छोटा सा दो कमरे का तो मकान है मम्मी जी ! मुझसे इतनी आवभगत नहीं होगी सबकी, बहुत कर लिया । सुषमा जी की बहू नेहा ने गमले में पानी डालते हुए कहा । सुषमा जी निढाल फोल्डिंग पर आँगन में लेटी हुई अकस्मात नेहा के कटु स्वर सुन कर उठ बैठीं । आस – पास नज़र घुमाया तो पति राकेश जी कहीं नहीं दिखे । फिर लॉन में जाकर देखा तो राकेश जी झूले पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे । सुषमा जी ने राकेश जी को नेहा के द्वारा कही हुई पूरी बात बताई । हालांकि राकेश जी के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा ।सारी बातें सुनने के बाद भी वो अखबार में तल्लीन रहे । “आप सुन रहे हैं जी ? कब से कथा सुनाई जा रही हूँ आप कुछ बोल ही नहीं रहे । सुषमा जी की ये प्यार भरी शिकायत सुनकर आखिरकार राकेश जी ने सिर हिलाते हुए “हूँ ” में जवाब दिया ।
इस तरह से अनदेखा अनसुना करना बातों को सुषमा जी को तनिक नहीं रास आया । फिर उन्होंने अखबार हाथों से खींचते हुए कहा…”पहले मेरी बात पर ध्यान दीजिए, बोली जा रही हूँ आपको फर्क ही नहीं पड़ रहा है । राकेश जी ने हल्की सी मुस्कान बिखेरते हुए कहा…मुद्दा क्या है, आपने पूरी बात तो बताई ही नहीं, फिर कैसे जवाब दूँ ? सुषमा जी ने नाक -भौं सिकोड़ते हुए कहा…”नेहा को पता नहीं क्या हो गया है । पहले सबकी और मेरी कितनी सेवा करती थी व हर बातों में साथ देती थी अब बिल्कुल विपरीत हो गयी है । तीन दिन से उसे बोल रही हूँ प्रभा ताई और रेणु चाची हम सब साथ मिलकर यहाँ पार्टी कर लेते हैं तो मना कर रही है ।
“तो मुझसे आपको क्या मदद चाहिए सुषमा जी ? जब से बहु आयी है उसके दो साल बाद से आप आए दिन कभी किसी अवसर पर तो कभी कोई अवसर पर पार्टी ही कर ही रही हैं । कितने प्रकार के व्यंजन बनाकर भी उफ्फ नहीं करती । इस बार हो सकता है उसका मन नहीं होगा तो छोड़िए न ! बातों को खींचकर कोई फायदा नहीं है ।
उठते हुए राकेश जी बोले…”जो जी में आए करिए । आपकी इन्हीं आदतों की वजह से # बहू ने ना बोलना सीख लिया । हर वक़्त आपकी मनमर्जी कितना झेलेगी, उसकी भी कोई ज़िन्दगी है या नहीं ? एक तो रौनक का वर्क फ्रॉम होम चल रहा है तो इतने दिनों से घर आकर रह रहा है , ऊपर से हर बात के लिए अपने अनुसार हम ढलने कहें, ऐसा नहीं हो सकता ।
इतना बोलकर राकेश जी चल दिए और सुषमा जी अवाक देखती रहीं ।
कुछ देर बाद नेहा बाहर कपड़े सुखाने आयी तो कनखियों से देखा मम्मी जी भी उसे अंदर से घूर रही हैं । फिर सुषमा जी कपड़े उठाकर तमतमाते हुए अंदर आ गईं ।नेहा ने पास जाकर कहा…”मम्मी जी ! आपको मेरी बात इतनी बुरी लग गयी, जो आप मुझे अनदेखा कर रही हैं । आप ही सोचिए प्रभा ताई और रेणु चाची की पार्टी देने की बारी है तो उसे हम अपने घर में क्यों करें ? “सुनो नेहा ! पार्टी में मेरे पैसे खर्च नहीं हो रहे ना, जो तुम आज सुबह से ही घर मे किचकिच माहौल बना रखी हो । कई बार तुमसे बोली हूँ …”सोमवार को प्रभा दीदी की पार्टी है वो अपना खाना खुद बनाकर लाएंगी और शुक्रवार को रेणु यहाँ आएगी बाकी की सहेलियों के साथ । वो बाहर से खाना आर्डर करेगी । मैं सिर्फ इसलिए करना चाह रही हूँ क्योंकि उनलोगों को मेरे घर में बहुत अच्छा लगता है ।
“यही तो चालाकी है मम्मी जी ! जो आप समझना नहीं चाह रहीं । मैं चाहती हूं आपका कोई इस्तेमाल न करे । उनके घर तो हमसे बड़े हैं आपको खुद सोचना चाहिए यहाँ क्या मज़ा आएगा सबको ? उन्हें सिर्फ यही चाहिए कि उनका घर न गन्दा हो । सजा – धजा रहे । आप खाना बेशक नहीं बनाएंगी अपने घर मे, सब खाना लेकर आएँगे पर जिसके घर मे सब बैठेंगे वहाँ कचरा और अस्त – ब्यस्त तो होगा न ! रिश्तों में अपनापन हो तो ये कोई बड़ी बात नहीं है किसी के लिए मदद करना, बुलाना या खिलाना । पर एकतरफा कुछ भी अच्छा नहीं लगता ।
“किस बात के लिए इतना शोरगुल हो रहा है आज घर में ? रौनक की आवाज़ से घर मे थोड़ी देर के लिए सन्नाटा हो गया । सुषमा जी ने कहा…”सही समय पर आए हो बेटा ? तुम ही फैसला करो प्रभा ताई और रेणु चाची मेरे घर में सहेलियों के साथ पार्टी करना चाह रही हैं । इतनी छोटी सी बात पर आज बहू मुझे खरी खोटी सुना रही और नाराजगी भी दिखा रही है ।
“मैं तो बिल्कुल सलाह नहीं दूँगा मम्मी ! याद है आपको रूपा चाची के घर हमलोग गए थे तो रेणु चाची ने बोला था तुम्हारा घर छोटा है सुषमा ! सही है, ज्यादा सफाई नहीं करनी पड़ती । हमारी बहू को साफ सुथरा घर पसन्द है , वो तो मुझे भी अपने घर मे पार्टियाँ नहीं करने देती कि घर गन्दा हो जाएगा । बेशक कहीं बाहर पार्टी कर लो पर घर मे नहीं । शहर में पली बढ़ी है तो उसे सफाई और सजावट का भी बहुत शौक है । तुम्हारी बहू का सही है, गाँव की है हर बात में सहमत रहती है । पर मुझे तो मेरी बहू का सोच के चलना होगा न ? मम्मी जो आपको नहीं समझता न उसके लिए इतना सोचने की जरूरत नहीं है । विरोध करिए अगर गलत है तो । और दूसरी बात..जब आपकी बहू आपके हर काम के लिए खुशी से तैयार रहती है तो दूसरों की उल्टी सीधी बातों से घर पर असर क्यों डालना ? वर्क फ्रॉम होम के लिए जबसे आपके पास आकर बैठा हूँ हर सप्ताह ,महीने में यही सुन रहा हूँ..”मिल जुलकर नमकपारे बनवा दो, कभी मठरी कभी अचार, चिप्स । कभी बेटी कभी बहन कभी किसे भेजना है । आप हाथ बंटाने में रहती हैं और सब बनवाने के लिए यहीं आ जाना है फिर दूसरे को गंवार भी साबित करना है । आपके स्वभाव की वजह से वो ज़बरदस्ती घर मे घुसकर हर काम करवाती हैं और फिर दखलंदाजी करती हैं। अभी तो बात यहीं है मम्मी ।लेकिन यही हालात रहे तो वो दिन दूर नहीं जब आप दोनो सास बहू के रिश्ते में भी फूट डालेंगी । अपने दिमाग से सोचिए, नेहा बहुत सोच समझ कर सबके लिए करती है फिर क्यों दूसरे का सुनना ?
प्रभा ताई ने भी बोला था हँसते हुए अपने सालगिरह की पार्टी में कि ” गाँव की बहू लाने के भी फायदे हैं, सारा खाना घर मे ही बना लेती है पर मेरी बहू तो बाहर सिर्फ पढ़ाई पर ही ध्यान देती रही ।
सुषमा जी के आँखों के आगे वो पल फिर से घूमते हुए मानो जीवंत हो उठा जैसे ।
अब सुषमा जी ने बोला ..”मैं बोल ही नहीं पाती बेटा ! तभी घण्टी बजी । रौनक ने दरवाजा खोला तो छह सहेलियों का झुंड खड़ा था । सुषमा जी पर नज़र पड़ते ही प्रभा ताई ने कहा…”मैं सोची कल के पार्टी का आज फाइनल कर लेते हैं ।
सुषमा जी स्तब्ध सबका मुँह देखकर कुछ बोलने की कोशिश कर रही थीं तभी रौनक बोला..”चाची ! अब यहाँ पार्टी नहीं हो पाएगी क्योंकि गंवार दुल्हन अब शहरी बनने की कोशिश कर रही है । सुषमा जी थोड़ी झेंप गईं लेकिन प्रभा ताई ने पूछा…”ऐसा क्या हो गया ? तभी सुषमा जी ने बोला..”हाँ दीदी ! अब हमारी नेहा ने घर में पार्टी मनाने के लिए और पार्टी फ़ूड बनाने के लिए मना कर दिया । तो अब मुझे सोचकर चलना होगा न ?
“क्यों ? सभी सहेलियों ने एक साथ आश्चर्यमिश्रित आवाज में पूछा..”सुषमा जी बड़ी हिम्मत जुटा रही थीं बोलने को तब तक नेहा ने शरारती अंदाज़ में बोल दिया..” चाची, ताई ! मुझे भी आपकी बहुओं की तरह शहरी बनना है और घर की साफ सफाई पर ध्यान देना है ।
प्रभा और रेणु एक दूसरे का मुँह देखने लगीं और सभी सहेलियों की खुसुर फुसुर जारी थी । सुषमा जी ने अब बोला…”खैर पार्टी की छोड़िए, चाय बनाती हूँ सब बैठिए ।
जाना है, कुछ काम है कहते हुए आपस मे एक एक करके सब घर से निकल गईं ।सुषमा जी और नेहा अब खुशी से उछलकर एक दूसरे को गले लगकर झूम उठीं ।
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह
#बहू ने ना बोलना सीख लिया