शहर के नामी बिजनेस – विनीता सिंह

 मैन मोहन हर समय एक शहर से दूसरे काम के सिलसिले में जाते रहते। उन दो बच्चे उनकी पूरी देखभाल उनकी पत्नी मालती जी करती थी ।लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया। लेकिन मोहन की दिनचर्या उसी प्रकार की थी। बच्चे बड़े हो गए वह दोनों भी अपनी पढ़ाई और सोशल मीडिया में बिजी थे ।

किसी के पास मालती जी से बात करने का समय नहीं होता था ।जब भी किसी को कुछ काम होता तो वह मालती को अपने पास बुलाते ।काम निकलने के बाद कोई भी उन से ढंग से बात नहीं करता।

एक दिन मालती जी मोहन जी के पास गई बोली मुझे आप से कुछ बात करनी है। मोहन जी बोले तुम्हें दिखाईं नहीं दे रहा में बिजी हूं। मालती बिना कुछ बोले वह से चुपचाप चली गई अब वह शान्त हो गई किसी से कुछ भी सिकवा शिकायत नहीं करती ।लेकिन हर समय उदास रहने लगी।

तभी उनके पडौस में खाली पड़े एक मकान में शान्ति देवी आई उन्होंने देखा की मालती जी उदास है तो बोली मेरा नाम शान्ति है मेरा परिवार दूसरे शहर से यहां रहने आया है

मेरे बेटे बहू और एक पोता है जो उनके साथ था शान्ति देवी ने अपने पोते से कहा दादी से नमस्ते करो। छोटे से आरव ने हाथ जोड़कर नमस्ते करा तो उसकी मासूमियत देखकर मालती जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।।

अब जब भी समय मिलता तो शान्ति देवी मालती जी से मिलने आती और उन्हें अपने साथ पार्क में टहलने ले जाती। धीरे धीरे उन दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई 

आरव भी मालती जी के पास आकर कहता दादी जी कहानी सुनाई ।एक दिन मालती के पति और बच्चे शहर से बाहर चले गए तब मालती जी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई।

उन्हें बुखार आ गया शान्ति जी उनकी देखभाल कर रही थी तभी वहां पर मोहन जी आये और बोले मालती क्या बात है तुमने मुझे फोन करके बताया क्यों नहीं। मालती जी बोली मैं किसे बताती किसी के पास मुझ से बात करने का समय नहीं है ।तभी वहां दोनों बच्चे आ गए 

तब शान्ति जी ने कहा अगर आप इनके साथ होते तो यहां मेरी क्या जरूरत थी मोहन जी और बच्चों को अपनी गलती का एहसास हुआ। और माफी मांगने लगे ।तब मालती ने कहा अगर आज मेरे पास शान्ति जी नहीं होती तो शायद मैं आज इस दुनियां में नहीं होती।।

सही कहते हैं लोग अपनों से गैर भले होते हैं 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपने घर के किसी सदस्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि साथ बैठकर एक दूसरे के साथ समय व्यतीत करना चाहिए ।जिन लोगों का अपनों द्वारा तिरस्कार होता है वह दूसरे लोगों में अपनों को तलाशते हैं 

इसलिए कहते हैं 

#अपनों से गैर भले #

विनीता सिंह

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