसी के घर जाता है आपमें थोड़ी भी समझदारी नहीं है? अब समझी बहु इतनी बे शहुरी क्यों है कुछ भी तमीज नहीं है उसमे संस्कार जो आपने आपने जैसे दिए है और ना जाने क्या क्या अनाप-  शनाप बोलती रही। समधन -समधी तो समझ ही नहीं पा रहे थे कि अब क्या करे।

बेचारे बिल्कुल ही कर्तव्यविमूढ़ हो गए थे ना अंदर जाते बन रहा था और ना लौटते बन रहा था। किसी तरह  अपनी चुपी तोड़ते हुए समधन ने कहा – क्या कहे समधन जी कल से जी घबरा रहा था रीना का फोन भी नहीं लग रहा था दामाद जी के नंबर पर भी बात नहीं हो पाई तो मै थोड़ा घबरा गईं,तो इन्होने कहा – चलो समधी जी के यहाँ चलते है

सब से मिलना जुलना भी हो जाएगा और तुम्हारा मन भी ठीक हो जाएगा.। क्या करे समधन जी हमारी गाड़ी का समय ही ऐसा है वह सुबह मे ही यहाँ आती है.।क्षमा चाहेंगे। उन दोनों के चेहरे को देखकर लग रहा था कि  जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया था और अब सज़ा के इंतजार मे खड़े है।     

पैरों की धूल समझना – हेमलता श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

           अंदर उनकी बेटी भी आँखो मे आँसू लिए सोच रही थी कि शायद प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या बड़े से बड़े किसी भी अधिकारी के माता पिता उनसे मिलने जाने के पहले इतना नहीं सोचते होंगे जितना बेटियों के माता पिता को सोचना पड़ता है। पता नहीं शादी के बाद बेटी इतनी क्यों परायी हो जाती है उससे मिलने के लिए माता पिता को भी समय और मौका (  शादी विवाह , जन्मोत्सव आदि ) का इंतजार करना पड़ता है।

तभी सरला जी का बेटा जो मॉर्निंग वॉक के लिए गया था वह लौट कर आता है तो देखता है कि उसकी माँ उसके सास ससुर  का अपमान कर रही है पहले तो वह समझ ही नहीं पाता कि उसे क्या करना चाहिए परन्तु तुरंत ही वह  नॉर्मल हो जाता है तथा आपने सास ससुर को प्रणाम करता है और माहौल को ठीक करने के लिए कहता है

” आप लोग एकदम सही समय पर आए है मेरे ऑफिस मे तीन दिन की छुट्टी है मै आपको अच्छे से घुमा सकूँगा।” यह सुनकर उसके ससुर ने कहा – नहीं, नहीं बेटा हम घूमने नहीं आए है हम तो बस आपसब से मिलकर आपका कुशलक्षेम जानकर आज रात की गाड़ी से घर चले जायेंगे।

ऐसा कैसे हो सकता है पापा कि आपलोग दिल्ली आए और मै आपको बिना दिल्ली घुमाये ही जाने दू। आप आराम से कुछ दिन यहाँ रहे यह घर भी तो आपका ही है। दामाद की बातो को सुनकर वे थोड़ा सहज हुए फिर दामाद के साथ घर के अंदर जाने लगे.।

सरला जी भी बड़ा आया ससुर को घुमाने वाला, जोरू का गुलाम यह भूनभूनाते हुए अंदर चली गईं। आवाज  इतनी ऊँची थी जिससे समधन समधी ने सुन लिया, परन्तु अब उनके मन मे यह इत्मीनान था कि समधन चाहे जैसी हो दामाद हमने हीरा पाया है बेटी सुखी रहेगी।

फैसला – खुशी : Moral Stories in Hindi

         सास – ससुर को ड्राइंग हॉल मे बैठाकर वह अंदर गया तथा माँ से बोला – माँ ये आप क्या कर रही थी रीना को आप कुछ भी बोलती है तो मै यह सोचकर चुप रह जाता हूँ कि बेटे -बहु को  गलती होने पर आपको डांटने का अधिकार है परन्तु वे आपके बहु के माता- पिता है हमारे संबंधी है और संबंधियों को आप किस हक से बेइज्जत कर सकती है.।

यह सब करते वक़्त आपने एकबार भी नही सोचा कि वे हमारे बारे मे क्या सोचेंगे, यह सब देखकर रीना के मन पर क्या बीत रही होंगी, उसे कितना दुख पहुंच रहा होगा। यदि ऐसा ही व्यवहार आपकी बेटी के ससुराल वाले आपके साथ करेंगे तो आपको या आपकी बेटी को कैसा लगेगा। माँ बहु को बेटी की जगह रखकर देखो तो तुम्हे अपने आज के व्यवहार का दुख पता चलेगा।

   वाक्य – माँ मेरी पत्नी की जगह  

                आपकी बेटी होती तो

लतिका पल्लवी

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