शशि बेडरूम में पहुँचते ही बड़बड़ाते हुए बोली – करुणा मालिक : Moral Stories in Hindi

शशि बेडरूम में पहुँचते ही बड़बड़ाते हुए बोली 

घर में दो-दो बहुएँ है पर मजाल है कि कोई काम बिना कहे कर लें । अगर मैं ना हूँ तो इस घर में तीज- त्योहार भी मनने बंद हो जाएँगे ।

क्या अनाप-शनाप बोलती रहती हो तुम भी, त्योहार मनने बंद क्यों हो जाएँगे? 

एक की शादी को पाँच साल हो गए और दूसरी की शादी को चौदह साल पर आज तक , ना तो कोई सी ने  त्योहार पर काम  की शुरुआत की , ना लेने- देने का पता …. मैं कर लूँ जो भी कर लूँ । जन्माष्टमी आ रही है…. मैंने भी सोच लिया कि करना होगा..कर लेंगी ना करना होगा ना करेंगी….. सुबह का गाँव से आया पाँच लीटर दूध उबाल कर फ्रिज में रख दिया पर इतनी अक़्ल नहीं कि मावा निकाल लें , व्रत पर मिठाई बनेगी….

तो तुम कह देती ….

क्यों कह देती ? मेरे बिना कहे ना सोच सकती ? मैं कब तक कह- कहकर करवाती रहूँगी? 

शशि ! तुम तो बिना मतलब की बातों पर अपना खून जलाती हो । जब तक अम्मा थी , तुम कब चूल्हे पर बैठी थी? मैंने तो हमेशा ही उन्हें इस तरह के काम करते देखा था ।

हाँ… यह बात अपनी प्यारी बहुओं को बुलाकर बताओ । मेरे ख़िलाफ़ क्या- क्या साज़िश की , तुम्हारी माँ ने … बस मुझे ही पता है । मेरा मन जानता है कि कैसे मैंने कड़क सास के साथ गुज़ारा किया और ऊपर से दो ननदें जो इस फ़िराक़ में रहती थी कि मैं कोई गलती करुँ और उन्हें मौक़ा मिले  । मेरी सास तो चूल्हे पर एक जगह बैठी- बैठी हुक्म देती रहती थी और मैं दौड़- दौड़कर थक जाती थी और बाद में , नाम किसका ? अम्मा का … कि मावा तो अम्मा ने निकाला है, मिठाई तो अम्मा ने बनाई है, पूड़ियाँ तो अम्मा ने तली हैं । जब ऊपर का सारा काम हो गया तो फिर बचता ही क्या था ? 

अरे , मैं तुम्हें सिर्फ़ ये समझा रहा हूँ कि जब तक घर में सास होती है ना , घर के तीज- त्योहार की तैयारी करवाती वही अच्छी लगती है । अब अम्मा के बाद तुम सब करवाती हो ना …. बस उसी तरह ये भी कर लिया करेंगी , चिंता मत किया करो । सुबह कह देना … मैं पीछे आँगन में चूल्हा जला दूँगा.. वहीं आराम से बैठना और मावा निकाल लेना …. बीच- बीच में मैं भी चलाता रहूँगा । 

मैं तो सुबह पानीपत जाऊँगी । भाभी का फ़ोन आया था शाम को ही …. कह रही थी कि  शायद बहू को आज अस्पताल ले जाना पड़ेगा, सुबह से ही हल्के- हल्के दर्द शुरू हो गए हैं उसे । भाभी घबरा रही थी कि अकेली हूँ ……. वाणी भी तो नहीं आ सकती , उसकी सास का घुटना बदला गया है…. आपरेशन हुआ है…… नहीं तो बेटी को बुला लेती, तो मैंने कहा कि घबराने की ज़रूरत नहीं है, मैं सुबह पहुँच जाऊँगी । अब भतीज- बहू के जापे में जाने से मना तो नहीं कर सकती ।

अच्छा, हाँ फिर तो जाना चाहिए । मैं छोड़कर आऊँ या….

ना ना बस में बैठा देगा रोहन …. सीधी बस है वहाँ से आशीष ले जाएगा । और सुनो ! तुम्हें चूल्हा- वूल्हा जलाने की ज़रूरत नहीं…. बच्ची नहीं है ये । देखूँ ज़रा कैसे सँभालेंगी…., बताए हुए काम को करके , एक भी अतिरिक्त काम नहीं करती ।इस बार बाज़ार की मिठाइयाँ खाना ।

पत्नी की बात सुनकर हरीश जी ने कुछ ना कहना ही उचित समझा । अगले दिन चाय- नाश्ता करने के बाद शशि अपने मायके चली गई । हालाँकि जब वह नाश्ता कर रही थी तब उन्होंने छोटी बहू अपर्णा को यह कहते सुना भी कि फ्रिज में रखे दूध का क्या करना है  पर बड़ी बहू अंजलि की आवाज़ उन्हें सुनाई नहीं दी । 

उसी दिन शाम को पानीपत से शशि ने फ़ोन पर बताया कि भाई के घर लक्ष्मी आई है । यह सुनकर उनके पति ने बधाई देते हुए कह दिया—-

मायके में नई पीढ़ी के आगमन की बधाई हो शशि ! भई , हम तो खीर खा रहे हैं…..

क्या …. मावा निकालने की बजाय सारा दूध खीर में बर्बाद कर दिया ? 

अरे ….. रोहित की दाढ़ में दर्द था तो अंजलि ने खीर बना ली । क्या हो गया? अभी तो जन्माष्टमी में हफ़्ता पड़ा है….. भैया कह रहे थे कि चार- पाँच दिन दूध भेजेंगे ….. सब हो जाएगा । 

जन्माष्टमी से दो दिन पहले अंजलि ने अपनी सास को फ़ोन करके कहा—-

मम्मी जी! त्योहार पर घर जरुर आ जाना चाहे अगले दिन वापस चली जाना ….. आपके बिना बहुत फीका- फीका लग रहा है,  मैं मामी जी से बात करुँ क्या ?

ना तू रहने दे, मैं खुद बात कर लूँगी । वैसे तो रसोई- चौका करने वाली एक महीने के लिए रख ली है, सफ़ाई वाली तो अलग से आती ही है । बस बहू के खाने- पीने का अपने हाथ से अलग बनाते हैं पर पहुँच जाऊँगी दो- चार दिन के लिए ।

मन ही मन शशि को  बड़ी बहू अंजलि का फ़ोन करना बहुत अच्छा लगा कि चलो बहू को इतनी तो समझ है कि घर के बड़ों को कैसे मान- सम्मान दिया जाता है और ये छोटी सी लगने वाली बातें ही परिवार को जोड़ने का काम करने के साथ-साथ छोटों के सामने मूल्य स्थापित करती हैं । 

जन्माष्टमी से एक दिन पहले ही कभी अंजलि तो कभी अपर्णा फ़ोन पर जानकारी लेती रही कि  सास किस समय चलेंगी, कहाँ तक पहुँची आदि । 

जब शशि बस स्टैंड पर उतरीं तो रोहन के साथ अंजलि को देखकर उनका न जाने क्यूँ मन भर आया । एक हफ़्ते में ही उन्हें ऐसा लगा मानो वे मुद्दत बाद अपने बच्चों से मिल रही है । माँ को देखते ही रोहन और बहू ने उनके पैर छुए । अंजलि बोली —- मम्मी जी, आपका बैग कहाँ है ? 

अरे बेटा , तीन दिन बाद जाना पड़ेगा । परसों तुम्हारे मामा आएँगे यहाँ….. भाभी बहुत अनुरोध कर रही है कि एक महीना निकलवा दो , काम तो मैं कुछ भी नहीं करती बस मुझे देखकर उसे तसल्ली रहती है । 

घर पहुँचने पर पोते- पोतियों, बेटे- बहुओं से घिरकर शशि जी बहुत प्रफुल्लित थी । वे मायके की एक- एक बात बता रही थी और यहाँ की बातें सुनकर खुश हो रही थी । तभी छोटी बहू अपर्णा उनकी मनपसंद कड़क चाय बनाकर लाई । उसके पीछे- पीछे  आती बड़ी पोती  ने एक ट्रे में सजाकर रखी तीन प्लेटों को जैसे ही उनके सामने रखा तो शशि जी चौंक गई और बोली— 

ये मिठाइयाँ बाज़ार से आज ही मँगवा ली क्या ? भगवान के लिए घर की मिठाइयाँ बनती हैं ।

मम्मी जी!  मैंने और अपर्णा ने मिलकर ये  मिठाइयाँ घर में ही बनाई है । चार दिन तक गाँव से दूध मँगवाया था । पहले दिन के दूध से थोड़ी खीर बनाई थी बाक़ी का मावा निकाल दिया था । कल रोहित और अपर्णा दोनों जाकर दीदी के यहाँ भी मिठाई  और कान्हा जी की नई पोशाक दे  आएँ हैं ।  एक डोंगा मावा बचाकर रखा है क्योंकि कान्हा जी का प्रसाद और पेड़े तो आपके हाथ के ही लाजवाब होते हैं ।

पर एक बात तो है मम्मी जी  , कि चूल्हे पर बैठने वाले की हिम्मत होती है । कई घंटे तक कढ़ाई के सामने बैठना , हर चीज़ का नाप- तोल … बड़ा ही मुश्किल काम है । मुझे तो लगता था कि आप तो बैठी रहती है और असली काम हम करते हैं कभी ये लाओ कभी वो लाओ कभी पानी पकड़ाओ….. कभी गोला घिसो ….पर एक बात तो है कि वो सब काम करते- करते हम दोनों पता नहीं कैसे मिठाइयाँ बनानी सीख गए ।  थैंक्यू मम्मी जी! 

हरीश जी मंद- मंद मुस्कुराते हुए बोले —

शशि ! ग़ज़ब का स्वाद है तुम्हारी बहुओं के हाथों में…. क्या कहती हो ? हर मिठाई का स्वाद तुम्हारी ट्रेनिंग का नतीजा है । 

शशि जी का सीना चौड़ा हो गया था पर अंदर ही अंदर उन्हें कुछ खल रहा था ।जब  रात के खाने के बाद वे अपने कमरे में गई तो हरीश जी बोले —-

देखा तुमने , तुम बेकार ही डरती रहती थी कि बहुओं को कुछ नहीं आता …..

हाँ जी , आपको बताऊँ मुझे अंजलि और अपर्णा की कौन सी बात सबसे अच्छी लगी ? 

क्या ? 

उन्होंने बेहिचक इस बात को स्वीकार किया कि ऊपर का काम करवाने से उनको भी बुरा लगता था पर आज उस काम का रिज़ल्ट देखकर उन्होंने मुझे थैंक्यू कहा । शायद यही पीढ़ियों का फ़ासला है कि मैं उसी ट्रेनिंग को अपनी सास की साज़िश समझती रही मुझे तंग करने की । आज अगर वो ज़िंदा होती तो मैं जरुर उनको थैंक्यू कहती । 

चलो … सो जाओ । अब कल सुबह तुम्हें पेड़े और धनिया पंजीरी बनानी है । और उसकी सारी ऊपर की तैयारी तो बहुओं से ही करवाओगी ना ? 

मैं तो चूल्हे पर बैठूँगी….ऊपर की  भागदौड़ का सारा काम बहुओं से करवाना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, उसे मैं कभी नहीं छोड़ूँगी । , हँसते हुए शशि जी ने कहा । 

करुणा मालिक

ये तो मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है ।

# साज़िश #

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