Moral stories in hindi : प्राजक्ता बचपन से ही बहुत चंचल स्वभाव की थी। दिखने में भी वो बहुत सुन्दर थी। अपने तीनों भाई बहनों में वो ही सबसे गोरी-चिट्टी थी। इसलिए सब उसके रंग-रूप की तारीफ करते थे। बच्चे जब माता-पिता के साथ किसी शादी-ब्याह या अन्य किसी आयोजन में जाते थे तो सबका केंद्र बिंदु प्राजक्ता ही होती थी। क्योंकि वह नृत्य कला में बहुत निपुण थी। इसलिए सब उसको स्टेज पर आमंत्रित किया करते थे।
प्राजक्ता के इस हुनर को और निखारने के लिए उसके पिता ने उसे एक अच्छे नृत्य शिक्षक के पास भेजना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे प्राजक्ता नृत्य कला में निपुणता हासिल करती चली गई। अब वो अपने गुरुजी के साथ बहुत से स्टेज शो भी करने लगी। देखते ही देखते उसका नाम अपने स्कूल में चमकने लगा।
प्राजक्ता पढ़ाई में अपने भाई-बहन की तरह तेज़ नहीं थी।
पर उसकी नृत्य कला उसे हमेशा सबकी आंखों का केंद्र बना देती थी। यूं तो उसके भाई बहन उसकी कामयाबी से बहुत खुश होते थे पर प्राजक्ता जब उनसे रुखा व्यवहार करती तो वो खीज जाते थे। प्राजक्ता अपना पुरस्कार कभी अपने भाई-बहनों के साथ नहीं बांटती थी। इससे उसके भाई-बहन उससे दूर होते जा रहे थे।
इस बात से बेखबर प्राजक्ता अपने अहंकार के नशे में चूर कामयाबी की ऊंचाईयों को छूती चली गई। महज़ बीस साल की उम्र में उसने नृत्य में अपना खूब नाम कमाया। उसके बाद उसने एक डांस रिएलिटी शो में हिस्सा लिया। वहां भी उसके नृत्य की जमकर तारीफ होती थी।
प्राजक्ता के माता-पिता और भाई-बहन सब उसे बहुत चाव से टेलीविजन पर देखते थे। उसकी हर परफॉर्मेंस पर खूब तालियां बजाते थे। किन्तु जब भी उससे यह पूछा जाता कि वो अपनी कामयाबी का श्रेय किसे देगी। तो प्राजक्ता के जवाब से कहीं ना कहीं उसके परिवार को बहुत धक्का महसूस हुआ।
उसने सारा श्रेय अपने गुरु और खुद को दिया। वो भूल गयी कि उसे नृत्य सिखाने के लिए उसके माता-पिता ने कितनी मेहनत की। गुरुजी की फीस उनके बजट के बाहर थी। इसलिए उसके पिताजी ने ओवरटाइम करके उसकी फीस भरी। अपने पिता को यूं ओवरटाइम करते देख उसके भाई ने उनको सहयोग करने के लिए घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ानी शुरू कर दी।
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प्राजक्ता के बढ़ते खर्चों को पूरा करने के लिए उसकी मां ने आचार-पापड़ का काम शुरू कर दिया। जिसमें उसकी दोनों बहनों ने भी उनका साथ दिया। प्राजक्ता यूं तो सब जानती थी और देखती भी थी, पर उसने कभी दो मीठे बोल नहीं बोले किसी के साथ। घर में भी वो एक सेलिब्रिटी की तरह ही रहती थी।
समय का पहिया घूमता रहा। आज प्राजक्ता का भाई एक बड़ी सफल इंजीनियर है। उसकी सबसे छोटी बहन स्कूल में अध्यापिका है। और अपने छोटे से परिवार में खुश है। उसकी बड़ी बहन भी अपने परिवार में खुश है और आज भी अपनी मां के साथ मिलकर आचार-पापड़ का काम करती है। और अपनी मेहनत से उसने मार्केट में अपनी एक अलग पहचान बना रखी है।
प्राजक्ता कभी अपने भाई-बहनों की खुशियों में शामिल नहीं हुईं। उनकी शादियों में भी वो नहीं गई। क्योंकि वो नृत्य जगत का एक जाना-माना नाम थी और उसके भाई-बहनों के ससुराल वाले उसके हिसाब से उसके दर्जें से बहुत छोटे थे। अतः उसके भाई-बहनों ने उससे एक निश्चित दूरी बना ली थी। दिलों में फासले तो बचपन से ही थे।
यदा-कदा प्राजक्ता अपने माता-पिता से मिलने आती थी। प्राजक्ता के बहुत कहने पर भी उसके माता-पिता ने अपना छोटा सा प्यार से बसाया आशियाना नहीं छोड़ा। वो दोनों प्राजक्ता के बड़े से पिंजड़े रूपी मकान में चलने को तैयार नहीं थे। और प्राजक्ता के लिए उस छोटी सी तंग गलियों में आना शान के खिलाफ था।
कुछ समय पहले उसके पिताजी का देहांत हो गया। क्योंकि प्राजक्ता उस समय विदेश में थी, इसलिए उसका इंतज़ार किए बिना ही उसके भाई ने पिताजी का अंतिम संस्कार कर दिया। मां की तबीयत अक्सर नासाज़ रहती थी। प्राजक्ता की दोनों बहनें आकर उनकी खूब सेवा करती थीं। पर हर समय वो उनके पास नहीं रह पाती थीं।
सबने मां को समझाया कि मां तो वो प्राजक्ता के घर चलीं जाएं या फिर अपने बेटे के पास, जो अब विदेश में सेटल था। प्राजक्ता के पास ना जाकर उसकी मां विदेश अपने बेटे के पास चली गई।
वक़्त गुज़रता गया। अब प्राजक्ता की भी उम्र बढ़ गई थी। उसके अहंकार और गुरुर की वजह से उसकी ज़िंदगी में किसी का आगमन ही नहीं हुआ। पर आज वो अपने बड़े से घर में बिल्कुल अकेली और तन्हा थी। बहनों से उसकी बातचीत खत्म हो चुकी थी। और भाई कभी उसकी सुध नहीं लेता था। मां भी कुछ वर्ष पहले चल बसी थी।
आज वो उम्र के इस पड़ाव पर बिल्कुल तन्हा और अकेला महसूस कर रही थी। एक समय था जब उसने अपनों की बेकद्री करके उस भीड़ को चुना जो उगते सूरज को सलाम करते हैं। आज वही भीड़ किसी और उगते सूरज को सलाम कर रही थी। और प्राजक्ता के अपने अब पराए हो चुके थे।
आज उसकी ज़िंदगी में यदि कुछ था तो वो था “शून्य”!!
#नाम डुबोना
©आस्था सिंघल
लेखिका